किन लोगों को रविवार का व्रत नहीं रखना चाहिए?
प्रस्तावना
सनातन धर्म में व्रतों और त्योहारों का अपना विशेष स्थान है। प्रत्येक व्रत किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक पवित्र माध्यम माना जाता है। रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव को समर्पित है, जो जगत के प्रत्यक्ष देवता हैं, ऊर्जा और जीवन के प्रदाता हैं। इनकी उपासना से आरोग्य, तेज, बुद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अनेक भक्तजन सूर्यदेव की कृपा पाने के लिए रविवार का व्रत धारण करते हैं। यह व्रत निष्ठा और श्रद्धा से किया जाए तो अवश्य फलदायी होता है। किंतु, धर्मशास्त्रों और आयुर्वेद ने कुछ ऐसी परिस्थितियों का भी उल्लेख किया है, जब व्रत धारण करना व्यक्ति के स्वास्थ्य और bienestar के लिए उचित नहीं होता। हमारा शरीर भगवान का दिया हुआ मंदिर है और इसे स्वस्थ रखना भी एक प्रकार की सच्ची उपासना है। अतः, यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि किन लोगों को रविवार का व्रत नहीं रखना चाहिए, ताकि हमारी भक्ति किसी भी प्रकार से हमारे शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को हानि न पहुँचाए। सच्चा धर्म हमें कभी भी अपने शरीर को कष्ट देने का आदेश नहीं देता, बल्कि वह हमें विवेकपूर्ण तरीके से अपने कर्तव्यों और उपासना को निभाने का मार्ग दिखाता है।
पावन कथा
प्राचीन काल की बात है, एक अत्यंत पवित्र नगरी अयोध्या में सुकृति नाम की एक परम भक्त महिला रहती थी। वह भगवान राम की नगरी में निवास करते हुए सभी धर्म-कर्म का पालन पूरी श्रद्धा से करती थी। सुकृति बचपन से ही सूर्यदेव की उपासिका थी। वह प्रत्येक रविवार को नियमित रूप से व्रत रखती, सूर्य को अर्घ्य देती और अपनी यथाशक्ति दान-पुण्य करती थी। उसकी निष्ठा इतनी प्रबल थी कि वह कभी भी अपने व्रत को भंग नहीं करती थी, चाहे कैसी भी परिस्थिति हो। समय बीता, सुकृति का विवाह हुआ और वह अपने परिवार के साथ जीवन व्यतीत करने लगी। उसके जीवन में अनेक सुख-दुःख आए, पर उसने अपने सूर्य व्रत का संकल्प कभी नहीं छोड़ा।
किंतु, जब सुकृति वृद्ध अवस्था को प्राप्त हुई, तो उसका शरीर दुर्बल होने लगा। घुटनों में पीड़ा रहती, पाचन शक्ति कमजोर हो गई और थोड़ा सा भी भूखा रहना उसके लिए असहनीय हो जाता। एक रविवार को उसने व्रत रखा, परंतु दोपहर होते-होते उसे तीव्र चक्कर आने लगे और शरीर में कंपन होने लगा। वह लगभग मूर्छित होने की स्थिति में आ गई थी। उसके परिवारजनों ने उसे व्रत तोड़ने का आग्रह किया, पर सुकृति का मन नहीं माना। उसे लगा कि व्रत भंग करने से सूर्यदेव रुष्ट हो जाएँगे और उसे पाप लगेगा। वह अपनी इस दुविधा से बहुत व्याकुल थी।
उसी समय, एक महान ज्ञानी संत उस नगर से गुजर रहे थे। उनका नाम था महर्षि देवल। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। सुकृति की पुत्रवधू ने यह जानकर महर्षि को अपने घर आमंत्रित किया और सुकृति की व्यथा सुनाई। महर्षि देवल ने सुकृति को देखा, उसके दुर्बल शरीर और आँखों में श्रद्धा के साथ-साथ चिंता के भाव को समझा।
महर्षि ने सुकृति को शांत करते हुए कहा, “हे पुत्री सुकृति! तुम्हारी सूर्यदेव के प्रति भक्ति अतुलनीय है। परंतु, परमेश्वर कभी भी अपने भक्तों को अनावश्यक कष्ट में नहीं देखना चाहते। धर्म का मूल आधार ‘अहिंसा परमो धर्मः’ है, जिसका अर्थ केवल दूसरों के प्रति नहीं, अपितु अपने स्वयं के शरीर और मन के प्रति भी अहिंसा का पालन करना है। जब तुम्हारा शरीर व्रत रखने में सक्षम नहीं है, तो उस स्थिति में व्रत का कठोर पालन करना एक प्रकार से स्वयं को कष्ट देना ही है।”
