सनातन धर्म में आरती पूजन का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो भक्त और भगवान को जोड़ता है। यह ब्लॉग आपको हर भगवान की आरती का अर्थ, इसके रहस्य, सही विधि, और इसके अनमोल आध्यात्मिक लाभों से परिचित कराएगा।

सनातन धर्म में आरती पूजन का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो भक्त और भगवान को जोड़ता है। यह ब्लॉग आपको हर भगवान की आरती का अर्थ, इसके रहस्य, सही विधि, और इसके अनमोल आध्यात्मिक लाभों से परिचित कराएगा।

आरती संग्रह हिंदी में

**प्रस्तावना**
सनातन धर्म में पूजन विधि का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और हृदयस्पर्शी अंग है आरती। यह केवल अग्नि और ध्वनि का समन्वय नहीं, अपितु भक्त के हृदय की अगाध श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता का दिव्य प्रकाश है जो परमात्मा के चरणों में समर्पित होता है। आरती, देवता के प्रति भक्त के संपूर्ण समर्पण का प्रतीक है, जहाँ मन, वचन और कर्म तीनों मिलकर आराध्य के गुणगान में लीन हो जाते हैं। ‘आरती संग्रह हिंदी में’ आपके समक्ष प्रस्तुत है एक ऐसा पावन संकलन जो आपको हर भगवान की आरती के गहरे अर्थ से परिचित कराएगा, आपको आरती के रहस्य समझाएगा और सही आरती विधि के साथ-साथ इसके अनमोल आध्यात्मिक लाभों से भी अवगत कराएगा। यह केवल एक क्रिया नहीं, यह तो आत्मा का परमात्मा से मिलन का एक मधुर साधन है, जो जीवन को आलोकित करता है और मन को शांति प्रदान करता है। Sanatan Swar के इस प्रयास का उद्देश्य है कि हर घर में भक्ति का यह दीपक प्रज्ज्वलित रहे और हर हृदय में ईश्वरीय प्रेम का झरना बहता रहे।

