भैरव चालीसा सम्पूर्ण पाठ
प्रस्तावना
सनातन धर्म में भगवान शिव के अनेक रूप पूजे जाते हैं, जिनमें से एक अत्यंत शक्तिशाली और उग्र रूप है – भगवान भैरव का। भैरव, जिन्हें काल भैरव, बटुक भैरव, संहार भैरव आदि नामों से भी जाना जाता है, शिव के ही अवतार हैं और उन्हें काल के नियंत्रक, दुष्टों के संहारक तथा भक्तों के परम संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। उनकी उपासना से भय, शत्रु बाधा, नकारात्मक ऊर्जा और सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। भैरव चालीसा भगवान भैरव की महिमा, शक्ति और कृपा का गुणगान करने वाली एक दिव्य स्तुति है। यह चालीसा उन भक्तों के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है जो भगवान भैरव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। विशेष रूप से काल भैरव अष्टमी के पावन पर्व पर भैरव चालीसा का पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह पर्व भगवान भैरव के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन उनके पूजन से जीवन के समस्त दुखों का नाश होता है। इस लेख में हम भैरव चालीसा के महत्व, इसके पाठ की विधि, इससे प्राप्त होने वाले लाभों और कुछ महत्वपूर्ण नियमों पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे, ताकि भक्तजन भगवान भैरव की असीम कृपा प्राप्त कर सकें और भयमुक्त, समृद्ध जीवन जी सकें।
पावन कथा
भगवान भैरव के प्राकट्य की कथा अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण है, जो उनकी शक्ति और न्यायप्रियता को दर्शाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद में ब्रह्मा जी ने स्वयं को सृष्टि का एकमात्र सर्वोच्च देवता घोषित कर दिया और अहंकारवश भगवान शिव का अपमान किया। उन्होंने शिव को केवल एक ‘रुद्र’ या ‘भैरव’ (भय उत्पन्न करने वाला) कह कर संबोधित किया और कहा कि वे स्वयं सृष्टि के रचयिता हैं और इसलिए सभी से ऊपर हैं। ब्रह्मा जी के इस अहंकारपूर्ण व्यवहार से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए। उनके क्रोध से उनका एक उग्र और तेजस्वी स्वरूप प्रकट हुआ, जो अत्यंत विशालकाय, रौद्र नेत्रों वाला, शूल और डमरू धारण किए हुए था। इस भयंकर रूप को देखकर सभी देवगण भयभीत हो गए। यही स्वरूप भगवान काल भैरव था।
भगवान शिव ने काल भैरव को आदेश दिया कि वे ब्रह्मा के अहंकार को भंग करें। काल भैरव ने तत्काल ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को अपने नाखून से काट दिया, जो अहंकार का प्रतीक था। ब्रह्मा जी का वह कटा हुआ सिर काल भैरव के हाथ में चिपक गया और उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लग गया। इस पाप के निवारण के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को आदेश दिया कि वे पृथ्वी पर भ्रमण करें और जब तक वह कटा हुआ सिर उनके हाथ से गिर न जाए, तब तक वे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त नहीं हो सकते। काल भैरव ने पृथ्वी लोक पर विभिन्न स्थानों पर भ्रमण किया, लेकिन कटा हुआ सिर उनके हाथ से अलग नहीं हुआ। अंततः, वे काशी (वाराणसी) पहुंचे। जैसे ही काल भैरव ने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्मा जी का कटा हुआ सिर उनके हाथ से गिर गया और वे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो गए।
तब से काशी में भगवान काल भैरव को ‘काशी के कोतवाल’ के रूप में पूजा जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि काशी में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पहले काल भैरव के दर्शन और अनुमति लेनी पड़ती है। वे काशी के संरक्षक हैं और यहां वास करने वाले सभी जीवों को मोक्ष प्रदान करते हैं। उनकी पावन कथा हमें यह शिक्षा देती है कि अहंकार का परिणाम हमेशा विनाशकारी होता है और न्याय हमेशा स्थापित होता है। भगवान भैरव केवल दुष्टों का संहार नहीं करते, बल्कि अपने भक्तों को सभी प्रकार के भय, नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं से भी बचाते हैं। भैरव चालीसा का पाठ हमें इसी शक्तिशाली और न्यायप्रिय देवता की शरण में ले जाता है, जहां हमें सुरक्षा, शांति और आध्यात्मिक उत्थान का अनुभव होता है। यह चालीसा हमें स्मरण कराती है कि भगवान भैरव हर संकट में हमारे साथ खड़े हैं, बस हमें सच्ची श्रद्धा और विश्वास से उन्हें पुकारना होगा। उनकी कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है और जीवन के मार्ग में आने वाली हर चुनौती का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है।
