हनुमान जी के 108 नाम – अर्थ सहित
**प्रस्तावना**
सनातन धर्म की पावन धरा पर, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के परम भक्त, सेवा और शक्ति के प्रतीक, पवनपुत्र हनुमान जी का स्थान अद्वितीय है। उनका नाम लेते ही मन में असीम बल, अद्भुत पराक्रम, निस्वार्थ सेवाभाव और अटूट भक्ति का संचार होने लगता है। हनुमान जी केवल एक देवता नहीं, अपितु एक ऐसे आदर्श हैं, जो हमें जीवन के हर पथ पर धर्म, निष्ठा और साहस का पाठ पढ़ाते हैं। उनके 108 नाम केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि ये उनके अनगिनत गुणों, असीम शक्तियों और विविध रूपों का दिव्य स्तोत्र हैं। प्रत्येक नाम उनकी महिमा का एक अलग पहलू उजागर करता है, और इन नामों का स्मरण, जप अथवा श्रवण हमें उनकी दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है। जिस प्रकार भगवान शिव के 108 नाम सृष्टि के विभिन्न रहस्यों और शिवत्व के अनन्त रूपों को प्रकट करते हैं, ठीक उसी प्रकार हनुमान जी के 108 नाम उनके विराट स्वरूप और भक्तों के प्रति उनकी असीम करुणा को दर्शाते हैं। ये नाम केवल उच्चारण के लिए नहीं, अपितु मनन और चिंतन के लिए हैं, ताकि हम उनके गुणों को अपने जीवन में आत्मसात कर सकें। यह संख्या 108 अत्यंत शुभ मानी जाती है, जो ब्रह्मांड की पूर्णता और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है। ज्योतिष में 12 राशियां और 9 ग्रह मिलकर 108 योग बनाते हैं। माला के 108 दाने इसी पवित्रता और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का माध्यम हैं। इस पावन लेख में हम हनुमान जी के इन दिव्य नामों के महत्व, उनके पाठ की विधि और उनसे प्राप्त होने वाले अतुलनीय लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि हर भक्त बजरंगबली की कृपा का अनुभव कर सके और उनके पावन नाम जप से अपने जीवन को धन्य बना सके।
**पावन कथा**
त्रेतायुग की बात है। किष्किंधा के समीप एक वन में, ऋषिवर विश्वामित्र के आश्रम से कुछ दूरी पर, रामभक्त नामक एक वृद्ध ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम यद्यपि रामभक्त था, किन्तु उनके हृदय में श्री राम के साथ-साथ उनके परम सेवक हनुमान जी के प्रति भी अटूट श्रद्धा थी। रामभक्त ब्राह्मण अत्यंत धर्मात्मा और सरल हृदय थे, परन्तु वृद्धावस्था और कई शारीरिक व्याधियों के कारण वे सदैव चिंतित रहते थे। उनके पुत्र और पुत्रवधू भी उन्हें छोड़कर दूर चले गए थे, जिससे वे अकेलेपन और असहायता का अनुभव करते थे। आश्रम का रखरखाव भी कठिन हो गया था, और जीवन निर्वाह की समस्या उन्हें लगातार घेरे रहती थी। उनका मन अशांत था और वे किसी भी कार्य में एकाग्रता नहीं पा पाते थे।
एक दिन, वे अपने आश्रम में बैठे हुए अत्यंत उदास मन से सोच रहे थे कि इस कष्टमय जीवन से मुक्ति कैसे मिलेगी। उनकी आँखों में अश्रु थे और हृदय में गहरी पीड़ा। तभी उनके पास से एक तेजस्वी ऋषि का आगमन हुआ। ये ऋषि और कोई नहीं, बल्कि स्वयं महर्षि नारद थे, जो लोक कल्याण हेतु पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे। नारद जी की वीणा से ‘नारायण-नारायण’ की मधुर ध्वनि गूँज रही थी, जिससे उस स्थान पर एक दिव्य शांति छा गई।
नारद जी ने रामभक्त ब्राह्मण को चिंतित देखकर उनसे उनका दुख पूछा। ब्राह्मण ने अपनी सारी व्यथा नारद जी को सुनाई और कहने लगे, “हे देवर्षि! मेरे जीवन में शांति कहाँ? मेरे पास न तो धन है, न परिवार का सुख और न ही स्वस्थ शरीर। मैं जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर आकर अत्यंत निराश हो चुका हूँ। मुझे लगता है कि मेरा जीवन व्यर्थ है।”
