लक्ष्मी माता के 108 नाम और महत्व
**प्रस्तावना**
सनातन धर्म में धन, समृद्धि, ऐश्वर्य और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी माँ लक्ष्मी को अत्यंत पूजनीय माना जाता है। उनके आशीष के बिना जीवन में पूर्णता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। माँ लक्ष्मी केवल भौतिक धन की देवी नहीं हैं, अपितु वे आध्यात्मिक धन, ज्ञान, शांति और संतोष की भी प्रदाता हैं। उनके अनेक रूप और नाम हैं, जिनमें से प्रत्येक नाम उनकी दिव्यता और शक्ति के किसी न किसी पहलू को उजागर करता है। इन नामों का स्मरण, जप और ध्यान अनंत पुण्यों की प्राप्ति करवाता है। यह ब्लॉग माँ लक्ष्मी के 108 पावन नामों और उनके गहन महत्व को समर्पित है। आइए, इन नामों के रहस्य को जानें और उनके दिव्य आशीष से अपने जीवन को आलोकित करें।
**पावन कथा**
प्राचीन काल की बात है, एक अति निर्धन ब्राह्मण था जिसका नाम धर्मदास था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था, किंतु उसके घर में दरिद्रता का साम्राज्य था। उसकी पत्नी और बच्चे भूख से व्याकुल रहते थे। धर्मदास को अपनी इस दशा से कोई शिकायत न थी, वह ईश्वर की इच्छा मानकर सब सहता था, पर अपने परिवार का कष्ट देखकर उसका हृदय द्रवित हो जाता था। एक दिन वह अत्यंत दुखी होकर वन में चला गया और सोचने लगा कि कैसे अपने परिवार को इस दुःख से उबारूँ।
वन में चलते-चलते वह एक प्राचीन आश्रम के पास पहुँचा, जहाँ महर्षि भृगु तपस्या कर रहे थे। धर्मदास ने महर्षि को प्रणाम किया और अपनी व्यथा सुनाई। महर्षि भृगु उसकी सरल भक्ति और करुणा से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, “हे वत्स, तुम धन की देवी माँ लक्ष्मी की आराधना करो। वे अत्यंत दयालु हैं और अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होती हैं।”
धर्मदास ने हाथ जोड़कर पूछा, “हे मुनिवर, मैं निर्धन और अज्ञानी हूँ। मैं कैसे माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कर सकता हूँ? मुझे उनके स्वरूप का भी पूर्ण ज्ञान नहीं है।”
महर्षि ने मुस्कराते हुए कहा, “माँ लक्ष्मी के अनेक नाम हैं, और प्रत्येक नाम में उनकी संपूर्ण शक्ति समाहित है। जो भक्त श्रद्धापूर्वक उनके 108 नामों का जप करता है, माँ उस पर अवश्य कृपा करती हैं। मैं तुम्हें माँ लक्ष्मी के 108 पावन नाम और उनके जप की विधि बताता हूँ।”
महर्षि भृगु ने धर्मदास को माँ लक्ष्मी के 108 नामों का रहस्य समझाया। उन्होंने बताया कि ये नाम केवल शब्द नहीं, अपितु माँ के विभिन्न रूपों, शक्तियों और गुणों का सार हैं। ‘पद्मा’, ‘कमला’, ‘श्री’, ‘कमलार्चिता’, ‘लोकमाता’, ‘हरिवल्लभा’, ‘क्षीरसागरसंभवा’, ‘सौम्या’, ‘हिरण्मयी’, ‘ईश्वरी’, ‘वरारोहा’, ‘हरिणी’, ‘हेमामालिनी’, ‘धनधान्यकरी’, ‘सिद्धि’, ‘बुद्धि’, ‘मोक्षलक्ष्मी’, ‘राजराजेश्वरी’, ‘सुरेशी’, ‘रत्नागर्भा’, ‘शुभप्रदा’, ‘अमितप्रिया’, ‘अनंता’, ‘अदिति’, ‘वरुणासना’, ‘सत्यभाषिनी’, ‘विजया’, ‘विभूति’, ‘कान्ता’, ‘कल्याणी’, ‘कमनीयता’, ‘सरस्वती’, ‘सरोजा’, ‘विद्या’, ‘विभावरी’, ‘शांति’, ‘शुभा’, ‘पुष्टि’, ‘धृति’, ‘प्रभा’, ‘क्षमा’, ‘मांगल्या’, ‘मनोहारिणी’, ‘पद्मनेमि’, ‘पद्मिनी’, ‘पुण्यगन्धा’, ‘पद्ममालिनी’, ‘सुवर्णा’, ‘सुप्रसन्ना’, ‘सुरेन्द्रा’, ‘श्रीमहादेवी’, ‘पद्माक्षी’, ‘मृणालिनी’, ‘चंद्रा’, ‘माधवी’, ‘महालक्ष्मी’, ‘अनघा’, ‘मधुरा’, ‘हरिप्रिया’, ‘देवश्री’, ‘प्रियम्वदा’, ‘आनंदिनी’, ‘वसुधा’, ‘वसुमती’, ‘पद्मसुंदरी’, ‘कमलावती’, ‘शुद्धा’, ‘मुक्ता’, ‘महामाया’, ‘मोहिनी’, ‘सुरूपिणी’, ‘सत्य’, ‘सिद्धा’, ‘वरदा’, ‘पद्मकल्पलता’, ‘पद्मासना’, ‘चन्द्रवदना’, ‘चंद्राभा’, ‘सूर्याभा’, ‘चन्द्रिका’, ‘चन्द्रमा’, ‘धनश्री’, ‘हिरण्यमयी’, ‘सुरेश्वरी’, ‘सुरवन्द्या’, ‘सुरनंदिनी’, ‘सुभद्रा’, ‘शोभना’, ‘कमलेश्वरी’, ‘अनन्तशायिनी’, ‘वसुन्धरा’, ‘क्षीरोद’, ‘क्षीराब्धितनया’, ‘शुभलक्ष्मी’, ‘अष्टलक्ष्मी’, ‘धनलक्ष्मी’, ‘वीरलक्ष्मी’, ‘राज्यलक्ष्मी’, ‘गृहलक्ष्मी’, ‘भोगलक्ष्मी’, ‘आरोग्यलक्ष्मी’, ‘विद्यालक्ष्मी’, ‘जयलक्ष्मी’, ‘कामदा’, ‘पद्मालय’, ‘शंखिनी’, ‘चक्रिणी’, ‘विष्णुप्रिया’, ‘नारसिंही’, ‘महालक्ष्मी’।
