अक्षय तृतीया व्रत 2025
प्रस्तावना
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आने वाला अक्षय तृतीया का पावन पर्व सनातन धर्म में सर्वाधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्ष 2025 में भी यह तिथि अपने साथ अनंत पुण्य और सौभाग्य का संचार लेकर आएगी। ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है ‘जो कभी क्षय न हो’, यानी जिसका कभी नाश न हो, जो अविनाशी हो। इस दिन किए गए सभी शुभ कार्य, दान-पुण्य, जप-तप और स्नान-दान अक्षय फल प्रदान करते हैं। यही कारण है कि यह दिन बिना किसी मुहूर्त के विचार के, किसी भी नए कार्य के आरंभ, विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय का शुभारंभ या किसी भी प्रकार की खरीदारी के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु, माँ लक्ष्मी और भगवान परशुराम की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस पावन तिथि पर स्वयं भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी और सतयुग व त्रेतायुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था। माँ गंगा का धरती पर अवतरण भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था, जिससे यह तिथि और भी पवित्र हो जाती है। यह पर्व हमें केवल भौतिक समृद्धि ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और सत्कर्मों की ओर भी प्रेरित करता है। इस दिन की गई भक्ति और समर्पण से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का ‘अक्षय’ भंडार भर जाता है।
पावन कथा
अक्षय तृतीया का संबंध अनेक पौराणिक और धार्मिक घटनाओं से है, जो इसकी महिमा को और भी बढ़ा देती हैं। यह दिन केवल एक तिथि नहीं, बल्कि कई शुभ घटनाओं का संगम है, जो इसे अक्षय फलदायी बनाता है।
सबसे पहली और महत्वपूर्ण कथा भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्म से जुड़ी है। माना जाता है कि परशुराम जी का जन्म इसी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। वे अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं, यानी वे आज भी पृथ्वी पर विद्यमान हैं और कलयुग के अंत तक रहेंगे। उनका जन्म अधर्मियों का नाश कर धर्म की स्थापना के लिए हुआ था, और इसलिए इस दिन उनकी पूजा से शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, इसी पावन तिथि पर माँ गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा माता ने पृथ्वी पर आकर उसे पापों से मुक्त किया। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। जो भक्त इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं, उन्हें पापों से मुक्ति और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
महाभारत काल में भी अक्षय तृतीया का विशेष उल्लेख मिलता है। जब पांडव अपने वनवास काल में थे और भोजन के संकट से जूझ रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को ‘अक्षय पात्र’ प्रदान किया था। इस पात्र की विशेषता थी कि इसमें से भोजन तब तक समाप्त नहीं होता था, जब तक द्रौपदी स्वयं भोजन न कर लें। अक्षय तृतीया के दिन ही द्रौपदी को यह दिव्य पात्र प्राप्त हुआ था, जिसने पांडवों और उनके अतिथियों को वनवास काल में कभी भूखा नहीं रहने दिया। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना और भक्ति से ईश्वर कभी अपने भक्तों को निराश नहीं करते और उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
एक और हृदयस्पर्शी कथा भगवान श्रीकृष्ण और उनके बचपन के मित्र सुदामा की है। सुदामा अत्यंत निर्धन थे और अपनी पत्नी के कहने पर वे द्वारका में श्रीकृष्ण से मिलने गए। संकोचवश सुदामा कुछ मांग नहीं पा रहे थे, लेकिन उनके पास भेंट के रूप में केवल मुट्ठी भर चावल थे। श्रीकृष्ण ने वही चावल बड़े प्रेम से ग्रहण किए और सुदामा के बिना मांगे ही उनकी दरिद्रता को अक्षय धन और ऐश्वर्य में बदल दिया। सुदामा जब अपने घर लौटे तो उन्हें अपनी झोपड़ी के स्थान पर विशाल महल मिला। यह चमत्कार अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था, जो मित्रता, निस्वार्थ प्रेम और ईश्वर की अहैतुकी कृपा का अनुपम उदाहरण है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ भी इसी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। भगवान ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ‘अक्षयक’ का जन्म भी इसी दिन हुआ था, जिनके नाम पर ही इस तिथि का नाम ‘अक्षय तृतीया’ पड़ा। इस दिन दान-पुण्य करने से कुबेर को भगवान शिव और देवी पार्वती से धन-धान्य की अक्षय निधि प्राप्त हुई थी, जिससे वे धन के स्वामी बने।
