शीतला माता चालीसा सम्पूर्ण पाठ
प्रस्तावना
सनातन धर्म की अनमोल परंपरा में, देवियों की आराधना रोगमुक्ति और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। इन्हीं पावन देवियों में से एक हैं, आदिशक्ति माँ शीतला। जगत जननी, रोगनाशक और तापहारिणी माँ शीतला की महिमा अपरंपार है। उनकी कृपा से मनुष्य समस्त शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति पाकर स्वस्थ, सुखी और समृद्ध जीवन जीता है। माँ शीतला का स्मरण मात्र ही मन में शांति और शरीर में नव ऊर्जा का संचार कर देता है। उनके दिव्य स्वरूप का ध्यान और उनकी चालीसा का पाठ, एक भक्त को न केवल रोगों से बचाता है, अपितु उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है। आज हम उस परम पावन शीतला माता चालीसा के सम्पूर्ण पाठ और उसके गहन अर्थ को समझेंगे, जो सदियों से भक्तों के हृदय में आशा, विश्वास और भक्ति का दीपक प्रज्वलित करती आ रही है। यह चालीसा केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि माँ के प्रति अटूट श्रद्धा का वह पवित्र प्रवाह है, जो हर भक्त को अपनी गोद में समेटकर उसे निरोगी और आनंदमय जीवन का वरदान देती है। इस चालीसा के हर पद में माँ की करुणा, शक्ति और ममता का अद्भुत संगम है, जिसका नियमित पाठ जीवन की हर कठिनाई से पार पाने की शक्ति प्रदान करता है।
पावन कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में जब दैत्यों और नकारात्मक शक्तियों का प्रकोप बढ़ा और पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के रोगों, ज्वर और महामारियों का साम्राज्य फैल गया, तब ऋषि-मुनियों और देवताओं ने मिलकर आदिशक्ति पराम्बा का आह्वान किया। उनकी प्रार्थना सुनकर, एक दिव्य प्रकाश पुंज से देवी शीतला का प्राकट्य हुआ। उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य और शांत था, उनके हाथों में स्वर्ण कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सुशोभित थे। उनका वाहन गर्दभ (गधा) था। देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं शीतला हूँ, जो अपने भक्तों को शीतलता प्रदान करती हूँ और उनके समस्त ताप को हर लेती हूँ।”
एक बार की बात है, एक भयानक महामारी ने पूरे संसार को अपनी चपेट में ले लिया था। लोग ज्वर, चेचक और अन्य कष्टदायक रोगों से पीड़ित थे। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। देवताओं और मनुष्यों ने मिलकर भगवान शिव से इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि केवल आदिशक्ति का शीतला स्वरूप ही इस महामारी को शांत कर सकता है। देवी पार्वती ने भक्तों की करुण पुकार सुनकर, अपने शीतल और ममतामयी स्वरूप में प्रकट होने का संकल्प लिया।
उसी समय, धरती पर एक अत्यंत अहंकारी राक्षस, जिसका नाम ज्वरासुर था, अपने बल से सभी जीवों को ज्वर से पीड़ित कर रहा था। उसके प्रकोप से कोई भी बच नहीं पा रहा था। जब देवी शीतला धरती पर अवतरित हुईं, तो उन्होंने ज्वरासुर को चुनौती दी। ज्वरासुर ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर देवी को भी ज्वर से पीड़ित करने का प्रयास किया, किंतु देवी शीतला अपने शीतल स्वरूप में अटल रहीं। उन्होंने अपने हाथों में नीम के पत्तों और शीतल जल का प्रयोग कर, ज्वरासुर के ताप को शांत किया और उसे अपने दिव्य प्रभाव से परास्त कर दिया। ज्वरासुर ने जब देवी की अलौकिक शक्ति देखी, तो वह भयभीत होकर उनके चरणों में गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा।
