संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण पाठ
प्रस्तावना
जीवन एक यात्रा है, जिसमें सुख-दुःख, आशा-निराशा और सफलता-असफलता के मोड़ आते ही रहते हैं। कई बार हम ऐसे भयंकर संकटों से घिर जाते हैं, जब हर ओर अंधकार ही अंधकार प्रतीत होता है, कोई मार्ग नहीं सूझता और मन विचलित हो उठता है। ऐसे समय में, केवल एक ही नाम है जो हर भय, हर पीड़ा और हर चुनौती का नाश करने में समर्थ है – वह है पवनपुत्र, अंजनीनंदन, संकटमोचन श्री हनुमान का नाम। सनातन धर्म में हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता और बल, बुद्धि, विद्या के सागर के रूप में पूजा जाता है। उनका स्मरण मात्र ही बड़े से बड़े कष्टों को हर लेता है। विशेष रूप से, संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का एक अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है। यह अष्टक भगवान हनुमान के उन अद्भुत पराक्रमों का स्मरण कराता है, जब उन्होंने असंभव से लगने वाले कार्यों को सिद्ध कर, भक्तों के समस्त संकटों का निवारण किया। यह पाठ हमें हनुमान जी के उस दिव्य और शक्तिशाली स्वरूप से जोड़ता है, जो हर विकट परिस्थिति में अपने भक्तों की ढाल बनकर खड़े रहते हैं। आइए, इस पावन हनुमानाष्टक के माध्यम से हम बजरंगबली के चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें और उनके अतुलनीय बल, विवेक और भक्ति को अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करें। यह पाठ न केवल हमें मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि अज्ञात भय से मुक्ति दिलाकर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। यह उस परम शक्ति का आह्वान है, जो हर विपदा में सहायक बनकर खड़ी रहती है और हमें अडिग विश्वास के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
पावन कथा
त्रेतायुग की वह पावन वेला, जब धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश हेतु स्वयं भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया, तब उनके सेवा कार्यों के लिए देवताओं ने भी विभिन्न रूपों में जन्म लिया। इन्हीं में से एक थे भगवान शंकर के एकादश रुद्र अवतार, वायुपुत्र हनुमान। हनुमान जी का जन्म किष्किंधा के राजा केसरी और माता अंजनी के घर हुआ था। जन्म से ही वे अद्भुत बल और तेज के धारी थे, उनके शरीर में अदम्य शक्ति का वास था। उनकी बाल-लीलाएं भी अलौकिक थीं। बचपन में एक बार, भोर के समय, भूख से अत्यंत व्याकुल होकर उन्होंने उदय होते हुए रक्तवर्णी सूर्य को कोई अत्यंत मीठा और रसीला फल समझ लिया। बिना किसी भय या संकोच के, वे उस विशाल सूर्यमंडल को अपनी हथेली में समेटने की इच्छा से आकाश की ओर उड़ चले और क्षण भर में ही उसे अपने मुख में भक्षि लिया। उनके इस अप्रत्याशित और बाल-सुलभ पराक्रम से तीनों लोक में घोर अंधकार छा गया। समस्त देवगण, ऋषि-मुनि और प्राणी जगत इस आकस्मिक अंधकार से भयभीत हो उठे। यह संकट इतना भयंकर था कि इसका निवारण किसी के वश में नहीं था। तब इंद्रदेव ने क्रोधित होकर अपने वज्र से उन पर प्रहार किया, जिससे वे मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। पुत्र की इस अवस्था को देखकर वायुदेव कुपित हो उठे और उन्होंने संसार से समस्त प्राणवायु को खींच लिया। वायु के बिना समस्त प्राणी जगत में हाहाकार मच गया, जीवन संकट में आ गया। देवों की स्तुति और ब्रह्मा जी के हस्तक्षेप से वायुदेव शांत हुए और हनुमान जी को पुनः चेतन्य अवस्था में लाया गया। इस घटना से प्रभावित होकर सभी देवताओं ने उन्हें अनेक वरदान दिए, जिनमें से एक था कि उन्हें कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं भेद पाएगा, वे अपनी इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेंगे और उनकी मृत्यु कभी नहीं होगी। इन्हीं वरदानों के कारण वे ‘अजर-अमर’ और ‘अतुलित बलधाम’ कहलाए।
