ॐ जय शिव ओंकारा आरती सम्पूर्ण लिरिक्स: अर्थ, महत्व और अद्भुत महिमा

ॐ जय शिव ओंकारा आरती सम्पूर्ण लिरिक्स: अर्थ, महत्व और अद्भुत महिमा

# ॐ जय शिव ओंकारा आरती सम्पूर्ण लिरिक्स: अर्थ, महत्व और अद्भुत महिमा

सृष्टि के पालनहार और संहारक, देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। उनके स्मरण मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में शांति का संचार होता है। शिव भक्ति का एक अत्यंत सरल और प्रभावी माध्यम है उनकी आरती। ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती भगवान शिव की उस अद्भुत शक्ति, उनके विराट स्वरूप और उनकी करुणा को दर्शाती है, जो हर भक्त को अपनी ओर खींच लेती है। यह आरती न केवल महाशिवरात्रि जैसे पावन पर्व पर, बल्कि प्रतिदिन शिव पूजा में भी विशेष स्थान रखती है। यह मात्र कुछ पंक्तियों का संग्रह नहीं, अपितु शिव तत्व का सम्पूर्ण सार है, जिसे गाकर भक्त शिव से एकाकार हो जाते हैं। आइए, आज हम इस पवित्र शिव आरती के प्रत्येक चरण के अर्थ, इसके गहरे आध्यात्मिक महत्व और इसे गाने की विधि पर विस्तृत प्रकाश डालें। यह लेख ‘सनातन स्वर’ के माध्यम से आपको भगवान शिव की भक्ति में लीन करने का एक विनम्र प्रयास है।

## भगवान शिव की महिमा: ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती में वर्णित कथा

कहानी से पहले, हमें उस विराट स्वरूप को समझना होगा जिसकी स्तुति इस आरती में की जाती है। भगवान शिव, जो अनादि, अनंत, अविनाशी और निराकार हैं, फिर भी भक्तों के कल्याण हेतु विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं। शिव पुराणों और अन्य धर्मग्रंथों में भगवान शिव की अनेक लीलाओं और कथाओं का वर्णन है, जो उनके परोपकारी स्वभाव, उनकी अलौकिक शक्तियों और उनकी सहज करुणा को दर्शाती हैं। ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती स्वयं में शिव की इन्हीं कथाओं और गुणों का सार समेटे हुए है।

यह आरती हमें शिव के उस रूप से परिचित कराती है, जहाँ वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का अभिन्न अंग होते हुए भी, तीनों देवों से परे हैं। वे ही सृष्टि के आदि और अंत हैं। “एकानन चतुरानन पंचानन राजे” – ये पंक्तियाँ बताती हैं कि कैसे शिव आवश्यकतानुसार एक मुख, चार मुख (ब्रह्मा के समान) और पाँच मुख (सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष, ईशान) धारण करते हैं, जो उनके विविध रूपों और कार्यों को दर्शाता है। यह एक कहानी है उस देव की जो कभी नीलकंठ बनकर विषपान करते हैं, तो कभी दिगंबर रूप में श्मशान में निवास करते हैं, जो उनके वैराग्य और त्याग का प्रतीक है।

आरती में आगे आता है “दो भुज चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहे” – यह उनकी अनेक भुजाओं का वर्णन है, जो उनकी असीम शक्ति और सर्वव्यापकता का प्रतीक है। शिव की कहानी सिर्फ कैलाश पर्वत तक सीमित नहीं है, वे कण-कण में विराजमान हैं। उनकी जटाओं से निकली गंगा की कहानी, उनके मस्तक पर चंद्रमा की कहानी, उनके गले में लिपटे सर्प की कहानी – ये सब उनके दिव्य व्यक्तित्व के अनूठे पहलू हैं। चंद्र जहाँ शीतलता और शांति का प्रतीक है, वहीं गंगा पवित्रता और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक। सर्प काल और मृत्यु पर उनके नियंत्रण को दर्शाता है।