दोहा
श्री गणपति गुरु गौरिपद प्रेम सहित नित ध्याय,
भैरव चालीसा रचूं कृपा तुम्हारी थाय।।
चौपाई
जय जय श्री भैरव बलकारी, जय जय जय सुखदायक भारी।
महाकाल के अंश अवतारी, तुम ही जग के पालनहारी।।
भैरव रूप धर शिव जी आए, ब्रह्मा को तब ज्ञान सिखाए।
पंचानन तब सिर कटवाए, गर्व चूर कर महिमा पाए।।
काशी के तुम कोतवाल कहाए, दंडपाणि तुम नाम धराए।
दर्शन कर सब पाप नसाए, शरण तुम्हारी जो भी आए।।
भूत-प्रेत बाधा मिटावे, दुष्ट आत्मा को दूर भगावे।
ग्रह-नक्षत्र का दोष मिटावे, मंगलमय सब काल बनावे।।
शत्रु नाशक संकट हर्ता, दुःख दारिद्र्य का तुम हो कर्ता।
ज्ञान-बुद्धि दे शुभकारी, सिद्धि दे देव सुखकारी।।
नाम तुम्हारा जो नित गावे, रोग-शोक सब दूर भगावे।
धन-संपत्ति घर में आवे, पुत्र पौत्र सब सुख पावे।।
जो नर पढ़े भैरव चालीसा, पूरण होवे सकल प्रतिज्ञा।
संकट मोचन देव कृपाला, रक्षा करो हर काल कुकाले।।
पाठ करने की विधि
भैरव चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ विशेष विधियाँ और नियम हैं, जिनका पालन करने से पाठ का पूर्ण फल प्राप्त होता है। यद्यपि भैरव चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, परंतु मंगलवार, रविवार और विशेष रूप से काल भैरव अष्टमी के दिन इसे पढ़ना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
1. **शुद्धि और संकल्प:** सबसे पहले सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थान को साफ करें। भगवान भैरव का चित्र या मूर्ति स्थापित करें। आसन पर बैठकर हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से भैरव चालीसा का पाठ कर रहे हैं।
2. **पूजा सामग्री:** भगवान भैरव को काली उड़द की दाल, गुड़, सरसों का तेल, सिंदूर, नारियल, धतूरा, आक के फूल, रुई की बत्ती वाला दीपक (सरसों के तेल का), धूप और नीले या काले रंग के वस्त्र अर्पित किए जा सकते हैं। उन्हें मदिरा और मांस भी अर्पित किया जाता है, किंतु सात्विक भक्तों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। वे मीठी रोटी या जलेबी भी अर्पित कर सकते हैं।
3. **आरंभिक पूजा:** सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनका पूजन करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का स्मरण करें। तत्पश्चात, भगवान भैरव का ध्यान करते हुए उनसे पाठ की अनुमति और कृपा मांगें।
4. **पाठ की संख्या:** भैरव चालीसा का पाठ 1, 3, 5, 7, 11, 21, 51 या 101 बार किया जा सकता है, अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार। पूर्ण लाभ के लिए इसे नियमित रूप से पढ़ना उत्तम है। काल भैरव अष्टमी पर इसे कम से कम 11 बार पढ़ना शुभ माना जाता है।
5. **ध्यान और एकाग्रता:** पाठ करते समय मन को शांत रखें और पूर्ण श्रद्धा व एकाग्रता से भगवान भैरव का ध्यान करें। उनके रौद्र किंतु कल्याणकारी स्वरूप का स्मरण करें। प्रत्येक चौपाई का अर्थ समझते हुए पाठ करें, जिससे मन में भक्ति भाव और गहरा हो।
6. **पाठ के बाद:** चालीसा पाठ समाप्त होने के बाद भगवान भैरव की आरती करें। उन्हें अर्पित किया गया प्रसाद भक्तों में वितरित करें। अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें और अनजाने में हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा याचना करें।
7. **दिशा:** भैरव जी का मुख दक्षिण दिशा की ओर होता है, अतः उनकी पूजा करते समय या पाठ करते समय आप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठ सकते हैं, या मूर्ति/चित्र के सामने बैठें।