समय चक्र चला और श्रीराम को पिता दशरथ की आज्ञा से चौदह वर्ष का वनवास हुआ। इसी वनवास काल के दौरान, दुष्ट रावण ने छल से, साधु वेश में आकर माता सीता का हरण कर लिया और उन्हें अपनी लंका नगरी ले गया। श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण माता सीता की खोज में वन-वन भटक रहे थे। इसी खोज के दौरान, ऋष्यमूक पर्वत पर उनकी भेंट पवनपुत्र हनुमान जी से हुई। हनुमान जी ने कपटी बालि के भय से छिपे हुए सुग्रीव के दूत के रूप में, एक ब्राह्मण का वेश धारण कर, अत्यंत विनम्रता और बुद्धिमत्ता से श्रीराम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बिठाकर सुग्रीव के पास पहुंचाया। यहीं पर श्रीराम और सुग्रीव की अटूट मित्रता हुई, जहाँ हनुमान जी ने विश्वास और सहयोग के सेतु का काम किया। सुग्रीव ने श्रीराम को माता सीता के खोज में सहायता का वचन दिया, जिसके बदले में श्रीराम ने बालि का वध कर सुग्रीव को उसका राज्य लौटाया। जब सीता माता की खोज का कार्य अत्यंत कठिन प्रतीत हुआ और कोई भी वानर सौ योजन (लगभग 1200 किलोमीटर) अथाह समुद्र पार करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था, तब समस्त वानर सेना हताश हो गई। ऐसे विकट संकट की घड़ी में, जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी अद्भुत शक्तियों और वरदानों का स्मरण कराया, जो वे बाल्यकाल में विस्मृत कर चुके थे। अपनी समस्त शक्तियों को पुनः प्राप्त कर हनुमान जी ने एक विशालकाय रूप धारण किया और ‘जय श्री राम’ का उद्घोष कर, एक ही छलांग में अथाह समुद्र को पार कर लंका की ओर प्रस्थान किया।
लंका में प्रवेश के साथ ही हनुमान जी को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने समुद्र में रहने वाली राक्षसी सुरसा के विशाल मुख को मात दी, लंका की द्वारपाल लंकिनी को परास्त किया और अदृश्य रूप में लंका नगरी में प्रवेश किया। गहन खोज के पश्चात्, उन्होंने अशोक वाटिका में माता सीता को खोज निकाला, जो रावण के अत्याचारों से पीड़ित और श्रीराम वियोग में अत्यंत दुखी थीं। हनुमान जी ने उन्हें श्रीराम के कुशल समाचार दिए और उनकी मुद्रिका देकर उन्हें विश्वास दिलाया। रावण के अहंकार और उसकी अमानवीयता से क्रोधित होकर, हनुमान जी ने रावण के उपवन को उजाड़कर और उसके अहंकारी पुत्र अक्षय कुमार को मारकर लंका को अपने अदम्य बल का परिचय दिया। रावण की सभा में अपनी पूँछ में लगी आग से उन्होंने पूरी लंका को दहन कर दिया, जिससे रावण और उसके अहंकारी दल में भय का संचार हुआ। माता सीता को सकुशल राम के पास लौटने का संदेश देकर वे वापस लौटे।
जब लंका युद्ध चल रहा था, तब रावण के सबसे पराक्रमी पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत) के शक्ति बाण से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। उनके प्राणों को बचाने के लिए लंका के वैद्य सुषेण ने हिमालय पर उगने वाली संजीवनी बूटी लाने को कहा, क्योंकि केवल वही उनके प्राणों को बचा सकती थी। यह कार्य अत्यंत कठिन था, क्योंकि सूर्योदय से पूर्व संजीवनी लानी थी, अन्यथा लक्ष्मण जी के प्राण बच पाना असंभव था। ऐसे विकट संकट में, जब सभी हताश थे, तब पुनः हनुमान जी ही आगे आए। उन्होंने बिना किसी विलंब के, एक ही रात में हिमालय से पूरा द्रोणाचल पर्वत ही उठा लाए, क्योंकि वे संजीवनी को ठीक से पहचान नहीं पाए थे। उनके इस अद्भुत पराक्रम और समयबद्ध कार्य से लक्ष्मण जी के प्राण बचे और श्रीराम की सेना में नवजीवन का संचार हुआ।
एक और प्रसंग में, जब रावण के मायावी भाई अहिरावण ने छल से राम और लक्ष्मण को मूर्छित कर पाताल लोक में ले जाकर बलि देने का प्रयास किया, तब भी हनुमान जी ही उनके प्राणों के रक्षक बने। उन्होंने पाताल लोक में प्रवेश कर, अहिरावण का वध किया और श्रीराम-लक्ष्मण को सुरक्षित पुनः लंका ले आए। ऐसे अनगिनत अवसर हैं, जब हनुमान जी ने अपने बल, बुद्धि, विवेक और निस्वार्थ सेवा से अपने भक्तों और प्रभु के संकटों का निवारण किया। उन्होंने हर उस परिस्थिति में असंभव को संभव कर दिखाया, जहाँ कोई और आशा नहीं दिखती थी। यही कारण है कि वे ‘संकटमोचन’ कहलाते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि निस्वार्थ सेवा, अटूट श्रद्धा, धर्मनिष्ठा और अदम्य साहस से बड़े से बड़े संकटों को भी पार किया जा सकता है। हनुमानाष्टक का प्रत्येक पद उनके इन्हीं अविस्मरणीय लीलाओं का स्मरण कराकर हमें प्रेरणा देता है, और यह विश्वास दिलाता है कि उनकी शरण में आने वाले भक्त को कभी कोई संकट विचलित नहीं कर सकता।