**पावन कथा**
प्राचीन काल की बात है, एक छोटे से गाँव में मीनाक्षी नाम की एक अत्यंत साधारण, किंतु असीम श्रद्धावान स्त्री रहती थी। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा था, पति का निधन हो चुका था और बच्चों का पालन-पोषण करना उसके लिए पहाड़ जैसा था। मीनाक्षी के पास धन-संपत्ति तो दूर, दो वक्त के भोजन की भी व्यवस्था मुश्किल से हो पाती थी। उसके घर में सिर्फ एक छोटा सा मिट्टी का दिया, रुई की बाती और थोड़ा सा तेल ही था, जिसे वह बड़ी मुश्किल से बचाकर रखती थी।
मीनाक्षी का एकमात्र सहारा था भगवान श्रीकृष्ण पर उसकी अटूट आस्था। हर संध्या को, चाहे उसके पास कुछ हो या न हो, वह अपने घर के छोटे से मंदिर में, जहाँ कृष्ण की एक पुरानी और घिसी हुई मूर्ति थी, एक छोटा सा दीपक जलाती और पूरी श्रद्धा से आरती करती। उसके पास कोई मधुर स्वर नहीं था, न ही कोई वाद्य यंत्र, पर उसके कंठ से निकलने वाली आरती की धुन में उसके हृदय की सारी पीड़ा, सारी प्रार्थना, सारा प्रेम समाया होता था। उसकी आरती में शब्द कम होते थे, भाव अधिक। वह बस ‘जय कन्हैया लाल की’ कहते हुए, अपने आँसुओं से भरे नेत्रों से उस छोटे से दीपक को अपने आराध्य के चारों ओर घुमाती।
गाँव वाले उसे अक्सर देखकर हँसते थे, कहते थे, “देखो इस गरीब को! इसके पास खाने को नहीं है और चली है भगवान की आरती उतारने।” लेकिन मीनाक्षी इन बातों पर ध्यान नहीं देती थी। उसकी श्रद्धा अडिग थी। एक दिन, गाँव में भयंकर सूखा पड़ गया। नदियाँ सूख गईं, खेत बंजर हो गए और चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। लोग भूखे मरने लगे। गाँव के धनी लोग भी अपनी संपत्ति गंवाने लगे थे। मंदिरों में अनुष्ठान पर अनुष्ठान किए जा रहे थे, बड़े-बड़े यज्ञ हो रहे थे, पर वर्षा का नामो-निशान नहीं था।
मीनाक्षी ने भी अपने बच्चों के साथ कई दिन तक भूखी रही, पर उसने अपनी आरती नहीं छोड़ी। एक संध्या को, जब उसके पास दीपक जलाने के लिए एक बूँद तेल भी नहीं बचा था, उसका हृदय विचलित हो गया। उसने रोते हुए भगवान कृष्ण की मूर्ति के समक्ष अपनी पीड़ा रखी, “हे प्रभु! आज मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं आपकी आरती कैसे करूँगी? क्या मेरी यह छोटी सी सेवा भी आज बंद हो जाएगी?” कहते-कहते उसके आँसू बहने लगे। तभी, उसकी छोटी बेटी ने एक कोने में पड़े सूखे फूल की माला उसे लाकर दी और बोली, “माँ! इससे ही आरती कर लो। भगवान तो भाव के भूखे होते हैं।”
मीनाक्षी ने अपनी बेटी की बात सुनी। उसने उस सूखे फूल को ही दीपक मानकर, और अपनी आँख से गिरे आँसू को तेल मानकर, अपने हृदय की पूरी भक्ति उड़ेलते हुए आरती शुरू कर दी। उसकी आँखों में अटूट श्रद्धा थी, हृदय में गहरा प्रेम और मुख पर ‘जय कन्हैया लाल की’ का अखंड जप। उसकी यह अनोखी आरती, जिसमें न कोई भौतिक प्रकाश था, न कोई सामग्री, बल्कि केवल शुद्ध भाव और प्रेम था, आकाश तक जा पहुँची।
कहते हैं कि उसी क्षण आकाश में काले घने बादल छा गए। बिजली कड़कने लगी और मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। यह वर्षा इतनी प्रचंड थी कि कई दिनों से सूखे खेत पल भर में तृप्त हो गए, नदियाँ फिर से बहने लगीं। गाँव के लोग इस चमत्कार से आश्चर्यचकित थे। उन्होंने मीनाक्षी के घर से निकलती हुई अलौकिक ज्योति देखी और समझा कि यह सब उसकी अटूट भक्ति और शुद्ध भाव से की गई आरती का ही परिणाम था।
उस दिन के बाद से मीनाक्षी को गाँव में सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा। लोगों ने समझा कि आरती की शक्ति भौतिक सामग्री में नहीं, बल्कि भक्त के सच्चे हृदय और भाव में निहित है। मीनाक्षी ने अपने जीवन में कभी फिर अभाव नहीं देखा, क्योंकि उसके साथ सदैव उसके आराध्य का आशीर्वाद था। यह पावन कथा हमें सिखाती है कि आरती का महत्व उसकी विधि-विधान में नहीं, अपितु उसे करने वाले के शुद्ध भाव और अटूट श्रद्धा में है। एक छोटा सा दीपक भी, यदि हृदय की पूर्णता से जलाया जाए, तो वह पूरे संसार को प्रकाशित करने की क्षमता रखता है।

**दोहा**
आरती कीजै हरि की, मन को निर्मल धारि।
भक्ति भाव से जो करे, भवसागर से पारि।।

**चौपाई**
आरती उतारें सब जन, मंगल गान करें।
दीपों की ज्योति जगमगे, दुःख संताप हरें।।
देवता के सम्मुख जब, भक्त शीश नवावे।
ज्ञान प्रकाश हृदय जगे, अज्ञान मिट जावे।।
यह पावन क्रम नित्य चले, मन को पावन करे।
असुर शक्ति का हो विनाश, हर बाधा को हरे।।
प्रेम भाव से की आरती, भव बंधन को तोड़े।
ईश्वर संग मिलन कराए, जनम-मरण से मोड़े।।

