सनातन धर्म के सबसे पावन पर्वों में से एक, नवरात्रि, माँ दुर्गा की नौ शक्तियों के पूजन का महापर्व है। यह लेख आपको वर्ष 2024 की नवरात्रि के दौरान नौ देवियों की पूजा विधि, मंत्र, और मनचाही मनोकामना पूर्ति के रहस्यों से अवगत कराएगा, जिससे आपका जीवन सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक शांति से भर जाए।

सनातन धर्म के सबसे पावन पर्वों में से एक, नवरात्रि, माँ दुर्गा की नौ शक्तियों के पूजन का महापर्व है। यह लेख आपको वर्ष 2024 की नवरात्रि के दौरान नौ देवियों की पूजा विधि, मंत्र, और मनचाही मनोकामना पूर्ति के रहस्यों से अवगत कराएगा, जिससे आपका जीवन सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक शांति से भर जाए।

नवरात्रि के नौ दिन की पूजा विधि

**प्रस्तावना**
सनातन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और ऊर्जावान पर्व, नवरात्रि, माँ भगवती दुर्गा की असीम कृपा और शक्ति का प्रतीक है। यह नौ दिवसीय महोत्सव चैत्र और शारदीय माह में मनाया जाता है, जब प्रकृति स्वयं एक नए चक्र में प्रवेश करती है। इन नौ दिनों में, आदिशक्ति के नौ विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना कर भक्त अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं। माँ दुर्गा की प्रत्येक शक्ति अपने आप में ब्रह्मांड का सार समेटे हुए है, और उनकी आराधना से असंभव भी संभव हो जाता है। यह पर्व सिर्फ उपवास और पूजा तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह आत्मशुद्धि, संयम और अदम्य इच्छाशक्ति का भी प्रतीक है। आइए, इस लेख के माध्यम से हम वर्ष 2024 की नवरात्रि के नौ दिनों की विस्तृत पूजा विधि, प्रत्येक देवी के मंत्र और उनसे मिलने वाले लाभों को समझें, ताकि हम अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकें और देवी माँ के आशीर्वाद से हमारा जीवन आलोकित हो सके। यह पर्व हमें आंतरिक शक्ति से जुड़ने और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने की प्रेरणा देता है।

**पावन कथा**
सृष्टि के आरंभिक काल में जब अंधकार और अव्यवस्था का साम्राज्य था, तब भगवान ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड की रचना की। किंतु इस नवसृजित संसार में एक भयंकर असुर का उदय हुआ, जिसका नाम महिषासुर था। वह अत्यंत शक्तिशाली, क्रूर और अहंकार से भरा हुआ था। महिषासुर ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और उनसे यह वरदान प्राप्त कर लिया कि कोई भी पुरुष, देवता या दानव उसका वध नहीं कर सकेगा। यह वरदान पाकर महिषासुर और भी उन्मत्त हो गया। उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर उसने इंद्र सहित समस्त देवताओं को पराजित कर दिया और उन्हें स्वर्ग से निष्कासित कर दिया। देवतागण दर-दर भटकने लगे और उनके यज्ञ, पूजा-पाठ बाधित होने लगे। धर्म पर संकट छा गया और अधर्म का बोलबाला हो गया।

सभी देवतागण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास सहायता के लिए पहुँचे। उन्होंने महिषासुर के अत्याचारों का वर्णन किया और अपनी पीड़ा सुनाई। ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने जब देवताओं की करुण पुकार सुनी और महिषासुर के दुष्कर्मों को जाना, तो उन्हें तीव्र क्रोध आया। उनके क्रोध और शक्ति के तेज से एक अद्भुत प्रकाश पुंज निकला, जिसने संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित कर दिया। इसी प्रकाश पुंज से एक अत्यंत भव्य और शक्तिशाली देवी का प्राकट्य हुआ, जो आदिशक्ति दुर्गा कहलाईं। भगवान शिव ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र, इंद्र ने वज्र, ब्रह्मा ने कमंडल, वायुदेव ने धनुष और बाण, हिमालय ने सिंह, और अन्य देवताओं ने भी अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र देवी को प्रदान किए। सभी देवताओं ने देवी को दिव्य आभूषण और वस्त्र भी अर्पित किए, जिससे उनकी शोभा और भी बढ़ गई।

