गंगा चालीसा सम्पूर्ण पाठ
प्रस्तावना
गंगा नदी केवल एक जलधारा नहीं, अपितु कोटि-कोटि भारतीयों की जीवनधारा, आस्था का प्रतीक और मोक्षदायिनी है। जिस प्रकार श्री राम चालीसा का पाठ भक्तों के हृदय में भगवान राम के प्रति अगाध प्रेम भर देता है और अयोध्या धाम में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात् इसका महत्व और भी बढ़ गया है, ठीक उसी प्रकार गंगा चालीसा का पाठ माँ गंगा के दिव्य स्वरूप का स्मरण कराता है। यह हमें पवित्रता, त्याग और निरंतर प्रवाहमान रहने की शिक्षा देता है। गंगा चालीसा का प्रत्येक शब्द माँ के महिमामय गुणों का बखान करता है, उनके अवतरण की अद्भुत कथा को दोहराता है और भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। आइए, इस पावन पाठ के माध्यम से हम माँ गंगा के चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें और उनके आशीर्वाद से जीवन को धन्य करें।
पावन कथा
माँ गंगा के धरती पर अवतरण की कथा अत्यंत प्राचीन, अद्भुत और प्रेरणादायक है। यह कथा सूर्यवंश के प्रतापी राजा सगर से आरंभ होती है, जिनके साठ हज़ार पुत्र थे। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य अपनी सार्वभौमिक सत्ता स्थापित करना था। देवराज इंद्र, जो अपने सिंहासन के प्रति ईर्ष्यालु थे, ने यज्ञ के घोड़े को चुराकर महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया। राजा सगर के पुत्र घोड़े की तलाश में पृथ्वी के कोने-कोने में भटकते हुए महर्षि कपिल के आश्रम तक पहुँच गए। उन्होंने महर्षि को ही घोड़ा चुराने वाला मान लिया और बिना सोचे-समझे उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया।
महर्षि कपिल अपनी गहन तपस्या में लीन थे। जब उनकी तपस्या भंग हुई और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं, तो उनके क्रोध की अग्नि से राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र पल भर में भस्म हो गए और उनकी आत्माएँ प्रेत योनि में भटकने लगीं। उन्हें मोक्ष तभी मिल सकता था, जब स्वर्ग की पवित्र गंगा नदी धरती पर आकर उनकी भस्म को स्पर्श करे।
कई पीढ़ियाँ बीत गईं। राजा सगर के पुत्रों में से केवल अंशुमान ही जीवित बचे थे। अंशुमान ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का अथक प्रयास किया, परंतु वे सफल नहीं हो सके। उनके पुत्र दिलीप ने भी यही संकल्प लिया, परंतु वे भी विफल रहे। अंततः, दिलीप के पुत्र और सगर के प्रपौत्र, राजा भगीरथ ने इस असंभव कार्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया।
राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने ब्रह्मा जी से गंगा को पृथ्वी पर भेजने का आग्रह किया। ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि गंगा का प्रवाह इतना तीव्र है कि पृथ्वी उसे सहन नहीं कर सकती। उन्होंने भगीरथ को भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी, ताकि वे गंगा के वेग को अपनी जटाओं में धारण कर सकें।
भगीरथ ने एक बार फिर कठोर तपस्या आरंभ की, इस बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए। उनकी अनवरत तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रवाहित होने लगीं, तो भगवान शिव ने अपनी विशाल जटाओं में उन्हें धारण कर लिया। गंगा का वेग शिव की जटाओं में सिमट गया और वे एक छोटी सी धारा के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुईं। भगीरथ ने गंगा का पथ प्रदर्शन किया और गंगा उनके पीछे-पीछे चलती रहीं, जहाँ-जहाँ भगीरथ चले, वहाँ-वहाँ गंगा भी बहीं।
अंततः, गंगा सागर तीर्थ पर पहुँची, जहाँ राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों की भस्म पड़ी थी। गंगा के पवित्र जल ने जैसे ही उस भस्म को स्पर्श किया, राजा सगर के सभी पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हो गया और वे स्वर्ग लोक को चले गए। तभी से माँ गंगा को ‘भागीरथी’ और ‘मोक्षदायिनी’ के नाम से जाना जाता है। उनकी यह पावन कथा हमें तपस्या, संकल्प, परोपकार और पितृभक्ति का अनुपम संदेश देती है।
दोहा
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, शांतनु सुखद तरंग॥
चौपाई
जय जय जननि हरण अघ खानी। आनंद करनि सकल शुभ दानी॥
जय भगिरथी सुरसरि माता। नित्त नव कल्याणी सुखदाता॥
जय जय जहानु सुता अघ हरनी। भीष्म की माता सुरवरनी॥
भागीरथी ते नाम सुहावन। पाप करत मन पावन पावन॥
सुंदर सिय नाम धरनि। निर्मल निरंजन सुखभरणी॥
कलिहरनी मोक्ष की दाई। जननी जय जय नाम सुहाई॥
महादेव की प्रियतम जानी। भक्तन की दुख हरनी भवानी॥
शिव शिर सोहत शुभ्रमय रूप। हरणी सकल अघ भव कूप॥
गंगा गंगा जो जन कहहीं। दूर करत सब पातक जवहीं॥
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण। जहां बहे सो सुखद सुप्रीत छिन॥
अस्थि डारि नर जो जन पावै। मुक्ति फल सो सब सुख पावै॥
सुतहित जो गंगा जल लावै। मुक्ति के धाम को जावै॥
सगर सुवन जो पार उतरहीं। सुख संपति तेही जन धरहीं॥
श्री गंगा मातु कल्याणी। नित प्रति देति रहत शुभ वाणी॥
कीर्ति बढ़ात सुख संपति आनी। जननी जय जय सुरवर धानी॥
जो जन गंगा का गुण गावै। जन्म जन्म के दुख मिट जावै॥
