सुबह की प्रार्थना हिंदी में
**प्रस्तावना**
प्रत्येक नए दिन का आगमन एक स्वर्णिम अवसर लेकर आता है, जीवन को एक नई दिशा देने का, स्वयं को परमात्मा से जोड़ने का। सुबह की प्रार्थना इसी पवित्र संबंध को स्थापित करने का सबसे सुंदर और शक्तिशाली माध्यम है। यह केवल कुछ मंत्रों का जाप या औपचारिकता नहीं, बल्कि हृदय की गहराई से निकली वह पुकार है, जो हमें दिनभर के संघर्षों और चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक शक्ति, शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। जब हम अपनी सुबह की शुरुआत ईश्वर के नाम से करते हैं, तो हमारा मन शांत होता है, विचार शुद्ध होते हैं और हमारा पूरा दिन एक दिव्य आभा से प्रकाशित हो उठता है। यह हमें कृतज्ञता का भाव सिखाती है, हमें विनम्र बनाती है और जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता करती है। सुबह की यह पावन बेला, जब प्रकृति भी शांत और निर्मल होती है, परमात्मा से एकाकार होने का सर्वोत्तम समय है। यह हमारे भीतर आत्मिक बल का संचार करती है और हमें अपने उच्चतम स्वरूप से परिचित कराती है।
**पावन कथा**
प्राचीन काल में, एक छोटे से गाँव में वेदप्रकाश नामक एक अत्यंत ही सरल और श्रद्धालु ब्राह्मण रहते थे। उनका जीवन अत्यंत सादा था, भौतिक सुखों का अभाव था, परंतु उनका हृदय भक्ति और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा से परिपूर्ण था। वेदप्रकाश जी की सबसे बड़ी संपत्ति उनकी सुबह की नियमित प्रार्थना थी। वे प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में, सूर्योदय से पूर्व उठ जाते थे। शीतल जल से स्नान कर, वे गाँव के बाहर बहने वाली पवित्र नदी के तट पर आसन जमाते और पूर्व दिशा में मुख करके सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करते। उनके मुख से गायत्री मंत्र, विष्णु सहस्त्रनाम और विभिन्न स्तोत्रों का पाठ एक मधुर ध्वनि के रूप में प्रवाहित होता रहता था। उनकी आँखें बंद होतीं, मन एकाग्र और सारा ध्यान परमात्मा के चरणारविंदों में लगा रहता।
वेदप्रकाश जी की प्रार्थना केवल एक कर्मकांड नहीं थी, वह उनके लिए आत्मा की परमात्मा से सीधी वार्तालाप थी। वे अपनी प्रार्थना में कभी कुछ माँगते नहीं थे, बल्कि केवल कृतज्ञता व्यक्त करते और समस्त संसार के कल्याण की कामना करते थे। गाँव के लोग उन्हें ‘प्रार्थना पुरुष’ के नाम से जानते थे। वे देखते थे कि कैसे अभावों में जीवन यापन करने के बावजूद वेदप्रकाश जी का मुखमंडल सदैव एक अलौकिक तेज से प्रकाशित रहता था।
एक वर्ष गाँव में भीषण अकाल पड़ा। धरती सूख गई, नदियाँ मुरझा गईं और कुएँ खाली हो गए। चारों ओर हाहाकार मच गया। पशु-पक्षी, मनुष्य सभी प्यास और भूख से व्याकुल थे। गाँव के मुखिया ने अनेक उपाय किए, यज्ञ करवाए, देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का हर संभव प्रयास किया, परंतु वर्षा का नामोनिशान नहीं था। धीरे-धीरे लोगों की आशा टूटने लगी, उनके मन में निराशा घर करने लगी।
ऐसे विकट समय में, एक दिन गाँव के कुछ बड़े-बुजुर्ग वेदप्रकाश जी के पास पहुँचे। उन्होंने वेदप्रकाश जी से प्रार्थना की कि वे गाँव पर आई इस विपत्ति से मुक्ति दिलाएँ। वेदप्रकाश जी ने शांत भाव से सभी की बातें सुनीं। उन्होंने कहा, “भाइयों और बहनों, प्रार्थना केवल किसी वस्तु को माँगने का माध्यम नहीं है। प्रार्थना परमात्मा के प्रति हमारी संपूर्ण शरणागति और विश्वास का प्रतीक है। जब हम निस्वार्थ भाव से, सच्चे हृदय से ईश्वर को पुकारते हैं, तो वह अवश्य