महामृत्युंजय मंत्र के लाभ और जाप विधि
**प्रस्तावना**
सनातन धर्म में ऐसे अनेक मंत्र हैं जो अद्भुत शक्ति और सामर्थ्य से परिपूर्ण हैं, परंतु महामृत्युंजय मंत्र का स्थान उनमें सर्वोच्च है। यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें मृत्युंजय भी कहा जाता है – अर्थात् मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले। वेदों, पुराणों और शास्त्रों में इस मंत्र की महिमा का गुणगान अनेक स्थानों पर किया गया है। यह केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा का स्रोत है जो साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है। इस मंत्र का शुद्ध उच्चारण और विधिपूर्वक जाप करने से व्यक्ति न केवल अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है, बल्कि उसे दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और जीवन में शांति की प्राप्ति भी होती है। यह मंत्र रोग, शोक और भय का नाश कर जीवन को नवजीवन प्रदान करने की क्षमता रखता है। आइए, आज हम इस पावन महामृत्युंजय मंत्र के गहरे अर्थ, इसके अद्भुत लाभ और इसे जपने की सही विधि को विस्तार से समझते हैं, ताकि हर सनातनी इस दिव्य ऊर्जा से लाभान्वित हो सके।
**पावन कथा**
मार्कण्डेय ऋषि की कथा महामृत्युंजय मंत्र के अद्भुत प्रभाव का साक्षात् प्रमाण है। प्राचीन काल में मृकंडु ऋषि और उनकी पत्नी मरुद्मती ने कठोर तपस्या की, ताकि उन्हें संतान सुख प्राप्त हो। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। मृकंडु ऋषि ने एक ऐसा पुत्र मांगा जो तेजस्वी, ज्ञानी और धर्मात्मा हो। भगवान शिव ने उनसे कहा कि उन्हें दो विकल्प हैं – या तो एक ऐसा पुत्र जो दीर्घायु हो पर मूर्ख और अवगुणी हो, या फिर एक ऐसा पुत्र जो अल्पायु हो (मात्र सोलह वर्ष) पर अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान और श्रेष्ठ गुणों से युक्त हो। ऋषि दम्पति ने दूसरा विकल्प चुना, क्योंकि उन्हें अल्पायु में भी एक गुणी पुत्र की अभिलाषा थी। इस प्रकार, उनके यहाँ मार्कण्डेय नाम के एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ।
मार्कण्डेय बाल्यावस्था से ही अत्यंत बुद्धिमान और धर्मपरायण थे। उन्होंने अल्पकाल में ही सभी वेदों, शास्त्रों और पुराणों का ज्ञान प्राप्त कर लिया। जब वे बड़े हुए, तो उनके माता-पिता को उनके अल्पायु होने की चिंता सताने लगी। मार्कण्डेय ने जब अपनी माँ को दुखी देखा, तो कारण पूछा। माता-पिता ने भारी मन से उन्हें उनके अल्पायु होने की बात बताई कि उनकी आयु केवल सोलह वर्ष ही शेष है। यह सुनकर मार्कण्डेय विचलित नहीं हुए, बल्कि उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि वे भगवान शिव की तपस्या कर अपनी नियति को बदलेंगे।
सोलहवें वर्ष के आगमन पर, मार्कण्डेय ने अपना सारा ध्यान भगवान शिव की आराधना में लगा दिया। वे शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग के समक्ष बैठ गए और अविचल भाव से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे। उनका हृदय पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से परिपूर्ण था। दिन-रात वे केवल ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥’ मंत्र का ही जाप करते रहे। उनके जाप की शक्ति से समस्त ब्रह्मांड में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होने लगा।
