गणेश चतुर्थी 2025: विघ्नहर्ता का आगमन और पूजा विधि
**प्रस्तावना**
सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी का पर्व अत्यंत विशिष्ट और पावन माना जाता है। यह वह शुभ अवसर है जब बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता, विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश पृथ्वी पर अपने भक्तों के बीच दस दिनों के लिए विराजते हैं। वर्ष 2025 में आने वाली गणेश चतुर्थी एक बार फिर हमें इस दिव्य ऊर्जा से जुड़ने का अनुपम अवसर प्रदान करेगी। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला यह महोत्सव अनंत उल्लास और श्रद्धा से परिपूर्ण होता है। भक्तगण अपने घरों और पंडालों में गणपति बप्पा की प्रतिमा स्थापित कर उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समरसता और एकजुटता का भी संदेश देता है। आइए, इस गणेश चतुर्थी 2025 के पावन अवसर पर भगवान गणेश के आगमन, उनकी महिमा, स्थापना विधि और पूजा विधान को गहराई से समझें, ताकि हम उनके दिव्य आशीर्वाद के पूर्ण अधिकारी बन सकें। यह पर्व अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है, और जीवन के हर मार्ग पर आने वाली बाधाओं को हर लेता है।
**पावन कथा**
एक बार माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक सुंदर बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण फूँक दिए। उन्होंने उस बालक को द्वारपाल के रूप में नियुक्त करते हुए आदेश दिया कि कोई भी अंदर न आ सके। जब भगवान शिव वापस लौटे और अंदर जाने का प्रयास किया, तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। शिवजी ने क्रोधित होकर कहा कि वे महादेव हैं और पार्वती के पति हैं, परंतु बालक ने अपनी माता के आदेश का पालन करते हुए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया।
इस घटना से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने गणों को बालक को हटाने का आदेश दिया, परंतु बालक ने अपनी दिव्य शक्ति से सभी गणों को परास्त कर दिया। तब देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, पर वे भी बालक के सामने टिक नहीं पाए। अंततः, भगवान शिव ने स्वयं उस बालक से युद्ध किया और अपने त्रिशूल से उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया।
माता पार्वती जब बाहर आईं और उन्होंने अपने पुत्र का कटा हुआ मस्तक देखा, तो वे अत्यंत क्रोधित और दुखी हुईं। उन्होंने अपने दिव्य स्वरूप में आकर पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दे दी। सभी देवतागण भयभीत हो गए और भगवान शिव से माता पार्वती को शांत करने का आग्रह किया।
भगवान शिव ने माता पार्वती को शांत करने के लिए अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाकर जो भी पहला जीवित प्राणी मिले, उसका सिर ले आएं। गणों को एक हाथी का बच्चा मिला, जिसका मस्तक वे लेकर आए। भगवान शिव ने उस हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ पर स्थापित कर उसे पुनः जीवित कर दिया। बालक का सिर हाथी का होने के कारण उसका मुख हाथी जैसा हो गया। भगवान शिव ने उसे ‘गणेश’ नाम दिया, जिसका अर्थ है ‘गणों के ईश’, और उसे यह वरदान दिया कि पृथ्वी पर किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश की पूजा अनिवार्य होगी। जो भी व्यक्ति गणेश की पूजा किए बिना कोई कार्य करेगा, उसे उस कार्य में सफलता नहीं मिलेगी। इस प्रकार, भगवान गणेश को प्रथम पूज्य होने का गौरव प्राप्त हुआ और वे विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाने लगे। यह कथा भगवान गणेश के जन्म और उनके प्रथम पूज्य बनने की महिमा को दर्शाती है, जो हमें यह सिखाती है कि सच्ची निष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा हमेशा पुरस्कृत होती है।
**दोहा**
वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा॥
**चौपाई**
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा॥
**पाठ करने की विधि**
गणेश चतुर्थी 2025 पर भगवान गणेश की स्थापना और पूजा का विधान अत्यंत सरल परंतु श्रद्धापूर्ण है।
1. **स्वच्छता और संकल्प:** पूजा से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर में पूजा स्थल को साफ-सुथरा कर गंगाजल से पवित्र करें। पूजा का संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से यह पूजा कर रहे हैं।
2. **गणेश स्थापना:** एक लकड़ी की चौकी या पाटे पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। उस पर अक्षत (साबुत चावल) रखें। इसके ऊपर भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा के दोनों ओर रिद्धि-सिद्धि के रूप में सुपारी रखें।
3. **कलश स्थापना:** गणेश प्रतिमा के पास जल से भरा एक कलश रखें, जिसमें आम के पत्ते और नारियल रखें।
4. **प्राण प्रतिष्ठा:** प्रतिमा स्थापित करने के बाद ‘ओम गं गणपतये नमः’ का जाप करते हुए आवाहन करें और भगवान गणेश को अपने हृदय में स्थापित करें।