शक्ति, तेज और सौंदर्य की प्रतीक माँ दुर्गा एक विकराल सिंह पर सवार होकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए निकलीं। उन्होंने एक ही गर्जना से धरती और आकाश को कंपायमान कर दिया। महिषासुर ने जब यह देखा, तो वह पहले तो क्रोधित हुआ, परंतु जब उसने देवी के अप्रतिम सौंदर्य को देखा, तो वह मोहित हो गया। उसने देवी से विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे देवी ने अस्वीकार कर दिया और उसे युद्ध के लिए ललकारा।

महिषासुर ने अपने विशाल सेना के साथ देवी पर आक्रमण किया। देवी दुर्गा ने अपने सिंह के साथ मिलकर असुरों की सेना का संहार करना आरंभ कर दिया। उन्होंने पलक झपकते ही असुरों के बड़े-बड़े सेनापतियों को मार गिराया। महिषासुर ने अनेक मायावी रूप धारण किए, कभी भैंस का, कभी हाथी का, तो कभी सिंह का। हर बार देवी ने उसके छल को पहचाना और उसे परास्त किया। अंत में, महिषासुर भैंस का रूप धारण कर देवी पर वार करने लगा। तब माँ दुर्गा ने क्रोधित होकर अपना त्रिशूल उठाया और महिषासुर की छाती में गाड़ दिया। महिषासुर ने अनेक प्रयास किए, परंतु वह देवी के सामने टिक न सका। अंततः, माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध कर दिया और उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया।

महिषासुर के वध से तीनों लोकों में शांति छा गई। देवतागण प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी की जय-जयकार की। स्वर्ग में पुष्प वर्षा हुई और सभी ने मिलकर माँ दुर्गा की स्तुति की। तभी से माँ दुर्गा ‘महिषासुर मर्दिनी’ के नाम से विख्यात हुईं। यह कथा हमें सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय निश्चित है। माँ दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं और उनकी आराधना से सभी संकट दूर होते हैं तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नवरात्रि के नौ दिन माँ के इसी शक्ति, त्याग और परोपकार की भावना को स्मरण करने और स्वयं को शुद्ध करने का अवसर होते हैं।

**दोहा**
दुर्गा भवानी दीनदयालनी, कृपा करो सब ठाँव।
नवरात्रि में जो सुमिरै तोहे, पूरण हो हर चाव।।

**चौपाई**
जय जय माँ जगदम्बे भवानी, तुम हो अष्टभुजा वरदानी।
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी रूपा, चंद्रघंटा, कूष्मांडा स्वरूपा।।
स्कंदमाता, कात्यायनी माता, कालरात्रि, महागौरी विख्याता।
सिद्धिदात्री दे सुख सारा, शरण तिहारी सकल संसारा।।

**पाठ करने की विधि**
नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना एक विशेष विधि-विधान से की जाती है। यहाँ हम आपको संपूर्ण पूजा विधि विस्तार से बता रहे हैं:

1. **घटस्थापना (प्रतिपदा):** नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना की जाती है। इसके लिए एक मिट्टी के पात्र में जौ बोये जाते हैं। इसके ऊपर एक कलश स्थापित किया जाता है, जिसमें गंगाजल, सिक्का, सुपारी, अक्षत, हल्दी की गांठ और पुष्प डाले जाते हैं। कलश के मुख पर आम के पाँच या सात पत्ते रखकर उस पर नारियल रखा जाता है, जिस पर लाल चुनरी लपेटी जाती है। यह कलश माँ दुर्गा का आह्वान होता है।
2. **दैनिक पूजा:** प्रतिदिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर उनके समक्ष दीपक प्रज्वलित करें। धूप, अगरबत्ती जलाएं। माँ को रोली, अक्षत, पुष्प (गुड़हल विशेष), मौली, सिंदूर, फल और नैवेद्य (मिठाई) अर्पित करें।
3. **नवदुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा:** प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक विशेष स्वरूप की पूजा की जाती है:
* **पहला दिन (शैलपुत्री):** माँ शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। इनकी पूजा से स्थिरता और शक्ति मिलती है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्र्यै नमः। भोग: शुद्ध घी।
* **दूसरा दिन (ब्रह्मचारिणी):** तप और वैराग्य की देवी। इनकी पूजा से संयम और तपस्या की शक्ति मिलती है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः। भोग: शक्कर या मिश्री।
* **तीसरा दिन (चंद्रघंटा):** शांति और कल्याण की देवी। इनकी पूजा से भय से मुक्ति मिलती है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ चंद्रघंटायै नमः। भोग: दूध या उससे बनी मिठाई।
* **चौथा दिन (कूष्मांडा):** ब्रह्मांड की जननी। इनकी पूजा से रोगों से मुक्ति मिलती है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ कूष्मांडायै नमः। भोग: मालपुआ।
* **पांचवां दिन (स्कंदमाता):** संतान और प्रेम की देवी। इनकी पूजा से संतान सुख मिलता है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ स्कंदमात्रै नमः। भोग: केला।
* **छठा दिन (कात्यायनी):** महिषासुर मर्दिनी। इनकी पूजा से विवाह बाधा दूर होती है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ कात्यायिन्यै नमः। भोग: शहद।
* **सातवां दिन (कालरात्रि):** भय का नाश करने वाली। इनकी पूजा से शत्रु और भय का नाश होता है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ कालरात्र्यै नमः। भोग: गुड़।
* **आठवां दिन (महागौरी):** पवित्रता और शांति की देवी। इनकी पूजा से पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ महागौर्यै नमः। भोग: नारियल।
* **नवां दिन (सिद्धिदात्री):** सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली। इनकी पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन हवन और पूर्णाहुति का विधान है। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ सिद्धिदात्र्यै नमः। भोग: तिल।
4. **मंत्र जप:** प्रतिदिन ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। इसके अतिरिक्त प्रत्येक देवी के विशिष्ट मंत्रों का भी जप करें।
5. **दुर्गा सप्तशती पाठ:** यदि संभव हो, तो प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का एक अध्याय या संपूर्ण पाठ करें। यह पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।
6. **आरती:** सुबह और शाम दोनों समय माँ दुर्गा की आरती अवश्य करें। आरती के बाद क्षमा प्रार्थना करें।
7. **कन्या पूजन:** अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं और एक बटुक (छोटा लड़का) को घर बुलाकर उनके पैर धोएं, उन्हें भोजन कराएं (हलवा, पूड़ी, चना), और उन्हें दक्षिणा व उपहार देकर उनका आशीर्वाद लें।
8. **हवन और विसर्जन:** नवमी के दिन हवन करें। हवन के बाद कलश के जल को पूरे घर में छिड़क दें और शेष जल को तुलसी के पौधे या किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित कर दें। जौ को किसी नदी या तालाब में प्रवाहित करें।

**पाठ के लाभ**
नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की सच्ची श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करने से भक्त को अनेक अलौकिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं:

1. **मनोकामना पूर्ति:** यह पर्व विशेष रूप से मनचाही इच्छाओं की पूर्ति के लिए जाना जाता है। माँ दुर्गा अपने भक्तों की हर जायज मनोकामना को पूर्ण करती हैं, चाहे वह संतान प्राप्ति हो, विवाह बाधा निवारण हो, या किसी विशेष लक्ष्य की सिद्धि हो।
2. **शत्रु नाश और भय मुक्ति:** माँ दुर्गा को शक्ति का स्वरूप माना जाता है। उनकी आराधना से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और सभी प्रकार के भय, चिंताएं और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
3. **रोगों से मुक्ति और आरोग्य:** देवी माँ की कृपा से गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है और शरीर को स्वस्थ तथा निरोगी काया प्राप्त होती है। कूष्मांडा और कालरात्रि स्वरूप की पूजा विशेष रूप से आरोग्य प्रदान करती है।
4. **धन-धान्य और समृद्धि:** नवरात्रि के दौरान माँ लक्ष्मी का भी पूजन होता है। देवी की आराधना से घर में धन-धान्य, वैभव और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
5. **आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति:** इस पावन पर्व पर की गई साधना से मन शांत होता है, एकाग्रता बढ़ती है और आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है। भक्त को आंतरिक शांति और परम सुख का अनुभव होता है।
6. **मोक्ष और मुक्ति:** जो भक्त पूरी निष्ठा और समर्पण से माँ दुर्गा की आराधना करते हैं, उन्हें जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है और वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
7. **सकारात्मक ऊर्जा का संचार:** घर और आसपास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है, जिससे जीवन में उत्साह और उमंग बनी रहती है।

