गंगा चालीसा सम्पूर्ण पाठ

गंगा चालीसा सम्पूर्ण पाठ

गंगा चालीसा सम्पूर्ण पाठ

प्रस्तावना
सनातन धर्म में माँ गंगा को केवल एक नदी नहीं अपितु साक्षात देवी, जीवनदायिनी और मोक्ष प्रदायिनी माना जाता है। उनकी पवित्र धारा में स्नान मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और आत्मा को परम शांति प्राप्त होती है। माँ गंगा की महिमा का गुणगान हमारे धर्मग्रंथों में अनेक रूपों में किया गया है। हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का महापर्व मनाया जाता है, जो इस वर्ष दो हजार चौबीस में विशेष शुभ संयोग लेकर आ रहा है। यह दिन माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का स्मरण कराता है और भक्तों को उनके दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने का अनमोल अवसर प्रदान करता है। इस पावन अवसर पर और सामान्य दिनों में भी माँ गंगा की कृपा पाने का एक सरल और अत्यंत प्रभावी माध्यम है गंगा चालीसा का पाठ। यह चालीसा माँ गंगा के स्वरूप, महिमा और उनके पृथ्वी पर आगमन की गाथा को भक्तिमय शब्दों में पिरोकर, भक्तों के हृदय में श्रद्धा और प्रेम की अविरल धारा प्रवाहित करती है। आइए, इस पावन चालीसा के संपूर्ण पाठ के साथ माँ गंगा की असीम अनुकंपा को अपने जीवन में उतारें और उनके दिव्य स्वरूप का चिंतन करें। यह पाठ न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

पावन कथा
माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण एक अत्यंत दिव्य और प्रेरणादायी गाथा है, जो त्याग, तपस्या और परोपकार की अद्भुत मिसाल है। प्राचीन काल में सूर्यवंशी राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था। देवराज इंद्र को भय हुआ कि राजा सगर स्वर्ग पर अधिकार कर लेंगे, अतः उन्होंने यज्ञ के घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया। सगर के साठ हजार पुत्र घोड़े की खोज करते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुँचे और उन्हें घोड़े के पास देखकर मुनि को चोर समझ बैठे। क्रोधित कपिल मुनि ने अपने तप के तेज से उन सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। उनकी आत्माओं को मुक्ति नहीं मिल पा रही थी और वे प्रेतयोनि में भटक रहे थे। राजा सगर के पौत्र अंशुमान और फिर उनके पुत्र दिलीप ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की, परंतु गंगा को पृथ्वी पर लाने में असफल रहे। अंततः राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति का संकल्प लिया। उन्होंने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की, ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे वरदान माँगा कि माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हों, ताकि उनके पूर्वजों की अस्थियों का स्पर्श कर उन्हें मोक्ष मिल सके। ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि गंगा का वेग इतना प्रचंड है कि पृथ्वी उसे सहन नहीं कर सकती। अतः भगीरथ को भगवान शिव को प्रसन्न करना होगा। भगीरथ ने पुनः घोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने गंगा के वेग को अपनी जटाओं में धारण कर लिया और फिर धीरे-धीरे एक पतली धारा के रूप में उन्हें पृथ्वी पर छोड़ा। इस प्रकार, माँ गंगा शिव की जटाओं से होकर पृथ्वी पर अवतरित हुईं और भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर सगर पुत्रों के भस्म अवशेषों तक पहुँचीं। गंगा के पवित्र जल के स्पर्श मात्र से सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे स्वर्ग लोक को चले गए। तभी से माँ गंगा को पतित पावनी, मोक्ष प्रदायिनी और भगीरथी के नाम से भी जाना जाता है। उनकी यह पावन कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची लगन, निष्ठा और तपस्या से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।