जब उनके सोलह वर्ष पूरे होने वाले थे, यमराज स्वयं अपने दूतों के साथ मार्कण्डेय के प्राण हरने के लिए आए। उन्होंने देखा कि मार्कण्डेय एक गहरी समाधि में लीन हैं और शिवलिंग से लिपटे हुए पूरी एकाग्रता के साथ महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे हैं। यमदूतों की हिम्मत नहीं हुई कि वे मार्कण्डेय को छू सकें, क्योंकि उनके चारों ओर मंत्र की एक दिव्य सुरक्षा कवच बना हुआ था। यमराज ने स्वयं आगे बढ़कर मार्कण्डेय को उनके जाप से विचलित करने का प्रयास किया, परंतु मार्कण्डेय ने अपनी एकाग्रता भंग नहीं की।
यमराज ने जब देखा कि मार्कण्डेय शिवलिंग को पकड़े हुए हैं और वे उन्हें शिवलिंग से अलग नहीं कर सकते, तो उन्होंने अपना पाश फेंका। वह पाश न केवल मार्कण्डेय को बल्कि स्वयं शिवलिंग को भी अपनी चपेट में लेने लगा। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे। जहाँ उनके परम भक्त की रक्षा हो रही थी, वहाँ उनके ही स्वरूप शिवलिंग पर प्रहार किया जा रहा था। अपनी प्रिय प्रतिमा और भक्त पर हुए इस अवांछित प्रहार से शिव का तीसरा नेत्र खुल गया।
अचानक शिवलिंग से एक प्रचण्ड प्रकाश निकला और स्वयं भगवान शिव मृत्युंजय स्वरूप में प्रकट हुए। उनके नेत्रों से अग्नि प्रज्ज्वलित हो रही थी। उन्होंने अत्यंत रौद्र रूप में यमराज को चेतावनी दी। भगवान शिव ने यमराज को उनके कार्य के लिए फटकार लगाई और कहा, “तुमने मेरे परम भक्त के साथ-साथ स्वयं मुझे भी अपने पाश में बांधने का दुस्साहस किया है। मेरा भक्त मार्कण्डेय मेरे महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहा था, और जो मेरा जाप करता है, मृत्यु उस पर कोई अधिकार नहीं रखती।”
भगवान शिव ने यमराज से कहा कि मार्कण्डेय को मृत्यु का भय नहीं है, क्योंकि वे मेरे भक्त हैं और उन्होंने अपनी भक्ति तथा इस महामंत्र के प्रभाव से मृत्यु को जीत लिया है। उन्होंने यमराज को मार्कण्डेय के प्राण लौटाने का आदेश दिया और साथ ही यह भी घोषणा की कि मेरा यह भक्त अब चिरंजीवी होगा, अर्थात उसकी मृत्यु कभी नहीं होगी।
यमराज ने भगवान शिव के आदेश को स्वीकार किया और मार्कण्डेय के प्राण त्याग दिए। मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया और इस प्रकार वे मृत्यु को पराजित करने वाले महामृत्युंजय कहलाए। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा, अटूट भक्ति और महामृत्युंजय मंत्र का शुद्ध उच्चारण किसी भी संकट को टाल सकता है, यहाँ तक कि मृत्यु को भी पराजित कर सकता है। यह मंत्र न केवल दीर्घायु प्रदान करता है, बल्कि समस्त कष्टों और भयों से मुक्ति दिलाकर जीवन में अमृत तुल्य शांति और सुरक्षा भी प्रदान करता है। मार्कण्डेय की कथा हमें यह विश्वास दिलाती है कि शिवकृपा से असाध्य भी साध्य हो जाता है।
**दोहा**
मृत्युंजय शिव नाम जप, हरे सकल भव रोग।
आयु, आरोग्य देत हैं, देहि शुभ संयोग॥
**चौपाई**
जयति शिव शंकर अविनाशी, देवों के देव सुखराशी।
त्रयंबक, त्रिनेत्र गुणधारी, संकटहर्ता, भयहारी॥
सुगंधित पुष्प सम शिव प्यारे, पुष्टि बढ़ावत सब संसारे।
मृत्यु पाश बंधन से तारो, अमृतत्व प्रदान करो, हे पारो॥
**पाठ करने की विधि**
महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत पवित्रता और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए। यहाँ इसकी विस्तृत विधि प्रस्तुत है:
1. **पवित्रता और स्थान:** सर्वप्रथम स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। जाप के लिए शांत और पवित्र स्थान का चुनाव करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
2. **आसन:** कुशा या ऊन का आसन बिछाकर उस पर बैठें। लकड़ी के पटरे पर बैठना भी शुभ माना जाता है।
3. **संकल्प:** जाप आरंभ करने से पहले भगवान शिव का ध्यान करते हुए अपने उद्देश्य के लिए संकल्प लें कि आप कितने मंत्रों का जाप करेंगे और किस मनोकामना पूर्ति हेतु करेंगे। जल हाथ में लेकर संकल्प करें और फिर जल भूमि पर छोड़ दें।