सुनते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “हम सभी को मिलकर प्रार्थना करनी होगी। यह प्रार्थना किसी स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति और समस्त जीवों के कल्याण के लिए होनी चाहिए। प्रतिदिन सुबह, ब्रह्म मुहूर्त में, हम सभी नदी तट पर एकत्रित होकर अपनी-अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार ईश्वर का स्मरण करेंगे। हमें अपने मन को शुद्ध करना होगा, ईर्ष्या, द्वेष और लोभ का त्याग करना होगा। जब हमारे मन में पवित्रता आएगी, तब ईश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे।”
वेदप्रकाश जी के वचनों से प्रेरित होकर, गाँव के लोगों ने अगले दिन से ही प्रातःकाल नदी तट पर एकत्रित होना शुरू कर दिया। प्रारंभ में कुछ लोग संशय में थे, पर वेदप्रकाश जी की अविचल भक्ति और शांतिपूर्ण उपस्थिति ने सभी को प्रभावित किया। वे सब वेदप्रकाश जी के साथ बैठकर अपनी-अपनी प्रार्थनाएँ करते, भजन गाते और ईश्वर का ध्यान करते। धीरे-धीरे गाँव का वातावरण बदलने लगा। लोगों के मन से निराशा कम हुई और एक सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगा। उनके दिलों में एक नई आशा ने जन्म लिया।
कुछ ही दिनों में, आकाश में बादल घिरने लगे। पहले धीमी, फिर मूसलाधार वर्षा हुई, जिसने सूखी धरती को तृप्त कर दिया। नदी-नाले फिर से बहने लगे और पूरा गाँव हरियाली से भर उठा। यह वेदप्रकाश जी की अटूट श्रद्धा और समस्त गाँव के सामूहिक, निस्वार्थ प्रातःकाल की प्रार्थना का ही फल था। इस घटना ने गाँव वालों को यह सिखाया कि सुबह की प्रार्थना केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि पूरे समाज को एक सूत्र में पिरोने और असंभव को भी संभव बनाने की दिव्य शक्ति रखती है। यह हमें स्मरण कराती है कि जब हम अपने दिन की शुरुआत ईश्वर को समर्पित करके करते हैं, तो स्वयं ईश्वर हमारे सहायक बन जाते हैं।
**दोहा**
प्रातकाल उठि कर सुमिरो, मन में धर हरिनाम।
कार्य सँवरें जीवन सफल, मिले सकल सुख धाम।।
**चौपाई**
प्रातः उठि रघुनाथा माता-पिता गुरु नावहिं माथा।
करत सवेरे जो यह ध्यान, मिटें सकल दुःख पावे ज्ञान।।
ईश्वर कृपा से होवे काज, हृदय बसे प्रभु परमराज।
सकल मनोरथ पूरण होहिं, जग में जय जयकार सब दोहिं।।
**पाठ करने की विधि**
सुबह की प्रार्थना को केवल एक रस्म न समझकर, उसे हृदय से अनुभव करना आवश्यक है। इसके लिए कुछ सरल विधियाँ हैं जिनका पालन करके आप इस पावन क्रिया को और भी प्रभावी बना सकते हैं:
1. **ब्रह्म मुहूर्त में जागरण:** सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटा पहले का समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है। इस समय प्रकृति शांत और सकारात्मक ऊर्जा से भरी होती है। इस पावन बेला में उठना सर्वोत्तम माना जाता है।
2. **शौच और स्नान:** उठने के बाद नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर, स्वच्छ जल से स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शरीर की शुद्धि मन की शुद्धि के लिए प्रथम सोपान है।
3. **स्वच्छ स्थान का चयन:** अपने घर में एक शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें जहाँ आप प्रतिदिन बैठकर प्रार्थना कर सकें। यह स्थान पवित्र ऊर्जा से भर जाएगा। यहाँ अपनी पसंदीदा देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर सकते हैं।
4. **दीप प्रज्ज्वलन और धूप-दीपक:** प्रार्थना आरंभ करने से पूर्व एक शुद्ध घी का दीपक जलाएँ और सुगंधित धूपबत्ती या अगरबत्ती लगाएँ। यह वातावरण को शुद्ध करता है और मन को एकाग्र करने में सहायता करता है।
