गायत्री मंत्र – सम्पूर्ण जप विधि और फायदे
प्रस्तावना
सनातन धर्म में अनेक मंत्रों का उल्लेख मिलता है, जिनमें गायत्री मंत्र को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। यह केवल एक मंत्र नहीं, अपितु वेदों का सार, समस्त ज्ञान का उद्गम और आध्यात्मिक ऊर्जा का अक्षय स्रोत है। महर्षियों ने इसे महामंत्र की संज्ञा दी है, जिसके जप से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और आत्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है। यह मंत्र सूर्य देवता, सविता, को समर्पित है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करते हैं और हमें सद्बुद्धि प्रदान करने की प्रार्थना का माध्यम है। आज के इस व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में गायत्री मंत्र का नियमित जप हमें मानसिक स्थिरता, बौद्धिक तीक्ष्णता और आत्मिक बल प्रदान कर सकता है। आइए, इस पवित्र मंत्र की महिमा, इसकी जप विधि और इससे मिलने वाले अतुलनीय लाभों को विस्तार से जानें।
पावन कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गायत्री मंत्र की उत्पत्ति सृष्टि के आदि में हुई, जब स्वयं ब्रह्मा जी ने इस पवित्र मंत्र का ध्यान किया। इसका ज्ञान सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने अपने पुत्रों और ऋषियों को दिया। लेकिन इस मंत्र को जन-जन तक पहुँचाने और इसकी शक्ति का प्रदर्शन करने का श्रेय महर्षि विश्वामित्र को जाता है।
महर्षि विश्वामित्र पहले एक क्षत्रिय राजा थे, जिनका नाम कौशिक था। वे अपनी शक्ति और पराक्रम के लिए जाने जाते थे। एक बार उनका वशिष्ठ ऋषि से कामधेनु गाय को लेकर विवाद हो गया, जिसमें वशिष्ठ जी की ब्रह्मशक्ति के आगे उनकी क्षत्रिय शक्ति क्षीण पड़ गई। इस घटना ने कौशिक को अपनी क्षत्रिय शक्ति की सीमा का एहसास कराया और उन्होंने ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने का संकल्प लिया।
उन्होंने राजपाट त्याग दिया और कठोर तपस्या में लीन हो गए। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि इंद्रदेव को भी सिंहासन डोलने का भय सताने लगा। विश्वामित्र ने वर्षों तक कठिन साधना की, जिससे उन्हें अनेक दिव्य शक्तियों की प्राप्ति हुई। अंततः, एक दिन गहन ध्यान में लीन रहते हुए, उन्हें परमपिता ब्रह्मा के आशीर्वाद से गायत्री मंत्र का साक्षात्कार हुआ। यह मंत्र उनके हृदय में दिव्य प्रकाश के रूप में प्रकट हुआ।
विश्वामित्र ने इस मंत्र की शक्ति को समझा और इसे संसार के कल्याण के लिए प्रकट किया। उन्होंने इस मंत्र का निरंतर जप और साधना करके ब्रह्मऋषि की उपाधि प्राप्त की। यह गायत्री मंत्र ही था, जिसकी शक्ति से विश्वामित्र ने एक नए ब्रह्मांड की रचना करने की क्षमता प्राप्त कर ली थी। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि गायत्री मंत्र में कितनी असीमित शक्ति निहित है, जो एक क्षत्रिय राजा को ब्रह्मऋषि बना सकती है और उसे ईश्वरीय शक्ति के समान सामर्थ्य प्रदान कर सकती है। गायत्री मंत्र केवल शब्दों का समूह नहीं, अपितु स्वयं दिव्य चेतना का स्पंदन है, जो साधक को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। विश्वामित्र की कथा हमें यह सिखाती है कि श्रद्धा, समर्पण और निरंतरता के साथ गायत्री मंत्र का जप करने से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
दोहा
गुरु गायत्री जप करे, सकल सिद्ध फल पाय।
ज्ञान विराग भक्ति बढ़े, मोह अंध तम जाय।।
चौपाई
ॐ भू भुवः स्वः, जन-जन मन को तारे।
सविता देव प्रकाशक, बुद्धि को संवारे।।
भर्गो देवस्य धीमहि, ध्यान धरे जो प्राणी।
धियो यो नः प्रचोदयात्, सद्बुद्धि दे कल्याणी।।
त्रिदेव स्वरूपिणी माता, वेद-माता कल्याणी।
जप से मिटें सब दुख, मिले सुखद वरदानी।।
पाठ करने की विधि
गायत्री मंत्र का जप केवल मौखिक उच्चारण नहीं, अपितु एक संपूर्ण साधना है, जिसे विधि-विधान से करने पर ही पूर्ण फल प्राप्त होता है। सर्वप्रथम, प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शारीरिक और मानसिक शुद्धता अत्यंत आवश्यक है। जप के लिए सबसे उत्तम समय ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटा पहले) माना जाता है। संध्याकाल और दोपहर में भी जप किया जा सकता है, परंतु ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व है। एकांत और शांत स्थान का चुनाव करें जहाँ आपको कोई बाधा न हो। पूजा कक्ष या स्वच्छ स्थान उत्तम है। कुशा या ऊन के आसन पर बैठें। धातु या प्लास्टिक के आसन से बचें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, क्योंकि यह सूर्योदय की दिशा है और ऊर्जा का प्रवाह इसी दिशा से होता है। जप प्रारंभ करने से पहले अपने मन में अपनी मनोकामना या उद्देश्य का संकल्प लें। यह संकल्प आपको साधना में एकाग्रता प्रदान करेगा। रुद्राक्ष या तुलसी की माला का उपयोग करें। माला में 108 मनके होने चाहिए। माला को गोमुखी में रखकर जप करें ताकि माला किसी की दृष्टि में न आए। मंत्र का शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण करें। ‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।’ प्रत्येक शब्द को सही तरीके से उच्चारित करना महत्वपूर्ण है। जप करते समय मन को मंत्र के अर्थ और सूर्य देवता के स्वरूप पर केंद्रित करें। ध्यान करें कि सूर्य की सुनहरी किरणें आपके शरीर में प्रवेश कर रही हैं और आपको ऊर्जावान बना रही हैं। कम से कम 108 बार जप करें। यदि संभव हो तो 1, 5, 11 या 21 माला का जप करें। कुछ साधक 1008 या इससे अधिक बार भी जप करते हैं। जप समाप्त होने पर सीधे आसन से न उठें। कुछ देर शांत बैठकर ध्यान करें और ईश्वर का धन्यवाद करें। अपनी ऊर्जा को शरीर में आत्मसात होने दें।
