सनातन धर्म में मां लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी माना जाता है। यह लेख उन पावन आध्यात्मिक उपायों और शुद्ध आचरण पर प्रकाश डालता है जिनके माध्यम से मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर उन्हें घर में स्थायी निवास के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। विशेष रूप से नवरात्रि पूजा और मां दुर्गा की कृपा के महत्व को समझाया गया है, क्योंकि दुर्गा ही समस्त शक्तियों की मूल स्रोत हैं।

सनातन धर्म में मां लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी माना जाता है। यह लेख उन पावन आध्यात्मिक उपायों और शुद्ध आचरण पर प्रकाश डालता है जिनके माध्यम से मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर उन्हें घर में स्थायी निवास के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। विशेष रूप से नवरात्रि पूजा और मां दुर्गा की कृपा के महत्व को समझाया गया है, क्योंकि दुर्गा ही समस्त शक्तियों की मूल स्रोत हैं।

क्या करने से लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है

**प्रस्तावना**
जीवन में धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की कामना हर मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा होती है। सनातन धर्म में इन सभी के लिए धन की देवी मां लक्ष्मी को पूजा जाता है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि लक्ष्मी जी केवल धन की देवी ही नहीं, अपितु सौभाग्य, शांति और संतोष की भी प्रतीक हैं? उनका आगमन मात्र भौतिक प्रयासों से सुनिश्चित नहीं होता, अपितु इसके लिए पवित्र आचरण, श्रद्धापूर्ण साधना और आंतरिक शुद्धता भी अत्यंत आवश्यक है। यह लेख आपको उन पावन कर्मों और आध्यात्मिक उपायों से परिचित कराएगा जिनसे मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर आपके घर में स्थायी रूप से प्रवेश करती हैं। हम यह भी जानेंगे कि कैसे समस्त शक्तियों की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा की कृपा लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करती है, क्योंकि जहां धर्म और पवित्रता का वास होता है, वहीं लक्ष्मी जी स्थिर होती हैं।

**पावन कथा**
प्राचीन काल में विंध्य प्रदेश के अंतर्गत एक छोटा सा राज्य था, जिसका नाम ‘नित्यपुर’ था। राजा धर्मराज अत्यंत प्रजावत्सल और धर्मपरायण थे, परंतु उनका राज्य कई वर्षों से सूखे और दरिद्रता से जूझ रहा था। प्रजा भूख और गरीबी से त्रस्त थी, और राजा स्वयं भी बहुत चिंतित थे। उन्होंने अनेक यज्ञ, अनुष्ठान और दान-पुण्य किए, पर कोई स्थायी समाधान नहीं मिल पा रहा था। लक्ष्मी जी मानो उनसे रूठ गई थीं।

एक दिन, हिमालय से लौटते हुए एक महान संत नित्यपुर से होकर गुजर रहे थे। राजा ने जब उनके आगमन का समाचार सुना तो वे स्वयं संत के चरणों में गए और अपनी व्यथा सुनाई। संत ने राजा की दीनता देखी और मुस्कुराते हुए कहा, “राजन्, लक्ष्मी चंचला हैं, वे वहीं स्थिर होती हैं जहाँ पवित्रता, सेवा भाव, ईमानदारी और धर्म का निरंतर वास हो। क्या आपने कभी मां दुर्गा की आराधना सच्चे मन से की है? वे ही सकल ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री हैं और उन्हीं की कृपा से लक्ष्मी जी का आगमन होता है। वे आदिशक्ति हैं और संपूर्ण जगत की पालनहार भी।”

संत ने राजा को समझाया कि आगामी नवरात्रि में वे मां दुर्गा की विशेष आराधना करें। उन्होंने कहा, “आप नौ दिनों तक उपवास रखें, मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करें, और अपनी प्रजा की सेवा को ही सर्वोपरि मानें। अपने राज्य में स्वच्छता का विशेष अभियान चलाएं, किसी भी जीव को कष्ट न पहुंचाएं और ईमानदारी व सत्यता का पूर्ण पालन करें।”

