सावन में शिव पूजा कैसे करें
**प्रस्तावना**
सावन, जिसे श्रावण मास भी कहते हैं, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन महीना माना जाता है। यह भगवान शिव को समर्पित मास है, जब प्रकृति अपनी अनुपम छटा बिखेरती है और वर्षा की बूँदें धरती को तृप्त करती हैं। इन बूँदों में महादेव का आशीर्वाद समाहित होता है। इस महीने में भगवान शिव की आराधना करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन के सभी कष्टों का निवारण भी होता है। सावन का प्रत्येक सोमवार, जिसे ‘सावन सोमवार’ कहा जाता है, विशेष फलदायी होता है। यह मास शिव भक्तों के लिए एक महापर्व से कम नहीं है, जिसमें वे अपनी श्रद्धा और भक्ति के विभिन्न रंगों से भोलेनाथ को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इस पवित्र अवसर पर शिव जी की पूजा कैसे करें, इसके गूढ़ रहस्य और विधि-विधान को जानना अत्यंत आवश्यक है ताकि प्रत्येक भक्त अपनी पूजा को सार्थक कर सके और महादेव की असीम कृपा का पात्र बन सके।
**पावन कथा**
सावन मास में भगवान शिव की महिमा का गुणगान अनेक कथाओं में किया गया है, जिनमें से एक अत्यंत प्रचलित और महत्वपूर्ण कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। प्राचीन काल में जब देवता और दानव मिलकर क्षीर सागर का मंथन कर रहे थे ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके, तो मंथन से एक-एक करके चौदह रत्न और वस्तुएँ निकलीं। इन्हीं में से एक अत्यंत भयंकर विष निकला, जिसका नाम ‘हलाहल’ था। इस विष की प्रचंड अग्नि इतनी तीव्र थी कि वह तीनों लोकों को भस्म करने पर उतारू हो गई। उसकी लपटों से देवता, दानव, मनुष्य और समस्त जीव-जन्तु त्राहि-त्राहि कर उठे। किसी में भी उस विष को ग्रहण करने का सामर्थ्य नहीं था, क्योंकि जो कोई भी उसे छूता, वह तत्काल भस्म हो जाता।
देवता और दानव, सभी अपनी प्राण रक्षा हेतु भगवान ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुँचे, परंतु वे भी इस समस्या का समाधान न कर सके। अंततः, समस्त सृष्टि के रक्षक, परम कृपालु भगवान शिव की शरण में जाने का निर्णय लिया गया। सभी भयभीत होकर कैलाश पर्वत पहुँचे और भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। उन्होंने शिव शम्भू से इस विनाशकारी विष से सृष्टि की रक्षा करने का निवेदन किया।
भगवान शिव ने अपने भक्तों की करुण पुकार सुनी और समस्त चराचर जगत पर मंडराते इस गंभीर संकट को देखकर उनका हृदय करुणा से भर उठा। उन्होंने क्षण भर भी विलंब न करते हुए उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। यह विष इतना तीव्र था कि यदि वह पेट में जाता तो पूरी सृष्टि को नष्ट कर देता, और यदि वह मुख से बाहर आता तो उसे बोलने वाले सभी जीव जल जाते। इसलिए, भोलेनाथ ने उसे अपने कंठ में ही रोक लिया। विष की प्रचंडता से उनका कंठ नीला पड़ गया और तब से वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। इस प्रकार, महादेव ने स्वयं विषपान करके सृष्टि को विनाश से बचाया। यह घटना सावन मास में ही घटित हुई थी, और इसी कारण यह मास शिव भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय हो गया।
भगवान शिव के इस परम त्याग और दयालुता के कारण ही सावन के महीने में उनकी पूजा-अर्चना विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इस मास में जो भक्त सच्चे हृदय से शिव जी की आराधना करते हैं, उन पर नीलकंठ महादेव अपनी असीम कृपा बरसाते हैं और उन्हें सभी भय, रोग, दोष और दुखों से मुक्ति प्रदान करते हैं। यह कथा हमें त्याग, परोपकार और अगाध प्रेम का संदेश देती है, जो भगवान शिव के चरित्र का मूल है।
**दोहा**
सावन बरसे मेघ जल, शिव को अति प्रिय होय।
बेलपत्र धतूरा अर्पण, मन वांछित फल सोय।।
**चौपाई**
हर हर महादेव जय शिव शम्भू, त्रिपुरारी कैलाशवासी।
गंगाधर डमरुधर भोले, दीन दुखियों के अविनाशी।
भक्तों के संकट हरते हो, तुम ही सबके अंतर्यामी।
सावन मास में जो पूजे, दूर हो कष्ट सब स्वामी।