देवी शीतला ने ज्वरासुर को क्षमा किया, किंतु उसे चेतावनी दी कि वह भविष्य में कभी किसी प्राणी को कष्ट न दे। इसके बाद देवी ने अपने हाथ में स्थित स्वर्ण कलश से शीतल जल छिड़का और नीम के पत्तों से सबको हवा दी, जिससे समस्त प्राणियों के रोग दूर हो गए और महामारी शांत हो गई। उस दिन से देवी शीतला को “रोगनाशक” और “तापहारिणी” के रूप में पूजा जाने लगा। उनकी कृपा से ही चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी और अन्य चर्म रोग दूर होते हैं। जो भक्त सच्चे मन से माँ शीतला की आराधना करते हैं, उन्हें कभी भी रोगों का भय नहीं सताता। माँ अपने भक्तों की हर पीड़ा को हरकर उन्हें स्वस्थ और सुखी जीवन प्रदान करती हैं। शीतला अष्टमी के दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है, क्योंकि देवी को ठंडा भोजन प्रिय है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से माँ शीतला की कृपा प्राप्त की जा सकती है, जिससे जीवन के सभी दुख और रोग दूर हो जाते हैं।
दोहा
जय जय माता शीतला, तुम ही हो जगदंब।
भक्तन के दुख हरती, करती सुखारंभ॥
चौपाई
जय जय श्री शीतला भवानी, जय जय जग की सुख कल्याणी।
जेहि ध्यावत अतिशीतलता आवे, ताप ज्वर सन्ताप नसावे॥1॥
शीतला मैया अनामय दात्री, तुम बिन कछु नहिं जग में त्रात्री।
घट घट व्यापिनी जग की माता, सबकी तुम ही हो विधाता॥2॥
गर्दभ वाहन श्वेत परिधाना, हाथ में सूप झाड़ु मनमाना।
नीम के पत्ते संग विराजे, भक्तन के मन हरषावे राजे॥3॥
अजर अमर अविनाशी देवी, तीनो लोकन में पूजे सेवी।
बालक वृद्ध युवा नर नारी, तुम्हारी शरण में सब दुख हारी॥4॥
रोग-शोक भय व्याधि भगाओ, सब प्रकार के कष्ट मिटाओ।
चेचक खसरा ज्वर दुखदाई, तुमरे सुमिरन से मिट जाई॥5॥
महामारी जब फैले जग में, शरण तुम्हारी आवत मग में।
घर-घर पूजा हो तुम्हारी, दुख दरिद्र सब मिटत तुम्हारी॥6॥
बासी भोजन तुम्हें सुहावे, भक्तन के मन अति हर्षावे।
ठंडा जल और नीम की पाटी, रोग मिटावे मिटे अशांति॥7॥
जो कोई सुमिरत तुम्हें भवानी, ताके घर सुख भरे कल्याणी।
पुत्र पौत्र धन धान्य बढ़ावे, घर में सुख शांति छावे॥8॥
नवग्रह बाधा सब मिट जावे, भूत प्रेत पिशाच भगावे।
जादू टोना टोटका नाशे, दरिद्र दुष्ट सब दूरि भागे॥9॥
देवी के गुणगान जो गावे, मनवांछित फल शीघ्र ही पावे।
श्रद्धा भाव से जो कोई ध्यावे, भव सागर से पार लगावे॥10॥
शीतला सप्तमी अष्ट्मी पूजो, विविध भाँति उपचारन रूझो।
व्रत उपवास जो तुमको भावे, ताके दुख दरिद्र मिट जावे॥11॥
जो ये चालीसा मन से गावे, सुख समृद्धि निश्चय ही पावे।
रोग मुक्ति और सुखदाई, माँ शीतला की महिमा गाई॥12॥
पढ़त शीतला चालीसा जो नित, उसके घर परिवार में सुख चित।
सब तापों से मुक्ति पावे, आनंद मंगल घर में छावे॥13॥
यह चालीसा भक्ति से गाये, पाप ताप सब दूर भगाये।
शरण तुम्हारी जो जन आवे, जीवन धन्य वह कर जावे॥14॥
दोहा
शीतला माता का पाठ जो, भक्ति भाव से करे।
रोग दोष सब दूर हों, जीवन आनंद भरे॥
पाठ करने की विधि