4. **माला:** जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। यह माला भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और जाप को अधिक फलदायी बनाती है।
5. **ध्यान:** भगवान शिव के मृत्युंजय स्वरूप का ध्यान करें। कल्पना करें कि शिव आपके समक्ष विराजमान हैं और आपको अमृत प्रदान कर रहे हैं। उनके मस्तक पर चंद्रमा, गले में सर्प और हाथ में त्रिशूल-डमरू का ध्यान करें।
6. **मंत्र उच्चारण:** मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध होना चाहिए। ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥’ इस मंत्र का धीमी गति से, बिना जल्दबाजी किए, प्रत्येक शब्द पर ध्यान केंद्रित करते हुए जाप करें।
7. **जाप संख्या:** सामान्यतः एक माला (108 मनके) का जाप किया जाता है। विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सवा लाख (125,000) मंत्रों का जाप अनुष्ठान के रूप में किया जाता है। यदि आप सवा लाख जाप कर रहे हैं, तो इसे एक निश्चित समय सीमा (जैसे 40 दिन) में पूर्ण करने का प्रयास करें।
8. **समय:** प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (सूर्य उदय से डेढ़ घंटा पहले) या प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) जाप के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
9. **अखंड दीपक:** यदि संभव हो, तो जाप के दौरान एक घी का दीपक अखंड प्रज्वलित रखें।
10. **भोग और आरती:** जाप पूर्ण होने के बाद भगवान शिव को जल, बिल्व पत्र, धतूरा, दूध, फल आदि का भोग लगाएं और आरती करें।
11. **क्षमा याचना:** अंत में हुई त्रुटियों के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना अवश्य करें।
**पाठ के लाभ**
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से साधक को अनेक लौकिक और पारलौकिक लाभ प्राप्त होते हैं, जिनका वर्णन यहाँ किया गया है:
1. **अकाल मृत्यु से रक्षा:** यह मंत्र सबसे प्रमुख रूप से अकाल मृत्यु के भय को दूर करता है और जातक को दीर्घायु प्रदान करता है। यह किसी भी प्रकार के प्राणघातक संकट से रक्षा करता है।
2. **रोगों से मुक्ति:** गंभीर और असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह मंत्र संजीवनी बूटी के समान है। इसके जाप से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और स्वास्थ्य लाभ होता है।
3. **मानसिक शांति:** जीवन में व्याप्त तनाव, चिंता, भय और अवसाद को दूर कर यह मंत्र मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
4. **नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा:** यह मंत्र एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच का निर्माण करता है, जो सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं, टोने-टोटके और बुरी शक्तियों से बचाता है।
5. **पुष्टि और वृद्धि:** ‘पुष्टिवर्धनम्’ शब्द के अनुसार, यह मंत्र जीवन में वृद्धि, पोषण और संपन्नता लाता है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर शक्ति प्रदान करता है।
6. **ग्रह दोष निवारण:** ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह मंत्र कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के प्रभावों को कम करने और उनके नकारात्मक परिणामों को दूर करने में सहायक है।
7. **मोक्ष की प्राप्ति:** यह मंत्र साधक को न केवल लौकिक सुख प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्राप्ति में भी सहायक होता है।
