गुरुवार को पूजा करते समय किस बात का ध्यान रखें
प्रस्तावना
सनातन धर्म में प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है और उन दिनों में की गई उपासना का अपना विशेष महत्व होता है। गुरुवार का दिन भगवान विष्णु, जगत के पालनहार, और देवगुरु बृहस्पति को समर्पित है। यह दिन ज्ञान, समृद्धि, विवाह और संतान सुख का कारक माना जाता है। इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य लेकर आती है। किंतु, किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब उसे सही विधि और पूर्ण ध्यान के साथ किया जाए। केवल कर्मकांड करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती, बल्कि उसके पीछे की भावना और समर्पण ही मायने रखता है। आज हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे कि गुरुवार को पूजा करते समय हमें किन विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि हमारी उपासना न केवल सफल हो, बल्कि हमें आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के लाभ मिल सकें। यह सिर्फ नियमों का पालन नहीं, बल्कि अपने आराध्य से जुड़ने का एक पवित्र माध्यम है, जिसमें हमारा अंतर्मन भी पूरी तरह से लीन हो।
पावन कथा
प्राचीन काल में एक अत्यंत धार्मिक परंतु दरिद्र ब्राह्मण परिवार था। परिवार में एक ब्राह्मण पति, उसकी पत्नी और उनके दो छोटे बच्चे थे। ब्राह्मण अत्यंत ज्ञानी था, परंतु उसके पास धन का अभाव था, जिसके कारण परिवार में हमेशा चिंता और क्लेश बना रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ईश्वर पर बहुत आस्था रखती थी, परंतु अपनी दरिद्रता से वह भी दुखी रहती थी। एक दिन, एक सिद्ध महात्मा उनके द्वार पर भिक्षाटन के लिए आए। ब्राह्मण पत्नी ने श्रद्धापूर्वक उन्हें भोजन कराया। भोजन उपरांत महात्मा ने उसके उदास चेहरे को देखकर पूछा, “पुत्री, तुम इतनी चिंतित क्यों प्रतीत होती हो?”
ब्राह्मण पत्नी ने अपनी सारी व्यथा महात्मा को कह सुनाई, “महाराज, हम धर्म का पालन करते हैं, परंतु फिर भी दरिद्रता हमें घेरे हुए है। मुझे समझ नहीं आता कि हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए ताकि भगवान हम पर प्रसन्न हों।”
महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “पुत्री, तुम्हारी समस्या का समाधान गुरुवार के व्रत और भगवान विष्णु की सच्ची पूजा में छिपा है। तुम हर गुरुवार को सच्चे मन से भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा करो। किंतु ध्यान रहे, पूजा केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि अपने अंतर्मन से भगवान के प्रति समर्पण है। तुम्हें अपनी पूजा में ‘ध्यान’ रखना होगा।”
महात्मा ने आगे समझाया, “ध्यान रखने का अर्थ है कि पूजा के हर क्षण में तुम्हारा मन भगवान में ही लीन हो। स्नान करते समय भगवान के नाम का स्मरण करो, स्वच्छ वस्त्र धारण करते समय पवित्रता का भाव रखो, पूजा सामग्री जुटाते समय यह सोचो कि तुम यह सब अपने प्रिय प्रभु के लिए एकत्र कर रही हो। जब तुम आसन पर बैठो, तो बाहरी विचारों को त्याग कर केवल भगवान के स्वरूप का ध्यान करो। पुष्प चढ़ाते समय, दीपक जलाते समय, कथा सुनते समय – हर क्रिया में तुम्हारी भावना ऐसी होनी चाहिए जैसे साक्षात भगवान तुम्हारे सम्मुख विराजमान हैं। मन में कोई संदेह न हो, कोई लालच न हो, केवल शुद्ध प्रेम और विश्वास हो।”
ब्राह्मण पत्नी ने महात्मा के वचनों को हृदय से ग्रहण किया। अगले गुरुवार से ही उसने संकल्प लेकर व्रत का पालन करना आरंभ किया। प्रारंभ में उसे एकाग्रता बनाए रखने में कठिनाई हुई, मन भटकता था। वह पूजा करते समय घर के कामों, बच्चों की जरूरतों, और अपनी दरिद्रता के बारे में सोचती रहती थी। उसे लगा कि वह महात्मा के बताए ‘ध्यान’ को नहीं कर पा रही है। एक रात, स्वप्न में भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और बोले, “पुत्री, तुम्हारी श्रद्धा में कमी नहीं है, परंतु तुम्हारे मन में अभी भी चंचलता है। जब तुम पूजा करती हो, तो तुम्हारा मन कहीं और होता है। सच्ची पूजा तभी है जब तुम्हारा हर रोम, हर श्वास मुझे समर्पित हो। तुम्हें पूजा में अपने मन को पूरी तरह केंद्रित करना होगा। अपने मन में उठने वाले हर विचार को मेरे चरणों में अर्पित कर दो।”
