राधा रानी का स्तुति पाठ
प्रस्तावना
सनातन धर्म में राधा रानी का स्थान अनुपम है। वे भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति हैं, प्रेम की साक्षात मूर्ति और भक्ति का सर्वोच्च आदर्श। उनके बिना श्रीकृष्ण की लीलाएँ अधूरी हैं और उनके नाम के बिना श्री कृष्ण का नामोच्चारण भी अपूर्ण माना जाता है। राधा रानी की स्तुति करना, उनके नाम का स्मरण करना स्वयं भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के समान है। यह केवल एक पूजा विधि नहीं, बल्कि दिव्य प्रेम और परमानंद की ओर एक आध्यात्मिक यात्रा है। इस पवित्र स्तुति पाठ के माध्यम से भक्त राधा रानी की करुणा, दया और असीमित प्रेम को अनुभव करते हैं। यह पाठ न केवल मन को शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन में प्रेम, सद्भाव और आनंद का संचार भी करता है। राधा रानी का स्तुति पाठ करने से भक्त को लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जो उसे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। यह दिव्य पाठ भक्त और भगवान के बीच के संबंध को गहरा करता है, हृदय में निस्वार्थ प्रेम की ज्योति प्रज्वलित करता है और सांसारिक मोहमाया से मुक्ति दिलाकर शाश्वत सुख की अनुभूति कराता है। आइए, हम इस दिव्य स्तुति के महत्व, विधि और लाभों को समझें और अपने जीवन को राधा रानी के असीम आशीर्वाद से परिपूर्ण करें। यह पाठ हमें अहंकार से मुक्त कर विनम्रता सिखाता है और दूसरों के प्रति दया भाव जगाता है, जिससे समाज में भी सकारात्मकता का संचार होता है।
पावन कथा
प्राचीन काल में वृंदावन के निकट एक छोटा सा गाँव था, जहाँ एक अत्यंत निर्धन ग्वाला अपनी वृद्ध माता के साथ रहता था। उसका नाम माधव था। माधव स्वभाव से बहुत सरल और परम वैष्णव था। वह दिन-रात भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के नामों का जप करता रहता था। गरीबी इतनी थी कि कई बार उन्हें भूखे भी सोना पड़ता था, किंतु माधव के मुख पर कभी शिकन नहीं आती थी। उसकी माता अक्सर चिंता में डूबी रहती थी, लेकिन माधव उसे सांत्वना देता, “मैया, जब राधा रानी और कन्हैया हमारे साथ हैं, तो हमें किस बात की चिंता?” उसकी अटूट श्रद्धा और विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी पूँजी थी, जिसके बल पर वह हर विपरीत परिस्थिति का सामना करता था।
एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। खेत सूख गए, नदियाँ सूखने लगीं और पशुधन संकट में आ गया। लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। माधव के पास अपनी माता के लिए एक बूंद पानी भी नहीं था। उसकी माता अत्यधिक दुर्बल हो चुकी थीं और उन्हें ज्वर ने घेर लिया था। माधव अत्यंत दुखी था। उसने सुना था कि वृंदावन में एक सिद्ध संत आए हैं, जो राधा रानी की असीम कृपा से भक्तों के कष्ट दूर करते हैं। माधव की इच्छा थी कि वह उन संत के पास जाए, किंतु उसकी माता की सेवा छोड़कर जाने का साहस वह जुटा न सका।