राजा ने संत के वचनों को ब्रह्म वाक्य मानकर श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया। उन्होंने आगामी नवरात्रि में अत्यंत निष्ठा के साथ मां दुर्गा की उपासना आरंभ की। नौ दिनों तक उन्होंने कठोर व्रत रखे, दुर्गा सप्तशती का पाठ किया और प्रतिदिन कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराया। उन्होंने अपने महल से लेकर राज्य के प्रत्येक घर तक स्वच्छता सुनिश्चित करवाई। राजा ने अपने मंत्रियों को भी आदेश दिया कि कोई भी प्रजाजन भूखा न सोए और सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए।

नवरात्रि के अंतिम दिन, महानवमी पर, राजा ने कन्या पूजन, हवन और विशाल भंडारे का आयोजन किया। उस रात राजा को स्वप्न में मां दुर्गा के भव्य दर्शन हुए। मां ने मुस्कुराते हुए कहा, “पुत्र धर्मराज, तेरी भक्ति, पवित्रता और प्रजा सेवा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुमने लक्ष्मी को निमंत्रण देने वाले सभी गुणों को अपने हृदय और राज्य में स्थापित किया है। संतोष, स्वच्छता, धर्म, प्रेम और निस्वार्थ सेवा ही लक्ष्मी के स्थायी निवास के मूल आधार हैं। जाओ, अब लक्ष्मी का आगमन निश्चित है और वे तुम्हारे राज्य में स्थिर रूप से निवास करेंगी।”

राजा की नींद खुली। उनका हृदय आनंद और संतोष से भर गया। अगले ही दिन से राज्य में अप्रत्याशित परिवर्तन दिखने लगे। वर्षा हुई, खेतों में फसलें लहलहा उठीं। पड़ोसी राज्यों से व्यापारी नित्यपुर आने लगे और व्यापार कई गुना बढ़ गया। शीघ्र ही नित्यपुर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। लक्ष्मी जी ने राजा के घर और पूरे राज्य में स्थायी निवास कर लिया, जिससे न केवल भौतिक समृद्धि आई, अपितु सुख, शांति और संतोष भी प्राप्त हुआ। यह सब मां दुर्गा की असीम कृपा और राजा के शुद्ध आचरण का ही परिणाम था। इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि लक्ष्मी जी का आगमन केवल धन से नहीं, बल्कि धर्म, शुद्धता और सद्भावना से होता है, जिसके लिए मां दुर्गा की कृपा सर्वोपरि है।

**दोहा**
शुद्ध हृदय, स्वच्छ आचरण, माँ दुर्गा का ध्यान।
जहाँ प्रेम और धर्म हो, वहीं लक्ष्मी का स्थान।।

**चौपाई**
बिनु संतोष नहिं सुख संभार, लक्ष्मी बसहिं जहाँ शुद्ध विचार।
प्रेम भाव जहाँ सब सँग हो, मां कृपा निशिदिन संग हो।
नवरात्र में जो करे पूजा, मिटे दरिद्रता, मिटे दूजा।
दुर्गा जी की कृपा से पावन, लक्ष्मी आवें घर मंगलमय सावन।।

**पाठ करने की विधि**
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उन्हें घर में स्थायी निवास के लिए आमंत्रित करने हेतु यह विधि अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। इसमें मां दुर्गा और मां लक्ष्मी दोनों की संयुक्त आराधना की जाती है, क्योंकि मां दुर्गा ही समस्त ऐश्वर्य की मूल स्रोत हैं।

सबसे पहले, प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में (सूर्य उदय से पहले) उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने पूजा स्थान को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा और मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें।

सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनसे अपनी पूजा को निर्विघ्न संपन्न करने की प्रार्थना करें। हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर अपनी मनोकामना हेतु संकल्प लें कि आप नियमित रूप से इस पूजा को श्रद्धापूर्वक करेंगे।