जागने के बाद ब्राह्मण पत्नी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने दृढ़ संकल्प लिया कि वह अब से पूरी निष्ठा और ध्यान के साथ पूजा करेगी। उसने मन को शांत करने के लिए प्रतिदिन ध्यान करना शुरू किया और गुरुवार की पूजा में अपने प्रत्येक कार्य को भगवान को समर्पित भावना से करने लगी। वह पीले वस्त्र पहनती, घर को स्वच्छ रखती, भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करती, और कथा सुनते समय प्रत्येक शब्द को हृदय में उतारती। वह केले के पेड़ की पूजा करती और चने की दाल व गुड़ का भोग लगाती। उसके मन में अब कोई विचार नहीं आता था, केवल भगवान की भक्ति ही सर्वोपरि थी।
कुछ ही समय बाद, उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा। उसके पति को एक नगर के राजा ने अपने दरबार में मंत्री पद पर नियुक्त कर दिया। उनकी दरिद्रता दूर हुई और घर में सुख-समृद्धि का वास हो गया। उनके बच्चे भी ज्ञानी और संस्कारी हुए। ब्राह्मण पत्नी ने यह समझ लिया कि सच्ची पूजा केवल विधि-विधान का पालन नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति पूर्ण एकाग्रता और समर्पित ‘ध्यान’ है। उसका जीवन अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा बन गया कि किस प्रकार सही ‘ध्यान’ के साथ की गई भक्ति असंभव को भी संभव बना सकती है।
दोहा
गुरुवार गुरु बृहस्पति का, हरि विष्णु का ध्यान।
जो एकाग्र मन पूजते, पाते सुख-ज्ञान महान।।
चौपाई
गुरुवार दिन अति पावन भाई, हरि कृपा बरसे सुखदाई।
पूत पवित्र मन जब हो जावे, प्रभु चरणों में चित्त रमावे।।
हल्दी, चना और केला चढ़ाओ, सत्य कथा मन से सुनाओ।
जो करे ध्यान से व्रत-पूजन, पावे हरि का पावन दर्शन।।
पाठ करने की विधि
गुरुवार की पूजा करते समय ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं। इन्हें अपनाकर आप अपनी पूजा को अधिक प्रभावी बना सकते हैं:
1. पवित्रता और स्वच्छता: गुरुवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें। स्नान के पानी में थोड़ी हल्दी मिलाकर स्नान करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है। स्नान के उपरांत स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। घर और पूजा स्थल को भी अच्छी तरह से साफ करें। मन में भी किसी प्रकार का दुर्विचार या नकारात्मकता न रखें।
2. संकल्प लेना: पूजा आरंभ करने से पूर्व हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर अपने इच्छित फल की प्राप्ति हेतु संकल्प लें। यह संकल्प ही आपकी पूजा को एक दिशा प्रदान करता है और आपका मन एकाग्र रहता है।
3. सही दिशा और आसन: पूजा हमेशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में मुख करके करनी चाहिए, क्योंकि यह देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। पूजा के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें।
4. भगवान का आवाहन और ध्यान: भगवान विष्णु या बृहस्पति देव की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें। सर्वप्रथम जल से स्नान कराएं (यदि प्रतिमा हो) और फिर चंदन, रोली, अक्षत, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, तुलसी दल अर्पित करें। ध्यान रखें कि आप जो कुछ भी अर्पित कर रहे हैं, वह शुद्ध और पवित्र हो। इसके बाद आंखें बंद करके भगवान के स्वरूप का ध्यान करें। उनके दिव्य रूप, उनकी शांतिपूर्ण मुद्रा, उनके करुणापूर्ण नेत्रों का स्मरण करें। मन को इधर-उधर भटकने न दें।