संपूर्ण पाठ
गंगा चालीसा

दोहा
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी, शांति स्वरूप अभंग ॥

चौपाई
जय जय जय जननी हरिनी, भक्तन प्राण सुखिनी ।
हरि पद पद्म प्रकटी, भव भय दुख हरनी ॥१॥
विष्णु चरण से प्रकट भई, ब्रह्मा ने शीश चढ़ाई ।
त्रिभुवन तारिणी सुरसरि, भक्तन को सुखदाई ॥२॥
शंकर जटा से निकली, सुर मुनि नर सब ध्याई ।
पावन करती जग को, पापी जन उध्दाई ॥३॥
अगम अपार महिमा, तीनों लोक में छाई ।
नर नारि सब पूजें, जन जन को सुखदाई ॥४॥
भगीरथ तपस्या कीनी, इंद्र ने विघ्न डारी ।
शंकर जी ने शीश चढ़ाई, त्रिवेणी रूप धारी ॥५॥
काशी केवट संग चली, हर हर शब्द सुनाई ।
जग जन जीवन तारिणी, सब को मुक्ति दिलाई ॥६॥
अति पावन है गंग जल, गंगा जल जो न्हाई ।
पाप कटे सब जन्म के, मुक्ति सहज में पाई ॥७॥
गंगा जल की महिमा, वेदों ने गाई ।
तीरथराज प्रयाग में, संगम शुभ फलदाई ॥८॥
काशी विश्वनाथ की, शोभा बढ़ाती जाई ।
प्रभु राम जी भी पूजे, सीता संग आई ॥९॥
गंगा तट पर जो मरे, बैकुंठ धाम को जाई ।
पशु पक्षी भी तर जाते, महिमा वरणी न जाई ॥१०॥
ब्रह्मलोक से अवतरित, स्वर्ग की सीढ़ी लाई ।
पापियों को तारती, मुक्ति मार्ग दिखाई ॥११॥
जो जन गंगा चालीसा, प्रेम सहित नित गाई ।
घर में सुख संपत्ति आवे, मनवांछित फल पाई ॥१२॥
अष्ट सिद्धि नव निधि, घर में आप समाई ।
भूत प्रेत भय भागे, रोग दोष मिट जाई ॥१३॥
दरिद्रता दुःख भंजन, चिंता शोक न साई ।
यश कीर्ति धन वैभव, घर में वृद्धि पाई ॥१४॥
पुत्र पौत्र धन धान्य, सब कुछ घर में आई ।
अंत समय में मुक्ति पावे, प्रभु लोक में जाई ॥१५॥
कली काल में गंगा जी, पापों का नाश कराई ।
जो जन शरण तुम्हारी, भव सागर तर जाई ॥१६॥
नित प्रति जो नर पूजे, श्रद्धा भाव मन लाई ।
उसे न कुछ कमी होती, आनंद मंगल पाई ॥१७॥
गंगा चालीसा जो पढ़े, मन इच्छा फल पाई ।
संकट सब मिट जाते, सुख शांति अधिकाई ॥१८॥
जो जन गंगा जल पिये, पापों से छुटकारा पाई ।
जन्म जन्म के बंधन से, मुक्ति सहज में आई ॥१९॥
गंगा मैया की कृपा से, सब दुख दूर भगाई ।
जन जन को सुख देती, सब की बिगड़ी बनाई ॥२०॥
जय जय जय सुरसरि मैया, महिमा अगम्य बताई ।
जो निज जन की रक्षा करती, भव सागर से तारी ॥२१॥

दोहा
गंगा चालीसा जो पढ़े, नित्य भक्ति चित लाई ।
मनवांछित फल पाकर, परम धाम को जाई ॥
गंगोत्री से निकली, हरिद्वार में आई ।
काशी प्रयाग में पूजित, महिमा कही न जाई ॥

पाठ करने की विधि
गंगा चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ सरल नियमों का पालन करना चाहिए ताकि आप माँ गंगा की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकें। सर्वप्रथम, प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो तो गंगा जल मिश्रित जल से स्नान करें। अपने घर के पूजा स्थल पर माँ गंगा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक स्वच्छ आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करें। सर्वप्रथम गंगा मैया का ध्यान करें और मन ही मन उनसे अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें। इसके बाद धूप, दीप प्रज्वलित करें और गंगा मैया को पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन और भोग अर्पित करें। यदि गंगा जल उपलब्ध हो तो उसे एक पात्र में रखकर पूजा में शामिल करें। चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें। अब, शांत मन से, पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ गंगा चालीसा का पाठ प्रारंभ करें। पाठ करते समय प्रत्येक चौपाई और दोहे का अर्थ समझने का प्रयास करें और माँ गंगा के दिव्य स्वरूप का चिंतन करें। पाठ के उपरांत माँ गंगा की आरती करें और उनसे अपने सभी पापों की क्षमा तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें। गंगा दशहरा जैसे पावन पर्व पर यह पाठ विशेष फलदायी होता है।