अब मां दुर्गा का आह्वान करें। उन्हें लाल पुष्प, सिन्दूर, अक्षत, चुनरी और मौली अर्पित करें। “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का कम से कम एक माला (१०८ बार) जाप करें। इसके बाद, मां लक्ष्मी का आह्वान करें। उन्हें कमल पुष्प (यदि उपलब्ध हो), पीली कौड़ी, श्रीफल, अक्षत और वस्त्र अर्पित करें। “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” इस मंत्र का भी एक माला जाप करें।

अपनी सुविधा अनुसार, प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती के एक अध्याय का पाठ करें या ‘दुर्गा चालीसा’ का पाठ करें। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए ‘श्री सूक्त’ या ‘कनकधारा स्तोत्र’ का पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है, इसका पाठ अवश्य करें। पूजा के अंत में मां दुर्गा और मां लक्ष्मी की आरती करें। उन्हें फल, मिठाई या खीर का भोग लगाएं और इसे प्रसाद के रूप में परिवार के सभी सदस्यों में वितरित करें।

विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान और हर शुक्रवार को कन्याओं का पूजन अवश्य करें, उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराएं और दक्षिणा देकर विदा करें। यह मां दुर्गा और मां लक्ष्मी दोनों को अत्यंत प्रिय है और उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। इस विधि का पालन करने के साथ-साथ अपने घर में हमेशा साफ-सफाई रखें और परिवार में प्रेम, सद्भावना का वातावरण बनाए रखें, क्योंकि मां लक्ष्मी वहीं निवास करती हैं जहां शांति और पवित्रता हो।

**पाठ के लाभ**
इस पावन पाठ और साधना से असंख्य लाभ प्राप्त होते हैं, जो केवल भौतिक ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक और मानसिक भी होते हैं। यह विधि साधक के जीवन में चहुंमुखी विकास लाती है।

**धन-धान्य की वृद्धि:** इस पूजा और शुद्ध आचरण से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर में स्थिर निवास करती हैं, जिससे धन, धान्य और संपत्ति में निरंतर वृद्धि होती है। सभी प्रकार की आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं।

**मानसिक शांति और संतोष:** यह साधना केवल भौतिक लाभ ही नहीं देती, अपितु साधक के मन को असीम शांति, संतोष और सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है। अनावश्यक चिंताएं और तनाव दूर होते हैं।

**स्वास्थ्य लाभ और रोग मुक्ति:** मां दुर्गा की कृपा से समस्त रोग-शोक दूर होते हैं। परिवार में उत्तम स्वास्थ्य का वातावरण बनता है और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

**नकारात्मकता का नाश:** घर से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। ग्रह दोष और ऊपरी बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती हैं।

**पारिवारिक सुख-शांति:** आपसी कलह और मतभेद समाप्त होते हैं। परिवार के सदस्यों में प्रेम, सद्भाव और समझदारी बढ़ती है, जिससे घर में सुख-शांति का स्थायी वास होता है।

**ऐश्वर्य और सौभाग्य:** व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। सामाजिक मान-सम्मान बढ़ता है और सोई हुई किस्मत जागृत होती है, जिससे हर कार्य में अनुकूल परिणाम मिलते हैं।

**आध्यात्मिक उन्नति:** यह साधना हमें ईश्वर के करीब लाती है। आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती है और मोक्ष मार्ग प्रशस्त करती है, जिससे जीवन का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त होता है।

**समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति:** सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से की गई पूजा से सभी उचित और धर्मानुकूल मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।

**नियम और सावधानियाँ**
मां लक्ष्मी की कृपा और स्थायी निवास के लिए कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। ये नियम केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होने चाहिए।

