नवरात्रि के पावन पर्व में महाष्टमी और महानवमी का विशेष महत्व है। यह लेख आपको वर्ष 2025 में इन दोनों शुभ तिथियों की जानकारी देगा और साथ ही इन दिनों की महिमा, पूजा विधि और देवी दुर्गा की पावन कथा से अवगत कराएगा, जिससे आपका आध्यात्मिक उत्कर्ष हो सके।

नवरात्रि के पावन पर्व में महाष्टमी और महानवमी का विशेष महत्व है। यह लेख आपको वर्ष 2025 में इन दोनों शुभ तिथियों की जानकारी देगा और साथ ही इन दिनों की महिमा, पूजा विधि और देवी दुर्गा की पावन कथा से अवगत कराएगा, जिससे आपका आध्यात्मिक उत्कर्ष हो सके।

अष्टमी और नामी कब है 2025 में

प्रस्तावना
सनातन धर्म में शक्ति उपासना का महापर्व नवरात्रि, माँ दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों को समर्पित है। यह नौ दिनों का उत्सव भक्तों के जीवन में नव ऊर्जा, नव चेतना और नव उत्साह का संचार करता है। इन नौ दिनों में विशेषकर अष्टमी और नवमी तिथि का महत्व अद्वितीय है। यह वह समय होता है जब माँ आदिशक्ति अपनी पूर्ण शक्ति और कृपा के साथ भक्तों पर वर्षा करती हैं। इन पवित्र तिथियों पर माँ दुर्गा की आराधना से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। हर वर्ष की भाँति, श्रद्धालु यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि वर्ष 2025 में ये पावन तिथियाँ कब पड़ रही हैं। चैत्र नवरात्रि 2025 का आरंभ शनिवार, 29 मार्च 2025 से होगा और इसी क्रम में महाष्टमी (दुर्गा अष्टमी) शनिवार, 5 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी, जबकि महानवमी (राम नवमी) रविवार, 6 अप्रैल 2025 को पड़ेगी। इसके पश्चात विजयदशमी सोमवार, 7 अप्रैल 2025 को होगी। इन तिथियों का ज्ञान भक्तों को अपनी पूजा-अर्चना और व्रत अनुष्ठान की योजना बनाने में सहायता करेगा। आइए, इन तिथियों के साथ माँ दुर्गा की अद्भुत महिमा और उनसे जुड़ी पावन कथा में गोता लगाएँ।

पावन कथा
नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी स्वरूप की विजय का प्रतीक है। इस पावन पर्व की जड़ें एक प्राचीन और शक्तिशाली कथा में निहित हैं जो धर्म की अधर्म पर विजय, सत्य की असत्य पर विजय और दैवीय शक्ति की दानवी क्रूरता पर विजय को दर्शाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक एक अत्यंत बलशाली असुर था जिसने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि कोई भी पुरुष, देवता या दानव उसे मार नहीं सकता। इस वरदान के अहंकार में चूर होकर महिषासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर उसने देवराज इंद्र को पराजित किया और देवताओं को स्वर्ग से निकाल बाहर किया। पृथ्वी और पाताल लोक पर भी उसका अत्याचार चरम पर पहुँच गया था।

महिषासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवता, ऋषि-मुनि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुँचे और अपनी व्यथा सुनाई। देवताओं की करुण पुकार सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश अत्यंत क्रोधित हुए। उनके क्रोध और सभी देवताओं के तेज से एक अद्भुत प्रकाश पुंज निकला जो धीरे-धीरे एक अत्यंत तेजोमय देवी के रूप में परिवर्तित हो गया। यह देवी थीं माँ दुर्गा, जो आदिशक्ति का साक्षात् स्वरूप थीं। महादेव ने उन्हें त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने चक्र, इंद्र ने वज्र, वरुण देव ने शंख, अग्नि देव ने शक्ति, वायु देव ने धनुष-बाण, विश्वकर्मा ने फरसा और ब्रह्मा जी ने कमंडल प्रदान किया। इस प्रकार, समस्त देवी-देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र और शक्तियाँ माँ दुर्गा को प्रदान कीं, जिससे वे असीम शक्ति से संपन्न हो गईं।

माँ दुर्गा एक प्रचंड गर्जना के साथ महिषासुर से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ीं। उनकी गर्जना से तीनों लोक काँप उठे। महिषासुर ने जब यह देखा तो उसने अपनी दानवी सेना के साथ देवी पर आक्रमण कर दिया। माँ दुर्गा ने अपने वाहन सिंह पर सवार होकर भीषण युद्ध किया। उन्होंने अपनी विभिन्न भुजाओं में धारण किए हुए शस्त्रों से महिषासुर की सेना का संहार करना आरंभ किया। दानवों को गाजर-मूली की तरह काटते हुए माँ दुर्गा ने चंड और मुंड जैसे शक्तिशाली असुरों का भी वध किया। रक्तबीज नामक असुर को तो यह वरदान था कि उसके रक्त की एक बूंद भी यदि पृथ्वी पर गिरती तो उससे हजारों रक्तबीज उत्पन्न हो जाते। माँ दुर्गा ने काली का रूप धारण किया और उसकी एक-एक बूंद रक्त को पृथ्वी पर गिरने से पहले ही अपनी जिह्वा पर धारण कर लिया, जिससे रक्तबीज का अंत हुआ।