5. **षोडशोपचार पूजा:** यह सोलह उपचारों वाली पूजा होती है। इसमें सबसे पहले गणेश जी को स्नान कराएं (यदि प्रतिमा मिट्टी की हो तो जल का छिड़काव करें), फिर वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, सिन्दूर, अक्षत, फूल, दूर्वा (21 गांठ वाली), धूप, दीप, नैवेद्य (मोदक, लड्डू, फल), ऋतु फल, पान-सुपारी और दक्षिणा अर्पित करें।
6. **मोदक और दूर्वा:** भगवान गणेश को मोदक और 21 दूर्वा बहुत प्रिय हैं। इन्हें विशेष रूप से अर्पित करें।
7. **आरती और प्रार्थना:** अंत में गणेश आरती करें और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की प्रार्थना करें। क्षमा याचना अवश्य करें।
8. **विसर्जन:** अनंत चतुर्दशी के दिन, भक्तिभाव से भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन करें, यह प्रार्थना करते हुए कि वे अगले वर्ष फिर आएं।
**पाठ के लाभ**
गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर सच्चे मन से की गई भगवान गणेश की पूजा अनेक लाभ प्रदान करती है:
1. **विघ्न बाधाओं का नाश:** भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उनकी पूजा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है।
2. **बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति:** गणेश जी बुद्धि और विद्या के देवता हैं। उनकी आराधना से स्मरण शक्ति बढ़ती है, एकाग्रता आती है और ज्ञान का विकास होता है।
3. **समृद्धि और धन लाभ:** भगवान गणेश की कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है। आर्थिक कठिनाइयाँ दूर होती हैं और धन-धान्य में वृद्धि होती है।
4. **शत्रुओं पर विजय:** गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और वह भयमुक्त होता है।
5. **ग्रह दोषों का शमन:** ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गणेश पूजा से अनेक प्रकार के ग्रह दोषों का निवारण होता है, विशेषकर केतु ग्रह के नकारात्मक प्रभावों में कमी आती है।
6. **पारिवारिक सुख-शांति:** गणेश जी की पूजा से परिवार में प्रेम, सौहार्द और शांति का वातावरण बना रहता है।
7. **मनोकामना पूर्ति:** सच्चे हृदय से मांगी गई सभी मनोकामनाएँ भगवान गणेश की कृपा से अवश्य पूर्ण होती हैं। यह पर्व हमें आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता से भर देता है, जिससे जीवन में नए उत्साह और उमंग का संचार होता है।
**नियम और सावधानियाँ**
गणेश चतुर्थी के दौरान पूजा-अर्चना करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक है ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके:
1. **पवित्रता:** पूजा के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें। तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन) का सेवन न करें।
2. **सूर्य दर्शन से बचें:** मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए, क्योंकि इससे कलंक का आरोप लग सकता है। यदि भूलवश चंद्रमा दिख जाए, तो ‘श्रीमद् भागवत’ के दसवें स्कंध का 57वां अध्याय या ‘स्कंद पुराण’ में वर्णित गणेश कलंक स्तोत्र का पाठ करें।
3. **दूर्वा और मोदक:** भगवान गणेश को दूर्वा और मोदक अत्यंत प्रिय हैं। इनकी संख्या 21 रखना शुभ माना जाता है।
4. **प्रतिमा की शुद्धता:** गणेश प्रतिमा स्थापित करते समय यह सुनिश्चित करें कि प्रतिमा शुद्ध मिट्टी की बनी हो और उसमें कोई दोष न हो। प्लास्टिक या पीओपी की प्रतिमाओं से बचें।
5. **विसर्जन:** प्रतिमा का विसर्जन निर्धारित समय और विधि के अनुसार ही करें। विसर्जन नदी, तालाब या घर पर बनाए गए अस्थायी कुंड में ही करें। जल प्रदूषण का ध्यान रखें।
6. **मन की शांति:** पूजा के दौरान मन को शांत और एकाग्र रखें। किसी के प्रति ईर्ष्या या द्वेष का भाव न रखें।
7. **ब्रह्मचर्य का पालन:** गणेश चतुर्थी के दस दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना शुभ माना जाता है।
इन नियमों का पालन कर भक्तजन भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं।
**निष्कर्ष**
गणेश चतुर्थी 2025 का आगमन एक बार फिर हमारे जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह और आध्यात्मिक चेतना लेकर आ रहा है। यह मात्र एक पर्व नहीं, बल्कि भगवान गणेश के दिव्य अस्तित्व और उनकी सर्वशक्तिमानता का जीवंत प्रमाण है। विघ्नहर्ता, बुद्धि के दाता और मंगलमूर्ति श्री गणेश की आराधना से न केवल हमारे भौतिक कष्ट दूर होते हैं, बल्कि हमारी आत्मा को भी परम शांति और संतुष्टि मिलती है। इस पावन अवसर पर आइए, हम सब मिलकर श्रद्धा और भक्ति के साथ गणपति बप्पा का स्वागत करें, उनके चरणों में अपने जीवन को समर्पित करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे हम सभी के जीवन से अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाएं, सभी बाधाओं को हरें और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करें। भगवान गणेश का यह दस दिवसीय वास हमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और संतोष प्रदान करे। जय गणपति बप्पा मोरिया! अगले बरस तू जल्दी आ!
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Category: धार्मिक पर्व, सनातन संस्कृति, गणेश उत्सव
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