चैत पूर्णिमा सनातन धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो पवनपुत्र हनुमान जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भक्ति, शक्ति और सेवा का प्रतीक है। इस ब्लॉग में चैत पूर्णिमा की तिथि, हनुमान जी की पावन कथा, पूजा विधि और उससे जुड़े अद्भुत लाभों का विस्तृत वर्णन किया गया है। हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बनाने का यह सुनहरा अवसर है।

चैत पूर्णिमा सनातन धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो पवनपुत्र हनुमान जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भक्ति, शक्ति और सेवा का प्रतीक है। इस ब्लॉग में चैत पूर्णिमा की तिथि, हनुमान जी की पावन कथा, पूजा विधि और उससे जुड़े अद्भुत लाभों का विस्तृत वर्णन किया गया है। हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बनाने का यह सुनहरा अवसर है।

चैत पूर्णिमा कब है

**प्रस्तावना**
चैत पूर्णिमा का पावन पर्व सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह वह शुभ तिथि है जब प्रकृति अपनी पूर्णता पर होती है और ब्रह्मांड दिव्य ऊर्जा से ओत-प्रोत रहता है। चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान श्रीराम के परम भक्त, पवनपुत्र हनुमान जी का जन्मोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास और भक्तिभाव से मनाया जाता है। इस दिन चारों दिशाओं में भगवान हनुमान की कीर्ति और शक्ति का गुणगान होता है। भक्तगण प्रभु के चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके असीम बल, बुद्धि और भक्ति से प्रेरणा लेते हैं। यह दिवस मात्र एक तिथि नहीं, अपितु कोटि-कोटि भक्तों के हृदय में राम नाम की अलख जगाने वाले वीर हनुमान की दिव्य उपस्थिति का अनुभव करने का एक अनुपम अवसर है। चैत पूर्णिमा, जिसे हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, हमें अपने भीतर की समस्त नकारात्मकता को दूर कर, सकारात्मक ऊर्जा और निष्ठा को स्थापित करने का संदेश देती है। इस दिन भगवान हनुमान की उपासना से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। आइए, इस पवित्र तिथि के गूढ़ रहस्यों, इसकी महिमा और इससे जुड़ी पावन कथा को विस्तार से जानें और अपने जीवन को हनुमत कृपा से आलोकित करें।

**पावन कथा**
त्रेता युग की बात है। किष्किंधा पर्वत पर अंजना नामक एक परम तपस्विनी अप्सरा निवास करती थी। पूर्व जन्म के एक श्राप के कारण उन्हें पृथ्वी पर वानर रूप में जन्म लेना पड़ा था। अंजना ने शिवजी की घोर तपस्या की, ताकि उन्हें एक ऐसा पुत्र प्राप्त हो जो शिव का ही अवतार हो, असीम बलशाली हो, बुद्धिमान हो और निस्वार्थ सेवा भाव से परिपूर्ण हो। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके ही अंश से पुत्र प्राप्ति करेंगी। अंजना की निष्ठा और भक्ति ने शिवजी को इतना प्रसन्न किया कि उन्होंने स्वयं उनके पुत्र के रूप में अवतरित होने का निश्चय किया।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार, जब अयोध्या में महाराज दशरथ पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवा रहे थे, तब अग्निदेव ने उन्हें खीर प्रदान की। यह खीर उनकी तीनों रानियों में वितरित की गई थी। इस खीर का एक अंश एक चील उठा ले गई और उसे अंजना के हाथों में गिरा दिया, जो उस समय भगवान शिव की तपस्या में लीन थीं। अंजना ने इसे शिवजी का प्रसाद मानकर ग्रहण कर लिया। इस प्रकार, भगवान शिव के अंश और पवित्र खीर के प्रभाव से अंजना गर्भवती हुईं। यह संयोग ही था कि अंजना की तपस्या और दशरथ के यज्ञ का फल एक साथ उन्हें प्राप्त हुआ, जिससे एक असाधारण बालक का जन्म सुनिश्चित हुआ।

पवनदेव ने भी इस दिव्य घटना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कहा जाता है कि अंजना ने वायुदेव की भी आराधना की थी। पवनदेव के प्रभाव से अंजना के गर्भ में पल रहे शिशु को अद्भुत वेग और वायु तत्व की शक्ति प्राप्त हुई। चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को, मंगलवार के दिन, शुभ योग में, एक गुफा में अंजना ने एक अद्भुत शिशु को जन्म दिया। शिशु का तेज सूर्य के समान प्रखर था और उनका वर्ण सुवर्ण के समान कांतिमय था। नवजात शिशु में असीम ऊर्जा और दिव्यता थी, जिसे देखकर अंजना का मन अपार आनंद से भर गया। यही शिशु आगे चलकर भगवान हनुमान के नाम से विख्यात हुए, जो पवनपुत्र और अंजनेय के नाम से भी जाने गए।