यह युद्ध कई दिनों तक चला। अंततः, माँ दुर्गा और महिषासुर का आमना-सामना हुआ। महिषासुर ने अपने मायावी स्वरूपों का प्रदर्शन किया। कभी वह भैंसे के रूप में आता, कभी सिंह के रूप में, और कभी मनुष्य के रूप में। लेकिन माँ दुर्गा ने अपने दिव्य अस्त्रों और अपनी अजेय शक्ति से उसके हर रूप को परास्त किया। अंत में, जब महिषासुर अपने भैंसे के रूप में देवी पर वार करने आ रहा था, तब माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसके हृदय को भेद दिया और उसके वक्ष से बाहर निकलते हुए असुर के सिर को अपने खड्ग से काट डाला। इस प्रकार, माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर देवताओं और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। यह विजय अष्टमी और नवमी के दिनों में प्राप्त हुई थी, इसलिए इन तिथियों को शक्ति की विजय और धर्म की स्थापना के रूप में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। विशेष रूप से नवमी तिथि पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई की ही विजय होती है और माँ दुर्गा सदैव अपने भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहती हैं।

दोहा
नवमी अष्टमी पावन दिन, महिमा गाएँ सब जन।
कृपा करो माँ जगदम्बे, संकट हरो हर क्षण।।

चौपाई
जय जय दुर्गे जय महिषासुर मर्दिनी, शुभ निशुंभ विदारिनी।
चंड मुंड संहारिनी, रक्तबीज नाशिनी।
शरणागत की लाज रखियो, भव सागर से पार करियो।
सकल मनोरथ पूरण करियो, माँ मेरी विनती सुनियो।

पाठ करने की विधि
नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा विधि अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से परिपूर्ण होनी चाहिए। यद्यपि घटस्थापना नवरात्रि के प्रथम दिन होती है, अष्टमी और नवमी का पूजन विशेष विधि-विधान से किया जाता है। इन दिनों की पूजा विधि इस प्रकार है:

1. **प्रातःकाल स्नान और संकल्प:** अष्टमी या नवमी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएँ। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें। इसके बाद हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत या पूजा का संकल्प करें।
2. **माँ दुर्गा की स्थापना और पूजन:** पूजा चौकी पर माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें लाल वस्त्र, चुनरी, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प, फल और नैवेद्य अर्पित करें। विशेष रूप से माँ को लाल गुड़हल या गुलाब के फूल अत्यंत प्रिय हैं।
3. **दुर्गा सप्तशती का पाठ:** इस दिन दुर्गा सप्तशती के नवें अध्याय का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है। यदि संपूर्ण सप्तशती का पाठ न कर सकें, तो केवल देवी कवच, अर्गला स्तोत्र और कीलक स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।
4. **कन्या पूजन:** अष्टमी और नवमी का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान कन्या पूजन है। इसमें 9 वर्ष से कम आयु की नौ कन्याओं और एक बालक (जिन्हें भैरव का प्रतीक माना जाता है) को आमंत्रित किया जाता है। उन्हें स्वच्छ स्थान पर बैठाकर उनके चरण धोए जाते हैं और तिलक लगाकर वस्त्र, दक्षिणा और भोजन (हलवा, पूड़ी, चना) परोसा जाता है। कन्याओं को माँ दुर्गा का साक्षात् स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
5. **हवन:** नवमी के दिन हवन का विशेष महत्व है। एक साफ-सुथरी जगह पर हवन कुंड स्थापित करें। शुभ मुहूर्त में अग्नि प्रज्वलित कर ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र का जाप करते हुए हवन सामग्री, घी, जौ, तिल, चावल, शक्कर आदि की आहुति दें। हवन के अंत में पूर्णाहुति दी जाती है और देवी से क्षमा याचना की जाती है।
6. **आरती और प्रसाद वितरण:** पूजा और हवन समाप्त होने के बाद माँ दुर्गा की आरती करें। कपूर और घी के दीपक से माँ की स्तुति करते हुए उनकी महिमा का गुणगान करें। इसके बाद पूजा में चढ़ाया गया प्रसाद और हवन का प्रसाद सभी उपस्थित लोगों में वितरित करें।

पाठ के लाभ
माँ दुर्गा की अष्टमी और नवमी की पूजा अर्चना और व्रत के अनेक लाभ शास्त्रों में वर्णित हैं, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं। इन पावन दिनों में की गई भक्ति से न केवल लौकिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के द्वार भी खुलते हैं:

