जय अम्बे गौरी मैया आरती: शक्ति उपासना का दिव्य रहस्य और अमृतमयी फल

जय अम्बे गौरी मैया आरती: शक्ति उपासना का दिव्य रहस्य और अमृतमयी फल

नवरात्रि का पावन पर्व, माँ दुर्गा की शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। इन नौ दिनों में, भक्त माँ के विभिन्न स्वरूपों की उपासना कर जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आह्वान करते हैं। माँ अम्बे गौरी की आरती, इन नौ दिनों की साधना का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो भक्तों को परम आनंद और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। सनातन स्वर पर आज हम इसी दिव्य आरती के गहरे अर्थों, इसके पीछे छिपी कथा और इसके अद्भुत लाभों पर प्रकाश डालेंगे। यह केवल एक आरती नहीं, बल्कि माँ के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास का प्रकटीकरण है, जो हर भक्त के हृदय में नई स्फूर्ति भर देता है।

माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से आठवां स्वरूप महागौरी का है, जिनकी आराधना विशेष रूप से दुर्गाष्टमी के दिन की जाती है। ‘जय अम्बे गौरी मैया’ की आरती मुख्य रूप से माँ के इसी स्वरूप, और साथ ही उनके समग्र अम्बा स्वरूप की महिमा का गुणगान करती है। पुराणों के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों की इस तपस्या के कारण उनका शरीर धूल और मिट्टी से ढक गया था, जिससे वे अत्यंत काली पड़ गई थीं। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें गंगा जल से स्नान कराया। गंगा जल के स्पर्श से देवी का शरीर पुनः अत्यंत गौर वर्ण का हो गया, तब से वे ‘महागौरी’ कहलाईं। यह कथा हमें बताती है कि किस प्रकार कठोर तप और निष्ठा से मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और शुद्धिकरण के बाद परम सौंदर्य और शक्ति को प्राप्त होता है। महागौरी की यह कथा न केवल उनके दिव्य सौंदर्य का बखान करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि माँ अपने भक्तों के सभी पापों को हर लेती हैं और उन्हें पवित्र कर देती हैं।

आरती के बोल माँ के विभिन्न गुणों और रूपों का वर्णन करते हैं:

“जय अम्बे गौरी मैया, जय श्यामा गौरी। तुमको निश दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।”
यह पंक्ति बताती है कि माँ इतनी शक्तिशाली हैं कि स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उनका ध्यान करते हैं। माँ का श्यामला और गौरी दोनों रूप, उनके दो भिन्न पहलुओं – सृजन और विनाश, सौम्यता और उग्रता – को दर्शाते हैं।

“माँग सिंदूर विराजत, टिको मृगमद को। उज्ज्वल से दो नैना, चंद्रवदन नीको।”
यह माँ के दिव्य श्रृंगार का वर्णन है, जो उनके स्त्री स्वरूप की सुंदरता और शक्ति का प्रतीक है। सिंदूर सुहाग का प्रतीक है, और मृगमद का टीका उनकी सौम्यता को दर्शाता है। उनके उज्ज्वल नेत्र भक्तों पर कृपा दृष्टि बरसाते हैं, जो करुणा और ज्ञान से भरे हुए हैं।

“कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै। रक्त पुष्प गल माला, कंठन पर साजै।”
माँ का स्वर्ण के समान दिव्य शरीर और लाल वस्त्र उनकी शक्ति और शौर्य का प्रतीक हैं। लाल रंग शक्ति, प्रेम और उत्साह का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि रक्त पुष्पों की माला उनकी विजय और महिमा का गान करती है। यह माँ के उस स्वरूप को दर्शाता है जो बुराई पर विजय प्राप्त करती है।

“केहरि वाहन राजत, खड्ग कृपाण धारी। सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुखहारी।”
शेर पर सवार माँ, हाथों में खड्ग और कृपाण धारण किए, बुराई का नाश करने वाली देवी के रूप में चित्रित हैं। वे केवल देवताओं और मनुष्यों द्वारा ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े मुनियों और तपस्वियों द्वारा भी पूजी जाती हैं, क्योंकि वे सभी के दुखों का हरण करती हैं। यह पंक्ति भक्तों को आश्वस्त करती है कि माँ उनकी सभी बाधाओं और कष्टों को दूर करेंगी।

“कानन कुंडल शोभित, नासग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती।”
माँ के कानों में कुंडल और नाक में मोती उनकी शाही सुंदरता को बढ़ाते हैं। उनकी आभा इतनी तेज है कि करोड़ों चंद्रमा और सूर्य की रोशनी मिलकर भी उनके प्रकाश की बराबरी नहीं कर सकती। यह उनकी अद्वितीय दिव्यता और सर्वोपरिता को दर्शाता है, जो समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित करती है।

“शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।”
यह पंक्तियाँ माँ द्वारा दुष्ट राक्षसों – शुम्भ, निशुम्भ, महिषासुर और धूम्रविलोचन – के संहार की कथा कहती हैं। यह माँ के रणचंडी स्वरूप का वर्णन है, जो अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करती हैं। यह भक्तों को यह विश्वास दिलाता है कि माँ अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी दुष्ट शक्ति का नाश कर सकती हैं और उन्हें निर्भय बनाती हैं।

“चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों। बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु।”
माँ की स्तुति में चौंसठ योगिनियाँ और भैरव भी नृत्य करते हैं, और ताल, मृदंग व डमरू की ध्वनि से पूरा ब्रह्मांड गुंजायमान होता है। यह माँ के दिव्य दरबार का चित्रण है, जहाँ हर कोई उनकी महिमा का गुणगान करता है और उनकी उपस्थिति से सारा वातावरण ऊर्जावान हो उठता है।

“तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुख हरता, सुख संपत्ति करता।”
यह आरती का सार है, जो माँ को पूरे जगत की माता और पालनकर्ता के रूप में स्वीकार करता है। वे भक्तों के सभी दुखों को हरने वाली और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली हैं। यह माँ के वात्सल्य और कृपा का प्रतीक है, जो हर जीव पर अनवरत बरसती रहती है।

इस आरती का हर शब्द माँ दुर्गा के विराट स्वरूप, उनकी शक्ति, उनकी करुणा और उनके न्याय का बखान करता है। यह केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि एक दिव्य मंत्र है जो भक्तों को माँ की चैतन्य ऊर्जा से जोड़ता है और उन्हें आंतरिक शांति प्रदान करता है।

जय अम्बे गौरी मैया की आरती का पाठ करना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक अनुभव है। यह आरती भक्तों को माँ भगवती के साक्षात दर्शन और उनके आशीर्वाद की अनुभूति कराती है। इसके नित्य पाठ से भक्तों के मन में शांति आती है, भय दूर होता है और नकारात्मक ऊर्जाएँ नष्ट होती हैं। जो भक्त सच्चे मन से इस आरती का गायन करते हैं, माँ उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं। यह आरती हमें यह स्मरण कराती है कि माँ सदैव हमारे साथ हैं, हमारे दुखों को हरने और हमें सही मार्ग दिखाने के लिए तत्पर हैं। यह भक्ति, विश्वास और समर्पण का उच्चतम रूप है। विशेषकर नवरात्रि के दिनों में, इस आरती का गायन करने से आध्यात्मिक ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है, जिससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और आत्मिक शुद्धि होती है। यह आरती हमारे भीतर की सुप्त शक्तियों को जागृत करती है और हमें एक सशक्त, संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। माँ गौरी की कृपा से व्यक्ति न केवल भौतिक सुखों को प्राप्त करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी करता है।

जय अम्बे गौरी मैया की आरती का गायन अत्यंत पवित्र भाव से किया जाना चाहिए। नवरात्रि के नौ दिनों में, विशेषकर दुर्गाष्टमी के दिन, इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

1. **शुद्धि:** आरती करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन और शरीर की शुद्धि अत्यंत आवश्यक है। यह आपको माँ से जुड़ने में मदद करेगा।
2. **स्थान:** पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखें। माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और उसे फूलों से सजाएँ।
3. **दीपक प्रज्वलित करें:** घी या तेल का एक दीपक जलाएँ। यह दीपक माँ की दिव्य उपस्थिति और ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है।
4. **पुष्प और नैवेद्य:** माँ को लाल पुष्प (गुड़हल विशेष रूप से प्रिय है), फल, मिठाई और अन्य नैवेद्य श्रद्धापूर्वक अर्पित करें।
5. **आरती की थाली:** आरती की थाली में कपूर, ज्योति, अगरबत्ती, पुष्प और अक्षत (चावल) रखें।
6. **संकल्प:** आरती आरंभ करने से पहले, माँ का ध्यान करें और अपनी मनोकामना पूर्ति का संकल्प लें। यह आपके उद्देश्य को दृढ़ करेगा।
7. **सामूहिक गायन:** यदि संभव हो, तो परिवार के सभी सदस्य या मित्रगण मिलकर आरती का गायन करें। सामूहिक गायन से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्ति का भाव गहरा होता है।
8. **श्रद्धा और एकाग्रता:** आरती के दौरान आपका पूरा ध्यान माँ के चरणों में होना चाहिए। प्रत्येक पंक्ति के अर्थ को समझते हुए, हृदय से माँ की स्तुति करें, जिससे आप उनके साथ एकत्व महसूस कर सकें।
9. **क्षमा याचना:** आरती समाप्त होने के बाद, जाने-अनजाने में हुई किसी भी त्रुटि के लिए माँ से क्षमा याचना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
10. **प्रसाद वितरण:** आरती के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें। प्रसाद बांटने से माँ का आशीर्वाद सभी को मिलता है और प्रेम बढ़ता है।

इन सरल परंपराओं का पालन करके भक्त माँ अम्बे गौरी की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं। यह विधि-विधान केवल बाहरी क्रियाएँ नहीं, बल्कि आंतरिक भाव और समर्पण को दर्शाता है, जो सच्ची भक्ति का आधार है।

जय अम्बे गौरी मैया की आरती केवल एक गीत नहीं, बल्कि माँ दुर्गा की महिमा का एक शक्तिशाली आह्वान है। यह हमें सिखाती है कि भक्ति, श्रद्धा और तपस्या से असंभव को भी संभव किया जा सकता है। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, आइए हम सब मिलकर इस दिव्य आरती का पाठ करें और माँ अम्बे गौरी के चरणों में स्वयं को समर्पित करें। उनकी कृपा से हमारे जीवन के सभी अंधकार दूर होंगे और सुख, शांति एवं समृद्धि का प्रकाश फैलेगा। माँ हम सभी पर अपनी असीम कृपा बरसाएँ। जय माता दी!

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