चैत का छठ कब है
प्रस्तावना
सनातन धर्म में सूर्योपासना का महापर्व छठ आस्था, शुद्धि और प्रकृति प्रेम का अनूठा संगम है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है – एक कार्तिक मास में, जिसे हम ‘कार्तिक छठ’ कहते हैं, और दूसरा चैत्र मास में, जिसे ‘चैती छठ’ या ‘चैत का छठ’ के नाम से जाना जाता है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व की महिमा भी कार्तिक छठ से किसी मायने में कम नहीं है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित है, जो जगत के पालक और ऊर्जा के स्रोत हैं। व्रती इस दौरान कठोर तप और साधना के माध्यम से अपनी शारीरिक और आत्मिक शुद्धि करते हैं, और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। चैती छठ का अनुष्ठान जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, रोगों का नाश करता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। इस लेख में हम चैती छठ के महत्व, उसकी पावन कथा, पूजा विधि और उससे जुड़े नियमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि सनातन संस्कृति के इस दिव्य पर्व की गहराई को समझा जा सके। यह पर्व केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ एकात्मता का, कृतज्ञता का और अटूट श्रद्धा का प्रतीक है।
पावन कथा
छठ पूजा की उत्पत्ति और उसके महत्व को लेकर कई प्राचीन कथाएँ प्रचलित हैं, जो इस पर्व की दिव्यता और प्रामाणिकता को सिद्ध करती हैं। इन कथाओं में से एक अत्यंत प्रचलित कथा राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी से संबंधित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा प्रियव्रत अत्यंत प्रतापी और शक्तिशाली थे, किंतु उनके जीवन में संतान सुख का अभाव था। इस बात से वे और उनकी रानी मालिनी अत्यंत दुःखी रहा करते थे। संतान प्राप्ति की कामना से राजा ने महर्षि कश्यप की सलाह पर एक बड़ा यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के परिणामस्वरूप, महर्षि ने राजा की पत्नी को एक खीर दी और कहा कि इसे ग्रहण करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। रानी मालिनी ने खीर ग्रहण की, और कुछ समय पश्चात उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। किंतु दुर्भाग्यवश, वह बालक मृत पैदा हुआ।
इस घटना से राजा और रानी अत्यंत शोकाकुल हो गए। राजा प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान घाट पहुँचे और स्वयं भी प्राण त्यागने का विचार करने लगे। तभी आकाश से एक तेजस्वी देवी प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। राजा ने उन्हें अपने दुख का कारण बताया।
देवी ने कहा कि वे ब्रह्मा की मानस पुत्री और छठी देवी हैं, जो संसार के समस्त जीवों की रक्षा करती हैं और उन्हें संतान का सुख प्रदान करती हैं। उन्होंने राजा से कहा कि यदि वे उनकी पूजा और व्रत करें, तो उन्हें निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होगी।
छठी देवी ने मृत बालक को अपने हाथों में लिया और अपने स्पर्श से उसे जीवित कर दिया। बालक के जीवित होते ही राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की खुशी का ठिकाना न रहा। तब छठी देवी ने राजा प्रियव्रत को चैत्र शुक्ल षष्ठी को व्रत करने और उनकी पूजा करने का विधान बताया। राजा प्रियव्रत ने विधि-विधान से छठी देवी का व्रत किया और उसके बाद से उन्हें कई संतानों की प्राप्ति हुई और उनका राज्य सुख-समृद्धि से भर गया। तभी से यह व्रत संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने लगा।
एक अन्य कथा महाभारत काल से जुड़ी है, जिसमें सूर्यपुत्र कर्ण का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे प्रतिदिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। वे अपनी इस साधना से अद्भुत बल और तेज प्राप्त करते थे। उन्हीं के द्वारा सूर्य पूजा की यह परंपरा शुरू हुई। महाभारत में ही द्रौपदी द्वारा भी छठ व्रत किए जाने का वर्णन मिलता है। जब पांडव अपना राजपाट हारकर दर-दर भटक रहे थे, तब द्रौपदी ने महर्षि धौम्य की सलाह पर सूर्य की उपासना की थी और छठ व्रत का पालन किया था। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिला था।
छठ पूजा की इन पावन कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अटूट श्रद्धा, विश्वास और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। सूर्य देव और छठी मैया की कृपा से भक्तों के समस्त कष्ट दूर होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। चैती छठ भी इसी परम पावन परंपरा का हिस्सा है, जो चैत्र मास में अपनी विशेष ऊर्जा और महत्व के साथ आता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति और उसके तत्वों का सम्मान करना ही वास्तविक धर्म है।
दोहा
हे छठी मैया विनती सुनियो, कष्ट हरो तुम आज।
संतान सुख दे, धन-धान्य भरो, रखना सबकी लाज।।
चौपाई
जय जय जय छठी मैया तुमरी, सकल जगत है आस तुम्हारी।