महर्षि ने धर्मदास को बताया कि इन नामों में प्रत्येक अक्षर ऊर्जा का स्रोत है। उन्होंने उसे विधिपूर्वक इन नामों का प्रतिदिन जप करने का निर्देश दिया। धर्मदास ने महर्षि के चरणों में श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और संकल्प लिया कि वह पूरी निष्ठा से माँ लक्ष्मी की आराधना करेगा।
धर्मदास वापस अपने घर आया। उसने एक स्वच्छ स्थान पर माँ लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया। प्रतिदिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर, पूर्ण एकाग्रता और भक्तिभाव से वह माँ लक्ष्मी के 108 नामों का जप करने लगा। पहले कुछ दिन तो उसे लगा कि कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है, पर उसने धैर्य नहीं खोया। उसकी श्रद्धा और भक्ति दिनोंदिन बढ़ती गई।
कुछ महीनों बाद, धर्मदास के जीवन में अद्भुत परिवर्तन आने लगे। उसे अचानक एक पुराने मित्र से भेंट हुई, जिसने उसे व्यापार में साझेदारी का प्रस्ताव दिया। धर्मदास ने अपनी ईमानदारी और कठोर परिश्रम से उस व्यापार को खूब बढ़ाया। धीरे-धीरे उसकी दरिद्रता दूर होती गई और उसके घर में धन-धान्य का आगमन होने लगा। उसके बच्चे प्रसन्न रहने लगे और उसकी पत्नी के मुख पर भी संतोष की मुस्कान छा गई।
धर्मदास ने कभी अपने अहंकार को नहीं बढ़ने दिया। वह जानता था कि यह सब माँ लक्ष्मी के नामों के जप का ही फल है। उसने अपनी कमाई का एक हिस्सा दान-धर्म में लगाना शुरू किया और गरीबों की सहायता करने लगा। उसके जीवन में न केवल धन आया, बल्कि शांति, संतोष और आध्यात्मिक उन्नति भी हुई। वह एक धनवान व्यक्ति बन गया, लेकिन उससे भी बढ़कर वह एक ज्ञानी और परोपकारी आत्मा बन गया।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि माँ लक्ष्मी के नाम केवल शब्द नहीं, अपितु दिव्यता, शक्ति और समृद्धि के अक्षय स्रोत हैं। जो भी भक्त सच्चे हृदय से इन नामों का स्मरण करता है, माँ लक्ष्मी उसे कभी निराश नहीं करतीं और उसके जीवन को हर प्रकार से समृद्ध कर देती हैं।
**दोहा**
श्री लक्ष्मी के नाम हैं, मंगलकारी धाम।
जो सुमिरत नित भाव से, पूरन हो सब काम।।
**चौपाई**
जय जय जय माँ लक्ष्मी रानी, धन समृद्धि की तुम कल्याणी।
पद्मवासिनी कमला स्वरूपा, शोभा अति अनुपम रूपा।
अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता, भवसागर से तारन माता।
जो ध्यावे सो सब सुख पावे, लक्ष्मी चालीसा नित गुण गावे।।
**पाठ करने की विधि**
माँ लक्ष्मी के 108 नामों का पाठ करने के लिए कुछ विशेष नियमों और विधियों का पालन करना चाहिए ताकि पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके।
सर्वप्रथम, प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें जहाँ आप एकाग्रचित्त होकर बैठ सकें।
एक चौकी या पटरी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
माँ को लाल पुष्प, रोली, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
संकल्प लें कि आप माँ लक्ष्मी के 108 नामों का पाठ अपनी मनोकामना पूर्ति और कल्याण के लिए कर रहे हैं।
पाठ शुरू करने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनसे निर्विघ्न पाठ पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
अब शांत मन और पूरी श्रद्धा के साथ एक-एक करके माँ लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें। आप चाहें तो इन नामों की माला का उपयोग भी कर सकते हैं, जिससे आपकी एकाग्रता बनी रहेगी।
प्रत्येक नाम के अंत में ‘नमः’ या ‘स्वाहा’ का उच्चारण कर सकते हैं, जैसे ‘ॐ पद्मायायै नमः’ या ‘ॐ कमलार्चितायै स्वाहा’।
पाठ के दौरान मन में कोई कुविचार न लाएं और पूर्ण रूप से माँ के चरणों में समर्पित रहें।
पाठ समाप्त होने पर माँ लक्ष्मी से अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
