कैसे बृहस्पतिवार का व्रत लक्ष्मीजी का आह्वान करता है?
**प्रस्तावना**
सनातन धर्म में प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है और गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति तथा भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। यह दिन न केवल ज्ञान, विवेक और सद्बुद्धि का प्रतीक है, बल्कि धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का भी एक अद्भुत माध्यम है। अक्सर लोग बृहस्पतिवार व्रत को केवल गुरु ग्रह की शांति या भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए करते हैं, परंतु बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इस व्रत के माध्यम से साक्षात लक्ष्मीजी का आह्वान किस प्रकार होता है। यह एक ऐसा पावन व्रत है जो विष्णुजी के साथ-साथ लक्ष्मीजी को भी प्रसन्न कर भक्त के जीवन में धन-धान्य और खुशहाली भर देता है। आइए, इस व्रत के गूढ़ रहस्य, इसकी पावन कथा और इसके अतुलनीय लाभों को विस्तार से समझते हैं, जो आपके जीवन में माँ लक्ष्मी की अनमोल कृपा का द्वार खोल सकते हैं।
**पावन कथा**
प्राचीन काल की बात है, एक समृद्ध राज्य में एक राजा राज्य करता था। राजा धनवान तो था, किंतु अत्यंत अहंकारी था और अपनी प्रजा के प्रति कठोर व्यवहार करता था। उसकी रानी अत्यंत धर्मात्मा और दयालु स्वभाव की थी। रानी भगवान विष्णु की परम भक्त थी और प्रत्येक बृहस्पतिवार को विधि-विधान से व्रत रखती थी। वह दान-पुण्य में विश्वास रखती थी और गरीबों की सहायता करती थी। राजा को रानी का यह व्यवहार पसंद नहीं आता था और वह उसे अक्सर धर्म-कर्म करने से रोकता था।
एक बार राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। धीरे-धीरे राज्य की सारी धन-संपत्ति समाप्त होने लगी। राजा का अहंकार अब भी नहीं टूटा। एक दिन, भगवान विष्णु ने देवगुरु बृहस्पति का रूप धारण कर राजा के महल में भिक्षा मांगने प्रवेश किया। देवगुरु ने रानी से कहा, “हे पुत्री! तुम इतनी दुखी क्यों हो? तुम्हारे राज्य में इतना अभाव क्यों है, जबकि तुम स्वयं इतनी धार्मिक हो?” रानी ने हाथ जोड़कर कहा, “हे देव! मेरे पति का व्यवहार अच्छा नहीं है, वे दान-धर्म से दूर रहते हैं और प्रजा पर अत्याचार करते हैं। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती।”
देवगुरु ने रानी को बताया, “हे पुत्री! तुम बृहस्पतिवार का व्रत करती हो, यह बहुत उत्तम है। किंतु विष्णु और लक्ष्मी एक-दूसरे के पूरक हैं। जहाँ विष्णु का वास होता है, वहीं लक्ष्मी स्वयं चली आती हैं। तुम्हारे पति ने धन का अभिमान कर लक्ष्मी का अनादर किया है। लक्ष्मी चंचल स्वभाव की हैं और ऐसे स्थान पर नहीं टिकती जहाँ उनका सम्मान न हो। तुम एक कार्य करो। अपने पति को बृहस्पतिवार व्रत का महत्व समझाओ और उन्हें भी इस व्रत को करने के लिए प्रेरित करो। साथ ही, तुम स्वयं इस व्रत को करते हुए भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी का भी आह्वान करो। उन्हें पीले वस्त्र अर्पित करो, चने की दाल और गुड़ का भोग लगाओ और गरीबों को दान दो। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने से लक्ष्मी स्वयं प्रसन्न होंगी।”
रानी ने देवगुरु के बताए अनुसार ही किया। उसने राजा को समझाया कि धन केवल संग्रह करने से नहीं बढ़ता, बल्कि उसे दान-पुण्य और धर्म-कर्म में लगाने से बढ़ता है। राजा ने अपनी रानी के बार-बार आग्रह पर अनिच्छा से ही सही, बृहस्पतिवार का व्रत करना आरंभ किया। पहले तो वह केवल दिखावे के लिए करता था, किंतु रानी की अटूट श्रद्धा और गुरुदेव के आशीर्वाद से धीरे-धीरे उसके मन में भी परिवर्तन आने लगा। राजा ने देखा कि जैसे-जैसे वह व्रत करने लगा और दान-पुण्य में रुचि लेने लगा, राज्य की स्थिति सुधरने लगी। अकाल समाप्त हुआ, खेत हरे-भरे हो गए और राज्य में फिर से सुख-समृद्धि लौटने लगी।
राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने रानी से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि वह सदैव धर्म के मार्ग पर चलेगा। देवगुरु बृहस्पति की कृपा से और भगवान विष्णु की प्रसन्नता से, साक्षात माँ लक्ष्मी ने उस राज्य में फिर से अपना स्थायी निवास बना लिया। यह कथा दर्शाती है कि भगवान विष्णु की आराधना से माँ लक्ष्मी स्वतः ही प्रसन्न होती हैं। बृहस्पतिवार का व्रत एक ऐसा माध्यम है जो विष्णु और बृहस्पति के माध्यम से लक्ष्मीजी को आपके जीवन में आमंत्रित करता है, जिससे न केवल भौतिक सुख-समृद्धि आती है, बल्कि आत्मिक शांति और ज्ञान भी प्राप्त होता है।
**दोहा**
गुरु पूजन जो मन से करे, विष्णु कृपा पाए।
लक्ष्मी घर में वास करे, सुख-समृद्धि बरसाए।।
**चौपाई**
बृहस्पति देव गुरु भगवाना, विष्णु रूप धर करें कल्याना।
पीत वसन सोहें तन सारा, हरें सकल दुःख संसारा।।
जहाँ विष्णु को आदर होई, लक्ष्मी वहाँ निवास करै सोई।
धन-धान्य और वैभव दें, भक्तन के सब कष्ट हरें।।
**पाठ करने की विधि**
बृहस्पतिवार का व्रत अत्यंत सरल और फलदायी है। इसे करने की विधि इस प्रकार है:
1. **प्रातःकाल स्नान:** व्रतधारी को गुरुवार के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करना चाहिए। स्नान के जल में थोड़ी हल्दी मिलाकर स्नान करना शुभ माना जाता है।
2. **पीले वस्त्र धारण:** स्नान के पश्चात् स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। पीला रंग गुरुदेव और भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
3. **पूजा का संकल्प:** पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर भगवान विष्णु, देवगुरु बृहस्पति और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें कि मैं आज यह व्रत विधिपूर्वक करूँगा/करूँगी, जिससे मुझे गुरुदेव, विष्णु भगवान और माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो।
4. **पूजन सामग्री:** पूजन में पीले चंदन, पीले फूल (जैसे गेंदा), चने की दाल, गुड़, केले, हल्दी, पीले चावल (हल्दी मिलाकर), धूप, दीप और शुद्ध घी का प्रयोग करें।
5. **आरंभिक पूजा:** सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें। इसके बाद भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति को पीले फूल, पीले वस्त्र (धागा के रूप में भी), चंदन और नैवेद्य (चने की दाल और गुड़ मिश्रित) अर्पित करें। केले का भोग विशेष रूप से लगाएँ। जल अर्पित करते समय ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।
6. **लक्ष्मीजी का आह्वान:** भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ माँ लक्ष्मी का भी ध्यान करें। उन्हें लाल या पीला पुष्प अर्पित करें और ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का जाप करें। यह ध्यान रखें कि लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के हृदय में निवास करती हैं, अतः विष्णु पूजा से लक्ष्मी स्वयं प्रसन्न होती हैं।
7. **कथा श्रवण/पाठ:** बृहस्पतिवार व्रत की पावन कथा का पाठ करें या श्रवण करें। यह कथा व्रत के महत्व और लाभों को दर्शाती है।
8. **आरती:** कथा पूर्ण होने के पश्चात् भगवान विष्णु, देवगुरु बृहस्पति और माँ लक्ष्मी की आरती करें।
9. **फलाहार:** दिन में केवल एक बार बिना नमक का भोजन या फलाहार ग्रहण करें। केले का सेवन न करें, बल्कि उसे दान कर दें।
10. **व्रत का पारण:** संध्याकाल में आरती के पश्चात् भोजन कर व्रत का पारण करें। भोजन में पीली वस्तुओं जैसे बेसन, हल्दी की सब्जी आदि का सेवन कर सकते हैं। नमक और खट्टी चीजों का सेवन वर्जित होता है।
11. **दान:** अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी ब्राह्मण, निर्धन व्यक्ति या गाय को चने की दाल, गुड़, केले या पीले वस्त्र का दान करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है।
**पाठ के लाभ**
बृहस्पतिवार व्रत का पालन करने से असंख्य लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
1. **भगवान विष्णु की कृपा:** इस व्रत से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं, जिससे भक्त को मोक्ष और वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
2. **गुरु ग्रह की शांति:** यह व्रत कुंडली में गुरु ग्रह के दोषों को शांत करता है, जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