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
चौपाई
बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अँधियारो।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥1॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंक महामुनि साप दियो तब, कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥2॥
अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपिस यह बैन उचारो।
जीवित न बचिहौं हम सो बिनु, खोज खबर इहाँ हारो।
रावन त्रास दई तब सिय को, सोक महा दुख पुंज निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥3॥
रावन गर्ब सहित सिय हरिको, ले गयो लंक गढ़ैं करि मारो।
लक्ष्मण शक्ति लगी तब रावन, जब अति संकट काज बिगारो।
आन संजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥4॥
हरषत है कपि लोग अचरज सो, पुंज सनेह के लावनहारो।
सुग्रीव को तब राज्य दियो तब, रावन राज कियो हठि हारो।
रामचन्द्र तब नाहिं डरे तब, वानर सेना संग बिचारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥5॥
बंधन में जब रावण के तुम, हनुमत ने किया अति बल धारो।
लंका जारि सिया सुधि लाय, राम के मन को कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥6॥
अहिरावन जब राम लखन को, ले गयो पाताल बिचारो।
देवन आनि करी बिनती तब, पाताल से तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥7॥
यह अष्टक निज भक्त पढ़े जो, सो सब संकट टरैं बिचारो।
पवनसुत हनुमत बलशाली, सब जग के तुम दास रखवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥8॥
पाठ करने की विधि
संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने के लिए कुछ विशेष विधियों का पालन करने से इसकी प्रभावशीलता और भी बढ़ जाती है। सर्वप्रथम, मंगलवार या शनिवार का दिन इस पाठ के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, यद्यपि इसे किसी भी दिन, किसी भी संकट की घड़ी में किया जा सकता है। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और मन को शांत एवं पवित्र करें। अपने पूजा स्थल पर हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक लाल आसन बिछाकर बैठें, यह रक्त वर्ण हनुमान जी को अत्यंत प्रिय है। सबसे पहले भगवान गणेश का स्मरण करें और उन्हें प्रणाम करें, जिससे पाठ में कोई विघ्न न आए। इसके पश्चात् भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी का स्मरण करें, क्योंकि हनुमान जी श्रीराम के परम भक्त हैं और वे अपने प्रभु के स्मरण से अत्यंत प्रसन्न होते हैं। अब हनुमान जी का ध्यान करें और उन्हें भक्तिभाव से प्रणाम करें। एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं, धूपबत्ती या अगरबत्ती लगाएं, जिससे वातावरण सुगंधित और पवित्र हो जाए। हनुमान जी को लाल पुष्प, जैसे गुड़हल या लाल गुलाब, अर्पित करें। संभव हो तो बूंदी, लड्डू या गुड़-चना का भोग लगाएं, यह उन्हें बहुत प्रिय है। इसके बाद श्रद्धापूर्वक संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ आरंभ करें। पाठ को स्पष्ट उच्चारण के साथ, शांत मन से, लयबद्ध तरीके से कम से कम 3, 5, 7, 11 या 21 बार पढ़ें। पाठ पूर्ण होने के बाद हनुमान चालीसा या हनुमान मंत्र ‘ॐ हं हनुमते नमः’ का जाप भी कर सकते हैं। अंत में, अपनी मनोकामनाएं हनुमान जी के समक्ष रखें और आरती कर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करें। भोग को उपस्थित सभी लोगों में प्रसाद रूप में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