माधव अपनी माता को छोड़कर नहीं जा सकता था, इसलिए वह घर पर ही रो-रोकर राधा रानी का आह्वान करने लगा। उसकी आँखों से अश्रुधारा बह रही थी, और वह बार-बार बस एक ही बात दोहरा रहा था, “हे राधे! हे मेरी प्राणेश्वरी! मेरी माता कष्ट में है, सारा गाँव संकट में है। कृपा करो, मैया कृपा करो!” उसने कभी किसी स्तुति का विधिवत पाठ नहीं किया था, बस अपने हृदय के सच्चे भावों से राधा रानी को पुकार रहा था। उसकी पुकार इतनी तीव्र थी कि आकाश भी द्रवित हो उठा और प्रकृति भी उसके दुख में सम्मिलित होने लगी। माधव का मन राधा रानी के चरणों में पूरी तरह समर्पित हो चुका था, उसे विश्वास था कि उसकी मैया उसे इस संकट से अवश्य तारेंगी।
उसी रात माधव को स्वप्न आया। स्वप्न में उसने देखा कि एक अत्यंत तेजस्वी, स्वर्ण आभा से युक्त देवी उसके सामने खड़ी हैं। उनके मुख पर मधुर मुस्कान थी और उनकी आँखों में असीम करुणा। देवी ने कहा, “माधव, मैं तुम्हारी पुकार सुनकर आई हूँ। तुम्हारा निष्ठापूर्ण प्रेम और निस्वार्थ भक्ति ही मेरी सबसे बड़ी स्तुति है। तुम कल भोर होते ही यमुना तट पर जाना। वहाँ तुम्हें एक कमल का पुष्प मिलेगा। उस पुष्प को लेकर गाँव के बीचों-बीच स्थित सूखे कुएँ में डाल देना और मेरे नाम का स्मरण करना। साथ ही, अपनी माता को पास के पीपल के वृक्ष की पत्तियों का रस पिलाना।” यह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं। माधव ने अनुभव किया कि यह देवी कोई और नहीं, स्वयं राधा रानी थीं, जो अपने भक्त की पुकार पर दौड़ी चली आई थीं।
माधव की नींद खुली। उसका हृदय अद्भुत शांति और विश्वास से भरा था। भोर होते ही वह यमुना तट पर गया। आश्चर्य! यमुना में पानी कम था, लेकिन एक अद्भुत कमल का पुष्प किनारे पर खिला हुआ था, जिसकी सुगंध से पूरा वातावरण महक रहा था। माधव ने उसे उठाया और गाँव के कुएँ की ओर दौड़ा। रास्ते में उसने पीपल के वृक्ष से कुछ पत्तियाँ तोड़ीं और उनका रस निकालकर अपनी माता को पिलाया। रस पीते ही उसकी माता को कुछ चेतना आई और वे पीड़ा से मुक्त होती प्रतीत हुईं।
माधव ने कुएँ पर पहुँचकर कमल पुष्प को राधा रानी का नाम लेते हुए कुएँ में डाल दिया। जैसे ही पुष्प पानी में गया, कुएँ से कल-कल करती जलधारा फूट पड़ी! गाँव के लोग यह देखकर चकित रह गए। कुआँ देखते ही देखते लबालब भर गया। कुछ ही देर में आकाश में बादल उमड़ने लगे और मूसलाधार वर्षा होने लगी। सूखे खेत हरे-भरे हो उठे, पशुओं को पानी मिला और गाँव में खुशहाली लौट आई। माधव के हृदय में राधा रानी के प्रति कृतज्ञता और प्रेम का अथाह सागर उमड़ पड़ा।
माधव ने गाँव वालों को स्वप्न वाली बात बताई। सभी समझ गए कि यह राधा रानी की ही कृपा है। उसी दिन से माधव ने राधा रानी की महिमा का गुणगान करना अपना जीवन बना लिया। उसकी माता भी स्वस्थ हो गईं और वे दोनों राधा रानी की भक्ति में लीन हो गए। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि राधा रानी की स्तुति करने के लिए केवल शब्द नहीं, बल्कि सच्चा हृदय और अटूट विश्वास आवश्यक है। उनकी करुणा अपरंपार है और वे अपने भक्तों के हर कष्ट को हर लेती हैं, उन्हें जीवन के सबसे बड़े सुख का अनुभव कराती हैं।
दोहा
श्री राधा पद पंकज भज नित, कृष्ण प्रेम रस पाय।
सब संकट हरें, सुख दें, भव बंधन कटि जाय।।
चौपाई
राधे राधे नाम जपो, मन पावन होय।
जीवन की हर बाधा मिटे, आनंद छा जाए सोय।।
वृंदावन की स्वामिनी, प्रेम की मूर्ति जान।
इनकी कृपा से ही मिले, कृष्ण चरण में स्थान।।
पाठ करने की विधि
