भगवान श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिए गए गीता के अनमोल वचन हमारे जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर आइए जानते हैं उन दिव्य उपदेशों को जो हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं और हर चुनौती का सामना करने का सामर्थ्य प्रदान करते हैं। यह लेख सनातन धर्म के इस महान ग्रंथ के सार को आपके समक्ष प्रस्तुत करता है, ताकि आप भी आत्मज्ञान और शांति की राह पर अग्रसर हो सकें।

भगवान श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिए गए गीता के अनमोल वचन हमारे जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर आइए जानते हैं उन दिव्य उपदेशों को जो हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं और हर चुनौती का सामना करने का सामर्थ्य प्रदान करते हैं। यह लेख सनातन धर्म के इस महान ग्रंथ के सार को आपके समक्ष प्रस्तुत करता है, ताकि आप भी आत्मज्ञान और शांति की राह पर अग्रसर हो सकें।

गीता के अनमोल वचन

प्रस्तावना
मानव जीवन एक निरंतर चलने वाली यात्रा है, जिसमें सुख-दुःख, आशा-निराशा और अनिश्चितताएँ पग-पग पर आती हैं। ऐसे समय में जब मन विचलित हो, बुद्धि भ्रमित हो और दिशाहीनता का अंधकार घेर ले, तब हमें एक ऐसे दिव्य प्रकाश की आवश्यकता होती है जो हमें सही मार्ग दिखाए। सनातन धर्म का अनुपम ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता वही शाश्वत प्रकाशपुंज है, जिसके अनमोल वचन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में थे। भगवान श्री कृष्ण ने युद्धभूमि में अपने परम शिष्य अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह केवल अर्जुन के लिए नहीं, अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए जीवन जीने की कला, कर्तव्य-निष्ठा और आत्म-साक्षात्कार का परम संदेश है। विशेषकर जन्माष्टमी के पावन पर्व पर, जब हम भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का उल्लास मनाते हैं, तब उनके द्वारा दिए गए इन दिव्य उपदेशों को स्मरण करना और अपने जीवन में उतारना हमारे लिए अत्यंत कल्याणकारी होता है। यह गीता का ज्ञान ही है जो हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने का साहस, शांति और आत्मबल प्रदान करता है। आइए, इस आध्यात्मिक यात्रा में हम गीता के उन अनमोल वचनों को जानें जो हमें एक नई दिशा और जीवन का वास्तविक अर्थ प्रदान करते हैं।

पावन कथा
यह कथा उस समय की है जब धर्म और अधर्म के बीच अंतिम निर्णायक युद्ध, महाभारत, कुरुक्षेत्र के विशाल मैदान में अपने चरम पर पहुँचने वाला था। दोनों ओर से लाखों योद्धा रणभूमि में एकत्रित थे, जिनके हृदय में अपने-अपने लक्ष्य को साधने की तीव्र इच्छा थी। पांडवों की सेना का नेतृत्व करने वाला महान धनुर्धर अर्जुन, भगवान श्री कृष्ण को अपना सारथी बनाकर रथ पर विराजमान था। युद्ध आरंभ होने से ठीक पहले, अर्जुन ने अपने सारथी, भगवान श्री कृष्ण से आग्रह किया कि वे उसके रथ को दोनों सेनाओं के मध्य ले जाकर खड़ा करें ताकि वह यह देख सके कि उसे किन-किन योद्धाओं से युद्ध करना है।

भगवान कृष्ण ने अर्जुन की इच्छा पूरी की और रथ को दोनों सेनाओं के ठीक बीच में खड़ा कर दिया। अर्जुन ने जब अपने समक्ष खड़े योद्धाओं को देखा तो उसका हृदय विचलित हो उठा। सामने पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अपने भाई, बंधु, मामा और अनगिनत ऐसे संबंधी थे जिनके साथ उसका बचपन बीता था, जिनसे उसे प्रेम था। इन सबको युद्धभूमि में अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखकर अर्जुन का मन करुणा, मोह और विषाद से भर गया। उसका गांडीव हाथ से छूटने लगा, शरीर में कंपन होने लगी, और मन में युद्ध से विमुख होने का विचार प्रबल हो उठा। वह सोचने लगा कि ऐसे युद्ध से क्या लाभ, जिसमें अपने ही कुल का नाश हो, अपने ही बंधु-बांधवों का रक्त बहे? उसने भगवान कृष्ण से कहा कि वह राज्य, सुख और जीवन की इच्छा नहीं रखता, यदि इन सबको प्राप्त करने के लिए उसे अपने प्रियजनों का वध करना पड़े। वह युद्ध नहीं करेगा, शस्त्र डाल देगा और भिक्षा माँगकर जीवन व्यतीत कर लेगा, किंतु इस पाप में भागी नहीं बनेगा।