**पाठ करने की विधि**
सावन मास में शिव पूजा अत्यंत सरल और भावपूर्ण होती है। इसे विधिवत करने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। यहाँ विस्तृत पूजा विधि दी गई है:
१. **प्रातः स्नान और संकल्प:** सावन सोमवार या किसी भी दिन शिव पूजा से पहले प्रातःकाल उठकर शुद्ध जल से स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें। हाथ में जल लेकर अपनी इच्छा (मनोकामना) का संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से पूजा कर रहे हैं।
२. **पूजन सामग्री एकत्रित करना:** पूजा के लिए आवश्यक सामग्री पहले से एकत्रित कर लें। इनमें मुख्य रूप से जल (गंगाजल हो तो श्रेष्ठ), दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत), बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, आक के फूल, कनेर के फूल, सफेद चंदन, भस्म, अक्षत (साबुत चावल), जनेऊ, अगरबत्ती, दीपक, फल, मिठाई और दक्षिणा शामिल हैं।
३. **शिवलिंग की स्थापना और अभिषेक:** पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें (यदि घर में न हो तो मिट्टी का शिवलिंग बना सकते हैं)। सर्वप्रथम शिवलिंग को जल से स्नान कराएँ, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर के मिश्रण) से अभिषेक करें। अभिषेक करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का निरंतर जाप करते रहें। पंचामृत के बाद पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
४. **वस्त्र और उपवस्त्र:** शिवलिंग को स्वच्छ वस्त्र (कलावा) और उपवस्त्र (जनेऊ) अर्पित करें।
५. **चंदन और भस्म लेपन:** सफेद चंदन और भस्म शिवलिंग पर लगाएँ। चंदन शीतलता प्रदान करता है और भस्म वैराग्य का प्रतीक है।
६. **पुष्प और पत्र अर्पित करना:** बेलपत्र शिव जी को अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए उन्हें कम से कम ११ बेलपत्र अर्पित करें। धतूरा, भांग, शमी पत्र, आक के फूल, कनेर के फूल और अन्य मौसमी फूल चढ़ाएँ। ध्यान रहे कि बेलपत्र खंडित न हों।
७. **नैवेद्य और फल:** मौसमी फल और मिठाई (जैसे बेसन के लड्डू, चूरमा) का भोग लगाएँ। भोग लगाते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते रहें।
८. **धूप और दीप:** सुगंधित धूप और शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें।
९. **मंत्र जाप:** श्रद्धापूर्वक ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का कम से कम १०८ बार जाप करें। महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी अत्यंत फलदायी होता है।
१०. **शिव चालीसा और आरती:** मंत्र जाप के उपरांत शिव चालीसा का पाठ करें और अंत में कपूर से भगवान शिव की आरती करें। आरती करते समय परिवार के सभी सदस्य शामिल हों और वातावरण को भक्तिमय बनाएँ।
११. **प्रदक्षिणा और क्षमा प्रार्थना:** आरती के बाद शिवलिंग की परिक्रमा करें (कम से कम तीन बार)। अंत में अपनी भूलों के लिए भगवान से क्षमा प्रार्थना करें और अपनी मनोकामना पूरी करने का निवेदन करें।
१२. **प्रसाद वितरण:** पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
**पाठ के लाभ**
सावन मास में भगवान शिव की आराधना के अनेक अलौकिक लाभ हैं, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं। इन लाभों को प्राप्त कर भक्त अपने जीवन को धन्य महसूस करते हैं:
१. **कष्टों से मुक्ति:** भगवान शिव ‘भोलेनाथ’ कहलाते हैं क्योंकि वे अत्यंत भोले और दयालु हैं। सच्चे मन से की गई पूजा से वे भक्तों के सभी कष्टों, दुखों और बाधाओं को हर लेते हैं।
२. **मनोकामना पूर्ति:** सावन में की गई शिव पूजा से भक्तों की सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, चाहे वे संतान प्राप्ति की हों, विवाह संबंधी हों, धन-धान्य की वृद्धि की हों या स्वास्थ्य संबंधी हों।
३. **ग्रह दोष निवारण:** जिन जातकों की कुंडली में शनि, राहु, केतु या अन्य किसी ग्रह का अशुभ प्रभाव होता है, उन्हें सावन में शिव पूजा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। यह ग्रह दोषों को शांत करता है।