8. **धन और समृद्धि:** जिन घरों में नियमित रूप से इस मंत्र का जाप होता है, वहाँ धन-धान्य की कमी नहीं होती और सुख-समृद्धि का वास होता है।
9. **संतान प्राप्ति:** संतानहीन दंपतियों द्वारा श्रद्धापूर्वक किया गया जाप संतान प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।
10. **भय मुक्ति:** किसी भी प्रकार के भय, चाहे वह मृत्यु का हो, रोग का हो, या किसी अनिष्ट का, यह मंत्र उसे दूर कर आत्मविश्वास प्रदान करता है।
**नियम और सावधानियाँ**
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि इसके पूर्ण फल प्राप्त हो सकें:
1. **पवित्रता:** शारीरिक और मानसिक पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। जाप के स्थान को भी स्वच्छ और पवित्र बनाए रखें।
2. **श्रद्धा और विश्वास:** मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा और भगवान शिव पर अटूट विश्वास होना अत्यंत आवश्यक है। बिना विश्वास के किया गया जाप निष्फल हो सकता है।
3. **उच्चारण की शुद्धता:** मंत्र का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए। गलत उच्चारण से मंत्र का प्रभाव कम हो सकता है। यदि स्वयं उच्चारण में कठिनाई हो, तो किसी योग्य गुरु या ब्राह्मण से दीक्षा लें या उनका मार्गदर्शन प्राप्त करें।
4. **एकाग्रता:** जाप करते समय मन को एकाग्र रखें और किसी भी प्रकार के व्यर्थ विचारों से बचें। मन को केवल मंत्र और भगवान शिव के ध्यान में लगाएं।
5. **सात्विक आहार:** जाप अनुष्ठान के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करें। मांसाहार, तामसिक भोजन और नशीले पदार्थों का सेवन पूर्णतः वर्जित है।
6. **ब्रह्मचर्य:** यदि आप किसी विशेष अनुष्ठान के तहत बड़े पैमाने पर जाप कर रहे हैं, तो ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
7. **नियमितता:** जाप को नियमित रूप से, प्रतिदिन एक निश्चित समय पर करने का प्रयास करें। अनियमितता से मंत्र की शक्ति क्षीण होती है।
8. **अभिषेक:** यदि संभव हो, तो प्रतिदिन शिवलिंग पर जल, दूध आदि से अभिषेक करते हुए मंत्र का जाप करें। इससे शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
9. **दिशा:** जाप करते समय अपना मुख सदैव पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
10. **जप संख्या में कमी न करें:** एक बार जितना जाप करने का संकल्प लिया है, उसे पूरा अवश्य करें। बीच में जाप छोड़ना या संख्या कम करना अशुभ माना जाता है।
11. **गुरु का मार्गदर्शन:** यदि आप पहली बार जाप कर रहे हैं या किसी विशेष मनोकामना के लिए अनुष्ठान कर रहे हैं, तो किसी ज्ञानी गुरु या पंडित से उचित मार्गदर्शन अवश्य लें।
**निष्कर्ष**
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का वह दिव्य वरदान है जो हमारे जीवन को भयमुक्त, स्वस्थ और समृद्ध बनाने की शक्ति रखता है। यह केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि जीवन की सभी बाधाओं से पार पाने का एक मार्ग है, आत्मा को शुद्ध करने का एक माध्यम है और परमपिता शिव से सीधा जुड़ने का एक सेतु है। मार्कण्डेय ऋषि की कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और इस महामंत्र के प्रभाव से असंभव भी संभव हो सकता है। जब हम पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से इस मंत्र का जाप करते हैं, तो भगवान शिव स्वयं हमारी रक्षा करते हैं और हमें दीर्घायु, आरोग्य तथा अंत में मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। तो आइए, आज से ही इस पावन मंत्र को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं और भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य करें। ॐ नमः शिवाय।