5. **आसन ग्रहण:** शांत मन से किसी चटाई या कुशासन पर पद्मासन या सुखासन में बैठें। अपनी रीढ़ को सीधा रखें और हाथों को ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखें।
6. **संकल्प और ध्यान:** प्रार्थना शुरू करने से पहले मन में एक संकल्प लें कि आप अपनी प्रार्थना पूर्ण निष्ठा और प्रेम से करेंगे। कुछ पल के लिए अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करें, मन को शांत करें।
7. **मंत्र जाप या स्तुति:** अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी भी इष्टदेव के मंत्र का जाप करें (जैसे ॐ नमः शिवाय, हरे कृष्ण हरे राम, गायत्री मंत्र) या किसी स्तोत्र, चालीसा का पाठ करें। आप साधारण शब्दों में भी ईश्वर से बात कर सकते हैं, अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकते हैं।
8. **प्रार्थना और कृतज्ञता:** प्रार्थना के अंत में ईश्वर से अपनी भलाई और समस्त संसार के कल्याण की प्रार्थना करें। उन सभी चीज़ों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें जो आपको प्राप्त हुई हैं।
9. **क्षमा याचना और विसर्जन:** यदि अनजाने में कोई गलती हुई हो, तो ईश्वर से क्षमा माँगें। अंत में कुछ पल शांत बैठकर ईश्वर का ध्यान करें और मन ही मन अपनी प्रार्थना को विसर्जित करें। इस प्रकार नियमित रूप से प्रार्थना करने से आपका दिन सकारात्मकता से भर जाएगा।
**पाठ के लाभ**
सुबह की प्रार्थना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारे संपूर्ण जीवन के लिए एक वरदान है। इसके असंख्य लाभ हैं जो हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर सशक्त बनाते हैं:
1. **मानसिक शांति और स्थिरता:** सुबह की प्रार्थना मन को शांत करती है, अनावश्यक विचारों को दूर करती है और दिनभर की भागदौड़ के लिए मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। यह तनाव और चिंता को कम करने में सहायक है।
2. **सकारात्मक ऊर्जा का संचार:** ईश्वर के स्मरण से हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह हमें हर परिस्थिति में आशावादी बने रहने की प्रेरणा देती है और नकारात्मकता को दूर करती है।
3. **एकाग्रता और स्मरण शक्ति में वृद्धि:** नियमित प्रार्थना और ध्यान से मन की एकाग्रता बढ़ती है। छात्रों और कार्यरत व्यक्तियों के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि इससे स्मरण शक्ति और कार्यक्षमता में सुधार होता है।
4. **आत्मविश्वास में वृद्धि:** जब हम यह महसूस करते हैं कि कोई सर्वोच्च शक्ति हमारे साथ है और हमें मार्गदर्शन दे रही है, तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। यह हमें कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
5. **नैतिक मूल्यों का विकास:** प्रार्थना हमें विनम्रता, करुणा, प्रेम और कृतज्ञता जैसे मानवीय मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें सही और गलत के बीच भेद करने की क्षमता देती है।
6. **दैवीय संबंध और मार्गदर्शन:** सुबह की प्रार्थना के माध्यम से हम सीधे परमात्मा से जुड़ते हैं। यह हमें जीवन के निर्णयों में आंतरिक मार्गदर्शन प्राप्त करने में सहायता करती है और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
7. **स्वास्थ्य लाभ:** मानसिक शांति और सकारात्मकता का सीधा संबंध हमारे शारीरिक स्वास्थ्य से है। तनाव कम होने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है, नींद बेहतर आती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
