संतोषी माता चालीसा सम्पूर्ण पाठ
प्रस्तावना
सनातन धर्म में देवी-देवताओं की भक्ति और उपासना का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक हैं करुणामयी माँ संतोषी, जो संतोष, सुख, शांति और समृद्धि की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। माँ संतोषी भगवान गणेश की पुत्री हैं और इनकी भक्ति से भक्तों के जीवन में संतोष और आनंद का संचार होता है। माँ संतोषी की उपासना का सबसे सरल और प्रभावशाली माध्यम है उनकी चालीसा का पाठ। संतोषी माता चालीसा, माँ के गुणों, लीलाओं और महिमा का गान करती है और इसका नियमित पाठ भक्तों को अनेक कष्टों से मुक्ति दिलाकर मनोवांछित फल प्रदान करता है। यह चालीसा स्वयं में एक दिव्य कवच है जो हर प्रकार की नकारात्मकता से रक्षा करती है। इस ब्लॉग में, हम संतोषी माता चालीसा के सम्पूर्ण पाठ, इसके आध्यात्मिक लाभों, पाठ करने की विधि और इससे जुड़े महत्वपूर्ण नियमों व सावधानियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आप भी माँ संतोषी की असीम कृपा प्राप्त कर सकें।
पावन कथा
माँ संतोषी की पावन कथा हमें उनके प्राकट्य और उनकी महिमा से परिचित कराती है। कथा के अनुसार, एक बार भगवान गणेश अपनी बहनों से राखी बंधवाकर बहुत प्रसन्न हुए। उनकी पत्नियों, रिद्धि और सिद्धि ने उनसे पूछा कि क्या उनकी भी कोई बहन नहीं है जिससे वे राखी बंधवा सकें। भगवान गणेश ने यह सुनकर अपनी योगशक्ति से एक तेजस्वी पुत्री को प्रकट किया, जिसे संतोषी माता के नाम से जाना गया। माँ संतोषी का जन्म ही भक्तों को संतोष और सुख प्रदान करने के लिए हुआ था।
माँ संतोषी की महिमा से जुड़ी एक और प्रचलित कथा है, जो उनके व्रत और चालीसा के महत्व को दर्शाती है। एक समय की बात है, एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी और वे अत्यंत दुखी और निर्धन थे। ब्राह्मण की पत्नी बहुत सीधी और भोली थी, लेकिन उसकी देवरानियाँ उसे बहुत सताती थीं। वे उसे खाना नहीं देती थीं और घर का सारा काम करवाती थीं। एक दिन, जंगल में लकड़ियाँ काटते हुए ब्राह्मण ने एक पेड़ पर लटकी हुई सात नारियों को देखा। ये नारियाँ माँ संतोषी का व्रत कर रही थीं। उन्होंने ब्राह्मण को देखकर कहा, “क्या तुम भी संतोषी माता का व्रत करना चाहते हो? इससे तुम्हें अवश्य सुख मिलेगा।”
ब्राह्मण ने घर लौटकर अपनी पत्नी को यह बात बताई। उसकी पत्नी ने श्रद्धापूर्वक संतोषी माता का व्रत करने का संकल्प लिया। उसने शुक्रवार को व्रत रखा और माँ संतोषी की पूजा की। उसने गुड़ और चने का भोग लगाया और व्रत कथा सुनी। व्रत के प्रभाव से कुछ ही दिनों में उसके कष्ट दूर होने लगे। उसकी देवरानियों का व्यवहार भी बदलने लगा और उसे पर्याप्त भोजन मिलने लगा। जल्द ही उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिससे उसका जीवन खुशियों से भर गया। उसकी दरिद्रता दूर हुई और घर में सुख-समृद्धि का वास हो गया।
एक बार, जब वह अपने पुत्र और पति के साथ संतोषी माता के मंदिर जा रही थी, तो उसकी देवरानियों ने ईर्ष्यावश रास्ते में खट्टी इमली बिछा दी, ताकि उसका व्रत खंडित हो जाए। लेकिन माँ संतोषी की कृपा से कोई अनिष्ट नहीं हुआ और उसकी श्रद्धा अडिग रही। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि माँ संतोषी अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करती हैं और उन्हें संतोष और आनंद प्रदान करती हैं। जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा और प्रेम से माँ संतोषी का व्रत और चालीसा का पाठ करता है, माँ उसे कभी निराश नहीं करतीं और उसके जीवन को सुख, शांति तथा संतोष से परिपूर्ण कर देती हैं। यही कारण है कि माँ संतोषी चालीसा का पाठ भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है।
दोहा
जय गणेश गिरिजा नंदन, विघ्न विनाशक देवा।
संतोषी माता भजूँ, करूँ तुम्हारी सेवा॥
चौपाई
जय जय जय संतोषी माता, सब जन करती हित की दाता।
श्री गणेश की पुत्री प्यारी, शुभ्र वदन मन मोहे न्यारी॥
श्वेत कमल पर बैठी तुम हो, सुख संपति देने वाली हो।