महर्षि ने आगे कहा, “अतीत में एक रानी थी, जिसका नाम था दमयंती। वह भी सूर्यदेव की परम भक्त थी। जब वह गर्भवती हुई, तो उसे चिकित्सकों ने व्रत रखने से मना किया। रानी दमयंती भी बहुत चिंतित हुई। तब एक ज्ञानी ब्राह्मण ने उसे समझाया कि गर्भावस्था में माता का स्वास्थ्य शिशु के लिए सर्वोपरि होता है। ऐसे में व्रत रखने से माता और शिशु दोनों को हानि हो सकती है। उन्होंने दमयंती को सलाह दी कि वह व्रत की बजाय प्रतिदिन सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्घ्य दे, ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का एक माला जाप करे, और अपनी यथाशक्ति किसी गरीब या ब्राह्मण को अनाज, फल या वस्त्र दान करे। रानी दमयंती ने ऐसा ही किया और अपने गर्भकाल में पूर्ण स्वस्थ रही। उसके पुत्र ने आगे चलकर एक महान प्रतापी राजा के रूप में ख्याति प्राप्त की। सूर्यदेव ने रानी दमयंती की सच्ची भक्ति और विवेक को समझा और उसे पूर्ण आशीर्वाद प्रदान किया।”
महर्षि देवल ने सुकृति को समझाते हुए कहा, “इसलिए, हे सुकृति! तुम भी अपने वृद्ध शरीर पर अनावश्यक भार मत डालो। सूर्यदेव तो भाव के भूखे हैं, वे तुम्हारे हृदय की पवित्रता देखते हैं, न कि तुम्हारे भूखे रहने की क्षमता को। तुम अब से प्रत्येक रविवार को प्रातः काल स्नान करके सूर्यदेव को श्रद्धापूर्वक जल अर्पित करो। सूर्य चालीसा का पाठ करो अथवा आदित्य हृदय स्तोत्र का श्रवण करो। अपने मन में सूर्यदेव का ध्यान करो और मानसिक रूप से ही उन्हें भोग लगाओ। गरीबों और असहायों की सेवा करो। देखना, सूर्यदेव तुम्हें पहले से भी अधिक आशीर्वाद देंगे, क्योंकि तुमने विवेक के साथ भक्ति का मार्ग चुना है।”
सुकृति के मन से सारा भ्रम दूर हो गया। उसने महर्षि को प्रणाम किया और उनके बताए मार्ग का अनुसरण करने लगी। उसने व्रत तोड़ दिया और एक गिलास दूध पीकर थोड़ी देर आराम किया। उसके बाद उसने अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार सूर्य पूजा की और गरीबों को फल दान किए। उसने अनुभव किया कि उसके मन को जो शांति और आनंद मिला, वह किसी कठोर व्रत से कहीं अधिक था। इस प्रकार, सुकृति ने यह सीखा कि धर्म का सार प्रेम, करुणा और विवेक में निहित है, न कि केवल कठोर नियमों के पालन में।
दोहा
स्वास्थ्य तन का मूल है, मन का शुद्ध विचार।
व्यर्थ देह को मत सता, यही भक्ति का सार।।
चौपाई
जब तन होय विकल अति भारी, व्रत न रखो मन में धरि न्यारी।
सूर्य देव तो दयालु स्वामी, भाव भक्त के हैं अनुगामी।।
आरोग्य तन से सेवा कीजे, मन को निर्मल सदा ही कीजे।
यही धर्म है, यही है ज्ञान, यही प्रभु का पावन वरदान।।
पाठ करने की विधि
जिन लोगों को रविवार का व्रत रखने की सलाह नहीं दी जाती है, वे भी भगवान सूर्यदेव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। व्रत न रखते हुए भी सूर्यदेव की उपासना की कई विधियाँ हैं, जो समान रूप से फलदायी मानी जाती हैं:-
1. **प्रातः स्नान और अर्घ्यदान**: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल लें, उसमें थोड़ा लाल चंदन, अक्षत और लाल पुष्प डालकर सूर्यदेव को ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें। यह क्रिया अत्यंत प्रभावशाली है और शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
2. **मंत्र जाप और ध्यान**: सूर्यदेव के विभिन्न मंत्रों का जाप करें। जैसे ‘ॐ आदित्याय नमः’ या ‘गायत्री मंत्र’ का श्रद्धापूर्वक कम से कम एक माला जाप करें। मन ही मन सूर्यदेव का ध्यान करें।