इन विधियों का पालन करने से भैरव चालीसा का पाठ अधिक प्रभावशाली होता है और भक्त को भगवान भैरव की असीम कृपा प्राप्त होती है।
पाठ के लाभ
भैरव चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से भक्तों को अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं, जो उनके भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करते हैं। भगवान भैरव को शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता माना जाता है और उनकी कृपा से भक्तजन सभी प्रकार के भय और संकटों से मुक्त हो जाते हैं।
1. **भय और शत्रु बाधा से मुक्ति:** भैरव चालीसा का सबसे प्रमुख लाभ भय और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना है। जो व्यक्ति शत्रुओं से परेशान हैं, जिन पर नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव है, या जिन्हें किसी अज्ञात भय का सामना करना पड़ रहा है, उनके लिए यह चालीसा एक कवच के समान है। यह नकारात्मक ऊर्जाओं, टोने-टोटके और बुरी शक्तियों के प्रभाव को समाप्त करती है।
2. **रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ:** नियमित पाठ से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। यह मानसिक शांति प्रदान करता है और तनाव को कम करता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।
3. **ग्रह दोषों का निवारण:** ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान भैरव राहु, केतु और शनि जैसे क्रूर ग्रहों के दोषों को शांत करने में सहायक हैं। भैरव चालीसा का पाठ कुंडली में मौजूद अशुभ ग्रह स्थितियों के नकारात्मक प्रभावों को कम करता है और जीवन में स्थिरता लाता है।
4. **धन और समृद्धि:** भैरव चालीसा का पाठ दरिद्रता का नाश करता है और धन-धान्य में वृद्धि करता है। यह आय के नए स्रोत खोलता है और आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है। भक्तों को कर्ज से मुक्ति मिलती है और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है।
5. **कानूनी मामलों में सफलता:** यदि कोई व्यक्ति कोर्ट-कचहरी के मामलों में उलझा हुआ है, तो भैरव चालीसा का पाठ उसे न्याय दिलाने और इन समस्याओं से बाहर निकलने में सहायता करता है।
6. **यात्रा में सुरक्षा:** यात्रा के दौरान सुरक्षा और बाधा रहित मार्ग के लिए भी भैरव चालीसा का पाठ अत्यंत लाभकारी है। भगवान भैरव को मार्ग के रक्षक के रूप में भी पूजा जाता है।
7. **आत्मविश्वास में वृद्धि:** भैरव चालीसा का पाठ मन को मजबूत बनाता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है और व्यक्ति को हर परिस्थिति का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है। यह मानसिक दृढ़ता प्रदान करता है।
8. **मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति:** अंततः, यह चालीसा आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी ले जाती है। भगवान भैरव की कृपा से व्यक्ति मोह-माया के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होता है। यह आंतरिक शुद्धि प्रदान करता है और आध्यात्मिक जागृति में सहायक है।
ये सभी लाभ भक्तों को भगवान भैरव के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास के साथ प्राप्त होते हैं। भैरव चालीसा का पाठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन को सकारात्मकता और शक्ति से भरने का एक मार्ग है।
नियम और सावधानियाँ
भैरव चालीसा का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि पाठ का पूर्ण फल प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सके। भगवान भैरव का स्वरूप यद्यपि उग्र है, परंतु वे अपने सच्चे भक्तों के लिए अत्यंत दयालु हैं।
1. **पवित्रता और शुचिता:** पाठ करने वाले व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होना चाहिए। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना अनिवार्य है। पूजा स्थल भी स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