**पाठ करने की विधि**
आरती करना केवल एक रस्म नहीं, यह एक ध्यानपूर्ण और पवित्र क्रिया है जिसे उचित विधि और भाव के साथ किया जाना चाहिए।
१. शुद्धता: आरती करने से पूर्व शारीरिक और मानसिक शुद्धता अत्यंत आवश्यक है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
२. सामग्री: आरती की थाली में शुद्ध घी का दीपक (या कपूर), धूप, अगरबत्ती, पुष्प, अक्षत (चावल), रोली, चंदन और एक छोटा घंटी अवश्य रखें। सभी सामग्री स्वच्छ और पवित्र होनी चाहिए।
३. स्थान: अपने पूज्य देवता या आराध्य की मूर्ति या चित्र के समक्ष शांत और पवित्र स्थान पर बैठें या खड़े हों।
४. भाव: आरती करते समय आपका मन पूरी तरह से ईश्वर में लीन होना चाहिए। लौकिक विचारों को त्यागकर केवल प्रभु के चरणों में अपना ध्यान केंद्रित करें।
५. आरती उतारना: दीपक प्रज्ज्वलित कर, घंटी बजाते हुए आरती गायन करें। सर्वप्रथम दीपक को देवता के चरणों में चार बार, नाभि प्रदेश पर दो बार, मुखमंडल पर एक बार और फिर पूरे विग्रह पर सात बार घुमाएँ। यह क्रिया घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) होनी चाहिए।
६. समर्पण: आरती समाप्त होने पर, दीपक को एक स्थान पर रख दें और हाथों में जल लेकर आरती पर तीन बार घुमाकर उसे भूमि पर छोड़ दें, यह शीतलता का प्रतीक है। इसके बाद आरती की लौ को अपने हाथों से छूकर नेत्रों और सिर पर लगाएँ, ताकि दिव्य ऊर्जा का संचार हो।
७. क्षमा याचना: अंत में, अनजाने में हुई किसी भी त्रुटि के लिए ईश्वर से क्षमा याचना करें।
इस प्रकार सच्ची श्रद्धा और पवित्र भाव से की गई आरती अवश्य ही फलदायी होती है।

**पाठ के लाभ**
आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसके अनगिनत आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ हैं:
१. मन की शांति: आरती के मधुर संगीत, दीपक की लौ और दिव्य वातावरण से मन को असीम शांति मिलती है। यह तनाव और चिंता को कम करने में सहायक है।
२. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: दीपक का प्रकाश और धूप-अगरबत्ती का धुआँ वातावरण को शुद्ध करता है, नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाता है और सकारात्मकता का संचार करता है।
३. एकाग्रता में वृद्धि: आरती करते समय मन को ईश्वर में केंद्रित करने से एकाग्रता बढ़ती है और ध्यान शक्ति मजबूत होती है।
४. पापों का शमन: शुद्ध हृदय और पूर्ण श्रद्धा से की गई आरती अनजाने में हुए पापों का शमन करती है और आत्मा को पवित्र करती है।
५. इच्छापूर्ति: सच्चे भाव से की गई प्रार्थना और आरती से भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
६. स्वास्थ्य लाभ: घंटी की ध्वनि और शंखनाद से निकलने वाली तरंगें वातावरण में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानी जाती हैं।
७. आध्यात्मिक उत्थान: आरती आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति होती है और व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।
८. गृह-क्लेश से मुक्ति: नियमित रूप से आरती करने से घर का वातावरण शांत और प्रेमपूर्ण बनता है, जिससे गृह-क्लेश और पारिवारिक विवाद समाप्त होते हैं।
९. आत्मविश्वास में वृद्धि: ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होने से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और वह जीवन की चुनौतियों का सामना अधिक दृढ़ता से कर पाता है।
आरती का प्रत्येक क्षण दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण होता है, जो जीवन को सकारात्मकता और समृद्धि से भर देता है।