3. **सूर्य चालीसा या स्तोत्र पाठ**: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना या सुनना अत्यंत शुभ माना जाता है। सूर्य चालीसा का पाठ करने से भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
4. **सात्विक आहार और दान**: व्रत न रखने वाले व्यक्ति रविवार को सात्विक भोजन ग्रहण करें, जिसमें लहसुन-प्याज का सेवन न हो। अपनी सामर्थ्यनुसार गेहूं, गुड़, तांबा, लाल वस्त्र या फल का दान करें। विशेषकर किसी जरूरतमंद, गरीब या ब्राह्मण को दान करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं।
5. **सेवा भाव**: अपने आसपास के बुजुर्गों, बच्चों या बीमार लोगों की सेवा करें। किसी सार्वजनिक स्थान पर स्वच्छता अभियान में भाग लें या वृक्षारोपण करें। निस्वार्थ सेवा भी सच्ची भक्ति का ही एक रूप है।
6. **नकारात्मक विचारों से बचें**: रविवार के दिन मन को शांत रखें। किसी से कटु वचन न बोलें और नकारात्मक विचारों से दूर रहें। मन की शुद्धता ही सबसे बड़ी पूजा है।
पाठ के लाभ
रविवार के दिन सूर्यदेव की उपासना से अनेक लौकिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं, भले ही आप व्रत न रखते हों:-
1. **उत्तम स्वास्थ्य और आरोग्य**: सूर्यदेव आरोग्य के देवता हैं। उनकी उपासना से शारीरिक व्याधियाँ दूर होती हैं, नेत्र ज्योति बढ़ती है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।
2. **मानसिक शांति और सकारात्मकता**: सूर्य देव की आराधना से मन शांत रहता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है। व्यक्ति आत्मविश्वासी और साहसी बनता है।
3. **यश, मान-सम्मान और प्रसिद्धि**: सूर्य ग्रह मान-सम्मान और नेतृत्व का कारक है। इनकी पूजा से व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा मिलती है और वह अपने कार्यक्षेत्र में सफल होता है।
4. **बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि**: सूर्यदेव बुद्धि और विवेक के दाता हैं। उनकी उपासना से व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और ज्ञान का प्रकाश फैलता है।
5. **पारिवारिक सुख और समृद्धि**: सूर्यदेव की कृपा से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, कलह दूर होते हैं और आर्थिक समृद्धि आती है।
6. **पाप मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति**: श्रद्धापूर्वक की गई उपासना से जाने-अनजाने में हुए पापों का नाश होता है और व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति करता है।
7. **आशीर्वाद की प्राप्ति**: सूर्यदेव की सच्ची भक्ति करने वाले को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नियम और सावधानियाँ
रविवार का व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित एक पवित्र कर्म है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे टालना ही बुद्धिमानी है। धर्मशास्त्र हमें विवेक से काम लेने की शिक्षा देते हैं। निम्नलिखित लोगों को रविवार का व्रत नहीं रखना चाहिए या अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए:-
1. **गर्भवती महिलाएँ**: गर्भावस्था में स्त्री के शरीर को अतिरिक्त पोषण और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। व्रत रखने से कमजोरी आ सकती है, जो माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। ऐसे समय में भोजन त्यागने के बजाय पौष्टिक आहार लेना अधिक महत्वपूर्ण है।
2. **वृद्ध व्यक्ति**: वृद्धावस्था में शरीर कमजोर हो जाता है और पाचन शक्ति भी मंद पड़ जाती है। लंबे समय तक भूखे रहना या कठोर नियमों का पालन करना उनके लिए हानिकारक हो सकता है। उन्हें मानसिक जाप और सूर्य को अर्घ्य जैसे सरल उपायों से ही संतुष्ट रहना चाहिए।
