सीता माता के 51 नाम
प्रस्तावना
सनातन धर्म में नारी शक्ति का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप यदि कहीं प्रस्फुटित हुआ है, तो वह हैं जगज्जननी माँ सीता। वे केवल अयोध्या के राजकुमार श्रीराम की अर्धांगिनी मात्र नहीं, अपितु त्याग, पवित्रता, धैर्य, प्रेम और अडिग धर्मपरायणता की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं। मिथिला की राजकुमारी से लेकर लंका की अशोक वाटिका तक और फिर पृथ्वी में समा जाने तक, उनका संपूर्ण जीवन एक अप्रतिम गाथा है, जो हर युग में स्त्री जाति को प्रेरणा देती है। माँ सीता के पावन नाम मात्र शब्द नहीं, अपितु उनके दिव्य गुणों, जीवन के विभिन्न पड़ावों और उनकी असीम शक्ति के परिचायक हैं। इन 51 नामों में उनकी संपूर्ण महिमा समाहित है, जो भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इन नामों का जाप करने से मन शुद्ध होता है, आत्मा को शांति मिलती है और जीवन के हर संघर्ष में माँ सीता जैसी अडिगता प्राप्त होती है। आइए, हम सब मिलकर इन नामों का स्मरण कर उनके चरणों में अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें और उनके दिव्य आशीर्वाद के भागी बनें।
पावन कथा
प्राचीन काल में मिथिलापुरी में महाराजा जनक का निष्कलंक शासन था। वे धर्मपरायण और ज्ञानी थे, किंतु संतानहीन होने का दुःख उन्हें सताता था। एक बार अकाल के निवारण हेतु यज्ञ करने के लिए उन्होंने स्वयं हल चलाया। भूमि में हल चलाने पर उन्हें एक स्वर्ण मंजूषा मिली, जिसमें अत्यंत तेजोमय कन्या विराजमान थी। हल की नोक को ‘सीता’ कहते हैं, अतः राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रखा। पृथ्वी से उत्पन्न होने के कारण वह भूमिजा कहलाई, जनक की पुत्री होने के नाते जानकी और विदेह (जनक) की पुत्री होने के कारण वैदेही। सीता का बचपन मिथिला के राजप्रासाद में बीता, जहाँ उन्होंने समस्त विद्याएँ और संस्कार ग्रहण किए। उनकी पवित्रता, सौम्यता और बुद्धिमत्ता अनुपम थी। युवावस्था में महाराजा जनक ने शिव धनुष भंग करने की शर्त पर सीता का स्वयंवर रचा। अनेक बलशाली राजा और राजकुमार विफल हुए, किंतु अंततः अयोध्या के राजकुमार राम ने शिव धनुष तोड़कर सीता को वरण किया। यह शुभ घटना रामप्रिया सीता के जीवन में एक नया अध्याय लेकर आई।
विवाह के पश्चात् वे अयोध्या आईं और महारानी का पद प्राप्त किया। किंतु नियति को कुछ और ही स्वीकार था। मंथरा के कुचक्र और कैकेयी के वरदान के कारण राम को चौदह वर्ष का वनवास मिला। सीता ने सहर्ष राजसी सुखों का त्याग कर अपने पति राम के साथ वनगमन का निर्णय लिया। वे राम के हर दुःख-सुख में सहचरी बनीं। वन में रहते हुए, एक दिन रावण ने छलपूर्वक उनका हरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। अशोक वाटिका में रावण की कठोर यातनाओं और धमकियों के बावजूद, सीता का मन अविचल रहा। उन्होंने अपनी मर्यादा, पवित्रता और राम के प्रति अटूट विश्वास का परिचय दिया। वे अशोकवनिकास्थिता होकर भी राम के आगमन की प्रतीक्षा में धीरा बनी रहीं। हनुमंत लाल ने उन्हें राम का संदेश दिया, जिसने उनके धैर्य को और भी बढ़ाया।