माँ शीतला चालीसा का पाठ अत्यंत सरल है, किंतु इसे पूर्ण श्रद्धा और पवित्रता के साथ करना चाहिए। सर्वप्रथम, प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो, तो नीले या सफेद रंग के वस्त्र पहनें, क्योंकि ये रंग शीतलता और शांति के प्रतीक माने जाते हैं। अपने घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करें और माँ शीतला की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक स्वच्छ आसन पर बैठें। पूजा आरंभ करने से पूर्व हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से यह पाठ कर रहे हैं (जैसे रोगमुक्ति, स्वास्थ्य लाभ, परिवार का कल्याण, अखंड सौभाग्य आदि)।
माँ को ठंडे जल से स्नान कराएं या जल का छिड़काव करें। उन्हें नीम की पत्तियां, सफेद फूल (जैसे चमेली), अक्षत (चावल), रोली, चंदन और दीपक अर्पित करें। विशेष रूप से, माँ को बासी या ठंडा भोजन जैसे दही, पुआ, पूड़ी, हलवा, पकौड़े आदि का भोग लगाना शुभ माना जाता है। शीतला अष्टमी के दिन इस विधि का पालन विशेष रूप से किया जाता है। दीपक प्रज्वलित करें और धूप जलाएं। इसके बाद, मन को एकाग्रचित्त करके माँ शीतला का ध्यान करें और फिर चालीसा का पाठ आरंभ करें। चालीसा का पाठ कम से कम तीन, सात, ग्यारह या इक्कीस बार करें। पाठ पूर्ण होने के बाद, माँ से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें और अंत में आरती करें। पाठ के दौरान शांत और सकारात्मक वातावरण बनाए रखें।
पाठ के लाभ
माँ शीतला चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ अनगिनत लाभ प्रदान करता है, जिनका अनुभव भक्त स्वयं करते हैं।
सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण लाभ है – रोगों से मुक्ति। यह चालीसा एक शक्तिशाली रोग मुक्ति मंत्र के समान कार्य करती है। जो भक्त चेचक, खसरा, ज्वर, फोड़े-फुंसी, और अन्य त्वचा संबंधी रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें माँ शीतला की कृपा से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलता है। महामारी और संक्रामक रोगों के समय में यह चालीसा विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती है, जिससे व्यक्ति और उसका परिवार सुरक्षित रहता है।
दूसरा प्रमुख लाभ है मानसिक शांति और भयमुक्ति। माँ शीतला का शीतल स्वरूप मन को शांति प्रदान करता है और अज्ञात भय तथा चिंता को दूर करता है। तनाव और बेचैनी से ग्रस्त व्यक्ति को इस पाठ से मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।
यह चालीसा अखंड सौभाग्य के लिए भी अत्यंत फलदायी मानी जाती है। विवाहित महिलाएं जो अपने पति के दीर्घायु और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं, वे इस चालीसा का पाठ करके माँ का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और रिश्तों में मधुरता आती है।
इसके अतिरिक्त, यह पाठ नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है। भूत-प्रेत बाधा, जादू-टोना और अन्य अनिष्टकारी प्रभावों से मुक्ति मिलती है। घर में सुख-समृद्धि का वास होता है, धन-धान्य की वृद्धि होती है, और संतान संबंधी कष्ट भी दूर होते हैं। जो विद्यार्थी एकाग्रता और सफलता चाहते हैं, उन्हें भी इस पाठ से लाभ मिलता है। कुल मिलाकर, माँ शीतला चालीसा का पाठ शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक सभी स्तरों पर कल्याणकारी सिद्ध होता है।
नियम और सावधानियाँ
माँ शीतला चालीसा का पाठ करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि पाठ का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