अर्जुन की इस विचलित अवस्था को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उसे उपदेश देना आरंभ किया। यह उपदेश कोई साधारण कथन नहीं था, अपितु स्वयं परब्रह्म परमात्मा का मानव कल्याण के लिए दिया गया साक्षात् ज्ञान था। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि यह क्षण उसके मोह में डूबने का नहीं, अपितु अपने कर्तव्य का पालन करने का है। उन्होंने आत्मा की अमरता का रहस्य उजागर किया, बताया कि आत्मा अजर-अमर है, इसे कोई शस्त्र काट नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती, जल भिगो नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती। यह केवल शरीर धारण करती है और शरीर के नष्ट होने पर नया शरीर धारण कर लेती है, ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है। अतः किसी के शरीर के नष्ट होने पर शोक करना व्यर्थ है, क्योंकि आत्मा का कभी नाश नहीं होता।

कृष्ण ने अर्जुन को उसके क्षत्रिय धर्म का स्मरण कराया और निष्काम कर्म योग का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल पर नहीं। फल की चिंता किए बिना अपना कर्तव्य निभाना ही वास्तविक धर्म है। यदि तुम फल की आसक्ति छोड़कर कर्म करते हो, तो तुम्हें न तो पाप लगता है और न ही तुम मोह के बंधन में फँसते हो। उन्होंने ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग के माध्यम से जीवन के परम सत्य को समझाया। ज्ञान योग में आत्मज्ञान की प्राप्ति पर बल दिया गया, भक्ति योग में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम और शरणागति को मोक्ष का मार्ग बताया, और कर्म योग में फल की इच्छा त्यागकर कर्तव्य करने को श्रेष्ठ मार्ग बताया।

भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप भी दिखाया, जिसमें अर्जुन ने संपूर्ण ब्रह्मांड को कृष्ण के भीतर समाया हुआ देखा। इस दिव्य दर्शन ने अर्जुन के सारे संशयों को दूर कर दिया और उसे यह ज्ञात हो गया कि उसके समक्ष खड़े सारथी कोई साधारण मनुष्य नहीं, अपितु स्वयं परमेश्वर हैं। इस गहन उपदेश के माध्यम से कृष्ण ने अर्जुन के मन से मोह, भय और संशय को दूर कर उसे धर्म युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। अर्जुन ने अंततः अपने सभी संशयों को त्यागकर भगवान कृष्ण के आदेश का पालन किया और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध लड़ा। यह दिव्य संवाद, जिसे हम श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जानते हैं, न केवल एक युद्ध का आधार बना, अपितु युगों-युगों तक मानव जाति को जीवन के सही पथ पर चलने की प्रेरणा देता रहा। यह हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी विकट परिस्थितियाँ क्यों न हों, हमें अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए और सदैव धर्म, सत्य तथा निष्काम कर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।

दोहा
गीता ज्ञान प्रकाश है, हरे मोह अज्ञान।
कृष्ण कृपा से प्राप्त हो, जीवन का कल्याण।।

चौपाई
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में, हुआ जब घोर संग्राम।
पार्थ विमोह में डूब गए, तब कृष्ण बने विश्राम।।
कर्तव्य पथ दिखलाया प्रभु ने, निष्काम कर्म की राह बताई।
आत्मज्ञान का दिया प्रकाश, जीवन मुक्ति की आस जगाई।।

पाठ करने की विधि
श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करना केवल शब्दों को पढ़ना नहीं, अपितु भगवान के दिव्य उपदेशों को हृदय में उतारना है। इसके लिए कुछ सरल विधियाँ और भावनाएँ आवश्यक हैं:
1. पवित्रता: पाठ करने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन को शांत और पवित्र रखें।
2. स्थान: एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें, जहाँ कोई व्यवधान न हो। आप अपने पूजा स्थल पर बैठकर भी पाठ कर सकते हैं।
3. समय: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह) या संध्या काल (शाम) पाठ के लिए उत्तम माने जाते हैं। नियमित समय पर पाठ करने से एकाग्रता बढ़ती है।
4. आसन: एक साफ आसन पर बैठकर पाठ करें।
5. नियमबद्धता: गीता के अट्ठारह अध्याय हैं। आप प्रतिदिन एक अध्याय या कुछ श्लोकों का पाठ कर सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि आप नियमितता बनाए रखें।
6. ध्यान और चिंतन: केवल श्लोकों का उच्चारण न करें, अपितु उनके अर्थ पर चिंतन करें। भगवान कृष्ण अर्जुन के माध्यम से आपको क्या समझाना चाह रहे हैं, इस पर मनन करें।
7. आरंभ और समापन: पाठ आरंभ करने से पूर्व भगवान कृष्ण और गीता माता का ध्यान करें। पाठ समाप्त होने पर ईश्वर का धन्यवाद करें और यह कामना करें कि गीता का ज्ञान आपके जीवन में उतर जाए।
8. सरल भाषा: यदि संस्कृत कठिन लगे, तो गीता के हिंदी अनुवाद सहित संस्करण का पाठ करें। मुख्य उद्देश्य अर्थ को समझना है।