नारद जी ने करुणा भाव से ब्राह्मण की ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोले, “हे विप्रवर! आप निराश क्यों होते हैं? आपके पास तो स्वयं भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग है। वे तो संकटमोचन हैं, हर दुख हरने वाले हैं। उनके 108 नाम ऐसे दिव्य मंत्र हैं, जिनका जप करने से असंभव भी संभव हो जाता है और जीवन के हर अभाव की पूर्ति होती है।”
ब्राह्मण ने उत्सुकता से पूछा, “परंतु हे देवर्षि! मैं तो केवल कुछ सामान्य नाम ही जानता हूँ। क्या उनके 108 नामों का इतना प्रभाव है कि वे मेरे सारे कष्ट हर लें और मुझे शांति प्रदान करें?”
नारद जी ने उत्तर दिया, “निश्चित रूप से! हनुमान जी के प्रत्येक नाम में एक विशेष शक्ति और एक विशेष अर्थ छिपा है। यह नाम केवल शब्द नहीं, अपितु स्वयं हनुमान जी की ऊर्जा का प्रकटीकरण हैं। उदाहरण के लिए, उन्हें ‘पवनपुत्र’ कहा जाता है क्योंकि वे वायु देव के पुत्र हैं, जो हमें गति, ऊर्जा और असीम शक्ति प्रदान करने की प्रेरणा देते हैं, जैसे वायु सर्वत्र व्याप्त है। ‘अंजनेय’ इसलिए क्योंकि वे माता अंजना के पुत्र हैं, जो मातृत्व के पवित्र प्रेम और अटूट समर्पण का प्रतीक है। ‘महावीर’ इसलिए क्योंकि वे अत्यंत पराक्रमी और साहसी हैं, जो हमें जीवन की बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देते हैं और भीतर के भय को समाप्त करते हैं। ‘रामदूत’ इसलिए क्योंकि वे भगवान राम के संदेशवाहक हैं, जो निष्ठा, कर्तव्यपरायणता और सर्वोच्च भक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ‘संकटमोचन’ इसलिए क्योंकि वे हर प्रकार के संकटों का निवारण करते हैं, चाहे वे शारीरिक हों, मानसिक हों या आर्थिक। ‘केसरीनंदन’ नाम उनके पिता केसरी के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है। ‘ज्ञान सागर’ नाम उनकी अगाध विद्या और विवेक को प्रकट करता है, जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। जब आप इन नामों को उनके अर्थ सहित समझेंगे और उनका जप करेंगे, तो आप उनके गुणों को अपने भीतर समाहित होते देखेंगे और उनके दिव्य आशीर्वाद का अनुभव करेंगे।”
नारद जी ने ब्राह्मण को 108 नामों का एक विस्तृत स्तोत्र दिया और उन्हें विधिपूर्वक इन नामों का प्रतिदिन जप करने का निर्देश दिया। उन्होंने ब्राह्मण को बताया कि इन नामों का जप करते समय मन में हनुमान जी के उस विशिष्ट रूप और गुण का चिंतन करें, जिससे वह नाम जुड़ा है। ब्राह्मण ने पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ नारद जी के वचनों का पालन करना प्रारंभ किया। प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, वे हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष आसन लगाकर बैठ जाते और एकाग्र मन से उनके 108 नामों का जप करते। वे प्रत्येक नाम का उच्चारण करते समय उसके अर्थ पर भी ध्यान करते, और हनुमान जी के उस गुण को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते। उन्होंने न केवल नामों का जप किया, बल्कि उन गुणों को अपने कर्मों में भी शामिल किया, जैसे निःस्वार्थ सेवा और समर्पण।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, रामभक्त ब्राह्मण के जीवन में अद्भुत परिवर्तन आने लगा। उनके शरीर में नई ऊर्जा का संचार हुआ, उनकी व्याधियाँ धीरे-धीरे कम होने लगीं और वे पहले से अधिक स्वस्थ महसूस करने लगे। उनके मन में व्याप्त निराशा दूर होकर आशा और आनंद का भाव उत्पन्न हुआ। उनकी भक्ति और दृढ़ता इतनी बढ़ गई कि दूर गए पुत्र और पुत्रवधू भी अपनी गलती महसूस कर वापस लौट आए, उनसे क्षमा मांगी और उनकी सेवा करने लगे। उनका छोटा सा आश्रम धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया, और वे अब न केवल अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर रहे थे, बल्कि दूसरों की सहायता करने में भी सक्षम हो गए थे। उनके चेहरे पर सदैव एक दिव्य तेज और संतोष का भाव रहता था।
