चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है: नवरात्रि में माँ के अलौकिक दर्शन का महात्म्य

चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है: नवरात्रि में माँ के अलौकिक दर्शन का महात्म्य

चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है: नवरात्रि में माँ के अलौकिक दर्शन का महात्म्य

नवरात्रि का पावन पर्व, माँ दुर्गा की आराधना का महापर्व, जो साल में दो बार मुख्य रूप से चैत्र और शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। जब कण-कण में देवी शक्ति का संचार होता है और हर भक्त के हृदय में एक अलौकिक उमंग भर जाती है। ‘चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है’ – यह केवल एक भजन की पंक्तियाँ नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और माँ के प्रति अगाध प्रेम का उद्घोष है। यह वो पुकार है जो हृदय के गहरे कोने से उठती है और सीधे माँ के चरणों तक पहुँच जाती है। यह एक दिव्य बुलावा है, एक ऐसा निमंत्रण जो हर भक्त को अपनी ओर खींचता है, उसे आध्यात्मिक शांति और जीवन परिवर्तन की ओर अग्रसर करता है। आइए, इस नवरात्रि विशेष अंक में हम माँ के इस दिव्य बुलावे के महत्व को समझें और जानें कैसे यह हमें आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

पौराणिक देवी कथा: जब माँ ने सुना भक्तों का बुलावा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब धरती पर महिषासुर नामक अहंकारी राक्षस का आतंक बढ़ गया था, तब तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया, ऋषि-मुनि यज्ञ नहीं कर पा रहे थे और मनुष्य भयभीत थे। चारों ओर त्राहिमाम की स्थिति थी, कोई भी शक्ति महिषासुर का सामना करने में सक्षम नहीं थी। तब सभी देवता, अपनी व्यथा लेकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुँचे और अपनी पीड़ा बताई। उन्होंने करुण भाव से पुकार लगाई, अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रार्थना की। देवताओं की ये पुकार, उनका ये ‘बुलावा’, त्रिदेवों तक पहुँचा।

देवताओं की तपस्या और करुण पुकार से तीनों देवों के शरीर से एक अद्भुत तेज प्रकट हुआ। यह तेज पुंज धीरे-धीरे एकत्रित होकर एक दिव्य नारी शक्ति में परिवर्तित हो गया – आदि शक्ति माँ दुर्गा। भगवान शिव ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, ब्रह्मा ने कमंडल, देवराज इंद्र ने अपना वज्र, वायुदेव ने धनुष-बाण, और सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र अर्पित किए। सागर देव ने दिव्य आभूषण और कमल की माला भेंट की, हिमालय ने उन्हें सिंह प्रदान किया। इस प्रकार, समस्त ब्रह्मांड की शक्ति से सुसज्जित होकर माँ दुर्गा का यह अलौकिक अवतार दुष्टों का संहार करने और धर्म की स्थापना के लिए हुआ।

माँ दुर्गा ने भयंकर गर्जना की, जिससे तीनों लोक काँप उठे। उस गर्जना से धरती डोल गई, पर्वत हिलने लगे और समुद्र उफनने लगे। महिषासुर ने जब यह गर्जना सुनी, तो उसने अपने सेनापतियों को भेजा, लेकिन माँ ने पल भर में उनका संहार कर दिया। माँ ने क्षण भर में धूम्रलोचन, चंड-मुंड और रक्तबीज जैसे पराक्रमी राक्षसों का अंत कर दिया, जिससे महिषासुर क्रोध से तिलमिला उठा। अंततः, महिषासुर स्वयं माँ के सम्मुख आया। अनेक रूप बदलता हुआ वह अंत में एक भयंकर भैंसे का रूप धारण कर माँ से युद्ध करने लगा। माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसके हृदय को विदीर्ण कर दिया और महिषासुर का वध किया। इस प्रकार, माँ ने तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त किया और देवताओं को पुनः उनके स्थान पर स्थापित किया।

यह देवी कथा हमें सिखाती है कि जब भी धर्म पर संकट आता है, जब भी अधर्म का बोलबाला होता है, तब माँ अपनी संतानों की पुकार सुनकर, उनके ‘बुलावा’ को सुनकर अवश्य प्रकट होती हैं। माँ का यह आगमन केवल दानवों के संहार के लिए नहीं, बल्कि भक्तों को अभय प्रदान करने, उन्हें सही मार्ग दिखाने और उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए होता है। नवरात्रि के नौ दिन इसी देवी शक्ति की उपासना का प्रतीक हैं, जब हम माँ के विभिन्न रूपों की आराधना कर उनके ‘बुलावा’ का सम्मान करते हैं और उनकी असीम कृपा प्राप्त करते हैं। यह कथा हमें दृढ़ विश्वास दिलाती है कि हमारी हर पुकार माँ तक पहुँचती है।