पाठ के लाभ
श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित पाठ और उसके उपदेशों का जीवन में पालन अनमोल लाभ प्रदान करता है। यह केवल आध्यात्मिक उन्नति ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी अमूल्य सहयोग देता है:
1. मानसिक शांति: गीता के उपदेश मन की चंचलता को शांत करते हैं, चिंता और तनाव को कम करते हैं, जिससे आंतरिक शांति की अनुभूति होती है।
2. निर्णय लेने की क्षमता: यह ग्रंथ हमें सही और गलत के बीच भेद करना सिखाता है, जिससे जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को लेने में स्पष्टता आती है।
3. कर्मयोग का बोध: फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा मिलती है, जिससे कार्य में दक्षता आती है और अनावश्यक मोह से मुक्ति मिलती है।
4. भय और संदेह का नाश: आत्मा की अमरता और ईश्वर की सर्वव्यापकता का ज्ञान भय और संदेह को दूर करता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है।
5. आत्मज्ञान की प्राप्ति: गीता हमें ‘मैं कौन हूँ’ इस प्रश्न का उत्तर खोजने में सहायता करती है, जिससे आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर मार्ग प्रशस्त होता है।
6. संबंधों में सुधार: अनासक्ति और निष्काम प्रेम का सिद्धांत रिश्तों को गहरा और शुद्ध बनाता है।
7. सकारात्मकता: यह ग्रंथ जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है, जिससे हर परिस्थिति में आशा का संचार होता है।
8. मोक्ष का मार्ग: अंततः गीता हमें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाकर मोक्ष के परम पद की ओर अग्रसर करती है।

नियम और सावधानियाँ
गीता जैसे पवित्र ग्रंथ का पाठ करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक है ताकि हमें उसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके:
1. श्रद्धा और समर्पण: गीता का पाठ सदैव श्रद्धा और समर्पण भाव से करें। इसे केवल एक पुस्तक मात्र न समझें, अपितु साक्षात् भगवान के वचन मानें।
2. नियमितता: पाठ में नियमितता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भले ही आप कम श्लोक पढ़ें, पर प्रतिदिन पढ़ें।
3. अहंकार का त्याग: ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य अहंकार बढ़ाना नहीं, अपितु उसे मिटाना है। गीता के ज्ञान को पढ़कर स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की भूल न करें।
4. शुचिता: शारीरिक और मानसिक शुचिता का ध्यान रखें। पाठ से पूर्व मांस, मदिरा जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन न करें।
5. व्यावहारिक जीवन में धारण: गीता के उपदेशों को केवल पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है। उन्हें अपने दैनिक जीवन में उतारने का प्रयास करें। कर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलने का अभ्यास करें।
6. प्रश्न और चिंतन: यदि किसी श्लोक का अर्थ समझ न आए तो उस पर चिंतन करें, गुरुजनों से पूछें या प्रामाणिक टीकाओं का अध्ययन करें। केवल यांत्रिक रूप से पाठ न करें।
7. मानसिक शांति: पाठ करते समय किसी भी प्रकार की नकारात्मकता या क्रोध से बचें। शांत मन से ही ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है।
8. प्रचार नहीं, आचरण: गीता के ज्ञान का प्रदर्शन करने के बजाय उसे अपने आचरण में लाएँ। आपका आचरण ही दूसरों के लिए प्रेरणा बनेगा।

निष्कर्ष
श्रीमद्भगवद्गीता के अनमोल वचन केवल धर्म ग्रंथ के श्लोक नहीं हैं, अपितु वे स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से निःसृत अमृत वाणी हैं, जो हर युग में, हर मनुष्य के लिए कल्याणकारी रही है और रहेगी। जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर, जब हम भगवान कृष्ण के आगमन का उत्सव मनाते हैं, तब यह और भी आवश्यक हो जाता है कि हम उनके इन दिव्य उपदेशों को अपने हृदय में स्थान दें। गीता हमें सिखाती है कि जीवन की हर चुनौती का सामना धैर्य, निष्ठा और आत्मबल से कैसे किया जाए। यह हमें कर्म के महत्व, भक्ति की शक्ति और ज्ञान के प्रकाश से अवगत कराती है। यह जीवन का वह मार्गदर्शक है जो हमें मोह, भय और अज्ञान के अंधकार से निकालकर सत्य, शांति और आनंद के शाश्वत धाम तक पहुँचाता है। आइए, हम सब मिलकर इस दिव्य ज्ञान को अपने जीवन का आधार बनाएँ, भगवान कृष्ण के दिखाए मार्ग पर चलें और अपने जीवन को सार्थक करें। गीता के ये अनमोल वचन हमें एक नई दिशा, नया उद्देश्य और अंतहीन प्रेरणा प्रदान करते रहें, यही हमारी कामना है। हरे कृष्ण! जय सनातन धर्म!

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आध्यात्मिक ज्ञान
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गीता, भगवान कृष्ण, जन्माष्टमी, सनातन धर्म, जीवन दर्शन, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, आत्मज्ञान

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