अष्ट सिद्धि नव निधि फल पावै। अंतकाल वैकुंठ सिधावै॥
शांतनु सुत ने कियो विचारा। गंगे मातु देहु अवतारा॥
ब्रह्मा विष्णु महादेव सार। चरण धरे तीनों भव पार॥
जो नर पड़े प्रेम से चालीसा। होइ सकल सिद्धी अरु ईसा॥
सुख संपति तेही घर आवै। दुख दारिद भय सब मिट जावै॥
कामता पूरन होवै सारी। जय जय जय सुरसरी हमारी॥
यह चालीसा पढ़त जो कोई। सुख संपति नित्त नित्त होई॥
दीन हीन जो भक्ति बढ़ावै। निस्चय ही नर मोक्ष पावै॥
शांतनु सुवन को जो नाम गावै। मुक्ति फल सो सब सुख पावै॥
गंगा चालीसा नित्त पढ़त। संकट हरत सँवरत बढ़त॥
पाठ करने की विधि
गंगा चालीसा का पाठ करने से पूर्व मन और शरीर की शुद्धता अत्यंत आवश्यक है। सर्वप्रथम प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो, तो किसी पवित्र नदी या जल स्रोत के निकट बैठें, अन्यथा अपने घर के पूजा स्थान पर बैठें। माँ गंगा की एक सुंदर प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक दीपक प्रज्वलित करें, धूप और अगरबत्ती जलाएँ। पुष्प, फल और नैवेद्य अर्पित करें। शांत चित्त से आँखें बंद कर माँ गंगा का ध्यान करें। इसके बाद, दृढ़ संकल्प के साथ गंगा चालीसा का पाठ आरंभ करें। पाठ करते समय प्रत्येक शब्द का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध होना चाहिए। पाठ पूर्ण होने के पश्चात् माँ गंगा से अपनी मनोकामना पूर्ण करने और सभी पापों का शमन करने की प्रार्थना करें। नियमित रूप से यह पाठ करने से अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं।
पाठ के लाभ
गंगा चालीसा का पाठ करने से अनगिनत आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं। यह पाठ भक्तों के समस्त पापों को धोकर मन को शुद्ध करता है, ठीक वैसे ही जैसे माँ गंगा का पवित्र जल सभी अशुद्धियों को बहा ले जाता है। इसके नियमित पाठ से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। रोग-दोष दूर होते हैं और भय तथा चिंताएँ समाप्त होती हैं। यह पाठ नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मकता का संचार करता है। जिस प्रकार श्री राम चालीसा का पाठ भक्तों को राम नाम की शक्ति और प्रभु राम के आदर्शों से जोड़ता है, उसी प्रकार गंगा चालीसा माँ गंगा के दिव्य गुणों और उनकी मोक्षदायिनी शक्ति का अनुभव कराता है। यह आत्मविश्वास में वृद्धि करता है, मानसिक स्पष्टता प्रदान करता है और अंततः मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका पाठ करते हैं, उन्हें माँ गंगा का साक्षात आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उनका लौकिक और पारलौकिक दोनों जीवन सफल हो जाता है।
नियम और सावधानियाँ
गंगा चालीसा का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि पाठ का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। सबसे पहले, पाठ के लिए निर्धारित समय पर ही बैठें, प्रयास करें कि यह प्रातःकाल या संध्याकाल का समय हो। पाठ करने से पूर्व शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखना अनिवार्य है; स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और मन में किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार न लाएँ। गंगा मैया के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें। पाठ के दौरान एकाग्रता बनाए रखें और किसी भी प्रकार के बाहरी व्यवधान से बचें। धूम्रपान या मदिरापान करने वाले व्यक्तियों को यह पाठ नहीं करना चाहिए। यदि किसी विशेष अनुष्ठान के रूप में पाठ कर रहे हैं, तो एक निश्चित संख्या में पाठ करने का संकल्प लें और उसे पूर्ण करें। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें; पूजा स्थान साफ-सुथरा होना चाहिए। सच्चे मन से किया गया पाठ ही फलदायी होता है, अतः दिखावे से बचें और हृदय से माँ गंगा का स्मरण करें। इन नियमों का पालन करने से पाठ की दिव्यता और प्रभावशीलता कई गुना बढ़ जाती है।
निष्कर्ष
गंगा चालीसा केवल शब्दों का समूह नहीं, अपितु माँ गंगा के प्रति अगाध प्रेम और अटूट श्रद्धा का पवित्र संगम है। यह हमें उस दिव्य शक्ति से जोड़ता है, जिसने करोड़ों वर्षों से इस धरा को अपनी अमृतमयी धारा से सींचा है, पापियों को तार तार दिया है और जीवनदायिनी शक्ति प्रदान की है। जिस प्रकार राम नवमी के पावन अवसर पर या अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के पश्चात् श्री राम चालीसा का पाठ हमें भगवान राम के आदर्शों और उनकी मर्यादा से जोड़ता है, उसी प्रकार गंगा चालीसा का पाठ हमें माँ गंगा की निर्मलता, त्याग और अनवरत प्रवाहित होने की प्रेरणा देता है। यह पाठ हमें सिखाता है कि जीवन की हर बाधा को पार करते हुए हमें अपने गंतव्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। आइए, हम सभी माँ गंगा के इस पावन चालीसा का नियमित पाठ कर उनके दिव्य आशीर्वाद के पात्र बनें। यह हमें आंतरिक शांति, शुद्धि और मोक्ष प्रदान करेगा। माँ गंगा का नाम जपने मात्र से ही समस्त क्लेशों का नाश होता है और जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश का संचार होता है। हर हर गंगे!

