दुर्गा माता के प्रिय मंत्र
प्रस्तावना
सनातन धर्म में शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे संसार की जननी, पालनहार और संहारक तीनों रूपों में पूजी जाती हैं। जब-जब धर्म पर संकट आया है, तब-तब माँ दुर्गा ने विभिन्न स्वरूपों में प्रकट होकर अधर्म का नाश किया है और अपने भक्तों का उद्धार किया है। उनके मंत्र केवल शब्द नहीं, बल्कि साक्षात उनकी शक्ति का पुंज हैं। इन मंत्रों के जाप से भक्त माँ की असीम कृपा प्राप्त करते हैं, जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति पाते हैं और सुख, शांति एवं समृद्धि को प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में इन मंत्रों का जाप विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि ये माँ दुर्गा को अत्यंत प्रिय हैं। ये मंत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं, बल्कि लौकिक इच्छाओं की पूर्ति में भी सहायक होते हैं। सच्चे हृदय और पूर्ण श्रद्धा के साथ किया गया इनका जाप असंभव को भी संभव बनाने की शक्ति रखता है। आइए, हम माँ दुर्गा के उन प्रिय मंत्रों की महिमा को जानें, जो हमारे जीवन को आलोकित करने का सामर्थ्य रखते हैं। यह एक ऐसा आध्यात्मिक मार्ग है जो हर भक्त को अपनी माँ से जोड़ता है, उसे बल प्रदान करता है और हर चुनौती का सामना करने की शक्ति देता है।
पावन कथा
प्राचीन काल की बात है, एक अत्यंत धर्मात्मा राजा हुए जिनका नाम था सुदर्शन। वे अपनी प्रजा के प्रति असीम प्रेम और निष्ठा रखते थे। उनके राज्य में चारों ओर सुख-समृद्धि और शांति व्याप्त थी। राजा सुदर्शन बचपन से ही माँ दुर्गा के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन माँ के चरणों में अपना शीश झुकाते और उनके मंत्रों का निष्ठापूर्वक जाप करते थे। उनके गुरु ने उन्हें ‘दुर्गा सप्तशती’ के कुछ गूढ़ मंत्रों का रहस्य समझाया था, जिन्हें वे अपने जीवन का आधार मानते थे।
एक बार की बात है, पड़ोसी राज्य के एक अत्यंत क्रूर और शक्तिशाली राजा वीरसेन ने सुदर्शन के राज्य पर आक्रमण करने का मन बनाया। वीरसेन की सेना विशाल थी और वह अपनी क्रूरता के लिए विख्यात था। उसने कई छोटे राज्यों को हड़प लिया था और अब उसकी नज़र सुदर्शन के समृद्ध राज्य पर थी। राजा सुदर्शन को जब इस आक्रमण की सूचना मिली, तो वे चिंतित हुए। उनकी सेना वीरसेन की सेना के मुकाबले बहुत छोटी थी। युद्ध में विजय की आशा क्षीण लग रही थी।
राज्य में भय का माहौल था। प्रजा में हाहाकार मचा हुआ था। ऐसे विकट समय में राजा सुदर्शन ने अपने मंत्रियों और सेनापतियों से परामर्श किया। सभी ने अपनी असमर्थता व्यक्त की। तब राजा सुदर्शन ने एक गहरी साँस ली और अपने इष्ट माँ दुर्गा का स्मरण किया। उन्होंने घोषणा की कि वे स्वयं युद्ध का नेतृत्व करेंगे, लेकिन उससे पहले वे माँ दुर्गा की विशेष आराधना करेंगे।
राजा सुदर्शन ने अगले सात दिनों तक राज्य के मुख्य दुर्गा मंदिर में कठोर तप और मंत्र जाप का संकल्प लिया। वे नित्य स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते, आसन ग्रहण करते और पूर्ण एकाग्रता से माँ दुर्गा के विभिन्न मंत्रों का जाप करते। उनका मुख्य मंत्र था ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’। इसके अतिरिक्त, वे बाधा निवारण के लिए ‘सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते’ और तुरंत फल देने वाले मंत्र ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’ का भी जाप करते थे।
ज्यों-ज्यों दिन बीतते गए, राजा सुदर्शन के मुखमंडल पर एक अद्भुत तेज और आत्मविश्वास बढ़ता गया। उनके जाप की शक्ति इतनी प्रबल हो गई कि मंदिर का वातावरण दिव्य ऊर्जा से भर गया। सातवें दिन, जब वीरसेन की सेना राज्य की सीमा पर पहुँच चुकी थी और युद्ध का बिगुल बजने ही वाला था, तब एक अद्भुत घटना घटी।
राजा सुदर्शन मंत्र जाप में लीन थे। तभी मंदिर में एक दिव्य प्रकाश पुंज उत्पन्न हुआ और उसमें से माँ दुर्गा प्रकट हुईं। उनका स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजोमय था। माँ ने मुस्कुराते हुए राजा सुदर्शन से कहा, “हे पुत्र सुदर्शन, मैं तुम्हारी निष्ठा और भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम्हारे मंत्रों के जाप की शक्ति ने मुझे यहाँ आने पर विवश कर दिया। भयभीत मत हो, तुम्हारे राज्य पर कोई संकट नहीं आएगा।”
माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल का उपयोग कर एक तीव्र ध्वनि उत्पन्न की। यह ध्वनि इतनी भयंकर थी कि वीरसेन की सेना के सभी सैनिक और घोड़े भयभीत होकर रणभूमि से भाग खड़े हुए। वीरसेन स्वयं भी माँ के उस दिव्य तेज को सहन नहीं कर सका और मूर्छित होकर गिर पड़ा। जब उसे होश आया तो उसने देखा कि उसकी सेना का नामोनिशान नहीं था। वह समझ गया कि यह किसी साधारण राजा का प्रताप नहीं, बल्कि किसी दिव्य शक्ति का चमत्कार है। वीरसेन ने तत्काल राजा सुदर्शन के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की और अपने किए पर पश्चाताप किया। उसने प्रतिज्ञा की कि वह भविष्य में कभी किसी पर अन्यायपूर्ण आक्रमण नहीं करेगा।
राजा सुदर्शन ने माँ दुर्गा के आशीर्वाद से न केवल अपने राज्य को बचाया, बल्कि वीरसेन जैसे क्रूर राजा का हृदय भी परिवर्तित कर दिया। यह सब माँ दुर्गा के प्रिय मंत्रों के जाप और सच्ची श्रद्धा का ही परिणाम था। इस घटना के बाद राजा सुदर्शन का यश चारों दिशाओं में फैल गया और उनके राज्य में पहले से भी अधिक शांति और समृद्धि स्थापित हुई। तब से राजा सुदर्शन ने आजीवन माँ दुर्गा के मंत्रों का जाप करना नहीं छोड़ा और वे एक आदर्श शासक के रूप में पूजे जाने लगे। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और मंत्रों की शक्ति से बड़े से बड़ा संकट भी टाला जा सकता है और असंभव भी संभव हो जाता है।
दोहा
दुर्गा माँ के मंत्र हैं, शक्ति के आधार।
जपिए इनको मन लगा, जीवन हो सुखकार॥
चौपाई
माँ दुर्गा सर्वेश्वरी, सकल जगत की माता।
विघ्न हरन, मंगल करन, भक्तन सुखदाता॥
जो जन ध्यावे प्रेम से, मंत्र करें उच्चारण।
भव सागर से तारती, देवे अभय शरण॥
पाठ करने की विधि
माँ दुर्गा के प्रिय मंत्रों का जाप करने के लिए कुछ विशेष विधियों का पालन करना अत्यंत शुभकारी होता है। सर्वप्रथम, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और एक स्वच्छ आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
अपने सामने माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक दीपक प्रज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएं। पूजा से पहले संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से मंत्र जाप कर रहे हैं। फिर, सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें ताकि जाप में कोई विघ्न न आए। इसके पश्चात्, माँ दुर्गा का ध्यान करें, उनके स्वरूप का मन में चित्रण करें।
मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला, स्फटिक की माला या लाल चंदन की माला का उपयोग करें। माला को अनामिका उंगली पर रखें और अंगूठे से मंत्र का जाप करते हुए मनकों को सरकाते रहें। मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध होना चाहिए। जाप करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार मन में न आने दें। जितने मंत्र जाप का संकल्प लिया है (जैसे 108, 1008 बार), उसे पूरा अवश्य करें। जाप पूरा होने के बाद, माँ से अपनी प्रार्थना कहें और आरती करें। अंत में, अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और प्रसाद वितरित करें।
पाठ के लाभ
माँ दुर्गा के प्रिय मंत्रों का जाप करने से अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं, जो लौकिक और पारलौकिक दोनों स्तरों पर भक्त के जीवन को उन्नत करते हैं। यह मंत्र सभी प्रकार की बाधाओं, शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश करते हैं, जिससे जीवन में आने वाली हर चुनौती को पार करने की शक्ति मिलती है। जो भक्त पूरी निष्ठा से इन मंत्रों का जाप करते हैं, उन्हें कार्यक्षेत्र, शिक्षा और व्यक्तिगत जीवन में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। ये मंत्र आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता को भी बढ़ाते हैं। इन मंत्रों के जाप से शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं; माँ दुर्गा आरोग्य प्रदान करती हैं और गंभीर बीमारियों से मुक्ति दिलाती हैं। माँ दुर्गा धन और ऐश्वर्य की देवी भी हैं, इसलिए इनके मंत्रों के जाप से दरिद्रता दूर होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। मंत्र जाप से मन शांत होता है, तनाव और चिंताएं कम होती हैं, जिससे मानसिक एकाग्रता और आंतरिक शांति प्राप्त होती है। ये मंत्र भक्त को आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने में सहायता करते हैं, मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं और आत्मा को शुद्ध करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में इन मंत्रों का जाप करने से माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माँ दुर्गा अपने भक्तों की हर विपत्ति से रक्षा करती हैं, उनके मंत्र सुरक्षा कवच का निर्माण करते हैं, जिससे कोई भी बुरी शक्ति भक्त को हानि नहीं पहुँचा पाती। कुछ विशेष दुर्गा मंत्र ऐसे भी हैं जो सच्चे मन से जपने पर तुरंत फल देते हैं, जैसे संकट में तुरंत सहायता प्राप्त होना या किसी विशेष इच्छा की शीघ्र पूर्ति होना।
नियम और सावधानियाँ
माँ दुर्गा के प्रिय मंत्रों का जाप करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक है ताकि जाप का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। जाप करने से पहले शरीर और मन की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है। स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। कुशा या ऊन के आसन पर बैठकर ही जाप करें, भूमि पर सीधे बैठकर जाप न करें। जाप करते समय मन को पूर्णतः शांत और एकाग्र रखें, इधर-उधर की बातें न सोचें। मंत्रों की शक्ति में पूर्ण श्रद्धा और माँ दुर्गा के प्रति अटूट विश्वास होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि बिना विश्वास के जाप निष्फल हो सकता है। यदि संभव हो तो प्रतिदिन एक निश्चित समय पर और निश्चित संख्या में जाप करें, क्योंकि नियमितता से अधिक फल मिलता है। जाप की अवधि में सात्विक भोजन करें और प्याज, लहसुन, मांसाहार तथा तामसिक भोजन का त्याग करें। यदि संभव हो तो जाप की अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। मंत्रों की शक्ति का उपयोग कभी भी किसी का अहित करने या स्वार्थ साधने के लिए न करें, इसका उद्देश्य केवल सकारात्मक और जनकल्याणकारी होना चाहिए। जाप किसी शांत, स्वच्छ और प्रदूषण रहित स्थान पर करें जहाँ कोई व्यवधान न हो। यदि आप किसी विशेष और शक्तिशाली मंत्र का जाप कर रहे हैं, तो किसी योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करना अत्यंत लाभप्रद होता है, क्योंकि गुरु मंत्र की सही विधि और उसके गूढ़ अर्थ को समझा सकते हैं। इन नियमों का पालन करते हुए माँ दुर्गा के मंत्रों का जाप करने से साधक निश्चित रूप से माँ की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करता है।
निष्कर्ष
माँ दुर्गा के प्रिय मंत्र केवल कुछ शब्दों का समूह नहीं, बल्कि वे साक्षात आदिशक्ति माँ भवानी की अनंत कृपा और सामर्थ्य का प्रतीक हैं। इन मंत्रों में वह शक्ति निहित है जो जीवन की हर चुनौती का सामना करने, हर बाधा को दूर करने और हर असंभव को संभव बनाने का सामर्थ्य रखती है। सच्चे हृदय से, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया इनका जाप साधक को माँ की गोद में बिठा देता है, जहाँ उसे परम शांति, सुरक्षा और समृद्धि की अनुभूति होती है। चाहे वह नवरात्रि के पावन दिवस हों या जीवन का कोई भी सामान्य क्षण, माँ दुर्गा के मंत्र सदैव हमारे साथ हैं, हमारी ढाल बनकर खड़े हैं। यह न केवल हमारी आध्यात्मिक यात्रा को सुगम बनाते हैं बल्कि हमें एक सुखी, सफल और सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा भी देते हैं। आइए, हम सभी इस दिव्य मंत्र शक्ति को अपनाएं और माँ दुर्गा की असीम कृपा के अधिकारी बनें, ताकि हमारा जीवन हर पल माँ के दिव्य आशीर्वाद से आलोकित रहे। जय माँ दुर्गा!