सर्वप्रथम, पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। पाठ करने से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ, धूले हुए वस्त्र धारण करें। मन और शरीर दोनों से पवित्रता बनाए रखें। जिस स्थान पर पाठ किया जा रहा हो, वह स्थान भी स्वच्छ और शांत होना चाहिए।
श्रद्धा और विश्वास सर्वोपरि हैं। बिना पूर्ण श्रद्धा और अटूट विश्वास के किया गया पाठ अपेक्षित फल नहीं देता। माँ शीतला पर अटूट विश्वास रखें कि वे आपकी सभी प्रार्थनाएं अवश्य सुनेंगी।
पाठ के दौरान एकाग्रता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। मन को भटकने न दें और पूर्ण ध्यान माँ के स्वरूप और चालीसा के शब्दों पर केंद्रित करें।
वाणी की शुद्धता भी आवश्यक है। चालीसा का पाठ स्पष्ट उच्चारण के साथ करें। जल्दबाजी न करें, बल्कि प्रत्येक शब्द का सही ढंग से उच्चारण करें।
कुछ विशेष अवसरों जैसे शीतला अष्टमी पर, माँ को बासी (ठंडा) भोजन अर्पित करने की परंपरा है। यह ध्यान रखें कि भोग पवित्रता से तैयार किया गया हो। पाठ के दिनों में, यदि संभव हो तो सात्विक भोजन ग्रहण करें और मांसाहार, प्याज, लहसुन आदि का सेवन त्याग दें।
पाठ के दौरान मन में कोई द्वेष, क्रोध या नकारात्मक विचार न आने दें। दूसरों के प्रति सद्भाव और करुणा का भाव रखें।
यदि आप किसी विशेष उद्देश्य के लिए पाठ कर रहे हैं, तो संकल्प अवश्य लें और पाठ पूरा होने पर माँ से क्षमा याचना करें यदि कोई त्रुटि हुई हो।
महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पाठ करने से बचना चाहिए। इस अवधि में मानसिक रूप से माँ का स्मरण किया जा सकता है, पर शारीरिक रूप से पूजा-पाठ वर्जित होता है। इन नियमों का पालन करने से माँ शीतला की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, माँ शीतला चालीसा का सम्पूर्ण पाठ केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि माँ की दिव्य शक्ति, करुणा और ममता का साक्षात अनुभव है। यह एक ऐसा पवित्र माध्यम है जो हमें रोगों, दुखों और समस्त नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाकर एक स्वस्थ, सुखी और आनंदमय जीवन की ओर अग्रसर करता है। माँ शीतला, जिन्हें हम साक्षात् आरोग्य और शांति की देवी मानते हैं, उनकी आराधना से हमारा मन और शरीर दोनों पवित्र हो जाते हैं। जब हम भक्तिभाव से इस चालीसा का पाठ करते हैं, तो माँ का शीतल आशीर्वाद हमारी हर पीड़ा को हर लेता है और हमारे जीवन में नव चेतना का संचार करता है।
यह चालीसा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं, बल्कि यह हमें प्रकृति के साथ जुड़ने, स्वच्छता बनाए रखने और जीवन में शीतलता तथा संयम के महत्व को भी समझाती है। नीम के पत्ते और शीतल जल, जो माँ के पूजन के अभिन्न अंग हैं, हमें प्राकृतिक उपचारों और पर्यावरण के प्रति सम्मान का संदेश देते हैं।
आइए, हम सब मिलकर माँ शीतला के चरणों में अपनी श्रद्धा और भक्ति अर्पित करें। उनके नाम का स्मरण करें, उनकी चालीसा का पाठ करें और उनके दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को रोगमुक्त, भयमुक्त और आनंदमय बनाएं। माँ शीतला की जय हो! वे हम सभी भक्तों पर अपनी असीम कृपा बरसाती रहें और हमें सदा स्वस्थ तथा सुखी रखें। यही प्रार्थना है, यही कामना है।