**नियम और सावधानियाँ**
नवरात्रि के पावन पर्व पर पूजा-पाठ के साथ-साथ कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके:

1. **सात्विक आहार:** नवरात्रि के नौ दिनों तक पूर्ण रूप से सात्विक भोजन करें। लहसुन, प्याज, मांसाहार, अंडा और शराब का सेवन पूर्णतः वर्जित है। फल, दूध, दही, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सेंधा नमक आदि का सेवन करें।
2. **ब्रह्मचर्य का पालन:** इन नौ दिनों में शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
3. **स्वच्छता और शुद्धता:** घर और पूजा स्थान को प्रतिदिन साफ-सुथरा रखें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र ही धारण करें। घर में कलश स्थापना के बाद घर को अकेला न छोड़ें। यदि ऐसा आवश्यक हो, तो दीपक बुझाकर या किसी अन्य सदस्य को घर में छोड़कर जाएं।
4. **काले वस्त्रों का त्याग:** पूजा के दौरान काले वस्त्र धारण करने से बचें। शुभ रंग जैसे लाल, पीला, नारंगी, गुलाबी आदि के वस्त्र पहनें।
5. **क्रोध और हिंसा से दूरी:** मन में किसी के प्रति द्वेष, क्रोध, लोभ या हिंसा का भाव न रखें। शांत और संयमित रहें। झूठ बोलने से बचें।
6. **नख और बाल काटना वर्जित:** इन नौ दिनों में नख काटना, बाल कटवाना या शेविंग करना शुभ नहीं माना जाता है।
7. **अखंड दीपक का ध्यान:** यदि आपने अखंड दीपक प्रज्वलित किया है, तो उसे बुझने न दें। उसमें नियमित रूप से घी डालते रहें।
8. **फलों का सेवन:** यदि आप उपवास कर रहे हैं, तो केवल फल और कुट्टू या सिंघाड़े के आटे से बनी चीजें ही खाएं। जल का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें।
9. **चप्पल या जूते न पहनें:** पूजा स्थल पर और यदि संभव हो तो घर के अंदर भी चप्पल या जूते पहनकर न घूमें।
10. **महिलाओं का सम्मान:** नवरात्रि में कन्याओं और महिलाओं का विशेष सम्मान करें। उन्हें देवी का रूप मानकर आशीर्वाद लें।

**निष्कर्ष**
नवरात्रि का यह पावन पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, अपितु माँ आदिशक्ति के प्रति हमारी अटूट श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। इन नौ दिनों में हम माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना कर उनके दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं, जिससे हमारा जीवन समस्त कष्टों से मुक्त होकर सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है। यह समय हमें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने, नकारात्मकताओं को दूर करने और सकारात्मकता से ओत-प्रोत होने का अवसर प्रदान करता है। माँ भगवती की कृपा से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और हम आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होते हैं। आइए, इस नवरात्रि में हम सभी सच्चे मन से माँ की भक्ति करें, नियमों का पालन करें और उनके चरणों में स्वयं को समर्पित कर दें। माँ दुर्गा हम सभी पर अपनी असीम कृपा बरसाएं और हमारे जीवन को दैवी प्रकाश से प्रकाशित करें। जय माँ दुर्गे, जय माता दी!

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