3. **छोटे बच्चे**: बच्चों का शरीर विकासशील अवस्था में होता है और उन्हें नियमित अंतराल पर भोजन की आवश्यकता होती है। बच्चों को व्रत रखने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। उन्हें केवल सूर्यदेव के प्रति श्रद्धा सिखाना और सरल पूजा विधियों में शामिल करना पर्याप्त है।
4. **गंभीर रोग से पीड़ित व्यक्ति**: जो लोग किसी गंभीर बीमारी जैसे मधुमेह (डायबिटीज), उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर), हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, कैंसर आदि से पीड़ित हैं, उन्हें व्रत कदापि नहीं रखना चाहिए। इन बीमारियों में नियमित दवा और सही समय पर भोजन आवश्यक होता है। डॉक्टर की सलाह सर्वोपरि है।
5. **जो लोग नियमित दवा का सेवन करते हों**: कई दवाएँ भोजन के साथ या एक निश्चित अंतराल पर लेनी होती हैं। व्रत के दौरान ऐसा संभव नहीं होता, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
6. **शारीरिक रूप से कमजोर या कुपोषित व्यक्ति**: जिन लोगों के शरीर में पहले से ही कमजोरी है, जिन्हें एनीमिया या कुपोषण है, उन्हें व्रत से बचना चाहिए। ऐसे में व्रत रखने से उनकी कमजोरी और बढ़ सकती है।
7. **मानसिक अस्वस्थता से जूझ रहे व्यक्ति**: यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक तनाव, अवसाद या किसी अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है, तो व्रत के कारण होने वाली शारीरिक परेशानी उनकी मानसिक स्थिति को और बिगाड़ सकती है। मानसिक शांति और स्थिरता ऐसे में अधिक महत्वपूर्ण है।
8. **तत्काल शारीरिक श्रम या लंबी यात्रा वाले व्यक्ति**: जो लोग रविवार को अत्यधिक शारीरिक श्रम करने वाले हों या लंबी यात्रा पर हों, उन्हें व्रत से बचना चाहिए क्योंकि ऐसे में शरीर को लगातार ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
इन सभी परिस्थितियों में, व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए और वैकल्पिक पूजा विधियों जैसे अर्घ्यदान, मंत्र जाप, दान और मानसिक उपासना का सहारा लेना चाहिए। भगवान सूर्यदेव भाव के भूखे हैं, और वे हृदय की सच्ची श्रद्धा को ही स्वीकार करते हैं, न कि शरीर को दिए गए अनावश्यक कष्ट को।
निष्कर्ष
रविवार का व्रत सूर्यदेव की भक्ति का एक अनुपम साधन है, जो जीवन में प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा भर देता है। किंतु, सनातन धर्म हमेशा हमें विवेक और संतुलन का पाठ पढ़ाता है। हमारा शरीर एक पवित्र साधन है जिसके माध्यम से हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी करते हैं, अतः इसे स्वस्थ और ऊर्जावान रखना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। जिन लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं, जो गर्भवती हैं, वृद्ध हैं या बच्चे हैं, उन्हें अपनी परिस्थितियों का मूल्यांकन करके ही व्रत का निर्णय लेना चाहिए। भगवान सूर्यदेव कभी भी अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देखना चाहते। वे हमारी सच्ची भावना और निष्ठा को ही देखते हैं। यदि आप व्रत रखने में सक्षम नहीं हैं, तो निराश न हों। आप जल अर्पण करके, मंत्र जाप करके, ध्यान करके, सूर्य चालीसा का पाठ करके और जरूरतमंदों की सेवा करके भी उनकी असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं। याद रखें, सच्ची भक्ति हृदय से प्रवाहित होती है, और जब हम अपने शरीर का सम्मान करते हैं, तो हम वास्तव में ईश्वर का ही सम्मान करते हैं। तो आइए, विवेकपूर्ण तरीके से अपनी भक्ति को जिएँ और सूर्यदेव के दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को आलोकित करें।