‘ॐ जय शिव ओंकारा’ हमें शिव के उस तपस्वी रूप की याद दिलाती है, जो ध्यानमग्न होकर संसार के कल्याण के लिए तप करते हैं। यह उस भोलेनाथ की कहानी है जो अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। यह आरती हमें ‘त्रिगुण स्वामी की आरती’ के रूप में तीनों गुणों (सत्व, रजस, तमस) के नियंत्रक शिव के बारे में बताती है, जो स्वयं इन गुणों से परे हैं। वे ही शुभंकर हैं, और वे ही प्रलयंकर। उनकी पिनाक धनुष की टंकार से भय और बुराई का नाश होता है।

इस आरती के माध्यम से भक्तगण शिव के रुद्र रूप, उनके कल्याणकारी स्वरूप, उनके योगी स्वरूप और उनके गृहस्थ स्वरूप (पार्वती के साथ) का स्मरण करते हैं। यह एक ऐसी कहानी है जो शब्दों से नहीं, बल्कि भावना और भक्ति से समझी जाती है। यह बताती है कि कैसे शिव अपनी महिमा से संसार को प्रकाशित करते हैं, और कैसे वे अपने भक्तों के सभी दुख-दर्द हर लेते हैं। यह आरती स्वयं में एक शिव कथा है, जो हमें उनके अनंत रूपों और लीलाओं से जोड़ती है।

## ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती का आध्यात्मिक महत्व और लाभ

‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती का प्रत्येक शब्द गहन आध्यात्मिक अर्थ और महत्व से परिपूर्ण है। यह सिर्फ एक भजन नहीं, बल्कि शिव तत्व को समझने का एक मार्ग है।

* **ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥**
* **अर्थ:** ‘ॐ’ स्वयं ब्रह्म का प्रतीक है। यह पंक्तियाँ भगवान शिव की जयकार करती हैं, जो ओंकार स्वरूप हैं, अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड का मूल। वे ही ब्रह्मा और विष्णु के साथ सदाशिव के रूप में सृष्टि के सृजन, पालन और संहार के अधिष्ठाता हैं। ‘अर्द्धांगी धारा’ बताता है कि कैसे वे अपनी शक्ति, माँ पार्वती के साथ अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हैं, जो स्त्री-पुरुष की समानता और ऊर्जा के मिलन का प्रतीक है।
* **महत्व:** यह शिव के त्रिदेव स्वरूप और उनकी शक्ति के साथ एकत्व का बोध कराता है, जिससे भक्त ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ता है।

* **एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥**
* **अर्थ:** शिव एक मुख (शांत स्वरूप), चार मुख (ब्रह्मा का रूप) और पांच मुख (पांच तत्व और पांच ज्ञानेंद्रियों के नियंत्रक) धारण करते हैं। जहाँ ब्रह्मा हंस पर और विष्णु गरुड़ पर विराजते हैं, वहीं शिव का वाहन नंदी (वृष) है, जो धर्म, धैर्य और तपस्या का प्रतीक है।
* **महत्व:** यह शिव की सर्वव्यापकता और उनकी समस्त देवों में श्रेष्ठता को दर्शाता है। इससे भक्तों में विनम्रता और समर्पण का भाव जागृत होता है।

* **दो भुज चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे॥**
* **अर्थ:** शिव दो, चार या दस भुजाओं वाले रूपों में सुशोभित होते हैं, जो उनकी असीम शक्ति और विभिन्न कार्यों को दर्शाते हैं। उनके त्रिगुणात्मक रूप (सत्व, रजस, तमस) को देखकर तीनों लोकों के प्राणी मोहित हो जाते हैं।
* **महत्व:** यह बताता है कि शिव ही तीनों गुणों के नियामक हैं और उनके दर्शन मात्र से ही भक्त मोह माया से मुक्त हो सकता है।