एक दिन, हनुमान जी स्वयं एक बालक के रूप में उनके समक्ष प्रकट हुए और बोले, “हे ब्राह्मण! तुम्हारी अटूट श्रद्धा और मेरे नामों के प्रति तुम्हारे गहन प्रेम ने मुझे यहाँ खींच लाया है। मांगो, क्या वरदान चाहिए?”
ब्राह्मण ने बालक रूपी हनुमान जी को पहचान लिया। उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। वे साष्टांग प्रणाम कर बोले, “हे प्रभु! आपने मुझे वह सब कुछ दे दिया है जिसकी मुझे कभी कल्पना भी न थी। अब मुझे केवल आपके चरणों में स्थान और आपकी अनवरत भक्ति चाहिए, ताकि मैं जीवनभर आपके पावन नामों का जप कर सकूँ।”
हनुमान जी मुस्कुराए और उन्हें अपना दिव्य रूप दिखाकर अंतर्धान हो गए, जिससे ब्राह्मण का जीवन पूर्णतः धन्य हो गया। इस प्रकार, रामभक्त ब्राह्मण ने हनुमान जी के 108 नामों के जप से न केवल अपने सांसारिक दुखों से मुक्ति पाई, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त की और जीवन के परम लक्ष्य को साधा। यह कथा दर्शाती है कि हनुमान जी के नाम कितने शक्तिशाली और कल्याणकारी हैं, और कैसे वे अपने भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं, उन्हें हर संकट से उबारते हैं और परम आनंद प्रदान करते हैं।
**दोहा**
प्रभु के नाम हैं भव सिंधु के तारनहार,
हनुमत नाम सकल कष्ट हरें, दें सुख अपार।
जो सुमिरै हनुमंत को, बिनसै सकल विपाद,
108 नामों का जप, मिटावे सब अपराध।
राम कृपा बिनु सुलभ न होई, हनुमत नाम जपे जो कोई।
चित्त शुद्ध कर लीजै नाम, मिटे सकल दुख पावै धाम।
**चौपाई**
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा,
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
महाबीर बिक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुंचित केसा।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै,
काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरी नंदन,
तेज प्रताप महा जग वंदन।
विद्यावान गुनी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,
बिकट रूप धरि लंक जरावा।
भीम रूप धरि असुर सँहारे,
रामचन्द्र के काज सँवारे।
लाय सजीवन लखन जियाये,
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।
संकट कटै मिटै सब पीरा,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।
**पाठ करने की विधि**
हनुमान जी के 108 नामों का पाठ करने की विधि अत्यंत सरल और प्रभावी है, बशर्ते इसे श्रद्धा और एकाग्रता के साथ किया जाए। यह विधि हमें बजरंगबली की कृपा प्राप्त करने में सहायक होती है और हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
1. **शुद्धि और आसन:** प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में (सूर्य उदय से पहले) उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्णतः स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष एक शुद्ध आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। यदि संभव हो तो लाल रंग का आसन चुनें, क्योंकि यह हनुमान जी को प्रिय है। बैठने से पहले आसन को शुद्ध जल से छिड़क लें।