पाठ के लाभ
संकटमोचन हनुमानाष्टक का नियमित और श्रद्धापूर्ण पाठ करने से भक्तों को अनेक अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं, जो उनके भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करते हैं। यह पाठ मात्र एक स्तोत्र नहीं, अपितु एक कवच है जो हर प्रतिकूल परिस्थिति से भक्त की रक्षा करता है।
1. **संकटों से मुक्ति:** जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह पाठ सभी प्रकार के संकटों, बाधाओं और परेशानियों से मुक्ति दिलाता है। चाहे वे शारीरिक कष्ट हों, जैसे असाध्य रोग; आर्थिक समस्याएँ हों, जैसे कर्ज या व्यापार में हानि; मानसिक तनाव हो, जैसे चिंता और अवसाद; या कोई अन्य अप्रत्याशित विपदा, हनुमान जी अपने भक्तों को इन सबसे बाहर निकालते हैं और उन्हें सुरक्षित मार्ग दिखाते हैं।
2. **भय और नकारात्मकता का नाश:** हनुमान जी बल, साहस और निर्भीकता के प्रतीक हैं। उनके इस अष्टक के पाठ से अज्ञात भय, बुरी शक्तियों का प्रभाव और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। व्यक्ति आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है और भूत-प्रेत बाधाएं तथा तंत्र-मंत्र का प्रभाव भी समाप्त होता है।
3. **स्वास्थ्य लाभ:** हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने वाला और रोगों का हरण करने वाला माना जाता है। उनके पाठ से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। यह शरीर को ऊर्जावान, निरोगी और सशक्त बनाता है, जिससे दीर्घायु का वरदान मिलता है।
4. **शत्रुओं पर विजय:** यदि आपके शत्रु प्रबल हैं और आपको लगातार परेशान कर रहे हैं, तो हनुमानाष्टक का पाठ शत्रुओं को परास्त करने और उन पर विजय प्राप्त करने में अत्यंत सहायक होता है। यह आपको मानसिक रूप से इतना सशक्त बनाता है ताकि आप किसी भी चुनौती का सामना निडरता से कर सकें।
5. **ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति:** हनुमान जी स्वयं ज्ञानियों में अग्रगण्य और समस्त विद्याओं के ज्ञाता हैं। उनके पाठ से बुद्धि तीव्र होती है, एकाग्रता बढ़ती है और सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है। विद्यार्थियों के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि यह उन्हें शिक्षा में सफलता और ज्ञान प्राप्ति में सहायता करता है।
6. **आर्थिक समृद्धि:** हनुमान जी की कृपा से धन संबंधी बाधाएं दूर होती हैं, व्यवसाय में सफलता मिलती है और आकस्मिक धन लाभ के योग बनते हैं। कर्ज से मुक्ति मिलती है और जीवन में समृद्धि तथा भौतिक सुखों का आगमन होता है।
7. **आत्मविश्वास में वृद्धि:** हनुमान जी के पराक्रम और अदम्य साहस का स्मरण करने से व्यक्ति के भीतर अद्भुत आत्मविश्वास का संचार होता है। वह किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए स्वयं को सक्षम पाता है और जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने की प्रेरणा प्राप्त करता है।
8. **रामकृपा की प्राप्ति:** हनुमान जी श्रीराम के परम भक्त हैं। उनके पाठ से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से भगवान श्रीराम और माता सीता की भी असीम अनुकंपा प्राप्त होती है, जो समस्त इच्छाओं को पूर्ण करती है और जीवन को परम आनंद से भर देती है।
यह पाठ केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली प्रार्थना है जो भक्त और भगवान के बीच एक गहरा आत्मिक संबंध स्थापित करती है।
नियम और सावधानियाँ
संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे पाठ का पूर्ण फल प्राप्त हो सके और हनुमान जी की कृपा निरंतर बनी रहे। इन नियमों का पालन श्रद्धा और समर्पण के साथ करना चाहिए।
1. **शारीरिक शुद्धता:** पाठ करने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शारीरिक शुद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए मन और तन को पवित्र रखें।