राम ने वानर सेना के साथ समुद्र पर सेतु बनाकर लंका पर चढ़ाई की और रावण का वध किया। विजयी राम ने सीता को प्राप्त किया, किंतु समाज के समक्ष अपनी पत्नी की पवित्रता सिद्ध करने हेतु उन्होंने अग्नि परीक्षा का आग्रह किया। लोकापवाद को शांत करने के लिए सीता ने सहर्ष अग्नि में प्रवेश किया और अग्निदेव ने स्वयं उन्हें सकुशल राम को समर्पित कर उनकी पवित्रता की घोषणा की। यह उनकी पवित्ररूपा और शुचिरूपा होने का प्रमाण था। अयोध्या लौटने पर उनका राज्याभिषेक हुआ, किंतु एक धोबी के अपशब्दों के कारण राम ने उन्हें पुनः वन में भेजने का निर्णय लिया। गर्भवती सीता ने इस कठोर आदेश को भी स्वीकार किया और वाल्मीकि आश्रम में अपने जीवन का तपस्वी स्वरूप अपनाया। वहीं उन्होंने लव और कुश नामक दो वीर पुत्रों को जन्म दिया, जो वीरप्रसविनी कहलाए। अपने पुत्रों को शिक्षा देकर, जब राम ने उन्हें पुनः अयोध्या बुलाना चाहा और अपनी पवित्रता सिद्ध करने को कहा, तब माँ सीता ने अत्यंत दुःख और अपमान के साथ, अपनी जननी पृथ्वी देवी से प्रार्थना की। धरती फट गई और माँ सीता उसमें समा गईं। इस प्रकार वे धरात्मजा, धरणिसुता, भूमिजा और अयोनिया नामों को सार्थक करती हुईं अपने मूल स्वरूप में विलीन हो गईं। उनका जीवन त्यागिनी, सहिष्णु और पतिव्रता नारी का आदर्श है। उनके 51 नाम उनके इन्हीं दिव्य गुणों, उनकी शक्ति और उनके अमरत्व का स्मरण कराते हैं। इन नामों का ध्यान हमें जीवन के प्रत्येक मोड़ पर सही मार्ग दिखाता है और हमें माँ की असीम करुणा से जोड़ता है।
दोहा
सीता नाम सुमिरत सदा, मिटत सकल दुख द्वंद्व।
रामप्रिया की कृपा से, जीवन में आनंद।
चौपाई
जय जय सीता जानकि माई, तुम ही शक्ति, तुम सुखदाई।
पवित्रता की तुम प्रतिरूपा, पावन नाम तुम्हरे अनूपा।
शोक संताप हरत क्षण माहीं, जो जन तुम्हरी शरणा गाहीं।
करुणामयी, कल्याणी देवी, हर दुख-संकट हरत सदैव ही।
ये हैं सीता माता के 51 पावन नाम, जिनके स्मरण मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और उन्हें परम शांति प्राप्त होती है: सीता, जानकी, वैदेही, मैथिली, भूमिजा, धरात्मजा, धरणिसुता, अयोनिया, रामा, सीरध्वजी, कल्याणी, लक्ष्मी, शुभांगी, शुभदा, पवित्ररूपा, परमेश्वरी, महादेवी, सर्वमंगला, करुणामयी, पतिव्रता, त्यागिनी, सहिष्णु, धीरा, वीरप्रसविनी, वनवासिनी, अशोकवनिकास्थिता, लंकाविनाशिनी, रामप्रिया, जनकपुत्री, धर्मिष्ठा, साध्वी, सती, जगन्माता, सर्वभूतेश्वरी, सौम्या, दिव्या, त्रिलोकजननी, आदर्श नारी, दुःखहारिणी, क्लेशनाशिनी, भक्तवत्सला, तापसी, योगिनी, माया, शुचिरूपा, मंगलकारिणी, वरदायिनी, सिद्धीदात्री, मोक्षदायिनी, शाश्वती, सनातन।
पाठ करने की विधि
माँ सीता के इन 51 नामों का पाठ अत्यंत सरल और पवित्र है। इसे किसी भी दिन, विशेषकर मंगलवार, शुक्रवार या शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर करना विशेष फलदायी होता है। प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक शांत और पवित्र स्थान पर आसन बिछाकर बैठें। अपने सामने माँ सीता और भगवान राम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक दीपक प्रज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएँ। पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। अब शांत मन से इन 51 नामों का उच्चारण धीरे-धीरे और स्पष्टता से करें। आप चाहें तो एक माला (108 दाने) पर प्रत्येक नाम का एक बार या तीन बार जाप कर सकते हैं। नामों का पाठ करते समय माँ सीता के दिव्य स्वरूप, उनकी पवित्रता और उनके त्याग का ध्यान करें। आप इस पाठ को प्रतिदिन कर सकते हैं या किसी विशेष अवसर पर। पाठ के पश्चात् भगवान राम और माँ सीता से अपने कल्याण और भक्ति के लिए प्रार्थना करें।
पाठ के लाभ