बाल्यावस्था से ही हनुमान अत्यंत नटखट और पराक्रमी थे। उनकी अद्भुत शक्तियाँ बचपन से ही दिखने लगी थीं। एक बार प्रातःकाल में जब वे अपनी माता अंजना के पास थे, तब उन्होंने आकाश में उगते हुए लाल सूर्य को देखा। शिशु हनुमान को लगा कि वह कोई स्वादिष्ट फल है और उन्होंने उसे खाने के लिए छलांग लगा दी। अपने अदम्य वेग से वे सूर्य की ओर बढ़ने लगे और उसे निगलने का प्रयास किया। उस समय राहु सूर्य को ग्रसने आया था, लेकिन हनुमान ने उसे भी पराजित कर दिया। इस घटना से समस्त देवगण भयभीत हो गए। इंद्रदेव ने क्रोधित होकर अपने वज्र से हनुमान पर प्रहार किया, जिससे वे मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। पवनदेव, अपने पुत्र की इस दशा को देखकर अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने संसार से वायु का संचार रोक दिया। सृष्टि में हाहाकार मच गया, क्योंकि वायु के बिना जीवन असंभव था। तब ब्रह्मादि समस्त देवताओं ने पवनदेव से क्षमा याचना की और हनुमान को पुनः चेतना प्रदान की। देवताओं ने उन्हें अनेक वरदान दिए। इंद्र ने कहा कि मेरा वज्र भी इस बालक को हानि नहीं पहुँचा पाएगा और यह बालक वज्र से भी कठोर शरीर वाला होगा। ब्रह्माजी ने वरदान दिया कि यह बालक किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा और अपनी इच्छानुसार रूप बदल सकेगा। सूर्यदेव ने उन्हें समस्त ज्ञान और शास्त्रों का ज्ञाता बनने का वरदान दिया। वरुणदेव ने उन्हें जल से निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार हनुमान जी को अजेय और अजर-अमर होने का वरदान प्राप्त हुआ।

कालांतर में, भगवान हनुमान ने किष्किंधा पर्वत पर सुग्रीव के साथ वास किया। जब भगवान राम माता सीता की खोज में किष्किंधा पहुँचे, तब हनुमान जी से उनका मिलन हुआ। हनुमान जी ने अपनी अद्भुत भक्ति, सेवाभाव और पराक्रम से भगवान राम के हर कार्य को सफल बनाया। सीता माता की खोज में समुद्र लाँघना, लंका दहन कर शत्रुओं को भयभीत करना, संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाना, अहिरावण का वध करना – ऐसे अनेक कार्य उन्होंने सहज ही संपन्न किए। उनकी निस्वार्थ सेवा और प्रभु राम के प्रति अटूट श्रद्धा ने उन्हें चिरंजीवी बना दिया और वे अमरत्व को प्राप्त हुए। चैत पूर्णिमा का यह पावन दिन हमें उन्हीं हनुमान जी के जन्म और उनके अद्भुत जीवन गाथा की याद दिलाता है, जो हमें भक्ति, शक्ति और सेवा का सर्वोच्च आदर्श सिखाती है। यह कथा हमें यह भी बताती है कि निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही ईश्वर की सच्ची आराधना है और वही हमें परम पद की ओर ले जाता है।

**दोहा**
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

**चौपाई**
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाए। श्री रघुबीर हरषि उर लाए।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सकैं कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

**पाठ करने की विधि**
चैत पूर्णिमा के दिन भगवान हनुमान का जन्मोत्सव अत्यंत श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जा सकता है, जो भक्त को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बल प्रदान करती है:

1. **प्रातःकाल स्नान:** ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदियों या घर पर ही गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें। स्नान के उपरांत स्वच्छ, पवित्र और धुले हुए वस्त्र धारण करें। इस दिन लाल या नारंगी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
2. **संकल्प:** पूजा आरंभ करने से पूर्व हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर अपनी मनोकामना का स्मरण करते हुए संकल्प लें। इसमें अपने नाम, गोत्र, स्थान और पूजा के उद्देश्य का उच्चारण करें।
3. **पूजा स्थान:** एक साफ-सुथरे, पवित्र स्थान पर भगवान हनुमान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। प्रतिमा को गंगाजल और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर का मिश्रण) से स्नान कराएँ।
4. **सिंदूर लेपन:** हनुमान जी को नारंगी रंग का सिंदूर अत्यंत प्रिय है। उन्हें शुद्ध घी में मिलाकर सिंदूर का चोला अर्पित करें। इससे उनकी प्रसन्नता प्राप्त होती है।
5. **वस्त्र एवं यज्ञोपवीत:** लाल या नारंगी रंग के नए वस्त्र और एक नया यज्ञोपवीत (जनेऊ) हनुमान जी को श्रद्धापूर्वक पहनाएँ।
6. **पुष्प एवं माला:** गेंदे के फूल, लाल गुलाब, चमेली के पुष्प और तुलसी की माला (विशेष रूप से राम-नाम लिखी हुई) अर्पित करें। तुलसी के पत्तों पर राम-नाम लिखकर चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
7. **नैवेद्य:** बेसन के लड्डू, बूंदी के लड्डू, गुड़-चना, चूरमा, पान का बीड़ा (सुपारी, चूना, कत्था और गुलकंद के साथ), केले और अन्य मौसमी फल अर्पित करें। शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएँ।
8. **आरती एवं पाठ:** धूप-दीप प्रज्वलित कर, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान अष्टक या सुंदरकांड का पाठ करें। सुंदरकांड का पाठ करने से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और मन को शांति मिलती है। पाठ समाप्ति के बाद, श्रद्धापूर्वक हनुमान जी की आरती करें।
9. **मंत्र जप:** ‘ॐ हनुमते नमः’, ‘श्री रामदूताय नमः’ या ‘ॐ अंजनये विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमान प्रचोदयात्।।’ जैसे मंत्रों का १०८ बार या उससे अधिक जप करें। रुद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं।
10. **प्रसाद वितरण:** पूजा समाप्ति के बाद, आरती और प्रसाद घर के सदस्यों, मित्रों और अन्य भक्तों में वितरित करें। प्रसाद बांटने से पुण्य बढ़ता है।
11. **व्रत:** सामर्थ्यनुसार इस दिन व्रत भी रखा जा सकता है। निराहार या फलाहार व्रत रखकर हनुमान जी को प्रसन्न किया जा सकता है। व्रत में केवल सात्विक भोजन ग्रहण करें।
12. **दान:** गरीबों, जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार भोजन, वस्त्र या धन का दान करें। दान करने से हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं।

**पाठ के लाभ**
चैत पूर्णिमा पर भगवान हनुमान जी की उपासना और उनके पाठ करने से साधक को अनेक अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं, जो उसके जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देते हैं। उनकी कृपा से भक्त के जीवन में चहुँओर सकारात्मकता का संचार होता है:

1. **शत्रु बाधा से मुक्ति:** हनुमान जी संकटमोचन और महाबली हैं। उनकी उपासना से सभी प्रकार के शत्रुओं, विरोधियों, गुप्त शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। वे अपने भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्त करते हैं।
2. **शारीरिक एवं मानसिक बल:** नियमित पूजा-पाठ से व्यक्ति में अद्भुत शारीरिक शक्ति, मानसिक स्थिरता, अदम्य साहस और आत्मबल का संचार होता है। भय, चिंता, अवसाद और आत्मविश्वास की कमी जैसी मानसिक समस्याएँ दूर होती हैं।
3. **ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति:** हनुमान जी स्वयं विद्यावान, गुनी और अत्यंत बुद्धिमान थे। उनकी कृपा से शिक्षा, ज्ञान, विवेक और बुद्धि में वृद्धि होती है। विद्यार्थियों के लिए यह पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है, जिससे एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
4. **सभी संकटों का निवारण:** हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। उनकी सच्ची आराधना से जीवन के बड़े से बड़े संकट, बाधाएँ, रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं। वे अपने भक्तों के लिए असंभव कार्यों को भी संभव कर दिखाते हैं।
5. **ग्रह दोष शांति:** जिन जातकों पर शनि, मंगल, राहु या केतु जैसे क्रूर ग्रहों का दुष्प्रभाव हो, उन्हें हनुमान जी की पूजा से विशेष शांति और राहत मिलती है। मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी की पूजा ग्रह शांति के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
6. **भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति:** हनुमान जी के स्मरण मात्र से भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाएँ और नकारात्मक ऊर्जाएँ दूर भागती हैं। वे अपने भक्तों की हर प्रकार से अदृश्य शक्तियों से रक्षा करते हैं, जिससे घर और मन में शांति बनी रहती है।
7. **मनोकामना पूर्ति:** सच्चे मन से और विधि-विधान से की गई आराधना से हनुमान जी अपने भक्तों की सभी न्यायसंगत मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। वे अपने भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और संतोष प्रदान करते हैं।
8. **राम भक्ति की प्राप्ति:** हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त और सेवक हैं। उनकी पूजा से साधक को प्रभु श्रीराम के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति प्राप्त होती है, जो मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।
9. **स्वास्थ्य लाभ:** गंभीर बीमारियों और असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए हनुमान जी की उपासना अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। वे आरोग्य प्रदान करने वाले देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं।
10. **धन-धान्य और समृद्धि:** हनुमान जी की कृपा से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। वे आर्थिक संकटों को दूर कर जीवन में स्थायित्व लाते हैं।