2. **सात्विक आचरण:** भैरव चालीसा का पाठ करने वाले व्यक्ति को सात्विक जीवन शैली अपनानी चाहिए। पाठ के दिनों में तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन) का सेवन त्याग देना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना भी उत्तम माना जाता है।
3. **श्रद्धा और विश्वास:** पाठ करते समय मन में पूर्ण श्रद्धा और अटूट विश्वास होना चाहिए। केवल कर्मकांड के लिए पाठ न करें, बल्कि हृदय से भगवान भैरव की महिमा का गुणगान करें और उनकी कृपा प्राप्त करने की कामना करें।
4. **शांत और एकांत स्थान:** पाठ के लिए शांत और एकांत स्थान का चुनाव करें जहाँ आपको कोई व्यवधान न हो। यह एकाग्रता बढ़ाने में मदद करेगा।
5. **समय का पालन:** यदि आपने किसी विशेष संख्या में पाठ करने का संकल्प लिया है, तो उसे पूरा करें। यदि प्रतिदिन पाठ करते हैं, तो एक निश्चित समय पर करने का प्रयास करें।
6. **क्रोध और अहंकार से बचें:** भगवान भैरव स्वयं अहंकार के नाशक हैं, इसलिए पाठ करने वाले व्यक्ति को क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार जैसे नकारात्मक भावों से दूर रहना चाहिए। मन को शांत और सकारात्मक बनाए रखें।
7. **महिलाओं के लिए विशेष:** मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को पूजा-पाठ से दूर रहना चाहिए। यदि कोई महिला भैरव चालीसा का पाठ करना चाहती है, तो उसे इन दिनों में विराम देना चाहिए।
8. **भैरव जी को समर्पित:** भगवान भैरव के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाना और धूप दिखाना अत्यंत शुभ माना जाता है। उन्हें काले या नीले रंग के पुष्प विशेष रूप से प्रिय हैं।
9. **अहिंसा का पालन:** भगवान भैरव भले ही उग्र देवता हों, लेकिन उनका पूजन कभी भी किसी को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं करना चाहिए। उनकी कृपा केवल कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए ही होती है।
इन नियमों और सावधानियों का पालन करने से भक्त भगवान भैरव की पूर्ण कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनका जीवन सुखमय और बाधा रहित बनता है।
निष्कर्ष
भगवान भैरव, जो कि भगवान शिव के ही रौद्र और संरक्षक अवतार हैं, हमें जीवन के समस्त दुखों, भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाने वाले परम शक्तिशाली देवता हैं। भैरव चालीसा का सम्पूर्ण पाठ उनकी इसी अलौकिक शक्ति और कृपा को प्राप्त करने का एक सीधा और प्रभावी मार्ग है। चाहे काल भैरव अष्टमी का पावन अवसर हो या जीवन की कोई विकट परिस्थिति, भैरव चालीसा का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मन को अपार शांति, सुरक्षा और आत्मविश्वास की अनुभूति होती है। यह केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक कवच है जो हमें अदृश्य बाधाओं से बचाता है और हमारे भीतर साहस का संचार करता है।
आइए, हम सभी भगवान भैरव के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करें, उनके नाम का स्मरण करें और भैरव चालीसा के माध्यम से उनकी महिमा का गुणगान करें। उनकी कृपा से हमारे जीवन के सभी अंधकार दूर होंगे, भय समाप्त होगा, शत्रु परास्त होंगे और हम एक शांत, समृद्ध तथा आध्यात्मिक रूप से उन्नत जीवन जी सकेंगे। यह चालीसा हमें याद दिलाती है कि जब भी हम सच्चे हृदय से उन्हें पुकारते हैं, भगवान भैरव हमारी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। तो आइए, इस दिव्य चालीसा के पाठ से अपने जीवन को आलोकित करें और भगवान भैरव की असीम कृपा के भागी बनें। जय भैरव महाराज की!
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Category: भक्ति, आध्यात्मिक अनुष्ठान, शिव पूजा
Slug: bhairav-chalisa-sampoorna-path
Tags: भैरव चालीसा, काल भैरव अष्टमी, भैरव पूजा, शिव शक्ति, भय मुक्ति, रोग निवारण, शत्रु नाश, आध्यात्मिक लाभ