माँ सीता के इन 51 नामों का नियमित पाठ करने से भक्तों को अनेक अलौकिक लाभ प्राप्त होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण लाभ है मन की शांति और आंतरिक पवित्रता की प्राप्ति। इन नामों के जाप से व्यक्ति के अंदर धैर्य, सहिष्णुता और त्याग की भावना जागृत होती है, जिससे वह जीवन के कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होता है। यह पाठ गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि लाता है और पति-पत्नी के संबंधों को मधुर व अटूट बनाता है। जो स्त्रियाँ आदर्श नारीत्व और मातृत्व की कामना करती हैं, उन्हें यह पाठ विशेष रूप से करना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर सकारात्मकता का संचार करता है। रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है, और जीवन के मार्ग में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं। इन नामों का जाप करने से माँ सीता की असीम करुणा और कृपा प्राप्त होती है, जो भक्तों को मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करती है। यह पाठ आत्मबल बढ़ाता है और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा को स्थापित करता है।
नियम और सावधानियाँ
माँ सीता के इन पवित्र नामों का पाठ करते समय कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक है, ताकि पाठ का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। सर्वप्रथम, मन और शरीर की शुद्धि अत्यंत आवश्यक है। पाठ करने से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पाठ के दौरान मन में किसी भी प्रकार का नकारात्मक विचार न लाएँ। पूर्ण श्रद्धा और भक्तिभाव से ही पाठ करें। मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का त्याग करें। पाठ करते समय सात्विक भोजन ग्रहण करें। ब्रह्मचर्य का पालन करना विशेष फलदायी होता है, यदि संभव हो। पाठ को बीच में न रोकें, पूरे 51 नामों का उच्चारण एक बैठक में करें। यदि आप महिला हैं और मासिक धर्म की स्थिति में हैं, तो सीधे पाठ करने के बजाय मानसिक जाप कर सकती हैं या कुछ दिनों के लिए पाठ से विराम ले सकती हैं। बच्चों को भी इन नामों के महत्व को समझाना चाहिए और उन्हें भी शुद्ध मन से जाप करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। गुरु या माता-पिता के आशीर्वाद से किया गया पाठ अधिक फलदायी होता है।
निष्कर्ष
माँ सीता का नाम सनातन संस्कृति में अमर है। उनका जीवन एक अनुपम ग्रंथ है, जिसके हर पृष्ठ पर त्याग, धर्म और प्रेम की अद्भुत गाथा अंकित है। उनके 51 नाम केवल वर्णमाला के शब्द नहीं, अपितु उनके विराट व्यक्तित्व और उनकी असीम दिव्यता का सार हैं। इन नामों का स्मरण हमें यह सिखाता है कि जीवन में कितनी भी विषम परिस्थितियाँ क्यों न आएँ, हमें अपनी मर्यादा, पवित्रता और धर्म पर अटल रहना चाहिए। माँ सीता की करुणा और शक्ति इतनी महान है कि उनके नाम मात्र का जाप करने से ही बड़े-बड़े संकट दूर हो जाते हैं और भक्तों का जीवन सुख-शांति से भर जाता है। आइए, हम सब मिलकर इस कलिकाल में माँ जानकी के इन पवित्र नामों का निरंतर जाप करें और उनके आदर्शों को अपने जीवन में धारण कर एक पवित्र, धर्मपरायण और सुखी जीवन की ओर अग्रसर हों। माँ सीता हम सभी पर अपनी असीम कृपा बरसाएँ। जय सियाराम!
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Format: Devotional Article
Category: देवी भक्ति, स्तोत्र पाठ
Slug: sita-mata-ke-51-naam
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