पाठ के लाभ
गंगा चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं। यह चालीसा पापों से मुक्ति दिलाने में अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। जो भक्त सच्चे हृदय से इसका पाठ करता है, उसे जन्म-जन्मांतर के संचित पापों से छुटकारा मिलता है और आत्मा शुद्ध होती है। यह पाठ मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, क्योंकि माँ गंगा को मोक्ष प्रदायिनी कहा गया है। इसके जाप से व्यक्ति को मानसिक शांति और आंतरिक सुख की अनुभूति होती है, समस्त चिंताएं और भय दूर होते हैं। घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और वैभव का वास होता है, दरिद्रता का नाश होता है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले भक्तों को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। रोगों से मुक्ति मिलती है और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों का भय समाप्त होता है। यश, कीर्ति और मान-सम्मान में वृद्धि होती है। विशेष रूप से गंगा दशहरा के दिन गंगा चालीसा का पाठ करने से माँ गंगा की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह पाठ न केवल लौकिक सुख प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है, जिससे व्यक्ति ईश्वर के करीब आता है।

नियम और सावधानियाँ
गंगा चालीसा का पाठ करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है ताकि आप माँ गंगा की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकें और पाठ का उचित फल मिल सके। सबसे पहले तो शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखना अनिवार्य है। पाठ करने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन में किसी प्रकार का छल, कपट, ईर्ष्या या द्वेष का भाव न रखें। एकाग्रचित्त होकर पाठ करें, ध्यान भटकने न दें। पाठ करते समय शांत और पवित्र स्थान का चुनाव करें जहाँ आपको कोई बाधा न हो। पाठ के दौरान धूम्रपान, मद्यपान या तामसिक भोजन का सेवन बिल्कुल न करें। चालीसा का पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ करें, शब्दों को तोड़-मरोड़ कर या जल्दबाजी में न पढ़ें। यदि संभव हो तो प्रत्येक दिन एक निश्चित समय पर ही पाठ करें, यह नियमितता पाठ की शक्ति को बढ़ाती है। महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान चालीसा का पाठ करने से बचना चाहिए या मानसिक पाठ करना चाहिए। किसी भी प्रकार के दिखावे या लोभ के लिए पाठ न करें, बल्कि पूर्ण श्रद्धा और भक्तिभाव से माँ गंगा की स्तुति करें। बच्चों को भी सही विधि सिखाकर पाठ करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इन नियमों का पालन करने से पाठ का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है और माँ गंगा की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है।

निष्कर्ष
माँ गंगा की महिमा अपरंपार है, जो सदियों से इस धरा को अपने अमृतमयी जल से सिंचित करती आ रही हैं। वे केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी आस्था और हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं। गंगा चालीसा का पाठ माँ गंगा के इसी दिव्य और अलौकिक स्वरूप से जुड़ने का एक सरल और सुलभ माध्यम है। यह हमें उनके त्याग, उनकी पवित्रता और उनकी मोक्ष प्रदायिनी शक्ति का स्मरण कराता है। जब हम श्रद्धापूर्वक इस चालीसा का पाठ करते हैं, तो हमारे हृदय में भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित होती है, हमारे पापों का शमन होता है और हमें आंतरिक शांति की अनुभूति होती है। गंगा दशहरा का पावन पर्व हमें इस चालीसा के माध्यम से माँ गंगा के चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करने का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है। आइए, हम सभी अपने जीवन में माँ गंगा के इस पावन चालीसा को धारण करें, उनके पवित्र नाम का स्मरण करें और उनके दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य करें। माँ गंगा की कृपा से हमारे सभी दुख दूर हों, मनवांछित फल प्राप्त हों और अंततः हमें मोक्ष की प्राप्ति हो। जय माँ गंगे! हर हर गंगे!

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