2. **संकल्प:** पाठ शुरू करने से पहले अपने दाहिने हाथ में थोड़ा जल, पुष्प और अक्षत लेकर मन में संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से यह पाठ कर रहे हैं। हनुमान जी से अपनी मनोकामना पूर्ण करने और अपनी भक्ति में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें। अपने मन को शांत और एकाग्रचित्त करने का प्रयास करें।
3. **ध्यान:** हनुमान जी का ध्यान करें। उनके बलवान, तेजस्वी, करुणापूर्ण और भक्तिमय स्वरूप का स्मरण करें। कल्पना करें कि वे आपके सामने उपस्थित हैं और आपको आशीर्वाद दे रहे हैं। अपने मन को सभी सांसारिक चिंताओं से मुक्त कर केवल हनुमान जी में लगाएं।
4. **प्रारंभिक प्रार्थना:** सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश का स्मरण करें और उनसे पूजा निर्विघ्न संपन्न होने की प्रार्थना करें। इसके बाद अपने इष्ट देव और कुलदेवता का आह्वान करें। फिर भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी का नाम लें, क्योंकि हनुमान जी राम नाम के बिना प्रसन्न नहीं होते। यदि समय हो तो हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का एक पाठ कर सकते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध होता है।
5. **नामों का जप:** अब हनुमान जी के 108 नामों का श्रद्धापूर्वक उच्चारण करें। आप ‘ओम’ लगाकर प्रत्येक नाम का जप कर सकते हैं, जैसे ‘ओम अंजनेय नमः’, ‘ओम पवनपुत्राय नमः’, ‘ओम संकटमोचनाय नमः’। आप चाहें तो किसी पुस्तक या स्रोत से स्तोत्र के रूप में उनका पाठ कर सकते हैं। जप के लिए रुद्राक्ष की माला या तुलसी की माला का उपयोग कर सकते हैं। प्रत्येक नाम का उच्चारण करते समय उसके अर्थ और हनुमान जी के उस विशिष्ट गुण का चिंतन करें। यह नाम जप मन को शांत और आत्मा को शुद्ध करता है।
6. **पूर्णता और क्षमा प्रार्थना:** सभी 108 नामों का पाठ पूर्ण करने के बाद, हनुमान जी को प्रणाम करें और अपने द्वारा की गई किसी भी अनजाने में हुई त्रुटि के लिए क्षमा याचना करें। अपनी मनोकामना दोहराते हुए उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें और उनसे निवेदन करें कि वे सदैव आपके साथ रहें।
7. **प्रसाद वितरण:** यदि संभव हो, तो गुड़, चना, बूंदी या केले का प्रसाद अर्पित करें। यह हनुमान जी को अत्यंत प्रिय है। प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें और श्रद्धापूर्वक दूसरों में भी वितरित करें। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
**पाठ के लाभ**
हनुमान जी के 108 नामों का नियमित पाठ करने से भक्तों को अनगिनत आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, अपितु स्वयं को सशक्त बनाने और जीवन को सफल बनाने का एक दिव्य मार्ग है जो हमें परम शक्ति से जोड़ता है।
1. **शत्रु और भय से मुक्ति:** हनुमान जी ‘दुष्टदलन’, ‘शत्रुसंहारक’ और ‘दुखहर्ता’ कहे जाते हैं। उनके नामों का जप करने से सभी प्रकार के शत्रु, चाहे वे बाहरी हों (व्यक्तिगत या व्यावसायिक) या आंतरिक (जैसे क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार), शांत होते हैं। मन से भय, आशंकाएं और नकारात्मक ऊर्जाएँ दूर होती हैं, और व्यक्ति निर्भय होकर जीवन जीता है। यह उसे अदम्य साहस प्रदान करता है।
2. **संकटों का निवारण:** हनुमान जी ‘संकटमोचन’ के रूप में विख्यात हैं, जो हर प्रकार के कष्टों का हरण करते हैं। उनके नाम का स्मरण करने से जीवन के बड़े से बड़े संकट, बाधाएँ, परेशानियाँ और विपत्तियां दूर होती हैं। किसी भी विपदा में हनुमान जी अपने भक्त का साथ नहीं छोड़ते और उसे सही मार्ग दिखाते हैं।