इन सभी कथाओं का सार यही है कि अक्षय तृतीया का दिन अत्यंत शुभ और फलदायी है। इस दिन किए गए छोटे से छोटे शुभ कार्य का फल भी ‘अक्षय’ हो जाता है और जन्म-जन्मांतर तक उसका लाभ मिलता रहता है। यह दिन हमें निस्वार्थ कर्म, दान और भक्ति के माध्यम से जीवन में अक्षय सुख और समृद्धि प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
दोहा
अक्षय तृतीया पावन तिथि, सुख-समृद्धि बरसाय।
विष्णु-लक्ष्मी कृपा से, घर आँगन हर्षाएँ।
चौपाई
मंगल मूरति श्री हरि रामा, अक्षय तिथि सब पूरण कामा।
जो नर यह दिन व्रत उपचारा, मिटहिं सकल दुःख भव संसारा।
दान धर्म तप तीरथ कीन्हा, कोटि गुना फल हरि से लीन्हा।
लक्ष्मी संग विष्णु विराजे, भक्ति भाव से मन सब साजे।
जो श्रद्धा से करे यह पूजा, अक्षय फल पावे जग दूजा।
स्वर्ण, रजत, भूमि जो लीन्हा, सुख संपत्ति अक्षय हरि दीन्हा।
पाठ करने की विधि
अक्षय तृतीया के दिन व्रत और पूजा-पाठ की विधि अत्यंत सरल और फलदायी है। श्रद्धा और पवित्रता से इसे संपन्न करने पर साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
1. **प्रातःकाल स्नान**: इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. **संकल्प**: पूजा का आरंभ करने से पहले हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। मन ही मन भगवान से अपनी मनोकामना पूर्ति और व्रत सफलतापूर्वक संपन्न करने की प्रार्थना करें।
3. **पूजा स्थान की शुद्धि**: घर के मंदिर या पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएँ।
4. **विष्णु और लक्ष्मी जी की स्थापना**: चौकी पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही, भगवान परशुराम जी का चित्र या प्रतीक भी स्थापित कर सकते हैं।
5. **कलश स्थापना**: एक कलश में जल भरकर उस पर आम के पत्ते और नारियल रखकर स्थापित करें। यह समृद्धि का प्रतीक है।
6. **दीपक प्रज्वलन**: घी का दीपक जलाएँ और धूपबत्ती प्रज्वलित करें।
7. **पूजन**: भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी को चंदन, कुमकुम, अक्षत (बिना टूटे हुए चावल), पुष्पमाला, तुलसी दल (विष्णु जी को विशेष रूप से प्रिय), फल और नैवेद्य (खीर, मिठाई) अर्पित करें। पीली मिठाई या बेसन के लड्डू विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
8. **अक्षय पात्र का पूजन**: यदि घर में कोई अक्षय पात्र (जैसे रसोई का कोई बर्तन या धन रखने का पात्र) हो, तो उसका भी विधिवत पूजन करें। सोने या चांदी की खरीदारी की है तो उसे भी पूजा में रखें।
9. **मंत्र जाप**: ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। विष्णु सहस्रनाम या लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना भी अत्यंत शुभ होता है।
10. **अक्षय तृतीया व्रत कथा**: इस दिन अक्षय तृतीया से संबंधित पौराणिक कथाओं का श्रवण या पाठ अवश्य करें।
11. **आरती**: अंत में भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और परशुराम जी की श्रद्धापूर्वक आरती करें।
12. **दान**: पूजा संपन्न होने के बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, जल, वस्त्र, धन या अन्य वस्तुएँ दान करें। जल से भरा घड़ा और जौ का दान विशेष पुण्यकारी माना जाता है।
13. **व्रत पारण**: यदि व्रत रखा है, तो रात्रि में फलाहार करें या अगले दिन सुबह स्नान के बाद भोजन करके व्रत का पारण करें।
पाठ के लाभ
अक्षय तृतीया के दिन विधिवत पूजा-पाठ और व्रत करने से साधक को अनेक प्रकार के अक्षय लाभ प्राप्त होते हैं, जिनका वर्णन शास्त्रों में मिलता है।
1. **अक्षय पुण्य की प्राप्ति**: इस दिन किए गए छोटे से छोटे शुभ कर्म का फल भी ‘अक्षय’ हो जाता है, यानी उसका पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। दान, जप, तप और हवन का फल कई गुना बढ़कर मिलता है।
2. **धन-धान्य और समृद्धि**: भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती। व्यापार में वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। जो लोग इस दिन सोना या अन्य शुभ वस्तुएँ खरीदते हैं, उनके घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
3. **पापों का नाश**: अक्षय तृतीया के दिन सच्चे मन से किए गए स्नान, दान और पूजन से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है।
4. **मोक्ष की प्राप्ति**: शास्त्रों के अनुसार, इस दिन श्रद्धापूर्वक किए गए धर्म-कर्म व्यक्ति को मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं और जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति दिलाते हैं।
5. **मनोकामना पूर्ति**: इस दिन किए गए व्रत और पूजा से व्यक्ति की सभी सद्कामनाएँ पूर्ण होती हैं। अविवाहितों को सुयोग्य वर-वधू प्राप्त होते हैं, संतानहीन दंपतियों को संतान सुख मिलता है, और रोगी निरोगी काया प्राप्त करते हैं।