* **अक्षमाला वनमाला मुंडमाला धारी। चंदन मृग मद सोहे, भोले शुभकारी॥**
* **अर्थ:** शिव रुद्राक्ष की माला (अक्षमाला), वन के फूलों की माला और मुंडमाला (कपालों की माला) धारण करते हैं, जो उनके वैराग्य, प्रकृति से जुड़ाव और मृत्यु पर विजय को दर्शाती है। वे अपने शरीर पर चंदन और मृग मद (कस्तूरी) लगाते हैं, जो उन्हें सुगंधित और शुभकारी बनाता है। उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है क्योंकि वे अत्यंत सरल और दयालु हैं।
* **महत्व:** यह शिव के त्याग, वैराग्य और कल्याणकारी स्वभाव का वर्णन करता है। यह भक्तों को सादगी और निस्वार्थता की प्रेरणा देता है।

* **श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥**
* **अर्थ:** शिव कभी श्वेत (शांत स्वरूप), कभी पीत (गृहस्थ स्वरूप) और कभी बाघम्बर (तपस्वी स्वरूप) धारण करते हैं। उनके साथ सनकादि ऋषि, गरुड़ादि देवगण और भूतादि गण भी रहते हैं।
* **महत्व:** यह शिव के विभिन्न रूपों और उनके साथ रहने वाले विभिन्न प्राणियों को दर्शाता है, जिससे उनकी सर्वसमावेशी प्रकृति का पता चलता है।

* **कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धारी। सुखकारी दुखहारी जग पालन कारी॥**
* **अर्थ:** शिव के हाथ में कमंडलु (जलपात्र), चक्र (विष्णु से अभिन्न), और त्रिशूल (त्रिगुणात्मक शक्ति का प्रतीक) है। वे सुख प्रदान करने वाले, दुखों को हरने वाले और संपूर्ण जगत का पालन करने वाले हैं।
* **महत्व:** यह शिव की सुरक्षात्मक और कल्याणकारी भूमिका को उजागर करता है। आरती गाने से भक्त को यह विश्वास मिलता है कि शिव उनके सभी दुखों को दूर करेंगे।

* **ब्रह्मा पूजे विष्णु पूजे तुमको देवराज। नाम तिहारे शिवजी का नित प्रति उच्चारण करें॥**
* **अर्थ:** स्वयं ब्रह्मा और विष्णु भी शिव की पूजा करते हैं, क्योंकि वे देवताओं के राजा हैं। उनका नाम प्रतिदिन जपना चाहिए।
* **महत्व:** शिव की सर्वोपरिता और उनके नाम जप के महत्व पर जोर देता है।

* **काशी में विश्वनाथ बिराजत, नंदी ब्रम्हचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥**
* **अर्थ:** काशी में भगवान विश्वनाथ के रूप में शिव विराजमान हैं और उनके परम भक्त नंदी ब्रह्मचारी के रूप में उनके साथ रहते हैं। जो प्रतिदिन उनके दर्शन करते हैं, उन्हें अपार महिमा और पुण्य प्राप्त होता है।
* **महत्व:** यह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ के महत्व को बताता है और शिव दर्शन के पुण्य फल पर प्रकाश डालता है।

* **त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥**
* **अर्थ:** शिवानंद स्वामी कहते हैं कि जो कोई भी तीनों गुणों के स्वामी भगवान शिव की यह आरती गाता है, वह अपने मनवांछित फल प्राप्त करता है।
* **महत्व:** यह आरती के पाठ के फल को स्पष्ट करता है – मनोकामनाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक सिद्धि।

### आरती के आध्यात्मिक लाभ (Benefits):
* **मन की शांति:** आरती के मधुर स्वर और अर्थपूर्ण बोल मन को शांत और एकाग्र करते हैं।
* **नकारात्मकता का नाश:** शिव की स्तुति से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
* **आत्मिक शुद्धि:** नियमित आरती करने से मन, वचन और कर्म शुद्ध होते हैं।
* **मोक्ष की प्राप्ति:** गहन भक्ति और एकाग्रता से की गई आरती मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त कर सकती है।
* **इच्छाओं की पूर्ति:** सच्चे मन से की गई प्रार्थना और आरती से भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
* **महाशिवरात्रि का विशेष फल:** महाशिवरात्रि पर इस आरती का पाठ करने से शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।

## ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती की विधि और परंपराएँ

भगवान शिव की आरती ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ को विधि-विधान से करना अत्यंत फलदायी होता है। यहाँ आरती करने की सरल विधि और कुछ परंपराएँ बताई गई हैं:

* **तैयारी:**
* **स्थान:** एक स्वच्छ और शांत स्थान चुनें, जहाँ आप एकाग्रता से आरती कर सकें। मंदिर या घर के पूजा स्थल पर करना श्रेष्ठ है।
* **सामग्री:** एक थाली में दीपक (घी या तेल का), कपूर, अगरबत्ती/धूपबत्ती, पुष्प, अक्षत (चावल), कुमकुम, चंदन और जल रखें। घंटी भी पास रखें।

* **आरंभ:**
* सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
* भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग के समक्ष बैठें।
* दीपक प्रज्वलित करें, अगरबत्ती/धूपबत्ती जलाएँ।
* थोड़ा जल छिड़ककर वातावरण को शुद्ध करें।
* भगवान शिव का ध्यान करें और मन ही मन अपनी मनोकामनाएँ दोहराएँ।

* **आरती का प्रदर्शन:**
* दीपक को दोनों हाथों में लेकर या एक हाथ से आरती की थाली पकड़कर, घंटी बजाते हुए आरती गाना शुरू करें।
* आरती को एक लय और श्रद्धा के साथ गाएँ। उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए।
* दीपक को भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग के चारों ओर घड़ी की सुई की दिशा में (दक्षिणावर्त) गोल-गोल घुमाएँ। पहले चार बार चरणों की तरफ, दो बार नाभि की तरफ, एक बार मुख की तरफ और फिर पूरे विग्रह के सामने सात बार घुमाएँ।
* पूरे भाव के साथ आरती में लीन हो जाएँ।

* **समापन:**
* आरती समाप्त होने पर, दीपक को नीचे रखें।
* कपूर जलाकर भी आरती करें, जिससे वातावरण सुगंधित हो और नकारात्मकता दूर हो।
* भगवान को प्रणाम करें और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
* आरती के बाद थाली में रखे जल को सभी पर छिड़कें और स्वयं भी ग्रहण करें।
* आरती का प्रसाद (यदि कोई हो) सभी उपस्थित लोगों में वितरित करें।

### उच्चारण विधि और ध्यान (Chanting Method and Focus):
* **स्पष्ट उच्चारण:** आरती के शब्दों का स्पष्ट और सही उच्चारण करें। गलत उच्चारण से अर्थ बदल सकता है।
* **भाव और श्रद्धा:** आरती सिर्फ गाकर खत्म करने की रस्म नहीं, बल्कि यह भगवान के प्रति अपने प्रेम, कृतज्ञता और समर्पण को व्यक्त करने का माध्यम है। इसलिए, प्रत्येक शब्द के अर्थ को समझकर भाव के साथ गाएँ।
* **एकाग्रता:** आरती करते समय मन को पूरी तरह से भगवान शिव पर केंद्रित रखें। किसी भी बाहरी विचार को मन में न आने दें।
* **महाशिवरात्रि पर विशेष:** महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिर में या घर पर रात भर जागरण करते हुए इस आरती का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन चारों प्रहर में शिव पूजा और आरती का विशेष विधान है।

## निष्कर्ष

‘ॐ जय शिव ओंकारा’ आरती भगवान शिव की अनंत महिमा और उनकी करुणा का एक अनुपम गुणगान है। यह मात्र एक गीत नहीं, बल्कि शिव तत्व से जुड़ने का एक सीधा और सहज मार्ग है। इस आरती का गायन हमें आंतरिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति और महादेव के दिव्य आशीर्वाद से भर देता है। महाशिवरात्रि हो या कोई सामान्य दिन, सच्ची श्रद्धा और भाव से की गई यह आरती आपके जीवन के सभी दुखों का नाश कर सुख-समृद्धि लाएगी। तो आइए, हम सभी मिलकर इस पावन आरती को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ और भगवान शिव की असीम कृपा के भागी बनें। हर हर महादेव!

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