2. **मानसिक शुद्धता:** मन में किसी के प्रति द्वेष, क्रोध, ईर्ष्या या नकारात्मक विचार न रखें। शांत, पवित्र और एकाग्र मन से ही पाठ करें, तभी उसका पूर्ण प्रभाव प्राप्त होता है।
3. **सात्विकता:** पाठ के दिनों में तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन) का त्याग करें। संभव हो तो ब्रह्मचर्य का पालन करना भी शुभ माना जाता है, खासकर यदि आप संकल्प लेकर पाठ कर रहे हैं।
4. **दिशा:** पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखें, क्योंकि यह सूर्योदय और सकारात्मक ऊर्जा की दिशा है। यदि किसी कारणवश संभव न हो तो उत्तर दिशा की ओर भी मुख किया जा सकता है।
5. **आसन:** भूमि पर सीधे न बैठकर किसी लाल या कुशा के आसन पर बैठें। यह आसन आपको पृथ्वी की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है और सकारात्मक ऊर्जा को शरीर में केंद्रित करने में सहायक होता है।
6. **संकल्प:** पाठ आरंभ करने से पूर्व अपनी मनोकामना का संकल्प अवश्य लें। इससे पाठ एक निश्चित उद्देश्य के साथ किया जाता है और मन एकाग्र रहता है।
7. **श्रद्धा और विश्वास:** सबसे महत्वपूर्ण है अटूट श्रद्धा और विश्वास। हनुमान जी पर पूर्ण विश्वास रखकर ही पाठ करें। संशय की स्थिति में फल प्राप्ति कठिन हो सकती है। आपकी भक्ति जितनी गहरी होगी, फल भी उतना ही त्वरित मिलेगा।
8. **दीपक और धूप:** पाठ से पहले शुद्ध घी का दीपक और धूपबत्ती या अगरबत्ती अवश्य जलाएं। यह सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करता है और वातावरण को शुद्ध करता है।
9. **अखंडता:** यदि आप प्रतिदिन या किसी निश्चित अवधि के लिए पाठ कर रहे हैं, तो इसे नियमित रूप से करें। बीच में छोड़ना उचित नहीं माना जाता है। एक बार शुरू किया गया पाठ निर्धारित संख्या में अवश्य पूरा करें।
10. **महिलाओं के लिए:** मासिक धर्म के दौरान महिलाएं पाठ करने से बचें या मानसिक रूप से ही स्मरण करें। अन्य दिनों में वे श्रद्धापूर्वक पाठ कर सकती हैं।
11. **शब्दों का शुद्ध उच्चारण:** हनुमानाष्टक के शब्दों का शुद्ध उच्चारण करें, ताकि उसका सही अर्थ और भाव प्रकट हो सके। गलत उच्चारण से पाठ का प्रभाव कम हो सकता है।
इन नियमों का पालन करते हुए किया गया हनुमानाष्टक का पाठ निश्चित रूप से भक्तों को बजरंगबली की असीम कृपा का पात्र बनाता है और उनके जीवन से सभी प्रकार के संकटों को दूर करता है।
निष्कर्ष
संकटमोचन हनुमानाष्टक केवल कुछ पंक्तियों का संग्रह नहीं, बल्कि वह दिव्य ऊर्जा है जो हमें जीवन के हर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। यह हमें उस परम बलशाली, परम ज्ञानी और परम भक्त हनुमान जी से जोड़ता है, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी और हर चुनौती को अपनी अटूट भक्ति और अदम्य साहस से पार किया। जब भी मन अशांत हो, जब भी कोई विकट समस्या घेरे, जब भी आत्मविश्वास डगमगाए, तब हनुमान जी का यह पावन अष्टक हमें स्मरण कराता है कि संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो रामभक्त हनुमान के रहते उनके भक्तों का बाल भी बांका कर सके। उनका नाम ही एक ऐसा अभेद्य कवच है, जो हर बुरी शक्ति और हर नकारात्मक प्रभाव से हमारी रक्षा करता है। यह हमें सिखाता है कि विश्वास और समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। आइए, इस हनुमानाष्टक को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। इसे केवल एक कर्मकांड न समझें, बल्कि इसे हृदय की गहराई से महसूस करें, उसके प्रत्येक शब्द में छुपी शक्ति को आत्मसात करें और हनुमान जी के गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। श्रीराम के सेवक, शक्ति और बुद्धि के सागर, संकटमोचन श्री हनुमान जी की जय हो! उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम, जो हमारे समस्त दुःखों को हरने वाले और जीवन को सुख-शांति से भरने वाले हैं। उनकी कृपा हम सभी पर सदैव बनी रहे, यही मंगलकामना है। जय बजरंगबली!