3. **शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य:** इन नामों के जप से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद कम होते हैं। मन शांत और प्रसन्नचित्त रहता है। शरीर में नई शक्ति और स्फूर्ति आती है, रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है और व्यक्ति स्वस्थ जीवन जीता है। यह दीर्घायु भी प्रदान करता है।
4. **आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि:** ‘महावीर’, ‘बलवान’ और ‘धीर’ जैसे नाम व्यक्ति को आंतरिक बल प्रदान करते हैं। यह पाठ करने से आत्मविश्वास बढ़ता है, निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है और व्यक्ति साहसपूर्वक अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर होता है। यह नेतृत्व क्षमता का भी विकास करता है।
5. **ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति:** हनुमान जी ‘ज्ञानिनामग्रगण्यं’ (ज्ञानियों में अग्रगण्य) और ‘बुद्धिमतां वरिष्ठं’ (बुद्धिमानों में श्रेष्ठ) हैं। उनके नामों का जप करने से बुद्धि तीव्र होती है, ज्ञान में वृद्धि होती है और सही-गलत का विवेक जागृत होता है। विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है।
6. **मनोकामना पूर्ति:** सच्चे हृदय से इन नामों का जप करने वाले भक्तों की सभी शुभ और धर्मसंगत मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। वे अपने इष्ट कार्य में सफलता प्राप्त करते हैं और जीवन में समृद्धि आती है।
7. **मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति:** अंततः, इन नामों का निरंतर जप व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाता है। यह मन को शुद्ध करता है, भक्ति भाव को बढ़ाता है और जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की ओर ले जाता है। यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
8. **ग्रह दोष निवारण:** ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हनुमान जी का नाम जप शनि देव सहित कई ग्रहों के अशुभ प्रभावों को शांत करता है। विशेषकर साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान यह पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है, क्योंकि हनुमान जी की कृपा से शनि देव शांत रहते हैं।
**नियम और सावधानियाँ**
हनुमान जी के 108 नामों का पाठ करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके और किसी प्रकार के दोष से बचा जा सके। ये नियम हमारी श्रद्धा और समर्पण को दर्शाते हैं।
1. **शुद्धता का महत्व:** शारीरिक और मानसिक शुद्धता सर्वोपरि है। पाठ करने से पूर्व अनिवार्य रूप से स्नान कर स्वच्छ और धुले हुए वस्त्र धारण करें। मन में किसी के प्रति द्वेष, क्रोध, ईर्ष्या या नकारात्मक विचार न रखें। मन को पवित्र और शांत बनाए रखें।
2. **ब्रह्मचर्य का पालन:** यदि आप हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो पाठ के दिनों में, विशेषकर मंगलवार और शनिवार को, ब्रह्मचर्य का पालन करने का प्रयास करें। यह मन और शरीर की ऊर्जा को केंद्रित करने में सहायक होता है।
3. **तामसिक भोजन का त्याग:** हनुमान जी को समर्पित कोई भी पूजा या पाठ करते समय तामसिक भोजन, जैसे मांसाहार, लहसुन, प्याज, और मदिरा का सेवन पूर्णतः वर्जित है। सात्विक भोजन ही ग्रहण करें, जिसमें फल, दूध, अनाज और सब्जियां शामिल हों।
4. **मंगलवार और शनिवार का विशेष महत्व:** यद्यपि यह पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, मंगलवार और शनिवार हनुमान जी को विशेष रूप से प्रिय हैं। इन दिनों में किया गया पाठ अधिक फलदायी माना जाता है और बजरंगबली की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