पाठ के लाभ
गायत्री मंत्र का नियमित और विधिपूर्वक जप करने से साधक को अनेक लौकिक और पारलौकिक लाभ प्राप्त होते हैं। यह मानसिक शांति और एकाग्रता प्रदान करता है, मन को शांत करता है, तनाव और चिंता को दूर करता है। एकाग्रता बढ़ती है, जिससे छात्र और व्यवसायी दोनों को लाभ होता है। गायत्री मंत्र को ‘बुद्धि को प्रेरित करने वाला’ मंत्र कहा गया है। इसके जप से स्मरण शक्ति बढ़ती है, निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है और व्यक्ति की मेधा शक्ति प्रखर होती है। यह शरीर और मन से नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास बढ़ता है और भय समाप्त होता है। नियमित जप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। गायत्री मंत्र आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। यह व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप को समझने में मदद करता है और मोक्ष मार्ग प्रशस्त करता है। लगातार जप से व्यक्ति की वाणी में ओज और सत्यता आती है। उसकी कही बातें सत्य होने लगती हैं, जिसे वाक सिद्धि कहते हैं। यह मंत्र साधक को बाहरी नकारात्मक शक्तियों और आंतरिक दुर्बलताओं से बचाता है। यह एक सुरक्षा कवच का निर्माण करता है। गायत्री मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है, क्योंकि यह सही निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाता है। संक्षेप में, गायत्री मंत्र का जप एक ऐसा आध्यात्मिक अभ्यास है, जो व्यक्ति के संपूर्ण जीवन को प्रकाशित और समृद्ध कर देता है।
नियम और सावधानियाँ
गायत्री मंत्र के जप से पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखना अनिवार्य है। क्रोध, लोभ, मोह और वासना जैसे दुर्गुणों से दूर रहने का प्रयास करें। जप के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करें। मांसाहार, प्याज, लहसुन और अन्य तामसिक भोजनों से बचें। यदि आप गंभीर साधना कर रहे हैं, तो ब्रह्मचर्य का पालन करने का प्रयास करें। यह ऊर्जा को संरक्षित करता है और साधना की शक्ति बढ़ाता है। जप में निरंतरता और नियमितता अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक निश्चित समय और स्थान पर प्रतिदिन जप करने का प्रयास करें। बिना श्रद्धा और विश्वास के किया गया कोई भी कर्म फलदायी नहीं होता। मंत्र की शक्ति पर पूर्ण विश्वास रखें। यदि आप गायत्री मंत्र की गहन साधना करना चाहते हैं, तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त करना उत्तम रहेगा। अपनी साधना का प्रदर्शन न करें। यह एक व्यक्तिगत और आंतरिक यात्रा है। गोपनीयता बनाए रखें। जहाँ जप करते हैं, उस स्थान को स्वच्छ रखें। आसन और माला भी स्वच्छ होने चाहिए। जप के समय व्यर्थ की बातों और चुगली से बचें। अपनी वाणी को संयमित रखें। साधना का उद्देश्य अहंकार का त्याग और विनम्रता की प्राप्ति है। स्वयं को ईश्वर का एक माध्यम समझें। इन नियमों का पालन करते हुए गायत्री मंत्र का जप करने से साधक निश्चित रूप से अपने जीवन में अद्भुत परिवर्तन महसूस करेगा और परम शांति व आनंद की प्राप्ति करेगा।
निष्कर्ष
गायत्री मंत्र केवल अक्षरों का समूह नहीं, अपितु एक महाशक्ति है, जो हमारी चेतना के उच्चतम शिखर तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करती है। यह वेदों की माता, ज्ञान की देवी और आत्मिक उत्थान की कुंजी है। इस पवित्र मंत्र का जप हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है, हमारे मन को शुद्ध करता है, बुद्धि को प्रखर बनाता है और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने में सहायक होता है।
आज के आधुनिक युग में जहाँ हर तरफ आपाधापी और तनाव है, गायत्री मंत्र का नियमित जप हमें आंतरिक शांति, स्थिरता और अदम्य शक्ति प्रदान करता है। यह हमें न केवल व्यक्तिगत जीवन में सफलता दिलाता है, अपितु हमें एक बेहतर इंसान बनने और समाज के कल्याण में योगदान देने के लिए भी प्रेरित करता है। आइए, हम सभी इस देवत्व से भरे मंत्र को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं, इसकी महिमा को समझें और इसके जप के माध्यम से अपने जीवन को आलोकित करें। गायत्री मंत्र की शक्ति को अपनाकर हम एक स्वस्थ, सुखी और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध जीवन जी सकते हैं। यह केवल एक जप नहीं, यह जीवन जीने की एक कला है, एक दिव्य जीवन का आह्वान है।