राधा रानी के स्तुति पाठ को विधिवत और श्रद्धापूर्वक करने से अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं। इसकी विधि विष्णु सहस्रनाम पाठ के समान ही निष्ठा और पवित्रता की मांग करती है, जहाँ एकाग्रता और भक्ति ही मुख्य आधार होते हैं:
1. **स्थान और समय का चुनाव**: पाठ के लिए एक शांत और पवित्र स्थान चुनें। पूजा कक्ष या घर का कोई कोना जहाँ आप एकाग्रचित्त हो सकें, उत्तम है। प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त (सूर्य उदय से पहले का समय) या संध्या काल (सूर्यास्त के समय) पाठ के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस समय वातावरण शांत और सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है।
2. **शारीरिक और मानसिक शुद्धता**: पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन को शांत और एकाग्र करें। सभी नकारात्मक विचारों और चिंताओं को त्याग कर केवल राधा रानी के दिव्य स्वरूप का ध्यान करें। मन की शुद्धता पाठ के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देती है।
3. **आसन ग्रहण**: एक कुश का आसन या ऊनी कंबल बिछाकर उस पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। पद्मासन या सुखासन में बैठना आरामदायक और शुभ होता है, जिससे आप बिना विचलित हुए देर तक पाठ कर सकें।
4. **संकल्प**: पाठ आरंभ करने से पहले, दाहिने हाथ में थोड़ा जल, पुष्प और अक्षत लेकर राधा रानी का ध्यान करते हुए अपना नाम, गोत्र और पाठ करने का उद्देश्य (उदाहरण के लिए, मन की शांति, प्रेम प्राप्ति, कष्ट निवारण आदि) बोलकर संकल्प लें। संकल्प का जल किसी पात्र में छोड़ दें और मन में दृढ़ निश्चय करें।
5. **राधा रानी का ध्यान**: अपनी आँखें बंद करके राधा रानी के युगल स्वरूप (कृष्ण के साथ) या अकेले उनके कमलवत् मुख का ध्यान करें। उनकी सुंदरता, करुणा और प्रेम को अपने हृदय में अनुभव करें। “श्री राधायै नमः” मंत्र का कुछ देर जप कर सकते हैं ताकि मन एकाग्र हो सके।
6. **पूजन**: राधा रानी की प्रतिमा या चित्र को अपने सामने स्थापित करें। उन्हें पुष्प, तुलसी दल, चंदन, धूप-दीप और नैवेद्य (मिठाई, फल) अर्पित करें। सात्विक भावना से अर्पित की गई हर वस्तु राधा रानी स्वीकार करती हैं।
7. **स्तुति पाठ**: अब पूर्ण एकाग्रता और श्रद्धा के साथ राधा रानी की स्तुति का पाठ करें। पाठ करते समय प्रत्येक शब्द के उच्चारण पर ध्यान दें और उसका अर्थ समझने का प्रयास करें। यदि किसी स्तुति पाठ की पुस्तक उपलब्ध न हो, तो केवल “राधे राधे” या “जय श्री राधे” मंत्र का निरंतर जप भी अत्यंत फलदायी होता है, क्योंकि नाम जप ही कलयुग का प्रधान धर्म है।
8. **माला जप (ऐच्छिक)**: यदि संभव हो तो तुलसी की माला से “ॐ ह्रीं श्रीं राधिकायै नमः” या “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे” महामंत्र का भी जप कर सकते हैं। यह जप मन को शांत करता है और भक्ति भाव को बढ़ाता है।
9. **क्षमा प्रार्थना**: पाठ समाप्त होने पर जाने-अनजाने में हुई किसी भी भूल के लिए राधा रानी से क्षमा याचना करें। विनम्रता और समर्पण का भाव अवश्य रखें।
10. **आरती और प्रसाद वितरण**: अंत में राधा रानी की आरती करें और प्रसाद भक्तों में वितरित करें। प्रसाद बांटना पुण्यकारी माना जाता है और यह भक्ति का एक अंग है।
