श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में: हृदय में दीपोत्सव का दिव्य भाव
दीपावली का पावन पर्व आते ही, हर ओर उल्लास और प्रकाश की लहर दौड़ जाती है। घर-घर में दीप जलाए जाते हैं, रंगोली सजती है और मिठाइयों की सुगंध से वातावरण महक उठता है। यह पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के 14 वर्ष के वनवास के पश्चात् अयोध्या लौटने की joyous celebration है। परंतु क्या हमने कभी विचार किया है कि इस बाहरी दीपोत्सव से भी कहीं अधिक दिव्य और आनंदमयी एक दीपोत्सव हमारे भीतर, हमारे हृदय में मनाया जा सकता है? ‘श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में’ – यह केवल एक भजन की पंक्ति नहीं, बल्कि एक profound spiritual experience है, एक ऐसी अनुभूति है जहाँ हर पल, हर साँस श्री राम और जानकी मैया की उपस्थिति से आलोकित होती है।
यह भावार्थ हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता और अनवरत स्मरण में निहित है। राम भक्ति का यह मार्ग हमें आंतरिक शांति और परम आनंद की ओर ले जाता है। इस ब्लॉग में, हम इसी अलौकिक भाव को समझने का प्रयास करेंगे, जानेंगे कि कैसे हम अपने मन में राम जानकी को बिठाकर जीवन को राम राज्य की शांति और समृद्धि से भर सकते हैं। आइए, इस आध्यात्मिक यात्रा पर चलें और अपने हृदय को श्री राम और जानकी मैया के लिए एक अनुपम मंदिर बनाएं, जहाँ हर क्षण एक अविस्मरणीय दीपावली का उत्सव हो।
मन में राम जानकी का वास: एक दिव्य राम कथा
अयोध्या नगरी का वह स्वर्णिम दृश्य स्मरण करिए, जब भगवान राम रावण पर विजय प्राप्त कर, माता सीता और लक्ष्मण सहित वापस लौटे थे। पूरी अयोध्या दीपों से जगमगा उठी थी। हर नागरिक की आँखों में प्रेम और श्रद्धा का अथाह सागर उमड़ पड़ा था। यह मात्र एक राजा का अपनी प्रजा के बीच लौटना नहीं था, यह धर्म की विजय, प्रेम की स्थापना और विश्वास की पुनर्स्थापना थी। परंतु यह बाहरी दीपोत्सव एक गहरा संदेश भी देता है – जिस प्रकार अयोध्या ने अपने प्रिय राजा का हृदय खोलकर स्वागत किया, उसी प्रकार हमें भी अपने हृदय को श्री राम और जानकी मैया के लिए खोलना चाहिए। यह हमारी सबसे बड़ी राम कहानी है, जो हमें अपने भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है।
संतों और भक्तों की परंपरा में हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ भगवान राम और माता सीता ने भक्तों के हृदय में अपना स्थायी आसन बनाया। भक्त शिरोमणि हनुमान जी का उदाहरण सर्वोपरि है। जब उनसे पूछा गया कि उनके हृदय में कौन विराजमान हैं, तो उन्होंने अपना वक्ष चीर कर दिखाया और उसमें श्री राम और माता सीता की अलौकिक छवि सबने देखी। यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में आराध्य और भक्त के बीच कोई दूरी नहीं रहती, वे एक दूसरे में समाहित हो जाते हैं। हनुमान जी की भक्ति हमें सिखाती है कि यदि हृदय में निष्ठा और प्रेम हो, तो स्वयं प्रभु आकर उसमें वास करते हैं। उनके लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना, श्री राम के प्रति अपनी भक्ति को और गहरा करने का एक सुंदर माध्यम है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के माध्यम से जन-जन के हृदय में राम कथा को स्थापित किया। उन्होंने स्वयं को श्री राम का दास माना और उनकी भक्ति ऐसी थी कि उन्हें साक्षात् प्रभु के दर्शन हुए। शबरी की कथा भी इसी भाव का प्रमाण है। उसकी निश्छल भक्ति ने प्रभु राम को उसके जूठे बेर खाने पर विवश कर दिया। ये कहानियाँ हमें बताती हैं कि भगवान किसी जाति, पंथ या धन-संपत्ति के मोहताज नहीं होते, वे केवल शुद्ध हृदय के प्रेम और devotion के भूखे होते हैं। वे हर उस हृदय में निवास करते हैं जो उन्हें प्रेम से पुकारता है।