6. **ग्रह शांति**: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन किए गए अनुष्ठान से नवग्रहों की शांति होती है और उनके नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है। विशेष रूप से गुरु और शुक्र ग्रह से संबंधित दोषों का निवारण होता है।
7. **शत्रुओं पर विजय**: भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाए जाने के कारण, इस दिन उनकी पूजा से व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और आत्मबल में वृद्धि होती है।
8. **वंश वृद्धि**: इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष समाप्त होते हैं और वंश में वृद्धि व सुख-शांति बनी रहती है।
9. **सर्वदा सुख-शांति**: अक्षय तृतीया का दिन अपने नाम के अनुरूप ही जीवन में कभी न समाप्त होने वाले सुख, शांति और समृद्धि को लाता है। यह दिन सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और जीवन को आनंदमय बनाता है।
नियम और सावधानियाँ
अक्षय तृतीया के व्रत और पूजा के दौरान कुछ महत्वपूर्ण नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक है, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके और किसी प्रकार के दोष से बचा जा सके।
1. **पवित्रता और स्वच्छता**: इस दिन शारीरिक और मानसिक पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को पूर्णतः शुद्ध रखें।
2. **सात्विक आहार**: यदि व्रत रखा है, तो केवल फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें। लहसुन, प्याज, मांसाहार और तामसिक भोजन का पूर्णतः त्याग करें। व्रत न भी रखा हो, तो भी इस दिन सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
3. **ब्रह्मचर्य का पालन**: अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
4. **क्रोध और नकारात्मकता से बचें**: मन में किसी के प्रति ईर्ष्या, क्रोध, लोभ या द्वेष की भावना न रखें। झूठ बोलने, निंदा करने या किसी का अपमान करने से बचें। मन को शांत और सकारात्मक रखें।
5. **दान का महत्व**: इस दिन दान का अत्यधिक महत्व है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, जल, धन या अन्य उपयोगी वस्तुएँ दान अवश्य करें। ध्यान रहे कि दान सच्चे मन से और बिना किसी अपेक्षा के किया जाए। दान प्राप्त करने वाले का अपमान न करें।
6. **जल का दान**: गर्मी के मौसम में आने वाला यह पर्व जल दान के लिए विशेष महत्व रखता है। प्यासे को पानी पिलाना या सार्वजनिक स्थानों पर पानी की व्यवस्था करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
7. **व्यसनों से दूरी**: मदिरापान या किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें।
8. **वृद्धों और असहायों का सम्मान**: घर के बड़े-बुजुर्गों और समाज के कमजोर वर्ग के लोगों का आदर करें। उनकी सहायता करने का प्रयास करें।
9. **भूमि पूजन**: यदि इस दिन भूमि पूजन या गृह प्रवेश कर रहे हैं, तो पूर्ण विधि-विधान से और पंडित जी के मार्गदर्शन में ही करें।
10. **खरीदारी**: सोने, चांदी, जौ या मिट्टी के घड़े जैसी शुभ वस्तुओं की खरीदारी करने का प्रचलन है, परंतु यह सुनिश्चित करें कि खरीदारी आपकी सामर्थ्य के भीतर हो और इसमें दिखावा न हो।
11. **शामिल न करें वर्जित वस्तुएँ**: पूजा में भूलकर भी टूटे हुए चावल (अक्षत), सूखे या बासी फूल और तामसिक वस्तुएँ अर्पित न करें।
इन नियमों का पालन करते हुए अक्षय तृतीया का पर्व मनाने से व्यक्ति को निश्चित रूप से अक्षय पुण्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
अक्षय तृतीया का पावन पर्व केवल एक तिथि मात्र नहीं, बल्कि यह हमारी सनातन संस्कृति की आध्यात्मिक गहराई और कर्मफल के शाश्वत सिद्धांत का प्रतीक है। वर्ष 2025 में आने वाली यह अक्षय तृतीया हमें एक बार फिर अवसर प्रदान करेगी कि हम अपने जीवन में शुभता और सकारात्मकता के ‘अक्षय’ भंडार को भर सकें। यह दिन हमें सिखाता है कि जो कुछ भी हम श्रद्धा और पवित्रता के साथ करते हैं, उसका फल कभी क्षय नहीं होता। चाहे वह दान-पुण्य हो, तपस्या हो, या केवल एक सच्चे मन से की गई प्रार्थना हो, ईश्वर उसका प्रतिफल अक्षय रूप में अवश्य लौटाते हैं। यह पर्व हमें भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की अहैतुकी कृपा का स्मरण कराता है, जो धर्म परायण भक्तों पर सदैव बनी रहती है। तो आइए, इस पावन अक्षय तृतीया पर अपने अंतर्मन को शुद्ध करें, नेक कर्म करें, और प्रेम, शांति व समृद्धि के अक्षय फल की कामना के साथ ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करें। यह दिन हमें केवल भौतिक धन-संपत्ति ही नहीं, बल्कि अक्षय ज्ञान, अक्षय भक्ति और अक्षय संतोष की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