**नियम और सावधानियाँ**
आरती एक पवित्र क्रिया है और इसे करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि इसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके:
१. शुद्धता सर्वोपरि: आरती करने वाले व्यक्ति को शारीरिक रूप से शुद्ध होना चाहिए। स्नान के बिना आरती न करें। हाथ-पैर धोकर ही आरती स्थल पर जाएँ।
२. स्वच्छ वस्त्र: आरती करते समय स्वच्छ और सादे वस्त्र धारण करें। फटे हुए या अशुद्ध वस्त्रों का प्रयोग न करें।
३. धूप-दीप की पवित्रता: आरती में उपयोग होने वाले दीपक (घी या तेल), बाती, धूप-अगरबत्ती, कपूर आदि सभी सामग्री शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए। बासी फूल या अशुद्ध सामग्री का उपयोग न करें।
४. भाव और श्रद्धा: सबसे महत्वपूर्ण है आपका भाव। आरती करते समय मन में पूर्ण श्रद्धा, प्रेम और भक्ति होनी चाहिए। केवल रस्म अदायगी के लिए आरती न करें।
५. वातावरण की पवित्रता: आरती स्थल स्वच्छ और शांत होना चाहिए। अनावश्यक शोर-शराबा या विकर्षण से बचें।
६. पुरुषों के लिए विशेष: पुरुष आरती करते समय सिर पर कपड़ा या टोपी धारण कर सकते हैं, यद्यपि यह अनिवार्य नहीं है, पर शुभ माना जाता है।
७. आरती के समय अन्य कार्य नहीं: आरती करते समय अन्य किसी कार्य में संलग्न न हों। पूरा ध्यान आरती में ही रखें।
८. घंटी और शंखनाद: आरती के साथ घंटी और शंखनाद करना अत्यंत शुभ होता है, पर यदि उपलब्ध न हो तो मन में ही ध्वनि का भाव रखें।
९. परिक्रमा: आरती के बाद भगवान की परिक्रमा करना शुभ माना जाता है, यदि स्थान हो तो तीन बार परिक्रमा करें।
१०. अहंकार का त्याग: आरती करते समय किसी भी प्रकार का अहंकार न रखें। स्वयं को ईश्वर का दास मानकर पूर्ण विनम्रता से सेवा करें।
इन नियमों का पालन करने से आरती का फल कई गुना बढ़ जाता है और भक्त को ईश्वरीय कृपा का अनुभव होता है।

**निष्कर्ष**
आरती संग्रह हिंदी में प्रस्तुत यह यात्रा केवल शब्दों की नहीं, बल्कि भावों और श्रद्धा की एक अनंत धारा है जो सीधे आपके हृदय को छूती है। आरती, हमारे सनातन संस्कृति का वह अमूल्य रत्न है जो हमें हमारे आराध्य से जोड़ता है, हमारे भीतर के अंधकार को मिटाकर ज्ञान और भक्ति का प्रकाश फैलाता है। हर भगवान की आरती, अपने आप में एक संपूर्ण प्रार्थना है, एक गहरा संवाद है जो आत्मा और परमात्मा के बीच स्थापित होता है। आरती के रहस्य और उसके अनमोल अर्थों को जानकर, जब हम सही विधि से इसे करते हैं, तो इसके लाभ केवल लौकिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी होते हैं, जो जीवन को पूर्णता की ओर ले जाते हैं। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, यह तो हमारे जीवन का एक ऐसा सुंदर हिस्सा है जो हमें शांति, संतोष और परम आनंद प्रदान करता है। Sanatan Swar आशा करता है कि यह आरती संग्रह आपके जीवन में भक्ति और प्रकाश का नया सवेरा लेकर आएगा। आइए, हम सब मिलकर इस दिव्य परंपरा को सँजोएँ और अपने जीवन को ईश्वर के प्रेम से भर दें। हर दिन, हर पल, अपने आराध्य की आरती उतारें और उनके असीम आशीर्वाद के पात्र बनें। जय श्री राम, जय श्री कृष्ण, हर हर महादेव!

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