8. **कृतज्ञता का भाव:** प्रार्थना हमें उन सभी सुख-सुविधाओं के लिए ईश्वर का धन्यवाद करना सिखाती है जो हमें प्राप्त हैं। यह कृतज्ञता का भाव हमें अधिक संतुष्ट और प्रसन्न बनाता है।
संक्षेप में, सुबह की प्रार्थना हमारे जीवन को एक नई दिशा, नई ऊर्जा और असीम आनंद प्रदान करने का सबसे सरल और शक्तिशाली साधन है।
**नियम और सावधानियाँ**
सुबह की प्रार्थना को और अधिक प्रभावी बनाने तथा उसके पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है:
1. **नियमितता और समयबद्धता:** प्रार्थना के लिए एक निश्चित समय निर्धारित करें और प्रतिदिन उसी समय पर प्रार्थना करें। अनियमितता से प्रार्थना की शक्ति और प्रभाव कम हो सकता है।
2. **शारीरिक और मानसिक शुद्धि:** प्रार्थना से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन को शांत और सभी प्रकार के नकारात्मक विचारों से मुक्त रखें। शुद्ध मन ही सच्ची प्रार्थना कर सकता है।
3. **एकाग्रता और समर्पण:** प्रार्थना करते समय मन को पूरी तरह से ईश्वर में लीन करें। इधर-उधर के विचारों से बचें। मोबाइल फोन या अन्य विकर्षणों को दूर रखें। आपका समर्पण ही प्रार्थना का मूल आधार है।
4. **निस्वार्थ भाव:** अपनी प्रार्थना में केवल अपनी इच्छाओं को ही न रखें, बल्कि समस्त संसार के कल्याण और शुभ की कामना करें। निस्वार्थ प्रार्थना अधिक शक्तिशाली होती है।
5. **सही आसन और मुद्रा:** प्रार्थना के लिए आरामदायक और स्थिर आसन का चयन करें। रीढ़ सीधी रखें ताकि ऊर्जा का प्रवाह उचित बना रहे।
6. **स्थान की पवित्रता:** जहाँ आप प्रार्थना करते हैं, उस स्थान को सदैव स्वच्छ और पवित्र बनाए रखें। यह आपके मन को भी शांत रखने में सहायता करेगा।
7. **धैर्य और विश्वास:** प्रार्थना के फल तुरंत न दिखें तो निराश न हों। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखें और धैर्य के साथ अपनी साधना जारी रखें। हर प्रार्थना का परिणाम उचित समय पर अवश्य मिलता है।
8. **अहिंसा और सत्य:** प्रार्थना का जीवन में तभी पूर्ण प्रभाव पड़ता है जब हम अपने आचरण में अहिंसा, सत्य और ईमानदारी को अपनाते हैं। अपने कर्मों से भी ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करें। इन नियमों का पालन करने से सुबह की प्रार्थना आपके जीवन में एक गहरा सकारात्मक परिवर्तन लाएगी।
**निष्कर्ष**
सुबह की प्रार्थना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है, एक आध्यात्मिक अनुशासन है जो हमें भीतर से सशक्त बनाता है। यह हमें दिन की शुरुआत एक शांत, सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण भाव से करने का अवसर देती है। जब हम अपनी सुबह को ईश्वर को समर्पित करते हैं, तो हम केवल एक दिन की शुरुआत नहीं करते, बल्कि अपने पूरे जीवन को एक दिव्य दिशा देते हैं। यह हमें छोटी-छोटी बातों में खुशी खोजना सिखाती है, बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने का साहस देती है और हमें अपने वास्तविक स्वरूप – आत्मा – से परिचित कराती है। सुबह की यह पवित्र बेला, जब प्रकृति स्वयं ईश्वर की वंदना करती प्रतीत होती है, हमें भी उस विराट सत्ता से जुड़ने का निमंत्रण देती है। आइए, हम सब इस पावन परंपरा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ। हर सुबह ईश्वर के समक्ष अपने हृदय को खोलें, कृतज्ञता व्यक्त करें, और शांति व प्रेम की कामना करें। विश्वास कीजिए, यह सरल क्रिया आपके जीवन को एक अप्रत्याशित सौंदर्य, शांति और सफलता से भर देगी। सुबह की प्रार्थना आपके जीवन की नींव को मजबूत करेगी और आपको हर पल ईश्वर की कृपा का अनुभव कराएगी।