माता सीता, जो स्वयं शक्ति और धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं, उनकी उपस्थिति श्री राम के साथ हमें पूर्णता का अनुभव कराती है। जहाँ राम पुरुषार्थ और धर्म का प्रतीक हैं, वहीं जानकी भक्ति, समर्पण और purity का embodiment हैं। उनका एक साथ हृदय में वास करना, जीवन में संतुलन और harmony लाने का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि प्रेम और शक्ति, धर्म और करुणा का संगम ही वास्तविक जीवन है। दीपावली राम जानकी हृदय में तभी मनाई जा सकती है जब हम इस दिव्य युगल के गुणों को अपने जीवन में उतारें।
देवत्व का भाव: हृदय में राम जानकी बिठाने का महत्व
‘श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में’ का भावार्थ अत्यंत गहरा और transformative है। इसका अर्थ केवल इतना नहीं कि हम उनके नाम का जाप करें, बल्कि यह है कि हम उनके गुणों, उनके आदर्शों और उनके प्रेम को अपने जीवन में उतारें। जब श्री राम और जानकी मैया हमारे हृदय में विराजते हैं, तो हमारा हृदय स्वयं एक पावन मंदिर बन जाता है। यह एक ऐसी राम भक्ति है जो हमें हर सांस में प्रभु से जोड़ती है।
इस भाव की प्राप्ति से जीवन में अनेक सकारात्मक परिवर्तन आते हैं:
- शांति और स्थिरता: हृदय में राम-जानकी का वास हमें आंतरिक शांति प्रदान करता है। संसार की अशांति और मायावी प्रपंच हमें विचलित नहीं कर पाते, क्योंकि हमारे भीतर एक eternal source of peace जागृत हो जाता है। यह वही शांति है जिसे ‘राम राज्य’ की संज्ञा दी जाती है।
- शक्ति और साहस: जब प्रभु हमारे साथ होते हैं, तो किसी भी चुनौती से निपटना आसान हो जाता है। हमें यह विश्वास होता है कि राम जी हर परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करेंगे। यह शक्ति केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक होती है।
- नैतिकता और धर्मपरायणता: श्री राम धर्म के प्रतीक हैं। उनके हृदय में वास का अर्थ है उनके आदर्शों पर चलना। सत्यनिष्ठा, करुणा, न्याय और कर्तव्यपरायणता जैसे गुण हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं।
- निर्मलता और पवित्रता: माता जानकी purity और त्याग की मूर्ति हैं। उनकी उपस्थिति हमारे मन को स्वच्छ करती है, विकारों को दूर करती है और हमें एक शुद्ध, सात्विक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। जानकी स्तुति का पाठ कर हम उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
- आनंद और संतोष: जब हम अपने आराध्य को हृदय में बिठाते हैं, तो हमें बाहरी सुखों की लालसा कम होती जाती है। सच्चा आनंद भीतर से प्राप्त होता है, जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। यह एक ऐसा राम राज्य है जो हमारे अपने भीतर स्थापित होता है।
यह केवल एक आध्यात्मिक कल्पना नहीं, बल्कि एक living reality है। जो भक्त इस भाव को प्राप्त कर लेते हैं, वे हर पल प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करते हैं। उनके लिए हर साँस राम नाम का जाप बन जाती है और उनका पूरा जीवन एक continuous राम आरती में बदल जाता है।
मन में राम जानकी कैसे बिठाएं: साधना और परंपराएं
मन में राम जानकी को कैसे बिठाएं? यह प्रश्न हर श्रद्धालु के मन में उठता है। यह कोई भौतिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है जिसके लिए निरंतर प्रयास और श्रद्धा की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे आप अपने हृदय को श्री राम और जानकी मैया के लिए तैयार कर सकते हैं:
- नियमित मंत्र जाप: “श्री राम जय राम जय जय राम” या “सीता राम सीताराम” जैसे मंत्रों का नियमित जाप करें। यह आपके मन को एकाग्र करता है और प्रभु के नाम की vibration को आपके भीतर स्थापित करता है। हनुमान चालीसा का पाठ भी अत्यंत लाभकारी है, क्योंकि यह हमें हनुमान जी जैसी अविचल भक्ति प्रदान करता है।
- राम कथा और रामचरितमानस का पाठ: नियमित रूप से राम कथा सुनें या रामचरितमानस का पाठ करें। प्रभु के चरित्र, उनके आदर्शों और उनकी लीलाओं को सुनकर-समझकर हम उनके गुणों को अपने भीतर समाहित करते हैं। यह मन को शुद्ध करता है और भक्ति के भाव को गहरा करता है।
- भजन-कीर्तन: ‘श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में’ जैसे भक्ति गीत और अन्य राम-सीता भजन गाएं या सुनें। संगीत के माध्यम से भक्ति का संचार बहुत तीव्र होता है और यह हृदय को प्रभु के प्रेम से भर देता है।
- ध्यान और contemplation: शांत बैठकर अपनी आँखें बंद करें और कल्पना करें कि श्री राम और माता जानकी आपके हृदय कमल पर विराजमान हैं। उनके दिव्य रूप का ध्यान करें, उनके आशीर्वाद की कल्पना करें। यह मानसिक रूप से उन्हें अपने भीतर स्थापित करने में मदद करता है।
- सेवा भाव: ‘सिया राम मय सब जग जानी’ – इस चौपाई के अनुसार, हर जीव में श्री राम और माता जानकी को देखें। दीन-दुखियों की सेवा करें, प्राणियों के प्रति करुणा रखें। निस्वार्थ सेवा भी प्रभु को हृदय में बिठाने का एक मार्ग है, क्योंकि यह अहंकार को कम करती है और प्रेम को बढ़ाती है।
- आंतरिक आरती: बाहरी आरती की तरह ही, मानसिक रूप से प्रभु राम और जानकी मैया की आरती करें। उन्हें अपने प्रेम, श्रद्धा और कृतज्ञता के पुष्प अर्पित करें। यह आपकी internal devotion को प्रकट करता है और आपके हृदय को पवित्र करता है।
- सात्विक जीवन: अपने विचारों, वचनों और कर्मों में पवित्रता लाएं। क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का त्याग करें। एक सात्विक जीवन शैली प्रभु के वास के लिए एक उत्तम वातावरण का निर्माण करती है।
दीपावली के अवसर पर, जब हम घरों में दीपक जलाते हैं, तो यह संकल्प लें कि हम अपने हृदय में भी भक्ति का दीपक प्रज्वलित करेंगे। यह दीपक श्री राम और जानकी मैया के प्रेम से कभी बुझेगा नहीं और हमारे पूरे जीवन को आलोकित करता रहेगा। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक transformative spiritual journey है।
निष्कर्ष: हृदय में श्रीराम-जानकी, जीवन का परम दीपोत्सव
‘श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में’ – यह भजन हमें उस चरम भक्ति की ओर ले जाता है जहाँ भक्त और भगवान के बीच कोई भेद नहीं रह जाता। यह हमें सिखाता है कि दीपावली का वास्तविक अर्थ बाहरी दीपों का जलाना नहीं, बल्कि अपने हृदय रूपी मंदिर में श्री राम और जानकी मैया के प्रेम और प्रकाश को स्थापित करना है। जब यह दिव्य युगल हमारे सीने में विराजता है, तो हमारा जीवन स्वयं एक उत्सव बन जाता है। हर पल आनंद से परिपूर्ण, हर साँस में प्रभु का स्मरण और हर कार्य में उनके आदर्शों का प्रतिबिंब।
आइए, इस दीपावली और उसके बाद भी, हम अपने हृदय को इतना शुद्ध और विशाल बनाएं कि श्री राम और जानकी मैया उसमें सदैव विराजमान रहें। उनकी कृपा और प्रेम से हमारा जीवन धन्य हो, और हम सच्चे अर्थों में राम राज्य की स्थापना अपने भीतर कर पाएं। अपने मन में राम जानकी को बिठाना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है, जो हमें परम शांति और मोक्ष की ओर ले जाता है। यह राम भक्ति हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त कर परम आनंद की ओर अग्रसर करती है। जय सिया राम!