1. **शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि:** व्रत और पूजा से शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। सात्विक जीवनशैली और एकाग्र मन से की गई आराधना आंतरिक शांति प्रदान करती है।
2. **पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति:** माँ दुर्गा की कृपा से जाने-अनजाने में हुए सभी पापों का क्षय होता है। सच्ची भक्ति से व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।
3. **भय, रोग और शत्रुओं से मुक्ति:** माँ दुर्गा को आदिशक्ति और दुष्टों का संहार करने वाली देवी माना जाता है। उनकी आराधना से भय, रोग और शत्रुओं का नाश होता है। भक्त हर प्रकार के संकट से सुरक्षित रहते हैं।
4. **सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति:** माँ दुर्गा धन, धान्य और सुख-समृद्धि की प्रदाता हैं। उनकी पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
5. **मनोकामनाओं की पूर्ति:** सच्ची श्रद्धा और विश्वास से माँ की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। माँ अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा करती हैं, चाहे वह संतान प्राप्ति हो, व्यापार में सफलता हो या अन्य कोई अभिलाषा।
6. **नकारात्मक शक्तियों का नाश:** इन दिनों में किए गए अनुष्ठान नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर भगाते हैं और सकारात्मकता का संचार करते हैं। बुरी शक्तियाँ और ऊपरी बाधाएँ स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं।
7. **आत्मविश्वास में वृद्धि:** माँ दुर्गा की शक्ति और पराक्रम का स्मरण करने से भक्तों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और वे जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिक सशक्त महसूस करते हैं।

नियम और सावधानियाँ
अष्टमी और नवमी के पवित्र दिनों में माँ दुर्गा की आराधना करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके:

1. **पवित्रता और शुद्धता:** पूजा के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र ही धारण करें। पूजा स्थल को भी पूर्णतः स्वच्छ और पवित्र रखें।
2. **ब्रह्मचर्य का पालन:** इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। मन को शांत और विकार रहित रखें।
3. **सात्विक भोजन:** व्रत रखने वाले व्यक्ति को केवल सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, अंडा और अन्य तामसिक वस्तुओं का सेवन बिल्कुल न करें। अन्न का सेवन वर्जित होता है, फलाहार या सात्विक व्रत आहार ही लें।
4. **क्रोध, लोभ और मोह का त्याग:** मन में किसी भी प्रकार का क्रोध, लोभ, ईर्ष्या या मोह न आने दें। वाद-विवाद से बचें और सभी के प्रति विनम्रता का भाव रखें।
5. **दिन में सोना वर्जित:** व्रत रखने वाले व्यक्ति को दिन में सोने से बचना चाहिए। अपना समय भक्ति, जप, तप और माँ के स्मरण में व्यतीत करें।
6. **नाखून काटना और बाल कटवाना वर्जित:** इन शुभ दिनों में बाल कटवाना, दाढ़ी बनाना या नाखून काटना शुभ नहीं माना जाता है।
7. **चमड़े की वस्तुओं से दूरी:** पूजा के दौरान और व्रत के दिनों में चमड़े की वस्तुओं का प्रयोग न करें।
8. **सावधानीपूर्वक कन्या पूजन:** कन्या पूजन करते समय कन्याओं का आदर करें और उन्हें माता का स्वरूप मानकर ही भोजन कराएँ और भेंट दें। किसी भी कन्या के प्रति अनादर का भाव न रखें।
9. **अखंड दीपक की सावधानी:** यदि अखंड ज्योति प्रज्वलित की है, तो उसकी निरंतरता और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें, ताकि वह बुझने न पाए।

निष्कर्ष
अष्टमी और महानवमी, चैत्र नवरात्रि के वे दिन हैं जब माँ आदिशक्ति अपने चरम स्वरूप में भक्तों पर कृपा करती हैं। वर्ष 2025 में शनिवार, 5 अप्रैल को महाष्टमी और रविवार, 6 अप्रैल को महानवमी का पावन पर्व मनाया जाएगा। ये तिथियाँ केवल कैलेंडर पर अंकित संख्याएँ नहीं, बल्कि माँ दुर्गा के असीम प्रेम, शक्ति और विजय की गाथा का प्रतीक हैं। महिषासुर के संहार की कथा हमें यह संदेश देती है कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में धर्म और सत्य की ही विजय होती है। माँ दुर्गा हमें हर संकट से उबारने वाली और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली हैं। इन पवित्र दिनों में श्रद्धा और पूर्ण विश्वास के साथ माँ की आराधना करने से न केवल जीवन के कष्ट दूर होते हैं, बल्कि मन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का अनुभव भी होता है। कन्या पूजन और हवन के माध्यम से हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। आइए, हम सभी इन पावन अवसरों पर अपने हृदय में माँ दुर्गा की भक्ति का दीपक प्रज्वलित करें और उनके चरणों में स्वयं को समर्पित कर जीवन को धन्य बनाएँ। जय माता दी!

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Category: नवरात्रि, दुर्गा पूजा, हिंदू धर्म
Slug: ashtami-navami-kab-hai-2025
Tags: दुर्गा अष्टमी, महानवमी, चैत्र नवरात्रि 2025, कन्या पूजन, हवन विधि, मां दुर्गा, शक्ति पर्व, सनातन धर्म

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