सूर्य देव संग पूजा पावो, मनवांछित फल सब जग पावो।।
नहाय-खाय से अरंभ होई, खरना पर मन निर्मल होई।
संध्या अर्घ्य रवि को अर्पित, उषा अर्घ्य सुख शांति अर्पित।।
कठिन तपस्या भक्त जन करते, रोग दोष सब दूर वो करते।
भक्ति भाव से जो भी ध्यावे, जीवन में अक्षय सुख पावे।।
पाठ करने की विधि
चैती छठ का अनुष्ठान चार दिनों तक चलता है और यह अत्यंत पवित्रता, संयम तथा नियमबद्धता की माँग करता है। इसकी विधि इस प्रकार है:
1. पहला दिन: नहाय-खाय
* यह छठ पूजा का पहला दिन होता है, जिसे ‘नहाय-खाय’ कहा जाता है।
* इस दिन व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं। यदि संभव न हो तो घर पर ही पवित्र जल से स्नान करें।
* स्नान के बाद व्रती घर की साफ-सफाई करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
* इस दिन कद्दू की सब्जी, दाल और चावल आदि का सेवन किया जाता है, जो शुद्ध और सेंधा नमक में बना हो।
* भोजन ग्रहण करने के बाद पूरे दिन व्रत का संकल्प लिया जाता है।
2. दूसरा दिन: खरना
* छठ पूजा का दूसरा दिन ‘खरना’ के नाम से जाना जाता है।
* इस दिन व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं।
* प्रसाद में गुड़ और चावल की खीर (रसिया), पूड़ी, और केले शामिल होते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है।
* खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ करते हैं, जो अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है।
3. तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
* यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, जिसे ‘संध्या अर्घ्य’ कहा जाता है।
* इस दिन व्रती विभिन्न प्रकार के ठेकुआ, फल, गन्ना, नारियल, और अन्य मौसमी फलों को बांस की टोकरियों (दउरा) में सजाकर रखते हैं।
* शाम के समय व्रती परिवार के अन्य सदस्यों के साथ नदी या तालाब के किनारे जाते हैं।
* सूर्यास्त के समय, व्रती जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के लिए दूध और जल का प्रयोग किया जाता है।
* इस दौरान छठी मैया के गीत गाए जाते हैं और सूर्य देव की स्तुति की जाती है।
4. चौथा दिन: उषा अर्घ्य (पारण)
* छठ पूजा का अंतिम दिन ‘उषा अर्घ्य’ या ‘पारण’ कहलाता है।
* इस दिन व्रती भोर में ही पुनः नदी या तालाब के किनारे पहुँच जाते हैं और उगते हुए सूर्य देव का इंतजार करते हैं।
* सूर्य उदय होते ही व्रती पुनः जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
* अर्ध्य देने के बाद व्रती छठी मैया से सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं।
* इसके बाद व्रती घर आकर छठ मैया को प्रणाम करते हैं और प्रसाद ग्रहण करके अपना 36 घंटे का व्रत खोलते हैं, जिसे ‘पारण’ कहा जाता है।
* इस दिन घर के सभी सदस्य और आस-पड़ोस के लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।
यह विधि अत्यंत श्रद्धा और पवित्रता के साथ संपन्न की जाती है, जिसका हर चरण गहरे आध्यात्मिक अर्थों से भरा होता है।
पाठ के लाभ
चैती छठ का व्रत अत्यंत कठिन तपस्या का मार्ग है, किंतु इसके लाभ अनमोल और बहुआयामी हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्तर पर भी सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
1. संतान प्राप्ति: जिन दंपत्तियों को संतान सुख नहीं मिल पाता, वे इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करते हैं। ऐसी मान्यता है कि छठी मैया की कृपा से उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
2. स्वास्थ्य और दीर्घायु: सूर्य देव को आरोग्य का देवता माना जाता है। इस व्रत को करने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं, रोगों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति दीर्घायु होता है। सूर्य की उपासना से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
3. सुख-समृद्धि: छठ पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। परिवार में एकता और प्रेम बढ़ता है। व्यापार और नौकरी में उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं।
4. मनोकामना पूर्ति: जो भक्त सच्चे मन से छठी मैया और सूर्य देव की उपासना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। चाहे वह धन, यश, या किसी विशेष इच्छा की पूर्ति हो।
5. पापों का नाश: यह व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्ति दिलाता है और उसे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करता है। कठोर तपस्या और आत्मसंयम से आत्मा शुद्ध होती है।
6. नकारात्मकता का नाश: सूर्य की किरणें नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मकता फैलाती हैं। इस व्रत से घर और जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता दूर होती है।
7. प्रकृति से जुड़ाव: यह पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक माध्यम है। जल, सूर्य, वायु जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा से व्यक्ति प्रकृति के करीब आता है और उसके महत्व को समझता है।