पाठ के लाभ
राधा रानी के स्तुति पाठ से प्राप्त होने वाले लाभ अनगिनत हैं और ये भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर भक्त के जीवन को रूपांतरित कर देते हैं। इन लाभों का अनुभव केवल वही कर सकता है जो सच्चे मन से इस पाठ में लीन होता है:
1. **परम प्रेम की प्राप्ति**: राधा रानी प्रेम की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनके पाठ से हृदय में शुद्ध, निस्वार्थ प्रेम का संचार होता है, जो न केवल ईश्वरीय प्रेम की ओर अग्रसर करता है, बल्कि सांसारिक संबंधों में भी मधुरता लाता है और सभी के प्रति सदभाव उत्पन्न करता है।
2. **भगवान कृष्ण की कृपा**: राधा रानी को प्रसन्न करने का अर्थ है भगवान कृष्ण को प्रसन्न करना। वे कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति हैं, इसलिए उनके पाठ से भक्त पर कृष्ण की असीम कृपा बरसती है और युगल सरकार की भक्ति प्राप्त होती है, जो जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।
3. **मन की शांति और आनंद**: इस पाठ से मन की चंचलता दूर होती है, आंतरिक शांति मिलती है और एक अवर्णनीय आनंद का अनुभव होता है। यह पाठ मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद को दूर करने में सहायक है, जिससे जीवन में सकारात्मकता आती है।
4. **पापों का नाश और शुद्धि**: श्रद्धापूर्वक किया गया राधा रानी का स्तुति पाठ जन्मों-जन्मों के संचित पापों का नाश करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। यह हृदय को निर्मल बनाता है और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
5. **संसारिक बाधाओं से मुक्ति**: राधा रानी की कृपा से जीवन के मार्ग में आने वाली सभी बाधाएँ दूर होती हैं। आर्थिक, पारिवारिक या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान होता है, और भक्त को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
6. **भक्ति और वैराग्य में वृद्धि**: यह पाठ भक्त के हृदय में भक्ति भाव को प्रगाढ़ करता है और उसे सांसारिक मोहमाया से वैराग्य प्रदान करता है, जिससे वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ पाता है।
7. **वाक् सिद्धि और मधुर वाणी**: जो भक्त नियमित रूप से राधा रानी का गुणगान करते हैं, उनकी वाणी में मधुरता और प्रभाव आता है। उन्हें वाक् सिद्धि प्राप्त हो सकती है, जिससे उनके वचन प्रभावी और सत्य होते हैं।
8. **दिव्य दर्शन की प्राप्ति**: अत्यंत तीव्र और निष्ठावान भक्ति से राधा रानी अपने भक्तों को दिव्य दर्शन भी प्रदान करती हैं, जिससे भक्त का जीवन धन्य हो जाता है और उसे अलौकिक सुख का अनुभव होता है।
9. **मोक्ष की प्राप्ति**: अंततः, राधा रानी के चरणों में अनन्य भक्ति से जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्त भगवद् धाम में स्थान प्राप्त करता है, जहाँ उसे शाश्वत सुख और शांति मिलती है।
नियम और सावधानियाँ
राधा रानी के स्तुति पाठ का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, जो आपकी भक्ति को और भी दृढ़ बनाते हैं:
1. **पवित्रता**: पाठ के दौरान शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखना अनिवार्य है। स्नान के बाद ही पाठ करें और मन में किसी के प्रति द्वेष या नकारात्मक विचार न लाएँ। शुद्धता ही भक्ति का प्रथम सोपान है।