3. **माँ लक्ष्मी का आह्वान:** विष्णु की आराधना से लक्ष्मीजी स्वतः ही प्रसन्न होती हैं और घर में धन, ऐश्वर्य तथा सुख-समृद्धि का वास होता है। दरिद्रता दूर होती है और आर्थिक संकट समाप्त होते हैं।
4. **विवाह में बाधाएं दूर:** जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो, उन्हें इस व्रत के प्रभाव से योग्य वर की प्राप्ति होती है। वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
5. **संतान सुख:** निःसंतान दंपतियों को इस व्रत के प्रभाव से संतान प्राप्ति का सुख मिलता है।
6. **रोगों से मुक्ति:** गुरुदेव बृहस्पति आरोग्य के भी देवता हैं। इस व्रत से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है।
7. **मान-सम्मान में वृद्धि:** समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
8. **मनोकामना पूर्ति:** सच्चे मन से किए गए इस व्रत से सभी शुभ मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
9. **सकारात्मक ऊर्जा:** घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वातावरण शुद्ध होता है।
10. **मानसिक शांति:** चिंताएँ दूर होती हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
**नियम और सावधानियाँ**
बृहस्पतिवार व्रत करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक है ताकि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके:
1. **शुद्धता और पवित्रता:** व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन में किसी भी प्रकार के बुरे विचार न लाएँ।
2. **ब्रह्मचर्य का पालन:** व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
3. **पीले भोजन का सेवन:** व्रत के दिन पीले रंग के खाद्य पदार्थ जैसे चना दाल, बेसन, हल्दी युक्त भोजन, पीले फल जैसे केला आदि का सेवन करें। केले का दान करें, खाएँ नहीं।
4. **नमक का त्याग:** व्रत के दिन नमक का सेवन वर्जित है। खट्टी चीजों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
5. **एक समय भोजन:** यदि पूर्ण उपवास संभव न हो, तो शाम को एक समय बिना नमक का भोजन या फलाहार ले सकते हैं।
6. **बाल न धोएँ/दाढ़ी न बनाएँ:** गुरुवार के दिन बाल धोना, कपड़े धोना और दाढ़ी बनाना वर्जित माना जाता है। इससे धन की हानि होने की मान्यता है।
7. **लोहे की वस्तुएँ:** इस दिन लोहे की वस्तुओं का दान न करें और न ही उनका उपयोग करें, विशेषकर धारदार वस्तुएँ।
8. **झूठ न बोलें और क्रोध से बचें:** व्रत के दिन झूठ बोलने, किसी का अपमान करने या क्रोध करने से बचें।
9. **अखंड विश्वास:** व्रत करते समय पूर्ण श्रद्धा और विश्वास बनाए रखें। बिना श्रद्धा के कोई भी व्रत फलदायी नहीं होता।
10. **पीपल की पूजा:** यदि संभव हो, तो पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें और उसकी सात परिक्रमा करें, क्योंकि पीपल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है।
11. **गुरुजनों का आदर:** अपने गुरुजनों, बड़ों और शिक्षकों का सम्मान करें।
**निष्कर्ष**
बृहस्पतिवार का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं है, बल्कि यह आस्था, समर्पण और दिव्य कृपा का एक संगम है। यह हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार धर्म, ज्ञान और नैतिकता के मार्ग पर चलकर हम न केवल आत्मिक शांति प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि जीवन में भौतिक सुख-समृद्धि का भी अनुभव कर सकते हैं। भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की आराधना के माध्यम से यह व्रत साक्षात माँ लक्ष्मी को हमारे जीवन में आमंत्रित करता है। जब हृदय में भगवान विष्णु का वास होता है, तो उनकी अर्धांगिनी माँ लक्ष्मी स्वयं ही उस स्थान को अपने आशीर्वाद से भर देती हैं। इस पावन व्रत को सच्चे मन और पूर्ण निष्ठा के साथ करने वाला भक्त कभी भी धन, ज्ञान या सुख से वंचित नहीं रहता। यह व्रत हमारे जीवन को संतुलन, शांति और प्रचुरता से भर देता है, हमें एक धन्य और परिपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर करता है। आइए, इस शक्तिशाली व्रत को अपनाकर हम भी माँ लक्ष्मी की उस अविनाशी कृपा के अधिकारी बनें, जो हमें हर बाधा से पार लगाकर सुख-समृद्धि के उच्चतम शिखर पर पहुँचाती है।