**नियम और सावधानियाँ**
चैत पूर्णिमा पर भगवान हनुमान जी की पूजा करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके और किसी प्रकार के दोष से बचा जा सके। ये नियम हमें शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध रखते हैं:

1. **पवित्रता:** पूजा से पूर्व शरीर और मन दोनों की पवित्रता अनिवार्य है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और मन को शुद्ध, सकारात्मक विचारों से भरें। किसी भी प्रकार की गंदगी या अशुद्धि पूजा के फल को कम कर सकती है।
2. **ब्रह्मचर्य:** हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं। उनकी पूजा करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। व्रत के दौरान शारीरिक संबंध बनाने से बचें और मन को इंद्रिय सुखों से दूर रखें।
3. **तामसिक भोजन का त्याग:** पूजा के दिन और यदि व्रत रखा है, तो व्रत की अवधि में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन पूर्णतः वर्जित है। केवल सात्विक और शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करें।
4. **स्वच्छता:** पूजा स्थल और घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। हनुमान जी की मूर्ति या चित्र को हमेशा स्वच्छ और पवित्र स्थान पर ही रखें। पूजा की सामग्री भी शुद्ध होनी चाहिए।
5. **मानसिक शुद्धि:** क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, छल-कपट जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहें। मन को शांत, एकाग्र और हनुमान जी के चरणों में समर्पित रखें। मन में किसी के प्रति द्वेष भाव न हो।
6. **अखंड दीपक:** यदि आप अखंड दीपक प्रज्वलित करते हैं, तो उसकी देखरेख का विशेष ध्यान रखें ताकि वह बुझे नहीं। दीपक में पर्याप्त मात्रा में शुद्ध घी या तेल होना चाहिए।
7. **पीपल का पत्ता:** हनुमान जी को पीपल के पत्तों पर राम नाम लिखकर अर्पित करना शुभ माना जाता है, लेकिन पत्ते साफ, हरे और साबुत होने चाहिए। टूटे या गंदे पत्तों का प्रयोग न करें।
8. **निष्ठा और श्रद्धा:** पूजा में सबसे महत्वपूर्ण है श्रद्धा और निष्ठा। बिना सच्चे मन के और पूर्ण विश्वास के की गई पूजा फलदायी नहीं होती। हनुमान जी भक्तों की भावना को देखते हैं।
9. **महिलाओं के लिए:** मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र को स्पर्श नहीं करना चाहिए। वे दूर से मानसिक जाप या पाठ कर सकती हैं। यह अशुद्धि की अवस्था मानी जाती है।
10. **गुरु का सम्मान:** हनुमान जी की पूजा करते समय अपने गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करें। उनका आशीर्वाद प्राप्त करना भी पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है।
11. **दान का महत्व:** अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य अवश्य करें। गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा से हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं।

**निष्कर्ष**
चैत पूर्णिमा, हनुमान जन्मोत्सव का यह पावन पर्व मात्र एक वार्षिक अनुष्ठान नहीं, अपितु स्वयं को भक्ति, शक्ति और सेवा के आदर्शों से जोड़ने का एक स्वर्णिम अवसर है। भगवान हनुमान का जीवन हमें सिखाता है कि निस्वार्थ प्रेम, अटूट श्रद्धा और अदम्य साहस से जीवन की हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। उनकी कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जब हम प्रभु के चरणों में स्वयं को समर्पित कर देते हैं, तब वे हमारे सारे कष्टों को हर लेते हैं और हमें राम नाम के दिव्य प्रकाश से आलोकित करते हैं। चैत पूर्णिमा का यह शुभ अवसर हमें अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानने, सत्य के मार्ग पर चलने और धर्म की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने की प्रेरणा देता है। हनुमान जी की भक्ति हमें बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करती है, जिससे हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकें। आइए, इस चैत पूर्णिमा पर हम सब अपने हृदय में हनुमान जी की अद्भुत भक्ति को धारण करें, उनके आदर्शों का अनुसरण करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाएँ। पवनपुत्र हनुमान की जय! श्री राम की जय!

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