5. भोग और प्रसाद: गुरुवार की पूजा में केले, चने की दाल, गुड़, बेसन के लड्डू या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाया जाता है। भगवान को भोग लगाते समय मन में श्रद्धा का भाव रखें कि आप अपने आराध्य को भोजन करा रहे हैं। प्रसाद को बाद में स्वयं ग्रहण करें और अन्य भक्तों में भी वितरित करें।
6. दीपक और धूप: शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें। दीपक जलाते समय ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं। धूपबत्ती या अगरबत्ती जलाकर वातावरण को सुगंधित करें। यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
7. मंत्र जाप: भगवान विष्णु के मंत्र ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ या देवगुरु बृहस्पति के मंत्र ‘ओम बृं बृहस्पतये नमः’ का कम से कम 108 बार जाप करें। मंत्र जाप करते समय प्रत्येक शब्द पर ध्यान केंद्रित करें और मन को शांत रखें। माला का प्रयोग कर सकते हैं।
8. गुरुवार व्रत कथा या सत्यनारायण कथा: गुरुवार को भगवान सत्यनारायण की कथा या बृहस्पति देव की कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कथा सुनते समय आपका मन कथा के पात्रों और शिक्षा में लीन होना चाहिए। कथा के माध्यम से प्राप्त होने वाले ज्ञान को जीवन में उतारने का प्रयास करें।
9. आरती और क्षमा याचना: कथा के उपरांत भगवान की आरती करें। आरती करते समय पूरे मन से भगवान की महिमा का गुणगान करें। अंत में, पूजा में हुई किसी भी त्रुटि या कमी के लिए भगवान से क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
पाठ के लाभ
गुरुवार की पूजा को सच्चे ध्यान और श्रद्धा के साथ करने से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जो व्यक्ति के भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करते हैं।
1. धन-धान्य और समृद्धि: भगवान विष्णु को धन की देवी लक्ष्मी का पति माना जाता है। गुरुवार को उनकी पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। देवगुरु बृहस्पति की कृपा से आय के नए स्रोत खुलते हैं।
2. ज्ञान और बुद्धि: बृहस्पति ग्रह ज्ञान, बुद्धि और विवेक का कारक है। गुरुवार की पूजा और व्रत से छात्रों को विद्या में सफलता मिलती है और व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। यह व्यक्ति के आध्यात्मिक ज्ञान को भी बढ़ाता है।
3. विवाह संबंधी बाधाओं का निवारण: अविवाहित युवक-युवतियों के विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। देवगुरु बृहस्पति की कृपा से योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
4. संतान सुख: जिन दंपतियों को संतान प्राप्ति में कठिनाई आ रही हो, उन्हें गुरुवार का व्रत और पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह संतान को दीर्घायु और यशस्वी बनाता है।
5. रोगों से मुक्ति: गुरुवार की पूजा से ग्रह दोष शांत होते हैं और व्यक्ति को शारीरिक तथा मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। बृहस्पति देव आरोग्य और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं।
6. शांति और संतोष: नियमित और ध्यानपूर्वक की गई गुरुवार की पूजा से मन शांत होता है, अनावश्यक चिंताएं दूर होती हैं और व्यक्ति के जीवन में संतोष का भाव आता है। यह आत्मिक शांति प्रदान करता है।
7. ग्रह दोषों का शमन: जिनकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो, उन्हें गुरुवार की पूजा और व्रत करने से बृहस्पति के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
8. मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा: देवगुरु बृहस्पति की कृपा से व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान और उच्च पद की प्राप्ति होती है। उसका यश चारों दिशाओं में फैलता है।
नियम और सावधानियाँ
गुरुवार की पूजा करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। इन बातों का ध्यान रखने से आप किसी भी अनजाने दोष से बच सकते हैं।