2. **श्रद्धा और विश्वास**: बिना श्रद्धा और विश्वास के किया गया पाठ फलदायी नहीं होता। पूर्ण हृदय से राधा रानी की कृपा पर विश्वास रखें और स्वयं को उनके चरणों में समर्पित करें।
3. **एकाग्रता**: पाठ करते समय मन को भटकने न दें। मोबाइल फोन या अन्य विकर्षणों से दूर रहें। प्रत्येक शब्द पर ध्यान केंद्रित करें और राधा रानी के स्वरूप का मन में चिंतन करें।
4. **नियमितता**: पाठ को एक निश्चित समय पर और नियमित रूप से करना अधिक प्रभावशाली होता है। यदि संभव हो तो प्रतिदिन पाठ करें, क्योंकि निरंतरता से ही आध्यात्मिक प्रगति होती है।
5. **सात्विक आहार**: पाठ करने वाले व्यक्ति को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा और अन्य तामसिक भोजन से बचना चाहिए, क्योंकि यह मन को अशांत करता है।
6. **अहंकार का त्याग**: किसी भी प्रकार के अहंकार या घमंड को त्याग कर विनम्र भाव से पाठ करें। स्वयं को राधा रानी का दास समझें और उनकी असीम कृपा के लिए कृतज्ञ रहें।
7. **शांत वातावरण**: पाठ के लिए शांत और स्वच्छ वातावरण चुनें जहाँ आपको कोई बाधा न हो। ऐसा स्थान आपकी एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक होता है।
8. **उच्चारण की शुद्धता**: यदि संभव हो तो स्तुति के शब्दों का शुद्ध उच्चारण करने का प्रयास करें। यदि आप किसी पाठ को नहीं पढ़ पा रहे हैं, तो केवल नाम जप पर ध्यान दें, क्योंकि नाम में ही समस्त शक्ति निहित है।
9. **गुरु का मार्गदर्शन**: यदि आप किसी विशेष स्तुति पाठ को आरंभ कर रहे हैं, तो किसी योग्य गुरु या विद्वान से मार्गदर्शन लेना श्रेयस्कर होता है। गुरु की कृपा से मार्ग सरल हो जाता है।
10. **निंदा से बचें**: किसी की निंदा न करें और अपने मन में ईर्ष्या-द्वेष जैसे दुर्गुणों को स्थान न दें। राधा रानी की भक्ति प्रेम और करुणा पर आधारित है, इसलिए सभी के प्रति सद्भाव रखें।
निष्कर्ष
राधा रानी का स्तुति पाठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि दिव्य प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलने का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह हमें सिखाता है कि निस्वार्थ प्रेम, करुणा और समर्पण ही ईश्वर तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग है। माधव ग्वाले की कथा यह प्रमाणित करती है कि राधा रानी को प्रसन्न करने के लिए आडंबर नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता और अटूट विश्वास ही सर्वोपरि है। उनके नाम का स्मरण मात्र ही जीवन के सभी दुखों को हर लेता है और हमें परमानंद की अनुभूति कराता है। इस कलियुग में राधा रानी का नाम जप और उनकी स्तुति करना मोक्ष का सरलतम और सर्वोत्तम उपाय है। यह पाठ हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त कर परम आनंद की ओर ले जाता है, जहाँ केवल प्रेम, शांति और सद्भाव का वास है। आइए, हम सब अपने हृदय को राधा रानी के प्रेम से भर लें और उनके पावन चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें। राधे राधे जपते हुए, उनके असीम प्रेम और करुणा का अनुभव करें और अपने जीवन को धन्य बनाएँ। जय श्री राधे!