8. पारिवारिक कल्याण: छठ पूजा पूरे परिवार के सदस्यों को एक साथ लाने और मिलकर अनुष्ठान करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं और सभी का कल्याण होता है।
ये सभी लाभ चैती छठ के महत्व को और भी बढ़ा देते हैं, जिससे यह महापर्व जन-जन की आस्था का केंद्र बन जाता है।
नियम और सावधानियाँ
चैती छठ पूजा अत्यंत पवित्रता और कठोर नियमों के साथ की जाने वाली उपासना है। इन नियमों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
1. पवित्रता और स्वच्छता: छठ पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। घर की साफ-सफाई नहाय-खाय से ही शुरू हो जाती है। पूजा के सभी बर्तनों और सामग्री को शुद्ध रखना चाहिए। व्रती को नए या धुले हुए स्वच्छ वस्त्र ही धारण करने चाहिए।
2. सात्विक भोजन और संयम: व्रत के दौरान लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि तामसिक पदार्थों का सेवन पूर्णतः वर्जित होता है। खरना के प्रसाद को बनाने में भी अत्यंत शुद्धता का पालन किया जाता है। व्रती को मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना चाहिए।
3. निर्जला व्रत का पालन: खरना के बाद से सूर्योदय अर्घ्य तक 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है, जिसमें अन्न और जल दोनों का त्याग किया जाता है। इस अवधि में किसी भी प्रकार का खान-पान वर्जित है।
4. बांस की टोकरी और मिट्टी के चूल्हे का प्रयोग: अर्घ्य देने के लिए बांस से बनी टोकरियों (दउरा) और सूप का ही प्रयोग किया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का उपयोग पारंपरिक रूप से किया जाता है। गैस चूल्हे का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
5. नदी या तालाब में अर्घ्य: अर्घ्य हमेशा किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय में खड़े होकर ही दिया जाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर में साफ-सुथरे स्थान पर पानी इकट्ठा करके अर्घ्य दिया जा सकता है, लेकिन नदी या तालाब को अधिक शुभ माना जाता है।
6. प्रसाद की शुद्धता: छठ का प्रसाद बनाते समय किसी भी अनैतिक व्यक्ति या अपवित्र वस्तु का स्पर्श न होने दें। प्रसाद बनाते समय व्रती या शुद्ध मन वाले व्यक्ति ही रसोई में रहें।
7. अपशब्द और क्रोध से बचें: व्रत के दौरान व्रती को किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, अपशब्द नहीं बोलना चाहिए और मन में किसी प्रकार का नकारात्मक विचार नहीं लाना चाहिए। शांत और सकारात्मक मन से ही पूजा करनी चाहिए।
8. अर्घ्य देने का सही समय: डूबते और उगते सूर्य को ही अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य के समय सूर्य की किरणें शरीर पर पड़नी चाहिए, इससे आरोग्य लाभ मिलता है।
9. व्रत का संकल्प: व्रत का प्रारंभ करते समय सच्चे मन से संकल्प लेना चाहिए और उसका पूरी निष्ठा के साथ पालन करना चाहिए। एक बार व्रत शुरू करने के बाद इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाने का विधान है, जब तक कि कोई विशेष परिस्थिति न हो।
इन नियमों का पालन कर चैती छठ का व्रत करने से भगवान सूर्य और छठी मैया की असीम कृपा प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
चैत का छठ महापर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के प्रति कृतज्ञता, प्रकृति के प्रति सम्मान और आस्था की अविचल शक्ति का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि किस प्रकार कठोर तपस्या, पवित्रता और अटूट श्रद्धा से जीवन की सबसे बड़ी बाधाओं को पार किया जा सकता है और असंभव को संभव बनाया जा सकता है। सूर्य देव जो समस्त सृष्टि को ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करते हैं, उनकी उपासना हमें शारीरिक और आत्मिक बल देती है। वहीं छठी मैया संतान सुख, आरोग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
चैती छठ का हर एक दिन, नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक, आत्मशुद्धि और समर्पण का एक गहरा पाठ है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन के प्रत्येक तत्व, चाहे वह जल हो या अग्नि, सबका अपना महत्व है और हमें उनका सम्मान करना चाहिए। यह हमें परिवार के साथ मिलकर एक पवित्र कार्य में लीन होने का अवसर देता है, जिससे पारिवारिक बंधन और भी प्रगाढ़ होते हैं।
तो आइए, चैती छठ के इस पावन अवसर पर हम भी अपने मन में सूर्य देव और छठी मैया के प्रति अटूट आस्था जगाएँ। उनके आशीर्वाद से हमारा जीवन प्रकाशमय हो, हमारे सभी कष्ट दूर हों और हम सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हों। यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि जीवन में शुद्धता, संयम और समर्पण का मार्ग ही वास्तविक आनंद और मोक्ष की ओर ले जाता है। सनातन धर्म की यह अनुपम परंपरा युगों-युगों तक हमें प्रेरणा देती रहे।