1. केले का दान और सेवन: गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन केले का दान करना शुभ माना जाता है, परंतु स्वयं केले का सेवन नहीं करना चाहिए। केले के पेड़ को जल अर्पित करें, पर फल न तोड़ें।
2. बाल धोना और कपड़े धोना: कुछ मान्यताओं के अनुसार, गुरुवार के दिन स्त्रियों को बाल नहीं धोने चाहिए और न ही कपड़े धोने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे बृहस्पति कमजोर होता है और धन हानि हो सकती है। हालांकि, यह व्यक्तिगत आस्था पर निर्भर करता है। पुरुषों को बाल कटवाने और शेविंग से भी बचना चाहिए।
3. साफ-सफाई में सावधानी: घर में पोछा लगाते समय ध्यान रखें कि उस दिन घर के मुख्य द्वार को छोड़कर किसी भी कोने से घर का कचरा बाहर न फेंकें। ऐसा करने से लक्ष्मी जी का वास बाधित हो सकता है।
4. लेन-देन और उधारी: गुरुवार के दिन पैसों का लेन-देन, विशेषकर उधार देना या लेना, शुभ नहीं माना जाता है। इससे धन संबंधी परेशानियां बढ़ सकती हैं।
5. मांसाहार और मदिरापान: गुरुवार के दिन तामसिक भोजन (मांस, अंडे, लहसुन, प्याज) और मदिरापान का पूर्णतः त्याग करना चाहिए। सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
6. व्रत करने वालों के लिए: यदि आप गुरुवार का व्रत कर रहे हैं, तो केवल एक समय भोजन करें और उसमें भी नमक का सेवन न करें। पीले रंग के पकवान या फलहार ही ग्रहण करें।
7. पीले रंग का महत्व: गुरुवार को पीले रंग का विशेष महत्व है। पूजा करते समय पीले वस्त्र धारण करें। पीली वस्तुओं जैसे चना दाल, हल्दी, पीले फूल, पीली मिठाई का दान करना और सेवन करना शुभ होता है।
8. वाणी में मधुरता: गुरुवार के दिन अपनी वाणी में मधुरता रखें। किसी से कटु वचन न बोलें और न ही किसी का अपमान करें। यह देवगुरु बृहस्पति को प्रसन्न करता है।
9. गुरुजनों और बड़ों का सम्मान: गुरुवार के दिन अपने गुरुजनों, माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें। उनका आशीर्वाद प्राप्त करना बृहस्पति देव को प्रसन्न करने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है।
10. दान का महत्व: अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को पीले वस्त्र, अन्न या धन का दान अवश्य करें। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और ग्रह दोष शांत होते हैं।
निष्कर्ष
गुरुवार की पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने आराध्य भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति से जुड़ने का एक पवित्र और शक्तिशाली माध्यम है। इस पूजा का वास्तविक फल तभी प्राप्त होता है जब इसे केवल विधि-विधानों का पालन मात्र न समझकर, पूरे ध्यान, एकाग्रता और सच्ची भावना के साथ किया जाए। जब हम मन को भटकने न देकर, हर क्रिया को ईश्वर को समर्पित करते हैं, तब हमारी आत्मा शुद्ध होती है और हम दिव्य ऊर्जा से भर जाते हैं। यह हमें न केवल भौतिक समृद्धि प्रदान करती है, बल्कि हमारे जीवन में ज्ञान, शांति और आध्यात्मिक उत्थान भी लाती है। यह हमें यह भी सिखाती है कि जीवन के हर कार्य में अगर हम ध्यान और समर्पण को स्थान दें, तो प्रत्येक कार्य एक पूजा बन जाता है। तो आइए, अगले गुरुवार से हम अपनी पूजा में इन सूक्ष्म बातों का ध्यान रखें और देखें कि कैसे हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं, क्योंकि ईश्वर को सबसे प्रिय हमारा शुद्ध और समर्पित हृदय ही होता है। अपनी उपासना को एक गहरी अनुभूति में बदलें, यही सच्ची भक्ति है।
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पूजा विधि, धार्मिक व्रत, भगवान विष्णु पूजा
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गुरुवार पूजा, विष्णु भगवान, बृहस्पति देव, गुरुवार व्रत, पूजा के नियम, धार्मिक ध्यान, सनातन धर्म, पीली वस्तुएं