**पाठ के लाभ**
माँ लक्ष्मी के 108 नामों का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से भक्त को अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं:
आर्थिक समृद्धि: यह पाठ दरिद्रता का नाश करता है और धन-धान्य में वृद्धि करता है, जिससे जीवन में आर्थिक स्थिरता आती है।
व्यापार में उन्नति: व्यापार और नौकरी में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और उन्नति के नए मार्ग खुलते हैं।
सौभाग्य और ऐश्वर्य: माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होने से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।
मानसिक शांति: इन नामों के जप से मन शांत होता है, चिंताएं दूर होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
गृह क्लेश से मुक्ति: परिवार में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है, गृह क्लेश दूर होते हैं और सुख-शांति का वातावरण बनता है।
स्वास्थ्य लाभ: रोगों से मुक्ति मिलती है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है, जिससे व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी रहता है।
ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति: माँ लक्ष्मी को ज्ञान और बुद्धि की देवी भी माना जाता है। उनके नाम के जप से विवेक और बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है।
आध्यात्मिक उन्नति: यह पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करता है और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
सभी मनोकामनाओं की पूर्ति: सच्ची श्रद्धा और विश्वास से किया गया यह पाठ भक्त की सभी सात्विक मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश: घर और आसपास से नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं और सकारात्मकता का संचार होता है।
**नियम और सावधानियाँ**
माँ लक्ष्मी के 108 नामों का पाठ करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है:
पवित्रता: पाठ करने से पहले तन और मन दोनों से पवित्र होना आवश्यक है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
स्थान की शुद्धि: जिस स्थान पर पाठ कर रहे हों, वह साफ-सुथरा और पवित्र होना चाहिए।
आसन: भूमि पर सीधे न बैठकर कुशा या ऊनी आसन पर बैठकर पाठ करें।
एकाग्रता: पाठ करते समय मन को भटकने न दें। पूरी एकाग्रता और भक्तिभाव से उच्चारण करें।
उच्चारण की शुद्धता: नामों का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध होना चाहिए। गलत उच्चारण से बचें।
नियमितता: पाठ प्रतिदिन या निश्चित दिनों पर ही करें। नियमितता से अधिक लाभ मिलता है।
मांसाहार और मदिरा पान: पाठ के दिनों में मांसाहार और मदिरा पान का सेवन बिल्कुल न करें।
क्रोध और लोभ से बचें: पाठ के दौरान या उसके आसपास के समय में क्रोध, लोभ, ईर्ष्या आदि नकारात्मक भावों से दूर रहें।
अहंकार का त्याग: अपने अंदर किसी भी प्रकार का अहंकार न आने दें। विनम्रता और समर्पण भाव से पाठ करें।
स्त्रियों के लिए नियम: मासिक धर्म के दौरान स्त्रियां पाठ करने से बचें या मानसिक जप करें।
आराधना में विश्वास: माँ लक्ष्मी के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें। बिना विश्वास के किया गया पाठ फलदायी नहीं होगा।
**निष्कर्ष**
माँ लक्ष्मी के 108 नाम केवल शब्द नहीं, अपितु ब्रह्मांड की दिव्य ऊर्जा के प्रतिरूप हैं। ये नाम उनके विभिन्न गुणों, शक्तियों और रूपों को दर्शाते हैं। जो भक्त इन पावन नामों का श्रद्धा और भक्तिभाव से जप करता है, उसके जीवन में न केवल भौतिक समृद्धि आती है, अपितु मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और संतोष का भी आगमन होता है। यह एक ऐसा सरल और शक्तिशाली मार्ग है जिसके द्वारा हम माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं। आइए, हम सभी माँ लक्ष्मी के इन दिव्य नामों का स्मरण करें और उनके अनंत आशीष से अपने जीवन को प्रकाशित करें। माँ लक्ष्मी की जय हो!