5. **नियमितता और एकाग्रता:** पाठ में निरंतरता और नियमितता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि संभव हो, तो प्रतिदिन एक निश्चित समय पर और एक निश्चित स्थान पर ही पाठ करें। इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
6. **श्रद्धा और विश्वास:** सबसे महत्वपूर्ण है हनुमान जी के प्रति अटूट श्रद्धा और पूर्ण विश्वास। बिना श्रद्धा के कोई भी पूजा फलदायी नहीं होती। हनुमान जी पर पूर्ण विश्वास रखें कि वे आपकी प्रार्थना अवश्य सुनेंगे और आपके संकटों का निवारण करेंगे।
7. **राम नाम का स्मरण:** हनुमान जी भगवान श्री राम के परम भक्त हैं और उनके बिना किसी भी पूजा को स्वीकार नहीं करते, ऐसा माना जाता है। इसलिए, उनके नाम जप से पहले और बाद में ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ का जप या ‘राम’ नाम का स्मरण अवश्य करें। यह हनुमान जी को प्रसन्न करता है।
8. **स्त्रियों हेतु नियम:** महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान पाठ न करें। शेष दिनों में वे पूर्ण श्रद्धा से हनुमान जी का नाम जप कर सकती हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार महिलाएँ हनुमान जी को सिंदूर नहीं चढ़ातीं, परंतु नाम जप करने में कोई वर्जित नहीं है और वे पूर्णतः पात्र हैं।
9. **दिशा का चुनाव:** पाठ करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह सूर्य उदय की दिशा है जो ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है।
इन नियमों का पालन करते हुए हनुमान जी के 108 नामों का पाठ करने से निश्चित रूप से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मकता, शांति और समृद्धि आती है।
**निष्कर्ष**
पवनपुत्र हनुमान जी के 108 नाम केवल ध्वनि के समूह नहीं, अपितु वे स्वयं में एक पूर्ण ब्रह्मांड हैं, जिसमें उनकी वीरता, ज्ञान, भक्ति और करुणा के अनन्त सागर समाहित हैं। ये दिव्य नाम उनकी महिमा का सार हैं, जो हमें उनके परम पावन स्वरूप से जोड़ते हैं। इन नामों का स्मरण हमें केवल भगवान की उपस्थिति का अनुभव ही नहीं कराता, बल्कि हमें आंतरिक शक्ति, शांति और जीवन की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस भी प्रदान करता है। जिस क्षण हम ‘संकटमोचन’ कहते हैं, हमारे मन से भय और चिंताएँ दूर हो जाती हैं और हमें सुरक्षा का एहसास होता है; जब हम ‘महावीर’ का उच्चारण करते हैं, तो हमारे भीतर अदम्य बल का संचार होता है और हम हर बाधा को पार करने की शक्ति महसूस करते हैं; और जब हम ‘रामदूत’ कहते हैं, तो हमें निष्ठा, समर्पण और सेवा का सर्वोच्च आदर्श याद आता है। ये नाम हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन देते हैं, हमें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और हमें एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं, जो सत्य, प्रेम और करुणा से भरा हो।
आइए, हम सभी इस पावन परंपरा को अपनाएँ और हनुमान जी के इन दिव्य नामों का नियमित पाठ कर उनके अनंत आशीर्वाद के पात्र बनें। यह विश्वास रखें कि जो भी भक्त सच्चे मन से, पवित्र भाव से उनके इन 108 नामों का जप करता है, हनुमान जी उसकी हर पुकार सुनते हैं, उसके हर कष्ट को हरते हैं और उसे अपने अभय चरणों में स्थान देते हैं। उनका नाम जप हमें संसार सागर से पार उतारता है और हमें परम आनंद की अनुभूति कराता है। इस कलयुग में हनुमान जी का नाम जप ही सबसे सरल और शक्तिशाली साधन है जो हमें प्रभु श्री राम के चरणों तक पहुंचाता है। जय बजरंगबली! जय श्री राम! आपकी कृपा से सबका कल्याण हो!