देवी शक्ति और जीवन परिवर्तन का महात्म्य

नवरात्रि का पर्व मात्र व्रत-उपवास और पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और देवी शक्ति से साक्षात्कार का समय है। इस दौरान माँ के नौ दिव्य स्वरूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री – की आराधना की जाती है। प्रत्येक स्वरूप एक विशेष शक्ति और गुण का प्रतिनिधित्व करता है, जो भक्त के जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। यह पर्व हमें जीवन में देवी शक्ति के महत्व को समझाता है। माँ दुर्गा केवल एक योद्धा देवी नहीं, बल्कि सृजन, पालन और संहार की अधिष्ठात्री हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन करती हैं। उनकी कृपा से ही जीवन में सुख-समृद्धि, ज्ञान, साहस और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह हमें बताता है कि कैसे हम अपनी आंतरिक बुराइयों को पहचान कर उन्हें दूर कर सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे माँ ने महिषासुर का संहार किया। यह आत्म-शुद्धि का पर्व है, जब हम अपने अंदर की नकारात्मकता को मिटाकर सकारात्मकता को अपनाते हैं। देवी दर्शन लाभ अलौकिक होता है। जो भक्त सच्चे मन से माँ का आह्वान करता है, ‘चलो बुलावा आया है’ जैसे भक्ति भजन गाते हुए उनके दरबार में पहुँचता है, उसे माँ की असीम कृपा प्राप्त होती है। यह कृपा उसके जीवन में न केवल भौतिक उन्नति लाती है, बल्कि मानसिक शांति, आध्यात्मिक जागृति और आत्मिक संतोष भी प्रदान करती है। यह जीवन परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती है, जहाँ व्यक्ति भय, क्रोध और मोह से मुक्त होकर संतोष और आनंद का अनुभव करता है। माँ की शक्ति हमें चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देती है और जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।

नवरात्रि के पावन अनुष्ठान और परंपराएं

नवरात्रि के दौरान अनेक पवित्र और महत्वपूर्ण रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जो माँ के प्रति हमारी श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करते हैं:

1. **घटस्थापना:** यह नवरात्रि के पहले दिन किया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो माँ दुर्गा के आगमन का प्रतीक है। इसमें मिट्टी के एक कलश में जल भरकर जौ बोया जाता है और उसे माँ के आसन के पास स्थापित किया जाता है। यह शुभता, समृद्धि और नवजीवन का प्रतीक है। मान्यता है कि इस कलश में सभी देवी-देवता और तीर्थ निवास करते हैं।
2. **अखंड ज्योति:** कई भक्त नौ दिनों तक अपने घरों या मंदिरों में अखंड ज्योति प्रज्वलित करते हैं, जो माँ के प्रति अटूट आस्था और भक्ति का प्रतीक है। यह ज्योति नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है, घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है और भक्तों के जीवन में प्रकाश फैलाती है। यह इस बात का भी प्रतीक है कि माँ की कृपा सदैव हमारे साथ है।
3. **दुर्गा सप्तशती का पाठ:** इस दौरान ‘दुर्गा सप्तशती’ या ‘देवी माहात्म्य’ का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसमें माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों और उनकी अद्भुत लीलाओं का वर्णन है, जो भक्तों को शक्ति, साहस और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है। इसका पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
4. **देवी मंत्र जप और आरती:** माँ के विभिन्न मंत्रों का जप करना, जैसे “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” या “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता”, और सायंकाल में माँ की भव्य आरती करना, नवरात्रि पूजा का अभिन्न अंग है। ‘चलो बुलावा आया है’ जैसे भक्ति भजन भी गाए जाते हैं, जो वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं और भक्तों को माँ से जोड़ते हैं।
5. **व्रत और उपवास:** कई भक्त इन नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए होता है। यह आत्मसंयम, इंद्रिय-निग्रह और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। व्रत रखने से मन एकाग्र होता है और आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।
6. **कन्या पूजन:** अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं और एक बालक (जिन्हें लंगूर या बटुक भैरव का स्वरूप माना जाता है) को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार, दक्षिणा दिए जाते हैं। इन कन्याओं को माँ दुर्गा का साक्षात् स्वरूप मानकर उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। यह माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक सुंदर तरीका है।
7. **हवन और पूर्णाहुति:** नवरात्रि के समापन पर विधि-विधान से हवन किया जाता है, जिसमें देवी-देवताओं को विभिन्न सामग्रियों की आहुति दी जाती है। यह पूजा की पूर्णता और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का प्रतीक है। हवन से वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।

ये सभी अनुष्ठान हमें माँ से गहराई से जुड़ने, उनकी असीम कृपा प्राप्त करने और अपने जीवन को पवित्रता, भक्ति और सकारात्मकता से भरने का अवसर प्रदान करते हैं। यह ‘बुलावा’ इन रीति-रिवाजों के माध्यम से और भी मुखर हो उठता है, हमें माँ के करीब लाता है।

माँ का बुलावा: एक आत्मिक यात्रा का आह्वान

‘चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है’ – यह केवल भजन नहीं, यह एक अनुभूति है, एक विश्वास है, एक अलौकिक पुकार है जो हमें हर साल नवरात्रि में माँ के चरणों में खींच लाती है। यह वो समय है जब हम अपनी सभी चिंताओं, दुखों, भय और नकारात्मकता को छोड़कर माँ की शरण में आते हैं और उनसे शक्ति, ज्ञान और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह हमारी आत्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहाँ हम स्वयं को माँ के प्रेम और शक्ति में पाते हैं।

नवरात्रि का यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएं, कितनी भी बाधाएँ क्यों न आएं, यदि हम माँ दुर्गा पर अटूट विश्वास रखें तो वे अवश्य हमारी सहायता करती हैं। उनकी देवी शक्ति हमें हर मुश्किल से लड़ने का साहस देती है, हमें सही मार्ग दिखाती है और हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। माँ की कृपा से हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं।

तो आइए, इस शुभ अवसर पर हम भी माँ के इस बुलावे का सम्मान करें। सच्चे मन से उनकी उपासना करें, उनके भजनों को गाएं, उनकी आरती उतारें और स्वयं को उनके चरणों में समर्पित कर दें। माँ की कृपा हम सब पर बनी रहे और उनका दिव्य ‘बुलावा’ हमारे जीवन को हमेशा प्रकाशमय, आनंदमय और सार्थक बनाए रखे। हर हृदय में माँ का वास हो और हर पुकार माँ तक पहुँचे। जय माता दी! जय माँ दुर्गा!

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