**पवित्रता और स्वच्छता:** अपने शरीर और मन की पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। पूजा से पहले स्नान अवश्य करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर को सदैव स्वच्छ रखें, विशेषकर पूजा स्थल, रसोईघर और मुख्य द्वार को। गंदगी दरिद्रता को आकर्षित करती है।

**सत्य और ईमानदारी:** धन की प्राप्ति के लिए कभी भी असत्य, अधार्मिक या अनैतिक मार्ग का सहारा न लें। लक्ष्मी जी वहीं स्थिर होती हैं जहाँ ईमानदारी और सत्यता हो। दूसरों का अहित करके कमाया गया धन कभी नहीं ठहरता।

**अन्न का अनादर नहीं:** कभी भी अन्न का अनादर न करें। उतना ही भोजन परोसें जितना खा सकें। बचे हुए भोजन का भी सदुपयोग करें। अन्नपूर्णा देवी का अपमान लक्ष्मी जी को अप्रसन्न करता है।

**कन्या और स्त्री का सम्मान:** घर की स्त्रियों और कन्याओं का सदैव सम्मान करें। उन्हें लक्ष्मी और दुर्गा का स्वरूप मानें। जिस घर में स्त्री का अपमान होता है, वहां लक्ष्मी कभी नहीं ठहरतीं।

**अहंकार का त्याग:** धन आने पर अहंकार न करें, बल्कि विनम्रता बनाए रखें। अपनी आय का कुछ अंश दान-पुण्य और समाज सेवा में लगाएं।

**नियमितता और विश्वास:** पूजा-पाठ और नियमों का पालन नियमित रूप से करें। बीच में छोड़ देने से साधना का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। ईश्वर पर अटूट विश्वास रखें।

**मांसाहार और मदिरा से दूरी:** सात्विक जीवन शैली अपनाएं। पूजा के दिनों में विशेष रूप से मांसाहार और मदिरा का त्याग करें।

**धन का सदुपयोग:** प्राप्त धन का सदुपयोग करें। उसे व्यर्थ के कार्यों, जुए या सट्टे में नष्ट न करें। धन का निवेश और बचत भी महत्वपूर्ण है।

**सद्भावना और क्षमा:** परिवार और समाज में सभी के प्रति सद्भावना रखें। मन में किसी के प्रति द्वेष या ईर्ष्या न रखें। क्षमा का भाव रखें।

**निष्कर्ष**
अंत में, यह स्पष्ट है कि मां लक्ष्मी का आगमन केवल बाहरी दिखावे, धन की लालसा या क्षणिक अनुष्ठानों से नहीं होता। वे शुद्ध हृदय, पवित्र आचरण, निस्वार्थ सेवा भाव और मां दुर्गा की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होती हैं। जब हम अपने जीवन में इन दिव्य गुणों को धारण करते हैं, तो लक्ष्मी जी स्वयं ही हमारे घर में स्थायी रूप से निवास करने लगती हैं। उनका आगमन केवल भौतिक समृद्धि के रूप में ही नहीं होता, अपितु सुख, शांति, संतोष और आध्यात्मिक आनंद के रूप में भी प्रकट होता है।

मां दुर्गा की कृपा के बिना लक्ष्मी की प्राप्ति असंभव है, क्योंकि वे ही समस्त शक्तियों की मूल स्रोत हैं। नवरात्रि के पावन पर्व और नियमित दुर्गा पूजा से हम मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जो लक्ष्मी जी को हमारे जीवन में आमंत्रित करने का सबसे प्रभावी मार्ग है। तो आइए, हम सब इन पावन नियमों का पालन करें, अपनी दिनचर्या में शुद्धता और धर्म को अपनाएं, और मां दुर्गा व मां लक्ष्मी की कृपा से अपने जीवन को धन्य बनाएं। याद रखें, सच्ची समृद्धि आंतरिक होती है, जो बाहरी वैभव का भी आधार बनती है। जब हृदय पवित्र और मन शांत होता है, तभी वास्तविक लक्ष्मी का वास होता है।

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