कमल गदा त्रिशूल विराजे, भक्तों के दुख पल में भागे॥
शुक्रवार को व्रत जो ध्यावे, गुड़ चना का भोग लगावे।
खट्टी वस्तु का त्याग करावे, माँ संतोषी कृपा बरसावे॥
कथा सुनावे जो अति मन से, दूर हो दरिद्रता तन से।
संतान सुख जिसको है पाना, माँ की कृपा से मिले ठिकाना॥
धन दौलत यश कीर्ति पावे, जो जन माँ के गुण गावे।
मन इच्छा पूरी हो उसकी, जो शरण गहे माँ तेरी॥
रोग दोष सब दूर भगाती, आयु आरोग्य तुम बढ़ाती।
भक्तों पर तुम दया दिखाती, घर आँगन में मंगल छाती॥
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, खाली झोली भर वो जावे।
गृह क्लेश सब दूर कराती, शांति प्रेम घर में लाती॥
जीवन पथ पर राह दिखाती, विघ्न बाधा सब हर जाती।
जो कन्या वर हेतु पुकारे, मनचाहा वर दे सुख सारे॥
जो स्त्री सुख चाहे पति का, माँ देती सब फल रति का।
विद्यार्थी जब तुम्हें पुकारे, विद्या बुद्धि तुम दे तारे॥
निर्धन को तुम धन दिलवाती, रोगी का रोग मिटवाती।
भक्तों की पीड़ा हरती हो, हर संकट से रक्षा करती हो॥
जो जन व्यापार बढ़ाना चाहे, माँ की कृपा से लाभ पाए।
ऑफिस में उन्नति दिलाती, पद प्रतिष्ठा माँ बढ़ाती॥
संकट में जब कोई घबराए, माँ का सुमिरन शांति लाए।
भूत प्रेत बाधाएँ सारी, माँ की महिमा से टल हारी॥
दुष्टों से जब भय हो भारी, माँ देती अभय निर्भयकारी।
जो माँ का चालीसा गावे, सब दुःख से वो पार उतर जावे॥
मन में आशा जब जग जाती, माँ संतोषी राह दिखाती।
धैर्य और संतोष बढ़ाती, जीवन को खुशहाल बनाती॥
नित उठ जो माँ को नित ध्यावे, अष्ट सिद्धि नव निधि पावे।
मनोकामना पूरण करती, हर इच्छा की पूर्ति करती॥
गुरुवार को जो व्रत करे, और शुक्रवार चालीसा पढ़े।
उस पर तेरी कृपा अति होती, जीवन में भर जाती ज्योति॥
दुख दरिद्रता मिट जाती है, सुख संपत्ति घर आती है।
निराशा दूर भाग जाती है, आशा नई उमंग लाती है॥
माँ संतोषी तुम वरदानी, भक्तों की हो कल्याणी।
जो श्रद्धा से तुझे पुकारे, उसके कष्ट निवारण हारे॥
चालीसा जो पढ़े चालीस बार, मिले उसे सुख अपरंपार।
ज्ञान बुद्धि विवेक बढ़ाती, मोक्ष मार्ग पर हमें चलाती॥
यह चालीसा जो जन गावे, निश्चित सुख संतोषी पावे।
प्रेम सहित जो पाठ सुनावे, भव सागर से पार वो जावे॥
पाठ करने की विधि
संतोषी माता चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ विशेष नियमों और विधियों का पालन करना चाहिए, जिससे माँ की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
1. **शुद्धि और पवित्रता**: सर्वप्रथम, प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शरीर और मन की शुद्धता अत्यंत आवश्यक है।
2. **पूजा स्थल**: अपने घर के पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें। एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएँ।
3. **माँ संतोषी की स्थापना**: चौकी पर माँ संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ में भगवान गणेश की प्रतिमा भी रखें, क्योंकि वे माँ संतोषी के पिता हैं।
4. **दीप प्रज्वलन**: घी का दीपक जलाएँ और धूप-अगरबत्ती प्रज्ज्वलित करें।
5. **पुष्प और प्रसाद**: माँ को लाल या पीले रंग के पुष्प अर्पित करें। गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाएँ। याद रखें, माँ संतोषी को खट्टी चीज़ें बिल्कुल अर्पित नहीं की जातीं।
6. **संकल्प**: हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर माँ संतोषी का ध्यान करें और अपनी मनोकामना कहते हुए चालीसा पाठ का संकल्प लें।
7. **चालीसा पाठ**: इसके बाद, शांत मन से संतोषी माता चालीसा का पाठ करें। आप इसे एक, तीन, ग्यारह या इक्कीस बार अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं। शुक्रवार को चालीसा पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
8. **आरती**: चालीसा पाठ पूर्ण होने के बाद माँ संतोषी की आरती करें।
9. **प्रसाद वितरण**: आरती के बाद गुड़-चने का प्रसाद परिवारजनों और अन्य लोगों में वितरित करें।
पाठ के लाभ
संतोषी माता चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्तों को अनेक आध्यात्मिक और लौकिक लाभ प्राप्त होते हैं:
* **मनोकामना पूर्ति**: जो भक्त सच्चे मन से चालीसा का पाठ करते हैं, माँ संतोषी उनकी सभी सद्भावनापूर्ण इच्छाओं को पूरा करती हैं।
* **सुख-समृद्धि**: यह चालीसा घर में सुख, शांति और समृद्धि लाती है। धन-धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में खुशहाली आती है।
* **शांति और संतोष**: माँ संतोषी का नाम ही संतोष है। उनके चालीसा पाठ से मन में संतोष और धैर्य का भाव जागृत होता है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
* **बाधाओं का निवारण**: जीवन के मार्ग में आने वाली सभी बाधाएँ और कठिनाइयाँ माँ की कृपा से दूर होती हैं।
* **रोग मुक्ति**: गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है। आयु और आरोग्य में वृद्धि होती है।
* **पारिवारिक सौहार्द**: घर-परिवार में प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनता है, आपसी कलह समाप्त होते हैं।
* **नकारात्मकता का नाश**: चालीसा का पाठ नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है, घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
* **संतान सुख**: संतानहीन दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
* **विवाह में सहायता**: अविवाहित कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।
* **आत्मविश्वास में वृद्धि**: माँ की भक्ति से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनता है।
नियम और सावधानियाँ
संतोषी माता चालीसा पाठ और व्रत के दौरान कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है:
* **खट्टी चीज़ों का त्याग**: व्रत के दिन और पाठ के दौरान खट्टी चीज़ों (जैसे नींबू, इमली, टमाटर, अचार आदि) का सेवन पूर्णतः वर्जित है। यह संतोषी माता के व्रत का सबसे महत्वपूर्ण नियम है।
* **मांसाहार और शराब का त्याग**: व्रत के दिन पूर्ण सात्विक भोजन करें। मांसाहार, शराब और अन्य तामसिक वस्तुओं से दूर रहें।
* **झूठ न बोलें और क्रोध न करें**: मन में किसी के प्रति ईर्ष्या, द्वेष या क्रोध का भाव न रखें। किसी से झूठ न बोलें और किसी का अपमान न करें।
* **पवित्रता बनाए रखें**: पूजा और पाठ के दौरान पूर्ण पवित्रता और स्वच्छता का ध्यान रखें। अशुद्ध हाथों से पूजा सामग्री को न छुएँ।
* **गुड़-चने का ही प्रसाद**: माँ संतोषी को केवल गुड़ और चने का ही प्रसाद अर्पित किया जाता है। किसी अन्य मीठी वस्तु का प्रयोग न करें।
* **जल का प्रयोग**: पूजा में उपयोग होने वाले जल को किसी अन्य के साथ साझा न करें।
* **व्रत का उद्यापन**: यदि आप व्रत कर रहे हैं, तो उसका सही विधि-विधान से उद्यापन अवश्य करें।
* **श्रद्धा और विश्वास**: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माँ संतोषी के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें। बिना विश्वास के कोई भी पूजा फलदायी नहीं होती।
निष्कर्ष
संतोषी माता चालीसा का सम्पूर्ण पाठ केवल शब्दों का समूह नहीं, अपितु माँ संतोषी के प्रति हमारी गहरी श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। यह चालीसा स्वयं में एक शक्तिपुंज है, जो हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और हमारे जीवन को संतोष, सुख और समृद्धि से भर देती है। जो भी भक्त नियम और श्रद्धा के साथ माँ संतोषी की उपासना करता है और उनकी चालीसा का पाठ करता है, माँ उसे कभी निराश नहीं करतीं। उनके जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और अंत में परम आनंद की प्राप्ति होती है। तो आइए, हम सभी माँ संतोषी के चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें और इस दिव्य चालीसा के पाठ से अपने जीवन को आलोकित करें। माँ संतोषी की जय! हर शुक्रवार, माँ की भक्ति में लीन होकर, अपने जीवन को धन्य करें और संतोष रूपी परम धन को प्राप्त करें।
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Category: भक्ति, धार्मिक अनुष्ठान, हिन्दू देवी-देवता
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