४. **मोक्ष की प्राप्ति:** आध्यात्मिक दृष्टि से, सावन में शिव आराधना व्यक्ति को मोक्ष और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करती है। यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक माध्यम है।
५. **रोगों से मुक्ति:** सावन के महीने में शिव जी को जल चढ़ाने और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
६. **शांति और सकारात्मकता:** शिव पूजा से मन शांत होता है, नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। व्यक्ति तनावमुक्त होकर जीवन का आनंद ले पाता है।
७. **मृत्यु भय से मुक्ति:** महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। यह मंत्र शिव जी को समर्पित है और सावन में इसका जाप विशेष फलदायी है।
**नियम और सावधानियाँ**
सावन में शिव पूजा करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके और कोई अनिष्ट न हो:
१. **पवित्रता:** मन और तन की पवित्रता सबसे महत्वपूर्ण है। पूजा से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सात्विक भोजन ग्रहण करें और क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों से बचें।
२. **ब्रह्मचर्य का पालन:** सावन मास में, विशेषकर व्रत के दिनों में, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
३. **तामसिक भोजन से परहेज़:** इस पूरे माह में मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज जैसे तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक और साधारण भोजन ही ग्रहण करें।
४. **बेलपत्र की शुद्धता:** शिवलिंग पर चढ़ाने वाले बेलपत्र कभी भी खंडित या कटे हुए नहीं होने चाहिए। बेलपत्र को अच्छी तरह धोकर ही चढ़ाएँ। एक ही बेलपत्र को धोकर बार-बार भी चढ़ाया जा सकता है, क्योंकि यह कभी बासी नहीं होता।
५. **हल्दी और कुमकुम का प्रयोग वर्जित:** भगवान शिव को हल्दी और कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता है। इसके स्थान पर सफेद चंदन का प्रयोग करें।
६. **केतकी के फूल वर्जित:** भगवान शिव को केतकी का फूल चढ़ाना वर्जित माना गया है, क्योंकि एक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के झूठ में केतकी ने उनका साथ दिया था, जिसके कारण शिव जी ने उसे श्राप दिया था।
७. **शंख से जल वर्जित:** शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता, क्योंकि भगवान शिव ने शंखचूड़ राक्षस का वध किया था, जो शंख का ही अंश था।
८. **सुबह-शाम की पूजा:** सावन में सुबह और शाम दोनों समय भगवान शिव की आरती और पूजा करना विशेष फलदायी होता है।
९. **मन वचन कर्म की शुद्धता:** इस पूरे महीने में किसी का बुरा न सोचें, न बोलें और न ही कोई बुरा कर्म करें। भगवान शिव दयालु हैं, वे शुद्ध हृदय से की गई भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं।
१०. **रुद्राक्ष धारण:** सावन के महीने में रुद्राक्ष धारण करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
**निष्कर्ष**
सावन का पवित्र मास भगवान शिव की असीम कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का स्वर्णिम अवसर है। यह केवल एक महीना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है जो हमें स्वयं से और परमपिता परमेश्वर से जोड़ती है। इस मास में प्रकृति भी शिव भक्ति में लीन होकर हरी-भरी हो जाती है, और वर्षा की प्रत्येक बूँद महादेव के अभिषेक का प्रतीक बन जाती है। यदि हम सच्चे मन, श्रद्धा और निष्ठा के साथ ऊपर बताई गई विधि, नियमों और सावधानियों का पालन करते हुए भगवान शिव की आराधना करते हैं, तो निश्चित रूप से उनका आशीर्वाद हमें प्राप्त होगा। जीवन के सभी दुख, रोग और भय दूर होंगे और हमारे जीवन में सुख-शांति तथा समृद्धि का वास होगा। तो आइए, इस सावन में अपने हृदय के कपाट खोलकर भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो जाएँ और उनकी अनुपम कृपा का अनुभव करें। हर हर महादेव, जय शिव शम्भू!
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शिव भक्ति, पूजा विधि, श्रावण मास
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